• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
समाज

तो क्या मान लिया जाए कि सही कर रहे हैं किसान

    • खुशदीप सहगल
    • Updated: 08 जून, 2017 06:04 PM
  • 08 जून, 2017 06:04 PM
offline
मेहनत किसान करता है और मलाई बिचौलिए उड़ा ले जाते हैं. जब तक बाजार से इन बिचौलियों की छुट्टी नहीं की जाती तब तक किसानों को सही मायने में उनकी मेहनत का लाभ नहीं मिल सकता.

आज से 50 साल पहले की बात की जाए तो सोना 168 रुपए प्रति 10 ग्राम मिलता था, आज उसका रेट करीब 28,600 रुपए है. यानी करीब 170 गुना इज़ाफा हुआ. सरकारी नौकरी में एक प्राइमरी शिक्षक को 1967-68 में 70 रुपए प्रति महीना तनख्वाह मिलती थी जो अब 40,000 रुपए है. यानि करीब 600 गुना इज़ाफा. अब गन्ने की बात की जाए तो 50 साल पहले गन्ने का भाव 10 रुपए प्रति क्विंटल था, जो 5 दशकों में 25-30 गुना ही बढ़ा. इस दौरान डीजल, बीज, खाद और कीटनाशक के दाम भी बेतहाशा बढ़े.

देश में किसान फसल उगाने में जो खर्च करता है वो लागत निकालना ही उसके लिए मुश्किल हो रहा है. स्वामीनाथन आयोग ने सिफारिश कर रखी है कि किसान को न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) निकालने के लिए लागत पर 50 फीसदी मुनाफा जोड़ने का फॉर्मूला सुझाया था. बीजेपी ने 2014 के लोकसभा चुनाव में इस सिफारिश को लागू करने का वादा भी किया था लेकिन इस पर अमल नहीं हो पा रहा है.

आप किसी भी किसान आंदोलन की बात करें तो उसमें दो मांगे समान होती हैं, कर्ज माफी और MSP को लाभकारी बनाना. किसानों के कल्याण की योजनाओं का शोर बहुत मचाया जाता है लेकिन ये भी हकीकत है कि देश में सिर्फ 6 फीसदी किसान ही MSP का लाभ उठा पा रहे हैं. 94 फीसदी किसानों को अब भी इसका कोई फायदा नहीं मिल रहा और वो खुले बाजार में अपने उत्पाद सस्ते दाम पर बेचने को मजबूर हैं. मेहनत किसान करता है और मलाई बिचौलिए उड़ा ले जाते हैं. जब तक बाजार से इन बिचौलियों की छुट्टी नहीं की जाती तब तक किसानों को सही मायने में उनकी मेहनत का लाभ नहीं मिल सकता. और ना ही हम-आप जैसे उपभोक्ताओं को ऊंचे दामों से राहत मिल सकती है.

कृषि उत्पादों की मार्केटिंग की इस किसान विरोधी और जनविरोधी मौजूदा व्यवस्था को समझना कोई रॉकेट साइंस नहीं है. आखिर जिस सब्जी के किसान को 3-4 रुपए प्रति किलो दाम ही मिलते हैं वो बाजार...

आज से 50 साल पहले की बात की जाए तो सोना 168 रुपए प्रति 10 ग्राम मिलता था, आज उसका रेट करीब 28,600 रुपए है. यानी करीब 170 गुना इज़ाफा हुआ. सरकारी नौकरी में एक प्राइमरी शिक्षक को 1967-68 में 70 रुपए प्रति महीना तनख्वाह मिलती थी जो अब 40,000 रुपए है. यानि करीब 600 गुना इज़ाफा. अब गन्ने की बात की जाए तो 50 साल पहले गन्ने का भाव 10 रुपए प्रति क्विंटल था, जो 5 दशकों में 25-30 गुना ही बढ़ा. इस दौरान डीजल, बीज, खाद और कीटनाशक के दाम भी बेतहाशा बढ़े.

देश में किसान फसल उगाने में जो खर्च करता है वो लागत निकालना ही उसके लिए मुश्किल हो रहा है. स्वामीनाथन आयोग ने सिफारिश कर रखी है कि किसान को न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) निकालने के लिए लागत पर 50 फीसदी मुनाफा जोड़ने का फॉर्मूला सुझाया था. बीजेपी ने 2014 के लोकसभा चुनाव में इस सिफारिश को लागू करने का वादा भी किया था लेकिन इस पर अमल नहीं हो पा रहा है.

आप किसी भी किसान आंदोलन की बात करें तो उसमें दो मांगे समान होती हैं, कर्ज माफी और MSP को लाभकारी बनाना. किसानों के कल्याण की योजनाओं का शोर बहुत मचाया जाता है लेकिन ये भी हकीकत है कि देश में सिर्फ 6 फीसदी किसान ही MSP का लाभ उठा पा रहे हैं. 94 फीसदी किसानों को अब भी इसका कोई फायदा नहीं मिल रहा और वो खुले बाजार में अपने उत्पाद सस्ते दाम पर बेचने को मजबूर हैं. मेहनत किसान करता है और मलाई बिचौलिए उड़ा ले जाते हैं. जब तक बाजार से इन बिचौलियों की छुट्टी नहीं की जाती तब तक किसानों को सही मायने में उनकी मेहनत का लाभ नहीं मिल सकता. और ना ही हम-आप जैसे उपभोक्ताओं को ऊंचे दामों से राहत मिल सकती है.

कृषि उत्पादों की मार्केटिंग की इस किसान विरोधी और जनविरोधी मौजूदा व्यवस्था को समझना कोई रॉकेट साइंस नहीं है. आखिर जिस सब्जी के किसान को 3-4 रुपए प्रति किलो दाम ही मिलते हैं वो बाजार में उपभोक्ताओं तक पहुंचते-पहुंचते कैसे 20 से 25 रुपए किलो हो जाती है. कर्नाटक में बिचौलियों को हटाने के लिए ऑन लाइन मार्केट का प्रयोग सफल रहा है. इससे किसानों को उनके उत्पादों के अधिक दाम दिलाने में कुछ हद तक मदद मिली है. साथ ही उपभोक्ताओं को भी लाभ हुआ है. ऐसे ही प्रयोग और राज्यों में भी आजमाने चाहिए.

किसानों को फल-सब्जी उगाने की सलाह दी जाती है. लेकिन हमें सोचना होगा कि क्या देश में फलों और सब्जियों की शेल्फ लाइफ बढ़ाने के लिए देश में पर्याप्त संख्या में कोल्ड स्टोरेज हैं. क्या नए जमाने के हिसाब से फल-सब्जियों की पैकिंग की व्यवस्था है? नहीं तो फिर किसानों को फल-सब्जियां अधिक उगाने के लिए क्यों कहा जाता है.

किसान को बेशक अन्नदाता कहा जाता है लेकिन उसके नीति नियंता ऐसे लोग हैं जिन्हें किसानों से अधिक कॉरपोरेट एग्रीकल्चर की चिंता है. ये बहुराष्ट्रीय कंपनियों के एजेंडे पर चलते हुए जेनेटिक मॉडिफाइड (GM) उत्पादों की वकालत करते हैं. बिना ये समझे कि इस तरह के कदम पर्यावरण के लिए कितने हानिकारक हैं. ना ही इनसे किसानों का कोई भला होने वाला है.

मध्यप्रदेश में किसामों को गुस्सा कुछ यूं फूट रहा है

देश में जिस तरह से दालों का मूल्य गिरा है वो भी बेहद चिंता का विषय है. सरकार को ऐसी खाद्य वस्तुओं के बिना वजह आयात को पूरी तरह प्रतिबंधित करना चाहिए. बता दें कि इस साल महाराष्ट्र में अरहर (तुअर दाल) की बंपर पैदावार हुई है. देश में जब इस दाल के दाम आसमान छू रहे थे तो किसानों ने ज्यादा जमीन में इसे ये सोचकर उगाया कि उसे अच्छे दाम मिलेंगे. दूसरी फसलों पर उसने इसे तरजीह दी. सरकारी आंकड़ों की मानें तो सरकार ने पूरे देश में 11 लाख टन अरहर खरीदी, इसमें से चार लाख टन अरहर अकेले महाराष्ट्र में खरीदी गई. सरकार ने अरहर का समर्थन मूल्य 5050 प्रति क्विंटल निर्धारित किया. सरकारी खरीद के कमजोर नेटवर्क के चलते किसानों को 4200 रुपए प्रति क्विंटल से ज्यादा की कीमत नहीं मिल पा रही है. ऊपर से कोढ़ में खाज वाली बात ये है कि इस साल सरकार ने 10,114 रुपए प्रति क्विंटल की दर 27.8 लाख टन दाल का आयात किया. यानी किसानों के लिए निर्धारित समर्थन मूल्य से दुगने मूल्य पर अरहर का आयात हुआ. ऐसी ही स्थिति दूसरी दालों की भी है. किसानों के रोष की एक बड़ी वजह ये भी है.

कृषि की देश में क्या हालत है ये एक और तथ्य से समझी जा सकती है. देश में 60 फीसदी से अधिक आबादी खेती पर ही निर्भर है. लेकिन सकल घरेलू उत्पादन में कृषि की भागीदारी सिर्फ 14-15 फीसदी है. खेती से गुजारा करना छोटी जोत के किसानों के लिए बेहद मुश्किल होता जा रहा है. एक पहलू ये भी है कि देश के 12 करोड़ किसानों में से 10 हेक्टेयर से ज्यादा जमीन रखने वाले किसान महज 4 फीसदी यानि 48 लाख हैं. इनमें से 4 लाख किसान हर साल हजारों करोड़ रुपए की आयकर छूट का लाभ उठाते हैं. ये किसानों की आबादी का महज 0.33 फीसदी हैं. इन 4 लाख किसानों में से अधिकतर कागजों पर ही किसान हैं. ये पेशे से डॉक्टर, फिल्म स्टार, चार्टेड एकाउंटेंट, व्यापारी, ब्यूरोक्रेट हैं और काली कमाई को ठिकाने लगाने के लिए किसान का कागजी चोला ओढ़े हुए हैं.

सरकार किसी भी पार्टी की हो वो ऊपर से जरूर खुद को किसानों की सबसे बड़ी खैरख्वाह दिखाना चाहती है. मौजूदा केंद्र सरकार बेशक कह रही है कि 2022 तक किसानों की आमदनी दुगनी हो जाएगी, लेकिन यक्ष प्रश्न ये है कि होगा कैसे? क्या किसानों के लिए वैकल्पिक रोजगार पैदा किए जाएंगे. सरकारों ने खुद को किसानों की हितेषी दिखाने के लिए आसान रास्ता निकाल लिया है- कर्ज माफी का. हाल में उत्तर प्रदेश में बीजेपी की योगी सरकार ने किसानों के 36 हजार करोड़ रुपए से अधिक का कर्ज माफ करने का ऐलान किया. अब ये बात दूसरी है कि प्रदेश के कुछ शिकायत कर रहे हैं कि अभी तक इस ऐलान का लाभ उन तक नहीं पहुंचा. यूपी में कर्ज माफी का एक परिणाम ये भी रहा कि दूसरे राज्यों में किसानों की ओर से कर्ज माफी की मांग ने जोर पकड़ लिया.

ये ही स्थितियां आगे भी बनी रहीं और किसानों के हित के लिए क्रांतिकारी मगर विवेकपूर्ण कदम नहीं उठाए गए तो अधिक से अधिक किसान खेती से विमुख होते जाएंगे. दो जून की रोटी के लिए उन्हें शहरों में पलायन कर मजदूरी का विकल्प चुनने के लिए मजबूर होना पड़ेगा. ये स्थिति किसान के साथ-साथ हम और आप सभी के लिए भयावह होगी. क्योंकि पेट खाने से ही भरा जा सकता है, प्लास्टिक मनी से नहीं.

ये भी पढ़ें-

किसानों के लिए गोलियां नहीं नीतियां बनाएं

जानिए क्यों परेशान है देश का किसान ?

कहीं किसान ही न रोक दे मोदी रथ !

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    आम आदमी क्लीनिक: मेडिकल टेस्ट से लेकर जरूरी दवाएं, सबकुछ फ्री, गांवों पर खास फोकस
  • offline
    पंजाब में आम आदमी क्लीनिक: 2 करोड़ लोग उठा चुके मुफ्त स्वास्थ्य सुविधा का फायदा
  • offline
    CM भगवंत मान की SSF ने सड़क हादसों में ला दी 45 फीसदी की कमी
  • offline
    CM भगवंत मान की पहल पर 35 साल बाद इस गांव में पहुंचा नहर का पानी, झूम उठे किसान
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲