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जानिए क्यों परेशान है देश का किसान ?

    • अभिनव राजवंश
    • Updated: 08 जून, 2017 03:25 PM
  • 08 जून, 2017 03:25 PM
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जहां एक तरफ किसान अपनी ऋण माफी को लेकर अड़े हुए हैं तो वहीं रिजर्व बैंक ने कहा है कि ऐसे कदम से वित्तीय घाटा और महंगाई में वृद्धि का खतरा बढ़ जाएगा.

देश खाद्दयान उत्पादन में नए-नए रिकॉर्ड बना रहा है, बावजूद इसके देश का किसान परेशान है. अभी कुछ ही दिनों पहले तक तमिलनाडु के किसान अपनी मांगों को लेकर तरह से तरह से प्रदर्शन कर रहे थे और अब देश के दो अन्य राज्य महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश के किसान अपनी मांगों को लेकर सड़क पर हैं.

हालांकि जहां तमिलनाडु के किसान शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे थे तो वहीं महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश के किसानों ने काफी उग्र प्रदर्शन करना शुरू कर दिया है. महाराष्ट्र में किसानों ने सब्जियां और दूध सड़क पर फेंककर विरोध प्रदर्शन किया तो मध्य प्रदेश के किसान काफी हिंसक तरीके से अपना विरोध दर्ज कराया, पुलिस की गोलीबारी में 5 किसानो की मौत ने तो परिस्तिथियों को और भी खराब कर दिया है. तो आखिर वजह क्या है की भारत की सवा अरब जनता को अन्न उगाने वाला अन्नदाता इतना परेशान है?

अपनी मांगों के लेकर हिंसक हो गए हैं मध्यप्रदेश के किसान

क्या है किसानो की मांग ?

कुल मिलाकर दोनों ही राज्यों के किसानों की मांग एक ही तरह की है, किसान जहां अपनी फसल के लिए उचित समर्थन मूल्य की मांग कर रहे हैं तो वहीं किसान कर्जमाफी के लिए भी सरकार पर दबाव बना रहे हैं. साथ ही किसान स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू किये जाने की भी मांग कर रहे हैं.

साल 2004 में डॉ. स्वामीनाथन की अध्यक्षता में  बनी आयोग ने किसानों के बेहतरी के लिए कई सुझाव दिए थे, जिसमें फसल उत्पादन मूल्य से पचास प्रतिशत ज्यादा समर्थन मूल्य किसानों को देने की बात कही गयी है. इसके अलावा अन्य प्रमुख सुझावों में किसानों को अच्छी क्वालिटी के बीज कम दामों में मुहैया कराना, किसानों की मदद के लिए नॉलेज सेंटर और कृषि जोखिम फंड का बनाया जाने की भी सिफारिस आयोग ने की थी.

देश खाद्दयान उत्पादन में नए-नए रिकॉर्ड बना रहा है, बावजूद इसके देश का किसान परेशान है. अभी कुछ ही दिनों पहले तक तमिलनाडु के किसान अपनी मांगों को लेकर तरह से तरह से प्रदर्शन कर रहे थे और अब देश के दो अन्य राज्य महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश के किसान अपनी मांगों को लेकर सड़क पर हैं.

हालांकि जहां तमिलनाडु के किसान शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे थे तो वहीं महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश के किसानों ने काफी उग्र प्रदर्शन करना शुरू कर दिया है. महाराष्ट्र में किसानों ने सब्जियां और दूध सड़क पर फेंककर विरोध प्रदर्शन किया तो मध्य प्रदेश के किसान काफी हिंसक तरीके से अपना विरोध दर्ज कराया, पुलिस की गोलीबारी में 5 किसानो की मौत ने तो परिस्तिथियों को और भी खराब कर दिया है. तो आखिर वजह क्या है की भारत की सवा अरब जनता को अन्न उगाने वाला अन्नदाता इतना परेशान है?

अपनी मांगों के लेकर हिंसक हो गए हैं मध्यप्रदेश के किसान

क्या है किसानो की मांग ?

कुल मिलाकर दोनों ही राज्यों के किसानों की मांग एक ही तरह की है, किसान जहां अपनी फसल के लिए उचित समर्थन मूल्य की मांग कर रहे हैं तो वहीं किसान कर्जमाफी के लिए भी सरकार पर दबाव बना रहे हैं. साथ ही किसान स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू किये जाने की भी मांग कर रहे हैं.

साल 2004 में डॉ. स्वामीनाथन की अध्यक्षता में  बनी आयोग ने किसानों के बेहतरी के लिए कई सुझाव दिए थे, जिसमें फसल उत्पादन मूल्य से पचास प्रतिशत ज्यादा समर्थन मूल्य किसानों को देने की बात कही गयी है. इसके अलावा अन्य प्रमुख सुझावों में किसानों को अच्छी क्वालिटी के बीज कम दामों में मुहैया कराना, किसानों की मदद के लिए नॉलेज सेंटर और कृषि जोखिम फंड का बनाया जाने की भी सिफारिस आयोग ने की थी.

हालांकि सरकार के लिए असल मुसीबत किसानो की मांग के साथ ही रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की चेतावनी भी है. जहां एक तरफ किसान अपनी ऋण माफी को लेकर अड़े हुए हैं तो वहीं रिजर्व बैंक ने कहा है कि ऐसे कदम से वित्तीय घाटा और महंगाई में वृद्धि का खतरा बढ़ जाएगा. आरबीआई गर्वनर के अनुसार अगर बड़े पैमाने पर किसानों के ऋण माफ किए गए तो इससे वित्तीय घाटा बढ़ने का खतरा है और जब तक राज्यों के बजट में वित्तीय घाटा सहने की क्षमता नहीं आ जाती, तब तक किसानों के ऋण माफ करने से बचना चाहिए. मगर महाराष्ट्र के किसान यह मानते हैं कि अगर उत्तर प्रदेश के किसानों की कर्जमाफी कि जा सकती है तो वहां क्यों नहीं.

किसानों के विरोध के बाद दोनों ही राज्य के सरकारों ने किसानों की कई मांगे मान ली हैं और कई मांगों पर विचार भी किये जा रहे है, बहुत संभव है कि इन सबके बाद किसान भी अपने आंदोलन को समाप्त कर देंगे. मगर असल सवाल यह है कि आखिर क्यों देश के लिए बम्पर फसल उगाने के बावजूद देश के किसान हाशिये पर हैं? और क्या किसानों कि कर्ज माफी ही किसानों की समस्या का स्थाई समाधान है?

वैसे देखा जाय तो देश कि हर सरकार और राजनीतिक पार्टियां किसानों के हित की बात करते दिख जाते हैं, मगर सच्चाई यही है कि आज भी देश का आम किसान दो जून की रोटी से आगे नहीं सोच सकता, देश भर में किसानों की आत्महत्या बदस्तूर जारी है. तो ऐसे में जरुरत है कि देश का शासन उस दिशा में काम करे जिससे किसानों की स्थिति में स्थाई रूप से सुधार हो और देश के किसान को अपने गरीबी से परेशान हो आत्महत्या करने की जरुरत ना पड़े.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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