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केरल क्यों बना जिहादी गतिविधियों का घर ?

    • अमित अरोड़ा
    • Updated: 28 सितम्बर, 2017 08:48 PM
  • 28 सितम्बर, 2017 08:48 PM
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1970 दशक के आखरी सालों से लेकर आज के समय तक केरल में या तो मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीएम) अथवा कांग्रेस की सरकार ही रही है. दोनों पार्टियों की सरकारों ने इस समस्या को हमेशा नज़रअंदाज़ किया है.

आज केरल भारत विरोधी कार्यों का घर बनता जा रहा है. राज्य की विभिन्न सरकारों द्वारा की गई वोट बैंक की राजनीति. मध्य एशिया से पुराने संबंध. विदेशों से धार्मिक संस्थाओं को गैर क़ानूनी धन. कुछ इलाक़ों में मुस्लिम समाज का बहुतायत- इन सभी कारणों के फलस्वरूप केरल जिहादी गतिविधियों का गढ़ बन गया है.

यदि हम इतिहास में पीछे जाएं तो पाएंगे की चौथी शताब्दी ईसा पूर्व से अरब व्यापारी, अपने मसालों की आवश्यकता पूर्ति के लिए केरल के लोगों के साथ व्यापार किया करते थे. अरब व्यापारियों को न केवल इस क्षेत्र में व्यापार करने की अनुमति दी गई थी. बल्कि क्षेत्र के मछुआरों के साथ स्वतंत्र रूप से मिलने की भी आज़ादी थी. 14वीं शताब्दी तक अरब वंशजों ने केरल में स्वयं को दक्षिण एशिया के पहले मूल मुस्लिम समुदाय के रूप में स्थापित किया. इसके साथ साथ अपनी भाषा (अरबी-मलयालम), नृत्य रूप (अरवानामूत्तु) और यहां तक कि व्यंजनों (बिरयानी) को भी विकसित कर लिया. इस समय तक मलयाली नाविकों ने भी अरब व्यापारियों के साथ खाड़ी के देशों की यात्राओं पर जाना शुरू कर दिया था. दक्षिण भारत में इस्लाम धर्म की शुरूआत इन्ही अरब वंशजों के द्वारा हुई.

सरकारों की नाकामी के कारण केरल आतंकवादियों का गढ़ बन गया.

1950 के दशक में तेल की खोज के लिए मध्य एशिया में बड़े पैमाने पर निष्कर्षण का काम शुरू हुआ. खाड़ी के साथ अपने पुराने संबंधों के कारण केरल के लोगों ने इस अवसर का भरपूर फ़ायदा उठाया. अच्छे भविष्य की आशा के साथ मलयाली समाज ने मध्य एशिया के देशों की ओर रुख़ किया. तेल के कारण खाड़ी के देशों में काफ़ी समृद्धि आई. इस समृद्धि ने मलयाली समाज को मध्य एशिया की ओर अधिक संख्या में जाने के लिए प्रेरित किया. इस सिलसिले ने अगले 3-4 दशकों में और तेज़ी पकड़ी.

मध्य एशिया की समृद्धि से केरल को...

आज केरल भारत विरोधी कार्यों का घर बनता जा रहा है. राज्य की विभिन्न सरकारों द्वारा की गई वोट बैंक की राजनीति. मध्य एशिया से पुराने संबंध. विदेशों से धार्मिक संस्थाओं को गैर क़ानूनी धन. कुछ इलाक़ों में मुस्लिम समाज का बहुतायत- इन सभी कारणों के फलस्वरूप केरल जिहादी गतिविधियों का गढ़ बन गया है.

यदि हम इतिहास में पीछे जाएं तो पाएंगे की चौथी शताब्दी ईसा पूर्व से अरब व्यापारी, अपने मसालों की आवश्यकता पूर्ति के लिए केरल के लोगों के साथ व्यापार किया करते थे. अरब व्यापारियों को न केवल इस क्षेत्र में व्यापार करने की अनुमति दी गई थी. बल्कि क्षेत्र के मछुआरों के साथ स्वतंत्र रूप से मिलने की भी आज़ादी थी. 14वीं शताब्दी तक अरब वंशजों ने केरल में स्वयं को दक्षिण एशिया के पहले मूल मुस्लिम समुदाय के रूप में स्थापित किया. इसके साथ साथ अपनी भाषा (अरबी-मलयालम), नृत्य रूप (अरवानामूत्तु) और यहां तक कि व्यंजनों (बिरयानी) को भी विकसित कर लिया. इस समय तक मलयाली नाविकों ने भी अरब व्यापारियों के साथ खाड़ी के देशों की यात्राओं पर जाना शुरू कर दिया था. दक्षिण भारत में इस्लाम धर्म की शुरूआत इन्ही अरब वंशजों के द्वारा हुई.

सरकारों की नाकामी के कारण केरल आतंकवादियों का गढ़ बन गया.

1950 के दशक में तेल की खोज के लिए मध्य एशिया में बड़े पैमाने पर निष्कर्षण का काम शुरू हुआ. खाड़ी के साथ अपने पुराने संबंधों के कारण केरल के लोगों ने इस अवसर का भरपूर फ़ायदा उठाया. अच्छे भविष्य की आशा के साथ मलयाली समाज ने मध्य एशिया के देशों की ओर रुख़ किया. तेल के कारण खाड़ी के देशों में काफ़ी समृद्धि आई. इस समृद्धि ने मलयाली समाज को मध्य एशिया की ओर अधिक संख्या में जाने के लिए प्रेरित किया. इस सिलसिले ने अगले 3-4 दशकों में और तेज़ी पकड़ी.

मध्य एशिया की समृद्धि से केरल को काफ़ी फ़ायदा हुआ है पर अब यह समृद्धि ही केरल और पूरे देश के लिए घातक साबित होने लगी है. तेल की खोज के बाद मध्य एशिया में बहुत अधिक मात्रा में पैसा आया. इस धन का एक बुरा प्रभाव हुआ की खाड़ी देशों में वहाबी विचारधारा ने ज़ोर पकड़ना शुरू कर दिया. वहाबी शैली, सुन्नी मुसलमानों के एक अत्यंत रूढ़िवादी समूह में पाई जाती है. यह विचारधारा ही कट्टर इस्लामी आतंकवाद की जननी है.

सऊदी अरब, भारत में इस्लाम की वहाबी शैली के प्रचार के लिए कार्यरत है. इसके लिए वह भारत में वहाबी केंद्रों की स्थापना का प्रयास कर रहा है. इंटेलिजेन्स ब्यूरो के अनुसार सिर्फ़ 2011 से 2013 के बीच 25,000 धर्मोपदेशक वहाबी इस्लाम के प्रचार के लिए सऊदी अरब से भारत में आए. उन्होंने भारत के विभिन्न स्थानों में विचार-गोष्ठी और सभाओं में भाग लिया. वहाबी इस्लाम के प्रचार के लिए यह धर्मोपदेशक अपने साथ लगभग 1700 करोड़ रुपये भी भारत में लेकर आए. अभी तक भारत में वहाबी संस्कृति को लागू करने का सऊदी अरब का दावा पूरी तरह सफल नहीं हुआ है. परंतु केरल में उसे बहुत हद तक कामयाबी मिली है. इसका मुख्य कारण है की रोजगार की तलाश में केरल से सऊदी अरब काफ़ी बड़ी संख्या में लोग जाते हैं.

केरल के मध्य एशिया के साथ सदियों पुराने संबंध हैं. इन संबंधों के कारण केरल में भी वहाबी विचारधारा फैल रही है. केरल में कई लोगों ने खुले हाथों से वहाबी शैली के इस्लामी प्रचार का स्वागत किया है. खबरों के अनुसार 2015 तक केरल की 75 मस्जिदों पर वहाबी इस्लाम का नियंत्रण हो चुका था. मध्य एशिया से केरल में बड़ी मात्रा में धन दान के रूप में आ रहा है. यह धन कट्टर इस्लामी सोच को बढ़ाने और भारत विरोधी गतिविधियों में प्रयोग हो रहा है. धर्म के नाम पर युवाओं को भ्रमित किया जा रहा है. साज़िश के द्वारा धर्म परिवर्तन और लव जिहाद की घटनाएं भी केरल में बढ़ रही हैं. आज केरल आइएसआइएस के आतंकवादियों की भर्ती का अड्डा बन चुका है.

वहाबी संप्रदाय ने केरल में जड़े जमा ली हैं

1970 दशक के आखरी सालों से लेकर आज के समय तक केरल में या तो मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीएम) अथवा कांग्रेस की सरकार ही रही है. दोनों पार्टियों की सरकारों ने इस समस्या को हमेशा नज़रअंदाज़ किया है. दोनो ने ही वोट बैंक के लालच में आकर कोई ठोस क़ानूनी करवाही नहीं की. यह इसी का परिणाम है कि समस्या ने इतना विकराल रूप ले लिया है.

केरल में आतंकी घटनाओं में लिप्त ‘पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया’ (पीएफआई) जैसे संगठन वहाबी विचारधारा की देन है. एनआइए की गृह मंत्रालय को सौंपी रिपोर्ट के अनुसार केरल में 'पीएफआइ' देश विरोधी कार्यों में लिप्त है. एनआइए के अनुसार 'पीएफआइ' कट्टर इस्लामी विचारधारा के प्रचार, धर्म परिवर्तन, मुस्लिम युवाओं को बर्गलाने जैसे कामों में लगा हुआ है. ऐसी उम्मीद है कि गृह मंत्रालय जल्दी ही 'पीएफआइ' पर रोक लगा देगा. लेकिन कट्टर इस्लामी सोच पर रोक लगाना इतना आसान नहीं होगा. केरल की इस समस्या से यह बात भी साफ़ हो जाती है की शिक्षित होने के बावजूद भी समाज के लोग आतंक और कट्टरवाद की राह पर चल सकते हैं.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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