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यूपी चुनाव की मोदी लहर ने तोड़ी ममता की कमर !

    • आईचौक
    • Updated: 17 मार्च, 2017 08:05 PM
  • 17 मार्च, 2017 08:05 PM
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11 मार्च को परिणाम के दिन, वो सुबह से ही टीवी के सामने बैठ गईं थीं. जैसे-जैसे यूपी में भगवा रंग चढ़ने लगा उनकी बेचैनी बढ़ती गई. अंत में अधीर होकर ममता चैनल सर्फिंग करने लगीं.

ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस ने भले ही यूपी चुनाव में एक भी उम्मीदवार खड़ा नहीं किया था, लेकिन चुनाव के परिणाम का इंतजार उसी बेसब्री से कर रही थी जैसे सपा-बसपा को था. चुनाव परिणामों के अपने व्यक्तिगत आकलन से जब ममता बनर्जी आश्वस्त नहीं हुई तो उन्होंने पत्रकारों से इस विषय में बात की और उन राजनीतिक पंडितों की भविष्यवाणियों को जानने लगीं.

11 मार्च को परिणाम के दिन, वो सुबह से ही टीवी के सामने बैठ गईं थीं. जैसे-जैसे यूपी में भगवा रंग चढ़ने लगा उनकी बेचैनी बढ़ती गई. अंत में अधीर होकर ममता चैनल सर्फिंग करने लगीं कि कहीं से बीजपी के हार की खबर मिले. हालांकि अखिलेश और राहुल के विपरीत, ममता यूपी के चुनावी समर में मैदान पर पसीना नहीं बहा रही थीं. लेकिन फिर भी अखिलेश यादव और राहुल गांधी की तरह ममता पर भी हार का गहरा असर हुआ.

यूपी में भगवा से ममता दुखीयूपी चुनाव के परिणामों का महत्व ममता बनर्जी के लिए व्यक्तिगत कारणों से जरूरी था. प्रधानमंत्री के साथ उनके नूरा-कुश्ति जाहिर है. पीएम मोदी ने सीधा-सीधा ममता बनर्जी की ईमानदारी पर तो सवाल खड़ा किया ही था साथ ही उनकी राष्ट्रीय राजनीति की आकांक्षाओं के लिए भी एक बड़ी बाधा के रूप में सामने आ खड़े हुए हैं.

इसलिए अपने कट्टर दुश्मन की इतनी बड़ी जीत उनके लिए किसी सदमे से कम नहीं था. हालांकि बीजेपी ने ये जीत ममता के ही एक और प्रतिद्वंदी के खिलाफ ही पाई थी लेकिन फिर भी मोदी की जीत ज्यादा भारी पड़नी थी, सो पड़ी. शाम को ममता बनर्जी चुनावी नतीजों पर एक ट्वीट किया- 'विभिन्न राज्यों में विजेताओं को बधाई. मतदाताओं को बधाई कि उन्होंने अपनी पसंद के नेता को वोट दिया. जो लोग चुनाव हार गए वो दिल छोटा ना करें. लोकतंत्र में हमें एक दूसरे का सम्मान करना चाहिए. हार और जीत जीवन का हिस्सा है. कुछ जीतेंगे तो...

ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस ने भले ही यूपी चुनाव में एक भी उम्मीदवार खड़ा नहीं किया था, लेकिन चुनाव के परिणाम का इंतजार उसी बेसब्री से कर रही थी जैसे सपा-बसपा को था. चुनाव परिणामों के अपने व्यक्तिगत आकलन से जब ममता बनर्जी आश्वस्त नहीं हुई तो उन्होंने पत्रकारों से इस विषय में बात की और उन राजनीतिक पंडितों की भविष्यवाणियों को जानने लगीं.

11 मार्च को परिणाम के दिन, वो सुबह से ही टीवी के सामने बैठ गईं थीं. जैसे-जैसे यूपी में भगवा रंग चढ़ने लगा उनकी बेचैनी बढ़ती गई. अंत में अधीर होकर ममता चैनल सर्फिंग करने लगीं कि कहीं से बीजपी के हार की खबर मिले. हालांकि अखिलेश और राहुल के विपरीत, ममता यूपी के चुनावी समर में मैदान पर पसीना नहीं बहा रही थीं. लेकिन फिर भी अखिलेश यादव और राहुल गांधी की तरह ममता पर भी हार का गहरा असर हुआ.

यूपी में भगवा से ममता दुखीयूपी चुनाव के परिणामों का महत्व ममता बनर्जी के लिए व्यक्तिगत कारणों से जरूरी था. प्रधानमंत्री के साथ उनके नूरा-कुश्ति जाहिर है. पीएम मोदी ने सीधा-सीधा ममता बनर्जी की ईमानदारी पर तो सवाल खड़ा किया ही था साथ ही उनकी राष्ट्रीय राजनीति की आकांक्षाओं के लिए भी एक बड़ी बाधा के रूप में सामने आ खड़े हुए हैं.

इसलिए अपने कट्टर दुश्मन की इतनी बड़ी जीत उनके लिए किसी सदमे से कम नहीं था. हालांकि बीजेपी ने ये जीत ममता के ही एक और प्रतिद्वंदी के खिलाफ ही पाई थी लेकिन फिर भी मोदी की जीत ज्यादा भारी पड़नी थी, सो पड़ी. शाम को ममता बनर्जी चुनावी नतीजों पर एक ट्वीट किया- 'विभिन्न राज्यों में विजेताओं को बधाई. मतदाताओं को बधाई कि उन्होंने अपनी पसंद के नेता को वोट दिया. जो लोग चुनाव हार गए वो दिल छोटा ना करें. लोकतंत्र में हमें एक दूसरे का सम्मान करना चाहिए. हार और जीत जीवन का हिस्सा है. कुछ जीतेंगे तो कुछ हारेंगे भी. हमें लोगों पर विश्वास करना चाहिए.'

चुनावों में जीतने वाली हर पार्टी के साथ-साथ यूपी में भगवा ब्रिगेड को भी बधाई संदेश देकर ममता ने अपने मंसूबे साफ कर दिए. बीजेपी के साथ रिश्ते सुधारने का इसे शुरुआती कदम कहा जा सकता है. ममता के इस कदम से तृणमूल कांग्रेस के नेताओं ने राहत की सांस ली है. पर इससे सबसे ज्यादा खुशी सारदा और रोज़ वैली घोटालों में फंसे आरोपियों को हुई.

नोटबंदी के समय ममता बनर्जी और पीएम मोदी के बीच की शब्दों के वार से तृणमूल कांग्रेस के कम से कम आधा दर्जन कैबिनेट मंत्री, सांसद और विधायक ये मान बैठे थे कि सीबीआई से बुलावा कभी भी आ सकता है. सीबीआई ने तृणमूल कांग्रेस के दो सांसदों को गिरफ्तार कर इस बात के साफ संदेश पहले ही दे दिए थे.ॉ

मोदी मैजिक से ममता धराशाईयूपी चुनाव के आने के बाद सारी निगाहें इसके परिणाम पर ही लगी थी. अब जब वहां भाजपा को प्रचंड बहुमत से जीत मिल गई है तो कई क्षेत्रीय पार्टियों की सिरदर्दी बढ़ना लाजमी है. यूपी में क्लिन स्वीप का मतलब है कि अब भाजपा को राज्यसभा में ज्यादा उम्मीदवारों की संख्या से जूझना नहीं पड़ेगा और किसी भी बिल को पास कराने के लिए क्षेत्रीय पार्टियों पर निर्भरता कम होगी.

अतीत में मोदी ने ममता को राज्यसभा में महत्वपूर्ण बिलों के पारित कराने के लिए उन्हें खुब तवज्जो दी थी. लेकिन यूपी चुनावों में बंपर जीत के बाद मोदी सरकार की ये राजनीतिक मजबूरी अब समाप्त गई है. तो ये माना जा रहा है कि वो ममता बनर्जी को अधर में ही लटका कर छोड़ सकते हैं.

ममता के एक कैबिनेट मंत्री बताते हैं कि- 'ममता आधा-अधूरा काम करने में विश्वास नहीं करती. वो जो भी करती हैं पूरे उत्साह और ताकत के साथ करती हैं. मोदी के खिलाफ अपनी लड़ाई में भी उन्होंने बिना डरे आमने-सामने की भिड़त की थी और भागने का कोई रास्ता नहीं छोड़ा था'.

ममता ने ना केवल मोदी की आलोचना की थी बल्कि उन्हें- तुगलक, गब्बर सिंह, डाकू जैसे नामों से भी पुकारा. पूरे हिन्दी बेल्ट में ममता ने जी जान से समूचे विपक्ष और सभी क्षेत्रीय दलों को अपने मोदी विरोधी अभियान में एकजुट करने का प्रयास किया था.

सत्ताधारी पार्टी से इस तरह की लड़ाई का मतलब वो जानती थी. उन्हें इस बात का भी अच्छे से एहसास था इस लड़ाई की क्या कीमत उन्हें चुकानी पड़ेगी. लेकिन फिर भी मोदी के खिलाफ ममता ने पूरी ताकत लगा दी.

अब रास्ता साफ करने में जुटीं ममताचुनाव विश्लेषक विश्वनाथ चक्रवर्ती ने कहा- 'लेकिन फिर वो ममता हैं. उनकी जिंदगी की एक ही फिलॉसफी है बिना जोखिम के कभी विजय नहीं मिलती. उन्होंने सोचा था कि नोटबंदी का विरोध करके ग्रामीण मतदाताओं के बीच वो राजनीतिक लाभ हासिल कर सकती है. लेकिन उत्तर प्रदेश में भाजपा के पक्ष में भारी जनादेश ने उनके इस सोच को गलत साबित कर दिया.'

चक्रवर्ती आगे कहते हैं- 'वास्तव में ये ममता की भूल थी. गरीब लोगों ने नोटबंदी का भरपूर समर्थन किया. क्योंकि उन्हें ये महसूस हो रहा था कि मोदी का ये कदम अमीरों को परेशान करने और काले धन को दूर करने के लिए है. और काला धन हमारे देश में सिर्फ समृद्ध लोगों के ही पास पाया जाता है.'

स्वाभाविक रूप से ममता चिंतित थीं. वो ऐसी हारी हुई दिख रही थी मानों यूपी चुनाव वो खुद हार गई हैं. तृणमूल कांग्रेस के नेता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, 'वो 2004 के लोकसभा चुनाव के साथ तुलना करके खुद को सांत्वना देने की कोशिश कर रही थीं. 2004 में तृणमूल कांग्रेस को सिर्फ सीट पर जीत मिली थी और उसके बाद फिर से उन्होंने जोरदार वापसी की थी.'

हालांकि, वो राजनीति की धुरंधर खिलाड़ी हैं और इसलिए अपने आवेगों पर काबू भी कर लेंगी. एक अलग ट्वीट कर उन्होंने केन्द्र और राज्य के बीच की दूरी को मिटाने का प्रयास भी शुरु कर दिया. ममता ने लिखा- 'हम केंद्र सरकार के संबंधों को सुधारने के लिए आगे बढ़ना चाहते हैं. राजनीतिक दल तो आते-जाते रहते हैं लेकिन सहकारी संघवाद की भावना प्रभावित नहीं होनी चाहिए. लोकतंत्र की मांग है कि सभी के लिए सम्मान होना चाहिए.'

'समझ' और 'सम्मान' की बात करके वो केन्द्र और राज्य सरकार के बीच की खाई को पाटने की कोशिश कर रही हैं. ये सब प्रतिबद्धता के लंबे दावे हैं जिसका राजनीति में भविष्य कम ही है. ये सब जानते हुए भी ममता, मोदी के लिए बड़ी-बड़ी बातें करके रिश्ते में आई गर्माहट को कम करना चाहती हैं.

लेकिन तब तक वो भाजपा के साथ अपना राजनीतिक और चुनावी समीकरण ठीक रखने की ही कोशिश कर रही हैं.

(यह कॉलम इंडिया टुडे की एसोसिएट एडिटर रोमिता दत्‍ता ने मेल टुडे के लिए लिखा है.)

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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