• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
समाज

इस अहम वजह के चलते मुसलमानों के लिए जरूरी है चांद तारा

    • आईचौक
    • Updated: 26 मई, 2018 03:33 PM
  • 25 जून, 2017 10:00 PM
offline
अक्सर ही हमें सुनने में मिलता है कि जब मुसलमान किसी आकृति या वस्तु की पूजा नहीं करते तो फिर वो चांद को लेकर इतना गंभीर क्यों हैं. तो आइये जानें कि क्यों अर्ध चंद्र और तारे को इस्लाम में इतना महत्त्व दिया गया है.

हम अपने आस पास कई चीजें देखते हैं, उन चीजों में कई बार ऐसा होता है कि कुछ बातों को हम नकार देते हैं तो कुछ चीजें हमें सोचने पर मजबूर कर देती हैं कि आखिर जो हम देख रहे हैं उसके पीछे की वजह क्या है. अपने आस पास आपने अक्सर ही ऐसी मस्जिदें देखी होंगी जिनमें गुम्बद के ऊपर चाँद तारे का इस्तेमाल किया जाता है. या फिर अपने भूगोल की किताबों में उन मुस्लिम देशों के झंडों को ज़रूर देखा होगा जिनमें चांद तारे की आकृति बनी होती है.

हो सकता है कि इनको देखने के बाद आपके मन में ये प्रश्न उठे कि आखिर इन प्रतीकों का औचित्य क्या है. क्यों अर्ध चंद्र और तारे को इस्लाम में इतना महत्त्व दिया गया है. क्या ये बस प्रतीक चिह्न हैं या इसके पीछे कोई धार्मिक कारण भी है. तो आइये जानें कि ऐसा क्या है जिसके चलते इस्लाम में चाँद तारे का इतना खास समझा जाता है.

इस बात को समझने के लिए हमें इस्लाम के शुरुआती दिनों में जाना होगा. किसी भी धर्म के लिए उसका प्रचार प्रसार बहुत जरूरी है. बताया जाता है कि जिस वक़्त इस्लाम की शुरुआत हुई उस वक़्त इस्लाम अपना चुके लोगों के भिन्न समूह को दूर दराज के क्षेत्रों में धर्म के प्रचार प्रसार की दृष्टि भेजा जाता था. उस दौरान उनके साथ आये झंडे ही अन्य समुदायों को उनके कबीले के बारे में अवगत कराते थे.

चूंकि मुसलमान लूनर कैलेण्डर को मानते हैं इसलिए चांद उनके लिए महत्वपूर्ण है

शुरुआती दौर में इस्लाम अपनाने वाले लोगों की संख्या कम थी फिर जैसे-जैसे ये संख्या बढ़ी लोगों को अनुभव हुआ की उनके खाली झंडों में चिह्न होना चाहिए. इस वक़्त तक मुसलमानों के रसूल हजरत मुहम्मद हिजरत कर चुके थे अतः मुसलमानों ने अपने प्रतीक चिह्न के रूप में चांद और तारे का इस्तेमाल शुरू कर दिया.

मुसलमान चांद तारे का इस्तेमाल क्यों करते...

हम अपने आस पास कई चीजें देखते हैं, उन चीजों में कई बार ऐसा होता है कि कुछ बातों को हम नकार देते हैं तो कुछ चीजें हमें सोचने पर मजबूर कर देती हैं कि आखिर जो हम देख रहे हैं उसके पीछे की वजह क्या है. अपने आस पास आपने अक्सर ही ऐसी मस्जिदें देखी होंगी जिनमें गुम्बद के ऊपर चाँद तारे का इस्तेमाल किया जाता है. या फिर अपने भूगोल की किताबों में उन मुस्लिम देशों के झंडों को ज़रूर देखा होगा जिनमें चांद तारे की आकृति बनी होती है.

हो सकता है कि इनको देखने के बाद आपके मन में ये प्रश्न उठे कि आखिर इन प्रतीकों का औचित्य क्या है. क्यों अर्ध चंद्र और तारे को इस्लाम में इतना महत्त्व दिया गया है. क्या ये बस प्रतीक चिह्न हैं या इसके पीछे कोई धार्मिक कारण भी है. तो आइये जानें कि ऐसा क्या है जिसके चलते इस्लाम में चाँद तारे का इतना खास समझा जाता है.

इस बात को समझने के लिए हमें इस्लाम के शुरुआती दिनों में जाना होगा. किसी भी धर्म के लिए उसका प्रचार प्रसार बहुत जरूरी है. बताया जाता है कि जिस वक़्त इस्लाम की शुरुआत हुई उस वक़्त इस्लाम अपना चुके लोगों के भिन्न समूह को दूर दराज के क्षेत्रों में धर्म के प्रचार प्रसार की दृष्टि भेजा जाता था. उस दौरान उनके साथ आये झंडे ही अन्य समुदायों को उनके कबीले के बारे में अवगत कराते थे.

चूंकि मुसलमान लूनर कैलेण्डर को मानते हैं इसलिए चांद उनके लिए महत्वपूर्ण है

शुरुआती दौर में इस्लाम अपनाने वाले लोगों की संख्या कम थी फिर जैसे-जैसे ये संख्या बढ़ी लोगों को अनुभव हुआ की उनके खाली झंडों में चिह्न होना चाहिए. इस वक़्त तक मुसलमानों के रसूल हजरत मुहम्मद हिजरत कर चुके थे अतः मुसलमानों ने अपने प्रतीक चिह्न के रूप में चांद और तारे का इस्तेमाल शुरू कर दिया.

मुसलमान चांद तारे का इस्तेमाल क्यों करते हैं

मुसलमानों के जीवन में चांद बहुत अहम है. ऐसा मानने के पीछे की एक प्रमुख वजह मुसलमानों का कैलेण्डर है. ज्ञात हो कि मुसलमान ग्रेगोरियन कैलेंडर को नहीं बल्कि लूनर कैलेण्डर, जिसे हिजरी कैलेण्डर भी कहा जाता है का इस्तेमाल करते हैं और ये मानते हैं कि इसी के दौरान रसूल ने मक्का से मदीना के बीच यात्रा करते हुए अपनी हिजरत की शुरुआत की थी.

गौरतलब है कि इस्लाम में हर नए महीने की शुरूआत एक नए चांद से होती है जिसमें चांद का स्वरूप घटता बढता रहता है. यदि ईद के चांद पर नज़र डालें तो मिलता है कि पूरे 12 महीने में केवल ईद का ही चांद ऐसा होता है जो दिखने में बहुत बारीक और जिसे देखना मुश्किल होता है.

चूंकि मुसलमानों के कैलेण्डर का आधार ही चाँद है तो जाहिर है ये न सिर्फ इनके कैलेण्डर बल्कि इनके लिए भी महत्वपूर्ण हो जाता है और साथ ही ये इनके जीवन पर गहरा असर डालता है अतः कहा जा सकता है कि इसी सोच के मद्देनज़र मुसलमानों ने चांद को अपने धर्म में ऐहमियत दी है.

ये भी पढ़ें - 

मुस्लिम भाई बकरीद पर जानवरों को मारना बंद करें

मुझे मेरे शरीर से प्यार है और इसलिए पीरियड्स के समय मैं रोजा नहीं रखती

आस्था, बलिदान और त्याग का महापर्व है ईद-उल-जुहा

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    आम आदमी क्लीनिक: मेडिकल टेस्ट से लेकर जरूरी दवाएं, सबकुछ फ्री, गांवों पर खास फोकस
  • offline
    पंजाब में आम आदमी क्लीनिक: 2 करोड़ लोग उठा चुके मुफ्त स्वास्थ्य सुविधा का फायदा
  • offline
    CM भगवंत मान की SSF ने सड़क हादसों में ला दी 45 फीसदी की कमी
  • offline
    CM भगवंत मान की पहल पर 35 साल बाद इस गांव में पहुंचा नहर का पानी, झूम उठे किसान
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲