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मुंबई रेलवे स्‍टेशन पर भगदड़ में हुई मौतें सिर्फ कुछ नंबर ही तो हैं

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 29 सितम्बर, 2017 09:13 PM
  • 29 सितम्बर, 2017 09:13 PM
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हादसों के चलते हुई मौतें सिर्फ नंबर होती हैं जिन्हें कुछ समय बाद हम भूल जाते हैं. ऐसा हम कहना तो नहीं चाहते मगर जब हम मुंबई हादसे के बाद इस पोस्टर को देख रहे हैं तो इंसानियत की बातें और कुछ नहीं बस एक गंदा मजाक लगती हैं.

मुंबई के एलफिंस्टन रेलवे स्टेशन पर, पुल पर भगदड़ मचने से करीब 22 लोगों की मौत हो गई है. जबकि दो दर्जन से ऊपर लोग घायल हुए हैं. इस हादसे के बाद मेन स्ट्रीम मीडिया से लेकर सोशल मीडिया तक लोग जहां एक तरफ इस घटना की निंदा कर रहे हैं तो वहीं दूसरी तरफ सरकार और उसके नुमाइंदों ने भी घटना की आलोचना के बाद 5 - 5 लाख रुपए का मुआवजा देकर घटना से अपना पल्ला झाड़ने का काम शुरू कर दिया है.

आजादी के बाद से लेकर अब तक शायद सरकार भी इस बात को भली भांति समझ गयी है कि, आप सरकारी या गैर सरकारी लापरवाही के बाद, मौका-ए-वारदात पर आइये, अफ़सोस जताते हुए चंद आंसू बहा दीजिये और मुआवजे के कुछ रुपए थमा दीजिये लोगों का बढ़ा हुआ आक्रोश जल्द ही ठंडा हो जाएगा.

इस पोस्टर ने साफ कर दिया है कि अब हमारे अन्दर से मानवता का जज्बा मिट गया है मैं ऐसा क्यों कह रहा हूं, इसके पीछे की वजह मेरा फ्रस्ट्रेशन है. मैं एक ऐसा भारतीय हूं जो कभी फुटपाथ पर सोते हुए, नशे में धुत किसी सिने स्टार की गाड़ी के नीचे आ जाता है या फिर जिसे सब्जी लेकर घर वापस आने के समय कोई वाहन ठोकर मार के निकल जाता है. मैं कभी बसों और ट्रेन से यात्राएं करने पर मरता हूं. तो कभी मैं छत पर कपड़ा सुखाते वक़्त या सूखे कपड़ों को उतारते वक़्त करंट लगने से मरता हूं. विश्वास करिए मेरा, मैं, मेन- होल से लेकर सीवर तक और ऑफिस की चेयर से लेकर बाथरूम में फिसलने तक हर बार, हर जगह मर जाता हूं.

ये बात पूरे दावे से कही जा सकती है कि मुंबई में हुई इन 22 लोगों की मौत लापरवाही का नतीजा है मैं इस बात को पूरे दावे से कह सकता हूं कि, शासन से लेकर...

मुंबई के एलफिंस्टन रेलवे स्टेशन पर, पुल पर भगदड़ मचने से करीब 22 लोगों की मौत हो गई है. जबकि दो दर्जन से ऊपर लोग घायल हुए हैं. इस हादसे के बाद मेन स्ट्रीम मीडिया से लेकर सोशल मीडिया तक लोग जहां एक तरफ इस घटना की निंदा कर रहे हैं तो वहीं दूसरी तरफ सरकार और उसके नुमाइंदों ने भी घटना की आलोचना के बाद 5 - 5 लाख रुपए का मुआवजा देकर घटना से अपना पल्ला झाड़ने का काम शुरू कर दिया है.

आजादी के बाद से लेकर अब तक शायद सरकार भी इस बात को भली भांति समझ गयी है कि, आप सरकारी या गैर सरकारी लापरवाही के बाद, मौका-ए-वारदात पर आइये, अफ़सोस जताते हुए चंद आंसू बहा दीजिये और मुआवजे के कुछ रुपए थमा दीजिये लोगों का बढ़ा हुआ आक्रोश जल्द ही ठंडा हो जाएगा.

इस पोस्टर ने साफ कर दिया है कि अब हमारे अन्दर से मानवता का जज्बा मिट गया है मैं ऐसा क्यों कह रहा हूं, इसके पीछे की वजह मेरा फ्रस्ट्रेशन है. मैं एक ऐसा भारतीय हूं जो कभी फुटपाथ पर सोते हुए, नशे में धुत किसी सिने स्टार की गाड़ी के नीचे आ जाता है या फिर जिसे सब्जी लेकर घर वापस आने के समय कोई वाहन ठोकर मार के निकल जाता है. मैं कभी बसों और ट्रेन से यात्राएं करने पर मरता हूं. तो कभी मैं छत पर कपड़ा सुखाते वक़्त या सूखे कपड़ों को उतारते वक़्त करंट लगने से मरता हूं. विश्वास करिए मेरा, मैं, मेन- होल से लेकर सीवर तक और ऑफिस की चेयर से लेकर बाथरूम में फिसलने तक हर बार, हर जगह मर जाता हूं.

ये बात पूरे दावे से कही जा सकती है कि मुंबई में हुई इन 22 लोगों की मौत लापरवाही का नतीजा है मैं इस बात को पूरे दावे से कह सकता हूं कि, शासन से लेकर प्रशासन तक और वक्त से लेकर हालात तक सब मुझे मार रहे हैं. मैं हर रोज अपनी आंखों से, अपने दर्द को और अपने आप को मरता हुआ देखता हूं. जानते तो आप भी होंगे. अपनी मौत से पहले तक, मैं एक जीवित व्यक्ति होता हूं. मगर मरने के फौरन बाद मैं आंकड़ों और नंबरों में तब्दील हो जाता हूं. हां वही नम्बर जिनको मरने के बाद, सरकारी नुमाइंदों द्वारा आंसू बहाते हुए, परिजनों को खुश करने के लिए मुआवजा दिया जाता है.

खैर, उपरोक्त बातों को कहने का उद्देश्य तब साफ हो जाता है जब आप मीडिया के अलावा सोशल मीडिया पर शेयर की जा रही है एक पोस्टर की तस्वीर को देखें. ये पोस्टर मुंबई के केईएम मेडिकल कॉलेज के बाहर है जिसमें असंवेदनशीलता की सारी हदों को पार कर दिया है.

जिस तरह से लोगों द्वारा ये फोटो शेयर की जा रही है उससे साफ है कि अब लोगों को एक दूसरे की भावना की कद्र नहीं हैआपको बताते चलें कि, इस तस्वीर में सभी मृतकों की फोटो है जिसमें साफ दिख रहा है कि हर मृतक की फोटो के ऊपर एक नंबर लिखा हुआ है. साथ ही इस पोस्टर में वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक और भाईवाडा पुलिस स्टेशन का नंबर है. बताया ये भी जा रहा है कि, इस तस्वीर के बाद न सिर्फ स्थानीय लोग बल्कि खुद पुलिस वाले तक हैरत में हैं और उन्हें इस बात की कोई जानकारी नहीं है कि इस तस्वीर को किसके दिशा निर्देश पर लगाया गया है.

बहरहाल, भले ही ये काम मेडिकल कॉलेज ने करवाया हो या फिर इसे पुलिस के निर्देश पर किया गया हो. इसको देखकर ये बात खुद-ब-खुद साफ हो जाती है कि जब एक आम आदमी किसी त्रासदी, दुर्घटना का शिकार होता है और मर जाता है तो मरने के बाद वो फाइलों में दर्ज एक नंबर बन जाता है. एक ऐसा नंबर जिसे लोग कुछ दिन तो याद रखते है फिर एक ऐसा वक्त आता है जब इसे भुला दिया जाता है.

अंत में इतना ही कि, ये पोस्टर भले ही किसी ने भी लगवाया हो, मगर इसे देखकर कोई भी समझदार इंसान इसकी निंदा करेगा और ये मानेगा कि ये पोस्टर इंसानियत की बातें करने वालों के लिए एक गंदा मजाक है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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