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बुरहान वानी की नहीं ये आम कश्मीरियों की रोजमर्रा की तकलीफों की बरसी है

    • आईचौक
    • Updated: 08 जुलाई, 2017 04:21 PM
  • 08 जुलाई, 2017 04:21 PM
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बुरहान वानी की मौत की बरसी पर हुर्रियत कांफ्रेंस ने घाटी में हड़ताल की कॉल दी है, तो मीरवाईज उमरभी पाक प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की ही तरह हिज्बुल कमांडर को शहीद बता रहे हैं. अगर इन सबके बीच कोई हर रोज पिस रहा है तो वो है आम कश्मीरी.

जम्मू-कश्मीर में त्राल की तरफ जाने वाले रास्तों को सील कर दिया गया - और सुरक्षा बलों ने मुस्तैदी से मोर्चा संभाल लिया. फिर भी हमले होते रहे. घाटी के अंदर भी और सरहद पार से भी.

सरकार ने सभी स्कूलों में पहले से ही 10 की छुट्टी का ऐलान कर रखा है. इंटरनेट पर पाबंदी एहतियातन फिर से लागू है. घाटी का ये हाल सिर्फ आज का नहीं पूरे साल भर से ऐसा ही है.

बुरहान वानी के मुठभेड़ में मारे जाने के एक साल पूरे होने पर हुर्रियत कांफ्रेंस और जिहाद काउंसिल ने घाटी में हड़ताल की कॉल दी है, तो ताजा ताजा मीरवाईज उमर फारूक भी पाक प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की ही तरह हिज्बुल कमांडर बुरहान को शहीद बता रहे हैं. अगर इन सबके बीच कोई हर रोज पिस रहा है तो वो है आम कश्मीरी.

साल भर में क्या क्या न हुआ?

पिछले साल भर में कश्मीर के लोगों के लिए शायद ही कोई दिन अमन और चैन से गुजरा हो. बुरहान के मारे जाने के बाद से करीब दो महीने तक लगातार कर्फ्यू झेलना पड़ा था. ये पहला साल रहा जब लोगों को मस्जिद की जगह घरों या ज्यादा से ज्यादा मोहल्लों में ही ईद की नमाज पढ़ने को मजबूर होना पड़ा.

इसी साल भर में पहली बार छुट्टी लेकर घर गये फौजी अफसर लेफ्टिनेंट उमर फैयाज की आतंकवादियों ने हत्या कर दी तो एक मस्जिद के बाहर डीएसपी अयूब पंडित को भीड़ ने पीट पीट कर मार डाला. जब ये घटना हुई उस वक्त अलगाववादी नेता मीरवाइज उमर फारूक उसी मस्जिद के अंदर थे. वही मीरवाईज एक बार फिर बुरहान को शहीद बता रहे हैं जिनके इरादों को देखते हुए नजरबंद कर लिया गया है. नजरबंद किये जाने वालों में सैयद अली शाह गिलानी भी हैं, जबकि जेकेएलएफ के पूर्व कमांडर यासीन मलिक को हिरासत में लिया गया है.

चैन से नहीं गुजरा एक भी दिन...

मौका देख कर कांग्रेस के सीनियर नेता...

जम्मू-कश्मीर में त्राल की तरफ जाने वाले रास्तों को सील कर दिया गया - और सुरक्षा बलों ने मुस्तैदी से मोर्चा संभाल लिया. फिर भी हमले होते रहे. घाटी के अंदर भी और सरहद पार से भी.

सरकार ने सभी स्कूलों में पहले से ही 10 की छुट्टी का ऐलान कर रखा है. इंटरनेट पर पाबंदी एहतियातन फिर से लागू है. घाटी का ये हाल सिर्फ आज का नहीं पूरे साल भर से ऐसा ही है.

बुरहान वानी के मुठभेड़ में मारे जाने के एक साल पूरे होने पर हुर्रियत कांफ्रेंस और जिहाद काउंसिल ने घाटी में हड़ताल की कॉल दी है, तो ताजा ताजा मीरवाईज उमर फारूक भी पाक प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की ही तरह हिज्बुल कमांडर बुरहान को शहीद बता रहे हैं. अगर इन सबके बीच कोई हर रोज पिस रहा है तो वो है आम कश्मीरी.

साल भर में क्या क्या न हुआ?

पिछले साल भर में कश्मीर के लोगों के लिए शायद ही कोई दिन अमन और चैन से गुजरा हो. बुरहान के मारे जाने के बाद से करीब दो महीने तक लगातार कर्फ्यू झेलना पड़ा था. ये पहला साल रहा जब लोगों को मस्जिद की जगह घरों या ज्यादा से ज्यादा मोहल्लों में ही ईद की नमाज पढ़ने को मजबूर होना पड़ा.

इसी साल भर में पहली बार छुट्टी लेकर घर गये फौजी अफसर लेफ्टिनेंट उमर फैयाज की आतंकवादियों ने हत्या कर दी तो एक मस्जिद के बाहर डीएसपी अयूब पंडित को भीड़ ने पीट पीट कर मार डाला. जब ये घटना हुई उस वक्त अलगाववादी नेता मीरवाइज उमर फारूक उसी मस्जिद के अंदर थे. वही मीरवाईज एक बार फिर बुरहान को शहीद बता रहे हैं जिनके इरादों को देखते हुए नजरबंद कर लिया गया है. नजरबंद किये जाने वालों में सैयद अली शाह गिलानी भी हैं, जबकि जेकेएलएफ के पूर्व कमांडर यासीन मलिक को हिरासत में लिया गया है.

चैन से नहीं गुजरा एक भी दिन...

मौका देख कर कांग्रेस के सीनियर नेता सैफुद्दीन सोज ने भी मन की बात कह ही डाली - अगर उनकी सरकार होती तो बुरहान वानी जिंदा होता. सोज ने तो यहां तक कहा कि उनके वश में होता तो बुरहान को जिंदा करते और उससे बात करते. हालांकि, सोज के बयान पर विवाद बढ़ने के बाद कांग्रेस ने खुद को उससे अलग कर लिया है.

कहने को तो महबूबा मुफ्ती ने भी बुरहान लेकर लोगों को यही समझाने की कोशिश की थी कि अगर उन्हें पता होता तो वो हिज्बुल कमांडर का मारा नहीं जाता. हालांकि, बाद में उन्होंने केंद्र सरकार के साथ साथ पत्थरबाजों के बहाने अलगाववादियों को खूब खरी खोटी सुनाई.

बुरहान के मारे जाने के बाद हिंसा में 90 से ज्यादा लोगों के मारे जाने की खबर है - और कई लोग पेलेट गन से जख्मी क्भी हुए हैं. इनमें से कइयों को आंखों की रोशनी भी गंवानी पड़ी है. पेलेट गन के इस्तेमाल को लेकर विवाद जरूर हुआ है लेकिन ये भी सामने आ चुका है कि किस तरह पत्थरबाजों को पाकिस्तान का संरक्षण मिल रहा है. टीवी स्टिंग से हुर्रियत नेताओं के पाकिस्तान ने पत्थरबाजी के लिए पैसे लेने के मामले में एनआईए की जांच जारी है - और शब्बीर शाह समेत कई नेता उसके रडार पर हैं.

ये सही है कि उरी हमले सहित सेना, सुरक्षा बल और जम्मू कश्मीर पुलिस पर लगातार हमले हो रहे हैं, लेकिन ये भी अहम है कि इसी दौरान बुरहान की जगह कमान संभालने वाले सबजार बट को भी मार गिराया गया है - और अंर्राष्ट्रीय मंचों पर दहशतगर्दी को शह देने वाले पाकिस्तान और उसके दोस्तों पर दबाव बढ़ रहा है.

भारत की बात सुन रही है दुनिया

पिछले साल सितंबर में पाकिस्तानी पीएम नवाज शरीफ ने संयुक्त राष्ट्र की जनरल असेंबली में बुरहान वानी को 'कश्मीरी इंतिफदा' के सिंबल के तौर पर साबित और दुनिया को समझाने की कोशिश की थी. उसी संयुक्त राष्ट्र में विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने नवाज शरीफ को कड़े लफ्जों में माकूल जवाब भी दिया था.

दुनिया भर में जारी आतंकवाद को लेकर सुषमा स्वराज ने कहा, "कुछ देशों का आतंकवादियों को पालना शौक बन गया है. आतंकवाद पालने वाले देशों को अलग-थलग किया जाए." अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आंतकवाद को पनाहदेने वालों की एंट्री पर पाबंदी की बात कही.

जी-20 सम्मेलन में जर्मनी के हैम्बर्ग में मोदी ने जोर देकर खासतौर पर दो बातें कहीं - पहली बात, आतंकवाद का समर्थन करने वाले देशों के खिलाफ निवारक कार्रवाई जरूरी है और ऐसे मुल्कों के अधिकारियों का जी-20 सम्मेलन में प्रवेश देने पर प्रतिबंध भी आवश्यक हो गया है. दूसरी बात, संदिग्ध आतंकवादियों की सूची का जी-20 देशों के बीच आदान-प्रदान और सूचीबद्ध आतंकवादियों और उनके समर्थकों के खिलाफ साझा कार्रवाई अनिवार्य रूप से होनी चाहिये.

नवाज शरीफ से लेकर मीर वाईज तक हर किसी के लिए ये मैसेज है क्योंकि जी-20 के सदस्य देश इस बारे में गंभीर हो गये तो पाकिस्तान का दुनिया में अलग थलग पड़ना तय है. अगर पाकिस्तान को चीन के अपने सबसे अच्छे दोस्त से भी अच्छे रिश्ते का गुमान है तो सलाहुद्दीन को लेकर अमेरिकी कदम उसे नहीं भूलना चाहिये.

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनॉल्ड ट्रंप से मुलाकात से पहले ही अमेरिका ने हिज्बुल मुजाहिदीन प्रमुख सैयद सलाउद्दीन को ग्लोबल आतंकी घोषित कर दिया था. कुछ एक्सपर्ट इसे भले नाकाफी मानें, लेकिन इसके दूरगामी नतीजों को भी समझना होगा. जो भी हो भारत के लिए ये कूटनीतिक जीत तो है ही. कम से कम भारत का पक्ष इस रूप में तो मजबूत हो ही गया है कि पाकिस्तान कश्मीर में आतंकवाद को बढ़ावा दे रहा है.

बुरहान की मौत के साल भर बाद जम्मू-कश्मीर बदला तो बहुत कुछ है, लेकिन हर रोज खामियाजा कौन भुगत रहा? व्यापक परिप्रेक्ष्य में देखें तो बुरहान वानी की नहीं ये आम कश्मीरियों की रोजमर्रा की तकलीफों की बरसी है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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