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केरल जैसी हिंसा किसी दूसरे राज्य में होती तो क्या होता?

    • आईचौक
    • Updated: 06 अगस्त, 2017 06:48 PM
  • 06 अगस्त, 2017 06:48 PM
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केरल का कन्नूर जिला 60 के दशक से सियासी हिंसा की चपेट में है. खास बात ये है कि मुख्यमंत्री पिनरई विजयन भी कन्नूर से ही आते हैं. यहां की हिंसक घटनाओं पर गौर करें तो लगता है कि इसका नाम कन्नूर नहीं बदलापुर होना चाहिये.

केरल पहुंचे वित्त मंत्री अरुण जेटली के बयान का लहजा बिलकुल सवालिया था. जेटली ने कहा कि जिस तरह की हिंसा केरल में हो रही है, अगर वो बीजेपी या एनडीए शासित किसी राज्य में होती तो अब तक अवॉर्ड वापसी का दौर शुरू हो चुका होता - और संसद भी ठप कर दी गयी होती. जेटली ने आरएसएस कार्यकर्ता राजेश एडावाकोड के घर वालों से तिरुअनंतपुरम जा कर मुलाकात की और उन्हें मुश्किल घड़ी में साथ खड़े होने का अहसास दिलाया. जेटली के केरल दौरे के दरम्यान सीपीएम कार्यकर्ताओं ने राजभवन पर विरोध प्रदर्शन किया जिसमें पार्टी समर्थक और पीड़ितों के परिवार भी शामिल थे.

जेटली का दौरा

राजभवन पर प्रदर्शनकारियों की मांग थी कि जेटली उन लोगों के घरों का भी दौरा करना चाहिये जिनकी हिंसा में मौत हुई है. सीपीएम इन हत्याओं के लिए आरएसएस और बीजेपी को जिम्मेदार ठहराती रही है. ध्यान देनेवाली बात है कि राज्यपाल पी सदाशिवम ने संघ कार्यकर्ता राजेश की हत्या पर मुख्यमंत्री को तलब किया था. उसके बाद सीपीएम ने गवर्नर के इस व्यवहार पर सवाल उठाये थे. कुछ उसी तरह जैसे ममता बनर्जी ने पश्चिम बंगाल के गवर्नर पर खुद को अपमानित करने का आरोप लगाया था.

सियासत का बदलापुर बना कन्नूर

जहां तक जेटली के हिंसा में मारे गये सीपीएम कार्यकर्ताओं के घर जाने का सवाल है तो ये तो संभव न था. पहली बात जेटली बतौर बीजेपी नेता तिरुअनंतपुरम गये थे केंद्रीय मंत्री के तौर पर नहीं. दूसरे जेटली कोई गृह मंत्री तो हैं नहीं जिनसे ऐसे किसी फर्ज की अपेक्षा की जानी चाहिये. जेटली तो आरएसएस और बीजेपी कार्यकर्ताओं को बताने गये थे कि केंद्रीय नेतृत्व उनके साथ है. वैसे यही बात सत्ताधारी सीपीएम को परेशान भी कर रही है. सीपीएम के स्थानीय नेता नहीं चाहते कि केरल की हिंसा राष्ट्रीय परिदृश्य का हिस्सा बने जबकि...

केरल पहुंचे वित्त मंत्री अरुण जेटली के बयान का लहजा बिलकुल सवालिया था. जेटली ने कहा कि जिस तरह की हिंसा केरल में हो रही है, अगर वो बीजेपी या एनडीए शासित किसी राज्य में होती तो अब तक अवॉर्ड वापसी का दौर शुरू हो चुका होता - और संसद भी ठप कर दी गयी होती. जेटली ने आरएसएस कार्यकर्ता राजेश एडावाकोड के घर वालों से तिरुअनंतपुरम जा कर मुलाकात की और उन्हें मुश्किल घड़ी में साथ खड़े होने का अहसास दिलाया. जेटली के केरल दौरे के दरम्यान सीपीएम कार्यकर्ताओं ने राजभवन पर विरोध प्रदर्शन किया जिसमें पार्टी समर्थक और पीड़ितों के परिवार भी शामिल थे.

जेटली का दौरा

राजभवन पर प्रदर्शनकारियों की मांग थी कि जेटली उन लोगों के घरों का भी दौरा करना चाहिये जिनकी हिंसा में मौत हुई है. सीपीएम इन हत्याओं के लिए आरएसएस और बीजेपी को जिम्मेदार ठहराती रही है. ध्यान देनेवाली बात है कि राज्यपाल पी सदाशिवम ने संघ कार्यकर्ता राजेश की हत्या पर मुख्यमंत्री को तलब किया था. उसके बाद सीपीएम ने गवर्नर के इस व्यवहार पर सवाल उठाये थे. कुछ उसी तरह जैसे ममता बनर्जी ने पश्चिम बंगाल के गवर्नर पर खुद को अपमानित करने का आरोप लगाया था.

सियासत का बदलापुर बना कन्नूर

जहां तक जेटली के हिंसा में मारे गये सीपीएम कार्यकर्ताओं के घर जाने का सवाल है तो ये तो संभव न था. पहली बात जेटली बतौर बीजेपी नेता तिरुअनंतपुरम गये थे केंद्रीय मंत्री के तौर पर नहीं. दूसरे जेटली कोई गृह मंत्री तो हैं नहीं जिनसे ऐसे किसी फर्ज की अपेक्षा की जानी चाहिये. जेटली तो आरएसएस और बीजेपी कार्यकर्ताओं को बताने गये थे कि केंद्रीय नेतृत्व उनके साथ है. वैसे यही बात सत्ताधारी सीपीएम को परेशान भी कर रही है. सीपीएम के स्थानीय नेता नहीं चाहते कि केरल की हिंसा राष्ट्रीय परिदृश्य का हिस्सा बने जबकि बीजेपी और संघ की पूरी कोशिश यही है.

अपनी प्रेस कांफ्रेंस में जेटली ने हैरानी जतायी कि राजनीतिक पार्टियां और बुद्धिजीवी केरल हिंसा पर खामोशी अख्तियार किये हुए हैं. जेटली ने कहा, "जैसा केरल में हुआ वैसा अगर किसी बीजपी या एनडीए शासित राज्य में हुआ होता तो अवॉर्ड वापसी शुरू हो जाती, संपादकीय लिखे जाते. संसद नहीं चलने दी जाती. देश और देश के बाहर इसे लेकर अभियान चल रहे होते."

केरल की हिंसा

केरल का कन्नूर जिला 60 के दशक से सियासी हिंसा की चपेट में है. खास बात ये है कि मुख्यमंत्री पिनरई विजयन भी कन्नूर से ही आते हैं जिन्होंने 2016 में लेफ्ट गठबंधन की विधानसभा चुनाव में जीत के बाद सत्ता संभाली.

यहां की हिंसक घटनाओं पर गौर करें तो लगता है कि इसका नाम कन्नूर नहीं बदलापुर होना चाहिये. पिछले साल की बात है 11 जुलाई को देर शाम सीपीएम नेता सीवी धनराज की हत्या कर दी गयी. अभी ढाई-तीन घंटे ही बीते होंगे कि आधी रात के करीब बीजेपी कार्यकर्ता सीके रामचंद्रन की उसके घर में घुस कर हत्या कर दी गयी. धनराज की हत्या के आरोपी की भी इसी साल मई में हत्या कर दी गयी.

अपराध के रिकॉर्ड बताते हैं कि 1991 से लेकर अभी तक सिर्फ कन्नूर में 44 आरएसएस-बीजेपी और 45 सीपीएम कार्यकर्ताओं की हत्या हो चुकी है. हाल ही में आरएसएस नेता दत्तात्रेय होसबोले ने कहा था कि पिछले 13 महीने में 14 आरएसएस कार्यकर्ताओं की हत्या की गई है. होसबोले ने इन हत्याओं के पीछे सीपीएम के हाथ का दावा किया.

होसबोले ने ये बातें राजेश की हत्या के बाद कही थी - मामले को जोर शोर से उठाया था. होसबोले के बाद जेटली ने तिरुअनंतपुरम पहुंच कर ये मामला उठाया. बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह पूरे मामले की निगरानी कर रहे हैं - और जल्द ही संघ प्रमुख मोहन भागवत के जाने की भी संभावना जतायी जा रही है.

प्रदर्शन कर रहे सीपीएम कार्यकर्ताओं को भी जेटली ने साफ कर दिया कि वो किसी सरकारी दौरे पर नहीं गये हैं. जेटली साफ साफ कह दिया कि हिंसा न तो केरल में हमारी विचारधारा को दबा पायेगी और न ही हमारे कार्यकर्ताओं को डराने में सक्षम हो सकती है. जेटली ने कहा कि कार्यकर्ताओं पर हुए हमलों ने उनके संकल्प को और भी मजबूत किया है और उनकी पार्टी हिंसा फैलाने वालों के खिलाफ लड़ाई जारी रखेगी. जेटली ने कहा कि मारे गये संघ कार्यकर्ता के शरीर पर 70-80 जख्मों के निशान पाये गये. जेटली ने हिंसा की तुलना आतंकवादी घटनाओं से की और कहा कि ऐसा तो दुश्मन भी नहीं करते.

बीजेपी अध्यक्ष शाह की जिन राज्यों में पार्टी की पैठ बढ़ाने की कोशिश है उनमें पश्चिम बंगाल के साथ साथ केरल भी है - और दोनों ही राज्यों में बीजेपी करीब करीब एक ही रणनीति के साथ आगे बढ़ रही है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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