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ये भी जान लीजिए कि इंसाफ होने तक रेप पीड़ित पर क्‍या गुजरती है

    • पारुल चंद्रा
    • Updated: 01 अक्टूबर, 2018 12:15 PM
  • 05 मई, 2017 06:00 PM
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2015 में हुए रेप के 50,509 मामलों की जांच होनी थी जिनमें से 31.8% की जांच अब भी बकाया है, वहीं दिल्ली की फास्ट ट्रैक कोर्ट्स में 1600 मामले अभी भी इंसाफ का रस्ता देख रहे हैं.

16 दिसंबर 2012 में हुए निर्भया गैंग रेप कांड पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुना दिया. निर्भया के साथ राजधानी में जो कुछ हुआ उसने पूरे देश को हिलाकर रख दिया था. इसके आरोपियों के खिलाफ पूरा देश एकजुट था और इसीलिए सुप्रीम कोर्ट का फैसला 5 सालों में आ गया. आज निर्भया को तो न्याय मिल गया लेकिन देश की हजारों निर्भया सालों से आज तक इंसाफ की रस्ता देख रही हैं.

लखनऊ की वो लड़की तब महज 13 साल की थी जब कुछ लोगों ने उसे जबरदस्ती एक कार में धकेलकर उसके साथ सामूहिक बलात्कार किया. इस घटना को 11 साल बीत गए, अब तक पीडिता दर्जनों बार अदालत में पेश हुई, आरोपी पकड़े गए और छूट गए, लेकिन न्याय आज भी नहीं मिला, अब हाईकोर्ट से उम्मीद जारी है, और न जाने कितने सालों तक और रहेगी. अफसोस की ऐसी सैकड़ों पीडित महिलाएं हैं.

वहीं ऐसे भी मुकदमे हैं जिनपर अब तक कोई सुनवाई तक नहीं की गई. बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार, 2014 में उत्तर प्रदेश के मुजफ़्फरनगर-शामली में हुए दंगों में 7 मुस्लिम महिलाएं भी सामूहिक बलात्कार की शिकार हुई थीं जिनकी सुनवाई एक नई धारा 376(2G) के तहत होनी थी. लेकिन साढ़े तीन साल बीत गए न्याय तो दूर सात में से कुछ के मामलों में आज तक सुनवाई नहीं हुई. अफसोस की ये सिर्फ अकेला मामला नहीं है.

जिस देश में हर आधे घंटे में एक रेप की घटना घटती हो उस देश में एक रेप केस पर न्याय मिलने में सालों का समय लगता है. लेकिन कैलेंडर तो बदल जाते हैं लेकिन इन पीडितों की जिंदगी नहीं बदलती, वो रुक जाती है, जैसे किसी ने उनकी जिंदगी होल्ड पर रख दी हो. बलात्कार पीड़िता ताउम्र पीडित रहती है, उसकी शादी नहीं होती, शादी शुदा हो तो समाज में इज्जत नहीं मिलती लेकिन आरोपी शादी भी करता है और एक हंसती खेलती जिंदगी भी बिताता है.

कानून तो है लेकिन सुस्त क्यों?

NCRB 2015 के...

16 दिसंबर 2012 में हुए निर्भया गैंग रेप कांड पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुना दिया. निर्भया के साथ राजधानी में जो कुछ हुआ उसने पूरे देश को हिलाकर रख दिया था. इसके आरोपियों के खिलाफ पूरा देश एकजुट था और इसीलिए सुप्रीम कोर्ट का फैसला 5 सालों में आ गया. आज निर्भया को तो न्याय मिल गया लेकिन देश की हजारों निर्भया सालों से आज तक इंसाफ की रस्ता देख रही हैं.

लखनऊ की वो लड़की तब महज 13 साल की थी जब कुछ लोगों ने उसे जबरदस्ती एक कार में धकेलकर उसके साथ सामूहिक बलात्कार किया. इस घटना को 11 साल बीत गए, अब तक पीडिता दर्जनों बार अदालत में पेश हुई, आरोपी पकड़े गए और छूट गए, लेकिन न्याय आज भी नहीं मिला, अब हाईकोर्ट से उम्मीद जारी है, और न जाने कितने सालों तक और रहेगी. अफसोस की ऐसी सैकड़ों पीडित महिलाएं हैं.

वहीं ऐसे भी मुकदमे हैं जिनपर अब तक कोई सुनवाई तक नहीं की गई. बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार, 2014 में उत्तर प्रदेश के मुजफ़्फरनगर-शामली में हुए दंगों में 7 मुस्लिम महिलाएं भी सामूहिक बलात्कार की शिकार हुई थीं जिनकी सुनवाई एक नई धारा 376(2G) के तहत होनी थी. लेकिन साढ़े तीन साल बीत गए न्याय तो दूर सात में से कुछ के मामलों में आज तक सुनवाई नहीं हुई. अफसोस की ये सिर्फ अकेला मामला नहीं है.

जिस देश में हर आधे घंटे में एक रेप की घटना घटती हो उस देश में एक रेप केस पर न्याय मिलने में सालों का समय लगता है. लेकिन कैलेंडर तो बदल जाते हैं लेकिन इन पीडितों की जिंदगी नहीं बदलती, वो रुक जाती है, जैसे किसी ने उनकी जिंदगी होल्ड पर रख दी हो. बलात्कार पीड़िता ताउम्र पीडित रहती है, उसकी शादी नहीं होती, शादी शुदा हो तो समाज में इज्जत नहीं मिलती लेकिन आरोपी शादी भी करता है और एक हंसती खेलती जिंदगी भी बिताता है.

कानून तो है लेकिन सुस्त क्यों?

NCRB 2015 के आंकड़ों के मुताबिक भारत में 2015 में देश में 34,651 बलात्कार के मामले दर्ज हुए, जिनमें से 95 कस्टोडियल रेप और 557 अपने ही परिवार वालों द्वारा किए गए मामले थे. इन मामलों में अब भी लंबित मामलों की दर बहुत ज्यादा है. 2015 के सारे आपराधिक मामलों में 28.4% मामलों में जांच अभी भी लंबित है. इनमें से रेप के 50,509 मामलों की जांच होनी थी जिनमें से 31.8 % की जांच अब भी बकाया है, सजा दर केवल 29% रही. अटेम्प्ट टू रेप रेप यानी बलात्कार के प्रयास के 5,726 मामलों में जांच होनी थी, जिसमें 31.4% की जांच बकाया है. इन मामलों में 3,892 लोगों ने चार्जशीट फाइल की जिनमें 19.8% मामलों में सजा हुई.

2012 में हुए निर्भया कांड के बाद महिलाओं और बच्चों से जुड़े मामलों को निपटाने के लिए सरकार ने सारी राज्य सरकारों से फास्ट ट्रेक कोर्ट बनाने के लिए कहा था. दिल्ली की ही बात करें तो दिल्ली सरकार और हाई कोर्ट ने 6 फास्ट ट्रेक कोर्ट बनाए हैं जिनमें अब भी रेप के 1600 मामले पेंडिग पड़े हुए हैं. देशभर की फास्ट ट्रैक कोर्ट्स में लाखों मामले अब भी पेंडिंग हैं. 10 लाख लोगों पर औसतन 14 जज हैं, तो अंदाजा लगाइए न्याय भी उसी औसत में ही मिलेगा.

हम कह सकते हैं कि निर्भया का मामला देश का मामला बन गया था और इसीलिए इस मामले में सिर्फ 5 साल का इंतजार करना पड़ा. लेकिन रेप का हर मामला देश का नहीं होता और न हर मामले के लिए लोग एकजुट होते हैं. ये पेंडिग केस इसी बात का सबूत हैं और इस बात का भी कि रेप जैसे जघन्य अपराधों के लिए सरकार और कानून कितनी गंभीरता से सोचता है. 

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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