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सोशल मीडिया पर 'राजघाट' तोड़ने से अच्छा था पहले सच जान लेती पब्लिक

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 30 जुलाई, 2017 11:26 AM
  • 30 जुलाई, 2017 11:26 AM
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हम एक ऐसे दौर में जी रहे हैं जब लोग मेन स्ट्रीम मीडिया से ज्यादा सोशल मीडिया की बातों पर यकीन करने लग गए. आज लोग व्हाट्स ऐप पर आ रही बातों को खबर मान रहे हैं उनपर यकीन कर रहे हैं और अपनी भावना आहत कर रहे हैं.

फेसबुक और ट्विटर स्क्रॉल करते हुए कई लोगों के अलग-अलग ट्वीट और पोस्ट दिखे कि कुछ लोगों ने 'राजघाट' तोड़ दिया गया है. मामला जहां एक तरफ जहां गंभीर था तो वहीं दूसरी तरफ दिलचस्प भी लगा तो मैंने गूगल न्यूज़ का रुख किया. गूगल न्यूज़ पर पता चला कि कुछ लोगों ने मामले की अधूरी जानकारी के चलते उसे बेवजह तूल दे दिया जिससे व्यर्थ का बवाल खड़ा हो गया.

जो राजघाट टूटा है वो दिल्ली का राजघाट नहीं बल्कि मध्य प्रदेश का राजघाट है. हुआ ये है कि मध्यप्रदेश के बड़वानी जिले में नर्मदा नदी के तट पर स्थित राजघाट को तोड़ने की कार्रवाई को लोगों ने बेवजह दूसरी बार गांधी की हत्या से जोड़ कर सोशल मीडिया जगत में हंगामा खड़ा करने का प्रयास किया है.   

जानकारी के आभाव में लोगों ने अफवाह उड़ा दी की राजघाट तोड़ दिया गया है

क्या है मामला

आपको बताते चलें कि नर्मदा नदी पर बने सरदार सरोवर बांध की ऊंचाई 138 मीटर की जाने वाली है. इस पर फैसला देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिए थे कि 31 जुलाई से पूर्व बांध की ऊंचाई बढ़ाने से डूब क्षेत्र में आने वाले गांव के निवासियों का पुनर्वास किया जाए. चूंकि अब तक लोगों का पुनर्वास नहीं हुआ है. तो नर्मदा बचाओ आंदोलन की अगुवाही कर रही मेधा पाटकर अपने साथियों के साथ यहां धरना देने वाली थीं.

बताया ये भी जा रहा है कि पुनर्वास न होने का आरोप लगाते हुए मेधा पाटकर और उनके साथी यहां बेमियादी उपवास पर बैठने वाले थे. चूंकि ये समाधि स्थल इस आंदोलन का केन्द्र माना जाता रहा है अतः जब बात नहीं बनी तो मेघा के सहयोगियों ने मामले को बेवजह तूल दे दिया और कह दिया कि मध्य प्रदेश सरकार ने राजघाट तोड़ दिया जबकि हकीकत कुछ और है.

इस पूरे मामले को देखकर यही कहा जा सकता है कि मामला न तो गांधीवादियों की भावना...

फेसबुक और ट्विटर स्क्रॉल करते हुए कई लोगों के अलग-अलग ट्वीट और पोस्ट दिखे कि कुछ लोगों ने 'राजघाट' तोड़ दिया गया है. मामला जहां एक तरफ जहां गंभीर था तो वहीं दूसरी तरफ दिलचस्प भी लगा तो मैंने गूगल न्यूज़ का रुख किया. गूगल न्यूज़ पर पता चला कि कुछ लोगों ने मामले की अधूरी जानकारी के चलते उसे बेवजह तूल दे दिया जिससे व्यर्थ का बवाल खड़ा हो गया.

जो राजघाट टूटा है वो दिल्ली का राजघाट नहीं बल्कि मध्य प्रदेश का राजघाट है. हुआ ये है कि मध्यप्रदेश के बड़वानी जिले में नर्मदा नदी के तट पर स्थित राजघाट को तोड़ने की कार्रवाई को लोगों ने बेवजह दूसरी बार गांधी की हत्या से जोड़ कर सोशल मीडिया जगत में हंगामा खड़ा करने का प्रयास किया है.   

जानकारी के आभाव में लोगों ने अफवाह उड़ा दी की राजघाट तोड़ दिया गया है

क्या है मामला

आपको बताते चलें कि नर्मदा नदी पर बने सरदार सरोवर बांध की ऊंचाई 138 मीटर की जाने वाली है. इस पर फैसला देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिए थे कि 31 जुलाई से पूर्व बांध की ऊंचाई बढ़ाने से डूब क्षेत्र में आने वाले गांव के निवासियों का पुनर्वास किया जाए. चूंकि अब तक लोगों का पुनर्वास नहीं हुआ है. तो नर्मदा बचाओ आंदोलन की अगुवाही कर रही मेधा पाटकर अपने साथियों के साथ यहां धरना देने वाली थीं.

बताया ये भी जा रहा है कि पुनर्वास न होने का आरोप लगाते हुए मेधा पाटकर और उनके साथी यहां बेमियादी उपवास पर बैठने वाले थे. चूंकि ये समाधि स्थल इस आंदोलन का केन्द्र माना जाता रहा है अतः जब बात नहीं बनी तो मेघा के सहयोगियों ने मामले को बेवजह तूल दे दिया और कह दिया कि मध्य प्रदेश सरकार ने राजघाट तोड़ दिया जबकि हकीकत कुछ और है.

इस पूरे मामले को देखकर यही कहा जा सकता है कि मामला न तो गांधीवादियों की भावना से जुड़ा न ही इससे कि मध्य प्रदेश प्रशासन ने मेघा और उनकी टीम के प्रदर्शन से डर कर ऐसा किया है. बस इसको तोड़ने का कारण ये है कि नर्मदा नदी का जलस्तर बढ़ने से राजघाट भी डूब क्षेत्र में आने वाला था. यदि सरकार इसे नहीं तोड़ती तो इस क्षेत्र के आस पास के लोगों को खतरा होता.

ये समाधि स्थल इस आंदोलन का केन्द्र था जिसके तोड़े जाने से मेधा के साथी नाराज हो गएपुनर्स्थापित होगा राजघाट

गौरतलब है कि बड़वानी में बनाई गई जिस 'राजघाट' समाधि को सुरक्षा मानकों के मद्देनजर मध्य प्रदेश सरकार द्वारा तोड़ा गया है उसे किसी सुरक्षित क्षेत्र में पुनर्स्थापित किया जाएगा. ज्ञात हो कि बड़वानी में बनाई गई इस 'राजघाट' समाधि में महात्मा गांधी ही नहीं कस्तूरबा गांधी और उनके सचिव रहे महादेव देसाई की देह राख रखी हुई थी. और इस समाधि को 2 फरवरी, 1965 को गांधीवादी काशीनाथ त्रिवेदी के प्रयासों के बाद बनवाया गया था. गांधीवादी त्रिवेदी ही इन तीनों महान विभूतियों की राख यहां लेकर आए थे.

सोशल मीडिया पर भी बिन जाने बूझे लोग करने लग गए बात  

हम एक ऐसे दौर में जी रहे हैं जब लोग मेन स्ट्रीम मीडिया से ज्यादा सोशल मीडिया की बातों पर यकीन करने लग गए. आज लोग व्हाट्स ऐप पर आ रही बातों को खबर मान रहे हैं उनपर यकीन कर रहे हैं और अपनी भावना आहत कर रहे हैं. कहा जा सकता है कि वर्तमान परिपेक्ष में लोग सच की जांच पड़ताल करने के बजाए और जाने अनजाने अधूरी जानकारियों के चलते उन बातों को सही मान लेते हैं जिनका आधार ही गलत होता है. यदि 'राजघाट' तोड़े जाने की इस घटना का भी अवलोकन करें तो मिलता है कि लोगों ने इस मामले में भी इसी भावना से प्रेरित होकर का प्रचार किया.   

आखिर में हम बस यही कहेंगे कि यदि आप किसी चीज के बारे में कुछ ऐसा सुन रहे हैं जो आपको अचरज में डाल रहा है तो पहले उसकी सत्यता की जांच कर लें. जब आपको लगे कि वो चीज सही है तभी उसे अपने जानने वालों को बताएं. यदि आप ऐसा नहीं कर रहे हैं तो आप जाने अनजाने एक ऐसा काम कर रहे हैं जो कई मायनों में निंदनीय है. 

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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