• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
समाज

ताजमहल के समर्थन में बाकी स्‍मारक धरना दे सकते हैं

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 17 अक्टूबर, 2017 04:22 PM
  • 17 अक्टूबर, 2017 04:22 PM
offline
ताजमहल को लेकर आए दिन रोज -रोज नए बयान सुनने में आ रहे हैं जिसको सुनने के बाद देश की तमाम इमारतों ने एक मीटिंग की और उस मीटिंग में जो नतीजा निकला उसे इस देश की जनता को अवश्य सुनना चाहिए.

क़ुतुब मीनार घबराया हुआ था. जमाली-कमाली भी इधर-उधर टहल रहे थे. जर-जर हालत में खड़ा हुमायूं का मकबरा भी, मारे गुस्से के थर- थर कांप रहा था. लोधी गार्डन के भी हाल बुरे थे, वो भी खफा लग रहा था. संसद और राष्ट्रपति भवन जैसी इमारतों के माथे पर पड़े चिंता के बल ये साफ बता रहे थे कि परेशानी बड़ी है और यदि आज ये अपने रिश्तेदार, ताज महल पर हो रहे अत्याचार के खिलाफ एकजुट न हुए तो भविष्य में इनका भी कोई अस्तित्व नहीं बचेगा.

अपने प्रति लोगों के नजरिये से, भावना आहत होने के कारण कभी हंसता-खेलता ताजमहल आज डिप्रेशन में आ गया था. डिप्रेशन में घिरे ताजमहल को पकड़े सभी इमारतें फतेहपुर सीकरी के आंगन में आ चुकी थीं. ताजमहल की हालात पर लाल किला बेचैन दिखा. शायद उसे डर है कि भविष्य में प्रधानमंत्री उसका त्याग कर दें और कहीं और से भाषण दें. हालांकि माहौल तनावपूर्ण था मगर स्थिति नियंत्रण में थी. 

जिस तरह ताजमहल को लेकर विवाद गहराता जा रहा है वो एक गहरी चिंता का विषय है

शुरूआती हाय हेल्लो के बाद, जेर-ए-बहस मुद्दा यही था कि, अब इस देश में ताजमहल के साथ जो हो रहा है, वो कितना सही है. क्या ये महज ध्रुवीकरण और लोगों को बांटने के लिए किया जा रहा है. या फिर इसके पीछे कोई और वजह है. 'जितने मुंह उतनी बातें' अभी चर्चा शुरू ही हुई थी कि दिल्ली से ताजमहल के समर्थन में आगरा आई अग्रसेन की बावली, फतेहपुर सीकरी से बोली. 'इन नेताओं की बातों से आहत न हो बहन! ऊपर वाले के घर देर है अंधेर नहीं'. अग्रसेन की बावली आगे कुछ कहती इससे पहले ही इंडिया गेट बोल उठा, 'न जाने क्या हो गया है इस देश को. लोगों को आपस में लड़ाकर खून बहाने के बाद अब ये नेता हमारे पीछे पड़ गए हैं. मुझे तो बहुत डर लग रहा है.'

बीबी का मकबरा और दीवान-ए-आम साथ बैठे थे. ताजमहल को देखकर बीबी के...

क़ुतुब मीनार घबराया हुआ था. जमाली-कमाली भी इधर-उधर टहल रहे थे. जर-जर हालत में खड़ा हुमायूं का मकबरा भी, मारे गुस्से के थर- थर कांप रहा था. लोधी गार्डन के भी हाल बुरे थे, वो भी खफा लग रहा था. संसद और राष्ट्रपति भवन जैसी इमारतों के माथे पर पड़े चिंता के बल ये साफ बता रहे थे कि परेशानी बड़ी है और यदि आज ये अपने रिश्तेदार, ताज महल पर हो रहे अत्याचार के खिलाफ एकजुट न हुए तो भविष्य में इनका भी कोई अस्तित्व नहीं बचेगा.

अपने प्रति लोगों के नजरिये से, भावना आहत होने के कारण कभी हंसता-खेलता ताजमहल आज डिप्रेशन में आ गया था. डिप्रेशन में घिरे ताजमहल को पकड़े सभी इमारतें फतेहपुर सीकरी के आंगन में आ चुकी थीं. ताजमहल की हालात पर लाल किला बेचैन दिखा. शायद उसे डर है कि भविष्य में प्रधानमंत्री उसका त्याग कर दें और कहीं और से भाषण दें. हालांकि माहौल तनावपूर्ण था मगर स्थिति नियंत्रण में थी. 

जिस तरह ताजमहल को लेकर विवाद गहराता जा रहा है वो एक गहरी चिंता का विषय है

शुरूआती हाय हेल्लो के बाद, जेर-ए-बहस मुद्दा यही था कि, अब इस देश में ताजमहल के साथ जो हो रहा है, वो कितना सही है. क्या ये महज ध्रुवीकरण और लोगों को बांटने के लिए किया जा रहा है. या फिर इसके पीछे कोई और वजह है. 'जितने मुंह उतनी बातें' अभी चर्चा शुरू ही हुई थी कि दिल्ली से ताजमहल के समर्थन में आगरा आई अग्रसेन की बावली, फतेहपुर सीकरी से बोली. 'इन नेताओं की बातों से आहत न हो बहन! ऊपर वाले के घर देर है अंधेर नहीं'. अग्रसेन की बावली आगे कुछ कहती इससे पहले ही इंडिया गेट बोल उठा, 'न जाने क्या हो गया है इस देश को. लोगों को आपस में लड़ाकर खून बहाने के बाद अब ये नेता हमारे पीछे पड़ गए हैं. मुझे तो बहुत डर लग रहा है.'

बीबी का मकबरा और दीवान-ए-आम साथ बैठे थे. ताजमहल को देखकर बीबी के मकबरे ने दीवान-ए- आम से कहा, इनकी हालत देखकर सबसे ज्यादा बेचैन तो मैं हूं. जब ये ओरिजिनल होकर जमाने का ताना सुन रहे हैं तो हमारा क्या हम तो यूं भी पाइरेसी के सताए हुए हैं. दीवान-ए- आम ने बात को नजरअंदाज कर दोबारा चाय लेने के लिए कप आगे बढ़ा दिया.       

आंगन के एक कोने में गर्दन झुका के बैठे ताजमहल ने इस बात को सुना और दहाड़े मार कर रोने लगा और कहा, 'भाई इंडिया गेट! तुम तो बेवजह परेशान हो रहे हो. तुमको किसी ने कहां कुछ कहा. मैं तो अच्छे दिन के इन्तेजार में था मगर शायद ये बुरे दिन मेरी ही किस्मत में लिखे थे. आज जो मेरी स्थिति है वो किसी से छुपी नहीं है. सफदरजंग का मकबरा जो अब तक चुप था उसने ताज महल के दर्द को महसूस किया और कहा. 'मेरे अनुभव ने तो ये सब बातें मुझे पहले ही बता दीं थीं और ये बात एक दिन मैंने 'सीपी' पर कुल्फी खाते हुए खिड़की मस्जिद से कही भी थी.

तो क्या अब हम भविष्य में स्वतंत्रता दिवस का भाषण कहीं और से सुनने वाले हैं

संसद भवन और राष्ट्रपति भवन अपनी अलग दुनिया में खोये थे और सबको छोड़ आपस में ही खुसुर- फुसुर कर रहे थे. संसद भवन, राष्ट्रपति भवन से कह रहा था कि, ये लोग मुगलों के चलते आहत हैं हम लोगों को तो गोरे अंग्रेजों ने बनवाया था कहीं ऐसा न हो आने वाले दिन में हमें ये सुनने को मिले कि हटाओ ये संसद भवन, मिटा दो इस राष्ट्रपति भवन को निकाल फेंको इन्हें बाहर भारत में होकर भी ये भारतीय संस्कृति का हिस्सा नहीं हैं.

संसद भवन की बात सुनकर पहले तो राष्ट्रपति भवन चुप रहा मगर जब बात उसके दिल को लग गयी तो आक्रोशित होकर कहने लगा. 'मेरी तो समझ में नहीं आ रहा कि इस सरकार में देश किस दिशा में जा रहा है. अच्छा खासा देश का टूरिज्म चल रहा था. ठीक ठाक संख्या में विदेशी पर्यटक भी आ रहे थे मगर जिस तरह ये लोग देश को शर्मसार कर रहे हैं वो आलोचना के काबिल और निंदनीय है.

कुछ सेकेंडों की चुप्पी के बाद राष्ट्रपति भवन ने कहा कि, किस भारतीय संस्कृति की बात कर रहे हैं ये लोग? उस भारतीय संस्कृति की जिसमें हम इमारतों का सीना चीर के लिख दिया जाता है कि 'पिंकी लव्स धर्मेन्द्र' या फिर पान और गुटके से रंगी हमारी दीवारें. मैंने तो वो भारतीय संस्कृति को भी देखा है जिसमें लोग हमारे कोनों पर मल और मूत्र विसर्जन कर ठहाका मारकर हंसते हुए चले जाते हैं.

एक आम आदमी के सामने सवाल ये भो है कि क्या अब भविष्य में संसद भवन का भी यही हाल होने वाला है

तुगलकाबाद का किला जो हाथ में चाय की प्याली पकड़े काफी देर से चुप था अचानक ही राज घाट से मुखातिब होकर कहने लगा,' देखिये साहब हर आदमी का अपना एजेंडा है. सरकार और उसक नुमाइंदों को जब हम से इतनी परेशानी है तो फिर उसे हम सब को तुड़वा देना चाहिए और उस अजेंडे पर चलना चाहिए जो उसने अपने दिमाग में बना लिया है.

वैसे भी बनाने के नाम पर सरकार के लोग आम पब्लिक को बेवकूफ ही बना रहे हैं और ऐसे में ये जरूरी है कि वो हमें नष्ट कर... अभी तुगलकाबाद के किले ने अपनी बात खत्म ही नहीं की थी कि लाल किला बोल उठा. 'ऐसे कैसे तोड़ दे, नहीं क्यों तोड़ा जाए हमको और अगर तोड़ा भी जाए तो ये बताओ कि ये जो मोदी जी हैं और ये जो राष्ट्रपति कोविंद जी हैं ये लोग 15 अगस्त में क्या यहीं जमुना किनारे गन्ने के खेत से देश को संबोधित करते.

ध्यान रहे कि राष्ट्रपति भवन जैसी इमारतें भी अंग्रेजों की देन है

इस पूरी ऊहा पोह को देखकर सबसे ज्यादा आहत लाल किला ही था और उसकी बातों से ये भी साफ था कि वो अन्दर ही अन्दर कुढ़े जा रहा है. पुराने किले के साथ से बिस्लेरी की बोतल लेकर एक ही सांस में खत्म कर उसे डस्ट बिन में डालते हुए फिर लाल किले ने कहा कि, 'ये और कुछ नहीं बस कुछ बेवकूफों को खुश करने का बहाना है. ये नेता जो आज अपने आपको भारतीय संस्कृति का झंडाबरदार मान बैठ उसके संरक्षण की बात कर रहे हैं तो बंद कर दें रेलवे का इस्तेमाल, खत्म कर दें जहाज में यात्रा करना, बनवा दें किसी बरगद के पेड़ के नीचे चबूतरा और बैठाल दें अपने सांसदों को वहां, हद है इनके दोगलेपन की.

लाल किला आक्रोशित था उसके आक्रोश को देखकर जामा मस्जिद दहल गयी और कहने लगी. 'बस कर! उम्र के इस पड़ाव में इतना गुस्सा नहीं करते. वैसे भी मुसीबतें कम हैं क्या जो अब तुझे लेकर अस्पताल में बैठना पड़े. ताजमहल सब की बातें सुन रहा था. जब उसने सबकी बातें सुन लीं तो फतेहपुर सीकरी के कंधे पर सिर रख कर कहा, इस दुश्मन जमाने के लिए मेरे प्यार में कहां कमी रह गयी थी. क्या इसी दिन के लिए मैंने अपने आप को आगरा की उन चिमनियों से निकलने वाले धुंए से सफेद से पीला करवाया था. क्या इसी दिन के लिए मैंने उन्हें मोटा रुपया कमा के दिया था कि वो जिस डाल पर बैठें उसी को काटें.

आज सरकारें जिस तरह ध्रुवीकरण कर रही हैं ये भविष्य के लिए बेहद खतरनाक है

ताजमहल ने अपने आप को हिम्मत देते हुए एक बात कही और वो एक ऐसी बात थी जिसने न सिर्फ ताजमहल को बल्कि उन तमाम इमारतों को बल दिया जो वहां उस फतेहपुर सीकरी के आंगन में बैठीं इस अहम मुद्दे पर विचार विमर्श कर रही थीं. ताज महल ने कहा भले ही मुझे मुगलों ने बनवाया हो, भले ही मैं भारतीय संस्कृति पर काला धब्बा हूं मगर जब भी इतिहास हिंदुस्तान को और आगरा को याद करेगा मेरे एहसान न चाहते हुए भी खुद-ब-खुद उसके सामने चले आएंगे.

आखिर में ताज महल ने अपनी बात खत्म करते हुए कहा कि यदि सरकार को मुझ से इतनी ही दिक्कत है तो वो मेरे नाम से रोटी खाना बंद करे. ये क्या बात हुई कि लोग मेरे ही नाम की रोटी से अपने बच्चों का पेट भर रहे हैं और फिर मुझे ही खत्म करने की बात कह रहे हैं. फतेहपुर सीकरी के उस आंगन में बैठे सभी लोगों ने ताजमहल की बात पर सहमति दर्ज की, उसे आश्वासन दिए और फिर ट्रेन से लेकर बस तक जिसको जो मिला उसने वो लिया और अपने-अपने खेमे में लौट आया. 

...तो कहानी अभी खत्‍म नहीं हुई है. मीटिंग में ये फैसला लिया गया है कि यदि डिप्रेस्ड ताजमहल को इंसाफ न मिला तो सब दिल्ली वाले रिश्तेदार जंतर-मंतर के आंगन में धरना देखर बीजेपी की कड़े शब्दों में निंदा करेंगे. अगर इससे भी काम न चला तो फिर इंसाफ के लिए भूख हड़ताल, आत्मदाह, पथराव, हुल्लड़ का ऑप्शन तो है ही.

ये भी पढ़ें -  

आप ताज को नकार सकते हैं योगी जी मगर एफडीआई और विदेशियों से मिली मदद को नहीं

‘ताज महल’ हमारा अपना है!

अब न मुगल वापस आएंगे न शिवाजी, हम 'हिस्ट्री' को 'मिस्ट्री' करने के लिए स्वतंत्र हैं

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    आम आदमी क्लीनिक: मेडिकल टेस्ट से लेकर जरूरी दवाएं, सबकुछ फ्री, गांवों पर खास फोकस
  • offline
    पंजाब में आम आदमी क्लीनिक: 2 करोड़ लोग उठा चुके मुफ्त स्वास्थ्य सुविधा का फायदा
  • offline
    CM भगवंत मान की SSF ने सड़क हादसों में ला दी 45 फीसदी की कमी
  • offline
    CM भगवंत मान की पहल पर 35 साल बाद इस गांव में पहुंचा नहर का पानी, झूम उठे किसान
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲