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12 साल की इस मां के दुख निर्भया से कहीं कम नहीं हैं

    • पारुल चंद्रा
    • Updated: 07 मई, 2017 11:29 AM
  • 07 मई, 2017 11:29 AM
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12 साल की उम्र में मां बनी इस बच्ची की कहानी सुनकर किसी का भी दिल भर आएगा. ये निर्भया नहीं, लेकिन दुखों का पहाड़ निर्भया से भी कहीं ज्यादा टूटा है इसपर.

बंगाल में मई 2016 में एक 12 साल की बच्ची का बलात्कार किया गया, इस बलात्कार ने उसे इतनी सी उम्र में ही मां बना दिया. मार्च 2017 में उसने एक बच्ची को जन्म दिया.

मां बनने से पहले वो भी बाकी लड़कियों की तरह स्कूल जाती थी. लेकिन उसे पता नहीं था कि उसके साथ और भी भयावह होने वाला है. जिस स्कूल में वो पढ़ती थी वो नहीं चाहते कि अब वो बच्ची उस स्कूल में आए. स्कूल की हेडमिस्ट्रेस का कहना है कि बच्ची की वजह से स्कूल की काफी बदनामी हुई है. स्कूल वालों का कहना है कि बाकी बच्चों के पेरेंट्स को चिंता है कि अगर उनके बच्चे उस बच्ची से मिलकर सवाल करेंगे तो माता-पिता क्या जवाब देंगे. हेडमिस्ट्रेस का कहना है कि 'पेरेंट्स ने मुझसे पूछा कि अगर बच्चे आपसे रेप के बारे में पूछेंगे तो क्या मैं जबाब दे सकती हूं' इसलिए बच्ची के माता-पिता से ट्रांसफर सर्टिफिकेट लेकर उसे कहीं और डालने के लिए कहा गया है.

यानी अब स्कूल के दरवाजे भी उसके लिए बंद कर दिए गए हैं. जैसे खुद पर हुए अत्याचार के लिए वो बच्ची खुद ही जिम्मेदार थी. इस छोटी सी उम्र में जब बच्चों को अच्छे बुरा का भी ज्ञान नहीं होता तब उसके साथ खिलवाड़ किया गया जिसकी वजह से वो आज हावड़ा की सबसे कम उम्र की मां बन गई. उसकी प्रेगनेंसी के बारे में भी बहुत देर से पता लगा. बलात्कार का आरोप बच्ची के कराटे टीचर और 5 अन्य लोगों पर है.

जरा इस बच्ची की मनोस्थिति की कल्पना कीजिए जो अभी अपनी किशोरावस्था तक भी नहीं पहुंची और हाथों में अपनी खुद की बच्ची संभाल रही है और अदालत से अपने लिए न्याय की गुहार लगा रही है. टीचर पर आरोप है, लेकिन पड़ोसियों ने बच्ची के दादा पर भी बलात्कार का आरोप लगा दिया. दादा के साथ मार-पीट भी की गई. वो इस उम्र में है कि उसे खुद भी नहीं पता कि उसके साथ कब क्या हुआ, मगर वो चाहती है कि उसके साथ अन्याय करने वाला जल्द...

बंगाल में मई 2016 में एक 12 साल की बच्ची का बलात्कार किया गया, इस बलात्कार ने उसे इतनी सी उम्र में ही मां बना दिया. मार्च 2017 में उसने एक बच्ची को जन्म दिया.

मां बनने से पहले वो भी बाकी लड़कियों की तरह स्कूल जाती थी. लेकिन उसे पता नहीं था कि उसके साथ और भी भयावह होने वाला है. जिस स्कूल में वो पढ़ती थी वो नहीं चाहते कि अब वो बच्ची उस स्कूल में आए. स्कूल की हेडमिस्ट्रेस का कहना है कि बच्ची की वजह से स्कूल की काफी बदनामी हुई है. स्कूल वालों का कहना है कि बाकी बच्चों के पेरेंट्स को चिंता है कि अगर उनके बच्चे उस बच्ची से मिलकर सवाल करेंगे तो माता-पिता क्या जवाब देंगे. हेडमिस्ट्रेस का कहना है कि 'पेरेंट्स ने मुझसे पूछा कि अगर बच्चे आपसे रेप के बारे में पूछेंगे तो क्या मैं जबाब दे सकती हूं' इसलिए बच्ची के माता-पिता से ट्रांसफर सर्टिफिकेट लेकर उसे कहीं और डालने के लिए कहा गया है.

यानी अब स्कूल के दरवाजे भी उसके लिए बंद कर दिए गए हैं. जैसे खुद पर हुए अत्याचार के लिए वो बच्ची खुद ही जिम्मेदार थी. इस छोटी सी उम्र में जब बच्चों को अच्छे बुरा का भी ज्ञान नहीं होता तब उसके साथ खिलवाड़ किया गया जिसकी वजह से वो आज हावड़ा की सबसे कम उम्र की मां बन गई. उसकी प्रेगनेंसी के बारे में भी बहुत देर से पता लगा. बलात्कार का आरोप बच्ची के कराटे टीचर और 5 अन्य लोगों पर है.

जरा इस बच्ची की मनोस्थिति की कल्पना कीजिए जो अभी अपनी किशोरावस्था तक भी नहीं पहुंची और हाथों में अपनी खुद की बच्ची संभाल रही है और अदालत से अपने लिए न्याय की गुहार लगा रही है. टीचर पर आरोप है, लेकिन पड़ोसियों ने बच्ची के दादा पर भी बलात्कार का आरोप लगा दिया. दादा के साथ मार-पीट भी की गई. वो इस उम्र में है कि उसे खुद भी नहीं पता कि उसके साथ कब क्या हुआ, मगर वो चाहती है कि उसके साथ अन्याय करने वाला जल्द पकड़ा जाए.

निर्भया के साथ जो कुछ हुआ वो भयावह था, लेकिन इस बच्ची के साथ जो हो रहा है और जो होगा उसे किन शब्दों में बयां किया जा सकता है. समाज निर्भया के साथ था, उसे इंसाफ मिला, पर इस बच्ची के अपराधी कौन हैं ये भी अभी तक पता नहीं लगा है. इतना सब झेलने के बाद अगर वो एक नॉर्मल जिंदगी जीना भी चाहे तो उसे जीने नहीं दिया जा रहा. स्कूल वालों ने उसे निकाल दिया और बच्ची के पिता किसी और स्कूल की तलाश कर रहे हैं, पर इस बात की भी कोई गारंटी नहीं कि एक बलात्कार पीड़िता और इतनी कम उम्र की मां को कोई दूसरा स्कूल खुले दिल से स्वीकारेगा.

इस बच्ची का अपराधी एक नहीं कई हैं- बलात्कारी, समाज, स्कूल, पर किस-किस को सजा दिलवाए. लाखों निर्भया हैं भारत में, हर किसी की अपनी कहानी है, हर कहानी अपने पीछे ऐसे ही दर्द समेटे है. लेकिन हर कहानी आज समाज और सरकार पर कई प्रश्न चिन्ह खड़े करती है, जिसके जवाब किसी को नहीं मिलते.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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