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भूमि अधिग्रहण बिल: वह सबकुछ जो आप जानना चाहेंगे

    • धीरेंद्र राय
    • Updated: 24 फरवरी, 2015 08:21 PM
  • 24 फरवरी, 2015 08:21 PM
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पिछले साल दिसंबर में मोदी सरकार एक अध्यादेश लाई. यूपीए के भूमि अधिग्रहण कानून में कुछ बदलाव करते हुए. लेकिन विपक्ष को ये बदलाव खटक रहे हैं. अन्ना हजारे ने तो आंदोलन शुरू कर दिया है. आइए, जानते हैं इस बिल से जुड़ी बारीकियों के बारे में-

भारत में 2013 क़ानून के पास होने तक भूमि अधिग्रहण का काम मुख्यत: 1894 में बने क़ानून के दायरे में होता था. लेकिन मनमोहन सरकार ने मोटे तौर पर उसके तीन प्रावधानों में बदलाव कर दिए थे. ये भूमि अधिग्रहण की सूरत में समाज पर इसके असर, लोगों की सहमति और मुआवज़े से संबंधित थे. पिछले साल दिसंबर में मोदी सरकार ने एक अध्यादेश लाया. यूपीए के भूमि अधिग्रहण कानून में कुछ बदलाव करते हुए. लेकिन विपक्ष को ये बदलाव खटक रहे हैं. अन्ना हजारे ने तो आंदोलन शुरू कर दिया है. आइए, जानते हैं इस बिल से जुड़ी बारीकियों के बारे में-

1. समाज पर असर वाले प्रावधान को ख़त्म किया गया है
सोशल इंपैक्ट असेसमेंट की मदद से ये बात सामने आ सकती थी कि भूमि लिए जाने से वहां के समाज पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा. क्योंकि भूमि अधिग्रहण का असर सिर्फ बड़े किसानों या जमीन मालिकों पर ही नहीं होता, छोटे किसान और मजदूर भी वहां होते हैं, जो वर्षों से उस जमीन पर काम कर रहे होते हैं. यदि जमीन ले गई तो वे क्या करेंगे, कहां रहेंगे.

2. लोगों की रज़ामंदी हासिल करने से छुटकारा
2013 के क़ानून में एक प्रावधान रखा गया था लोगों से सहमति लेने का. सरकार और निजी कंपनियों के साझा प्रोजेक्ट में प्रभावित जमीन मालिकों में से 80 फीसदी की सहमति जरूरी थी. सरकारी परियोजनाओं के लिए ये 70 प्रतिशत था. नए क़ानून में इसे ख़त्म कर दिया गया है. रक्षा, ग्रामीण बिजली, ग़रीबों के लिए घर और औद्योगिक कॉरीडोर जैसी परियोजनाओं में 80 फीसदी लोगों के सहमिति की आवश्यकता नहीं होगी.

3. नहीं बढ़ा मुआवज़ा
संशोधन में भी मुआवज़े की दर को पहले जैसा ही रखा गया है. जमीन की कीमत के बाजार मूल्य का ग्रामीण इलाकों में चार गुना और शहरों में दोगुना. फर्क सिर्फ इस बात का है कि सामाज पर पड़ने वाले असर के प्रावधान को खत्म करके सरकार ने मुआवजे की सीमा सिर्फ उन्हीं लोगों तक सीमित कर दी है, जिनके नाम जमीन है. जबकि पुराने कानून में ऐसे सभी लोगों को मुआवजा देने का...

भारत में 2013 क़ानून के पास होने तक भूमि अधिग्रहण का काम मुख्यत: 1894 में बने क़ानून के दायरे में होता था. लेकिन मनमोहन सरकार ने मोटे तौर पर उसके तीन प्रावधानों में बदलाव कर दिए थे. ये भूमि अधिग्रहण की सूरत में समाज पर इसके असर, लोगों की सहमति और मुआवज़े से संबंधित थे. पिछले साल दिसंबर में मोदी सरकार ने एक अध्यादेश लाया. यूपीए के भूमि अधिग्रहण कानून में कुछ बदलाव करते हुए. लेकिन विपक्ष को ये बदलाव खटक रहे हैं. अन्ना हजारे ने तो आंदोलन शुरू कर दिया है. आइए, जानते हैं इस बिल से जुड़ी बारीकियों के बारे में-

1. समाज पर असर वाले प्रावधान को ख़त्म किया गया है
सोशल इंपैक्ट असेसमेंट की मदद से ये बात सामने आ सकती थी कि भूमि लिए जाने से वहां के समाज पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा. क्योंकि भूमि अधिग्रहण का असर सिर्फ बड़े किसानों या जमीन मालिकों पर ही नहीं होता, छोटे किसान और मजदूर भी वहां होते हैं, जो वर्षों से उस जमीन पर काम कर रहे होते हैं. यदि जमीन ले गई तो वे क्या करेंगे, कहां रहेंगे.

2. लोगों की रज़ामंदी हासिल करने से छुटकारा
2013 के क़ानून में एक प्रावधान रखा गया था लोगों से सहमति लेने का. सरकार और निजी कंपनियों के साझा प्रोजेक्ट में प्रभावित जमीन मालिकों में से 80 फीसदी की सहमति जरूरी थी. सरकारी परियोजनाओं के लिए ये 70 प्रतिशत था. नए क़ानून में इसे ख़त्म कर दिया गया है. रक्षा, ग्रामीण बिजली, ग़रीबों के लिए घर और औद्योगिक कॉरीडोर जैसी परियोजनाओं में 80 फीसदी लोगों के सहमिति की आवश्यकता नहीं होगी.

3. नहीं बढ़ा मुआवज़ा
संशोधन में भी मुआवज़े की दर को पहले जैसा ही रखा गया है. जमीन की कीमत के बाजार मूल्य का ग्रामीण इलाकों में चार गुना और शहरों में दोगुना. फर्क सिर्फ इस बात का है कि सामाज पर पड़ने वाले असर के प्रावधान को खत्म करके सरकार ने मुआवजे की सीमा सिर्फ उन्हीं लोगों तक सीमित कर दी है, जिनके नाम जमीन है. जबकि पुराने कानून में ऐसे सभी लोगों को मुआवजा देने का प्रावधान था, जो उस जमीन पर निर्भर हैं.

4. जमीन बंजर हो या उपजाऊ फर्क नहीं पड़ेगा
सरकार ने जिन पांच सेक्टरों को प्राथमिकता की सूची में डाला है, उनके लिए जमीन अधिग्रहण करते वक्त यह नहीं देखा जाएगा कि वह जमीन बंजर है या उपजाऊ. जैसा कि सिंगूर के मामले था. अब बिना कोई पूछताछ के उसे सरकार ले लेगी.

5. 13 और कानूनों को भूमि अधिग्रहण में शामिल कर लिया
इस कदम को किसानों के पक्ष में माना जा रहा है. देश में 13 कानून और हैं, जिनके तहत जमीन तो अधिग्रहित की जाती है. लेकिन मुआवजे और पुनर्वास की कोई ठोस व्यवस्था नहीं थी. अब भूमि अधिग्रहण कानून के तहत ऐसे सभी मामलों में मुआवजा दिया जाएगा और पुनर्वास कराया जाएगा. जिन मामलों में इसका फायदा मिलेगा, वे हैं नेशनल हाईवे एक्ट, एटॉमिक एनर्जी एक्ट, पेट्रोलियम एंड मिनरल पाइप लाइंस एक्ट, इलेक्‍ट्रिसिटी एक्ट आदि.

विरोध पर कांग्रेस के दो रुख : मोदी सरकार के इस बिल का कांग्रेस विरोध कर रही है. लेकिन यूपीए के भूमि अधिग्रहण कानून का कांग्रेस की ही राज्य सरकारें विरोध करती रही हैं. हरियाणा और केरल ने पीपीपी प्रोजेक्ट के लिए रजामंदी वाले प्रावधान को हटाने या उसे 80 के बजाए 50 फीसदी करने की बात कही थी. असम, हरियाणा और हिमाचल सरकारें कानून में प्रभावित परिवारों की परिभाषा को ज्यादा व्यापक मान रही थीं. कर्नाटक, केरल, महाराष्ट्र और मणिपुर ने कहा कि बड़े प्रोजेक्ट में ही समाज पर असर वाले प्रावधान का इस्तेमाल होना चाहिए.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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