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तीसरे चरण के चुनाव में अखिलेश की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है !

    • आलोक रंजन
    • Updated: 17 फरवरी, 2017 04:58 PM
  • 17 फरवरी, 2017 04:58 PM
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अखिलेश यादव के लिए ये चैलेंज से कम नहीं है कि वो अपने गढ़ माने जाने वाले जिलों में समाजवादी पार्टी का झंडा इस बार भी झुकने न दें.

उत्तर प्रदेश में तीसरे चरण का चुनाव 19 फरवरी को होने वाला है. इस चरण में प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की साख की महत्वपूर्ण परीक्षा होने वाली है. 12 जिलों के कुल 69 सीट में तीसरे चरण में चुनाव होने वाले हैं. जिन जिलों में चुनाव होने वाले हैं वो हैं- फरूखाबाद, हरदोई, कन्नौज, मैनपुरी, इटावा, औरैया, कानपुर देहात, कानपुर, उन्नाव, लखनऊ, बाराबंकी और सीतापुर. इन जिलों की 69 सीट समाजवादी पार्टी के लिए कितनी अहम हैं, इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि 2012 विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी कुल 55 सीट यहां से जीतने में सफल हो पायी थी.

इस क्षेत्र में जहां एक ओर प्रदेश की राजधानी लखनऊ शामिल है तो दूसरी और कानपुर का औद्योगिक इलाका भी सम्मलित है. ये क्षेत्र एक अद्भुत नजारा पेश करता है जहां शहरी और ग्रामीण विभाजन अधिक हैं, गांव आर्थिक तौर पर पिछड़े हुए हैं और जहां स्वास्थ्य के हालात अभी भी ठीक नहीं हैं.

अखिलेश के लिए इस विधानसभा चुनाव में 2012 की 55 सीटों को बनाए रखना प्रतिष्ठा का सवाल है. खास तौर पर मैनपुरी, इटावा और कन्नौज जो कि यादव परिवार के गढ़ माने जाते हैं वहां पर समाजवादी पार्टी कैसा प्रदर्शन करती है ये बात सबके जहन में कौतुहल पैदा कर रही है. अखिलेश यादव के लिए ये चैलेंज से कम नहीं है कि वो इन जिलों में समाजवादी पार्टी का झंडा इस बार भी झुकने न दे.

इटावा अखिलेश का मूल निवास है. उनकी पत्नी डिंपल यादव कन्नौज लोकसभा सीट से सांसद हैं, तो वहीं दूसरी ओर उनके भाई तेज प्रताप यादव मैनपुरी से सांसद हैं. अगर यादव कुनबे की बात करें तो तीसरे चरण के चुनाव में इस परिवार के 3 सदस्य भाग्य आजमा रहे हैं. इटावा के जसवंत नगर से शिवपाल यादव खड़े हैं, तो अपर्णा यादव लखनऊ कैंट सीट से चुनाव लड़ रही हैं. अखिलेश के चचेरे भाई अनुराग यादव लखनऊ के सरोजनी नगर से अपना भाग्य आजमा रहे...

उत्तर प्रदेश में तीसरे चरण का चुनाव 19 फरवरी को होने वाला है. इस चरण में प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की साख की महत्वपूर्ण परीक्षा होने वाली है. 12 जिलों के कुल 69 सीट में तीसरे चरण में चुनाव होने वाले हैं. जिन जिलों में चुनाव होने वाले हैं वो हैं- फरूखाबाद, हरदोई, कन्नौज, मैनपुरी, इटावा, औरैया, कानपुर देहात, कानपुर, उन्नाव, लखनऊ, बाराबंकी और सीतापुर. इन जिलों की 69 सीट समाजवादी पार्टी के लिए कितनी अहम हैं, इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि 2012 विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी कुल 55 सीट यहां से जीतने में सफल हो पायी थी.

इस क्षेत्र में जहां एक ओर प्रदेश की राजधानी लखनऊ शामिल है तो दूसरी और कानपुर का औद्योगिक इलाका भी सम्मलित है. ये क्षेत्र एक अद्भुत नजारा पेश करता है जहां शहरी और ग्रामीण विभाजन अधिक हैं, गांव आर्थिक तौर पर पिछड़े हुए हैं और जहां स्वास्थ्य के हालात अभी भी ठीक नहीं हैं.

अखिलेश के लिए इस विधानसभा चुनाव में 2012 की 55 सीटों को बनाए रखना प्रतिष्ठा का सवाल है. खास तौर पर मैनपुरी, इटावा और कन्नौज जो कि यादव परिवार के गढ़ माने जाते हैं वहां पर समाजवादी पार्टी कैसा प्रदर्शन करती है ये बात सबके जहन में कौतुहल पैदा कर रही है. अखिलेश यादव के लिए ये चैलेंज से कम नहीं है कि वो इन जिलों में समाजवादी पार्टी का झंडा इस बार भी झुकने न दे.

इटावा अखिलेश का मूल निवास है. उनकी पत्नी डिंपल यादव कन्नौज लोकसभा सीट से सांसद हैं, तो वहीं दूसरी ओर उनके भाई तेज प्रताप यादव मैनपुरी से सांसद हैं. अगर यादव कुनबे की बात करें तो तीसरे चरण के चुनाव में इस परिवार के 3 सदस्य भाग्य आजमा रहे हैं. इटावा के जसवंत नगर से शिवपाल यादव खड़े हैं, तो अपर्णा यादव लखनऊ कैंट सीट से चुनाव लड़ रही हैं. अखिलेश के चचेरे भाई अनुराग यादव लखनऊ के सरोजनी नगर से अपना भाग्य आजमा रहे हैं.

2012 के विधान सभा चुनाव में समाजवादी पार्टी इन तीनों जिलों की 12 सीटों पर विजयी हुई थी. लेकिन इस बार समीकरण बिलकुल विपरीत हैं. यादव परिवार में कलह किसी से छुपा नहीं है. परिवार में चल रही उठापटक और अखिलेश का समाजवादी पार्टी में हावी होना और सारी कमांड अपने हाथ में रखना मुलायम और शिवपाल यादव के करीबी कई समर्पित कार्यकर्ताओं को रास नहीं आया है. और शायद इसका खामियाजा पार्टी को उठाना पड़ सकता है.

मुलायम का प्रचार से दूर रहना भी समाजवादी पार्टी के विरुद्ध जा सकता है. मुलायम सिंह यादव हमेशा से ही समाजवादी पार्टी के लिए स्टार प्रचारक रहे हैं, लेकिन इस बार उन्होंने केवल शिवपाल और अपर्णा के लिए ही प्रचार किया है. वहीं शिवपाल यादव का रुख जग जाहिर है. कांग्रेस से गठबंधन करना भी कई कार्यकर्ताओं को हजम नहीं हो रहा है. अब सवाल ये है कि ऐसी परस्थिति में अखिलेश यादव इन जिलों में पार्टी की साख को बचा पाते हैं या नहीं ये देखना दिलचस्प होगा.

कई समीक्षक तो ये कहने से भी चूक नहीं रहे हैं कि मुलायम सिंह यादव की अनदेखी करना अखिलेश को भारी पड़ सकता है और हो सकता है कि इस बार समाजवादी किला यहां पर ढह जाए.

इस चरण में कुल 2.4 करोड़ मतदाता 826 उम्मीदवारों के भाग्य का फैसला करेंगे. अगर इस क्षेत्र की बात करें तो लोकल मुद्दे जैसे कानून व्यवस्था, बिजली, पानी, स्वास्थ्य, विकास, मूलभूत सुविधाएं हैं, तो कई के लिए नोटबंदी, करप्शन, राम मंदिर का मुद्दा और सर्जिकल स्ट्राइक भी मुद्दे से कम नहीं है. इस चरण का करीब 30% क्षेत्र शहरी है और 70% ग्रामीण इलाका है. दलितों की संख्या करीब 25% है और अल्पसंख्यक 16% के करीब हैं. इसके साथ ये इलाका यादव बाहुल्य भी है.

अब देखना ये है कि अखिलेश यादव 2012 के प्रदर्शन को यहां दोहरा पाते हैं या नहीं. अगर वे समाजवादी किले को बचाने में सफल हो जाते हैं तो इस परीक्षा में उभर कर सामने आएंगे और राजनीति में अपनी स्थिति को और मजबूत करेंगे.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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