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एक कश्मीर के दो वानी, रास्ते और मंजिलें अलग अलग

    • आईचौक
    • Updated: 10 सितम्बर, 2016 10:51 AM
  • 10 सितम्बर, 2016 10:51 AM
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कश्मीर से उम्मीद की एक नई किरण और निकली है जिसका नाम है - नबील अहमद वानी. एक वानी के चलते जलते कश्मीर की आग बुझाने के लिए दूसरे वानी ने अवतार लिया है.

जनवरी में जब दसवीं का रिजल्ट आया तो गालिब ने 95 फीसदी अंकों के साथ A1 ग्रेड हासिल किया. तब से पहले गालिब को लोग एक आतंकी के बेटे के तौर पर जानते थे. गालिब के पिता अफजल गुरु को 9 फरवरी 2013 को संसद हमले के जुर्म में फांसी दी गई थी. गालिब ने बताया कि उसका आतंक या ‘कश्‍मीर की आजादी’ के नाम पर चल रही मुहिम से कोई लेना-देना नहीं है - बल्कि वो तो एम्‍स में दाखिला लेकर डॉक्‍टर बनना चाहता है. गालिब ने उम्मीद की एक नई किरण दिखाई है.

कश्मीर से उम्मीद की एक नई किरण और निकली है जिसका नाम है - नबील अहमद वानी. एक वानी के चलते जलते कश्मीर की आग बुझाने के लिए दूसरे वानी ने अवतार लिया है.

वानी बनाम वानी

नबील अहमद वानी ने बॉर्डर सिक्युरिटी फोर्स के असिस्टेंट कमांडेंट (वर्क्स) एग्जाम में ऑल इंडिया फर्स्ट रैंक हासिल किया है. पिछले दो महीने से कश्मीर में हिंसा और कर्फ्यू के लिए आतंक का जो चेहरा जिम्मेदार है उसका नाम है - बुरहान वानी. हिज्बुल मुजाहिद्दीन का ये कमांडर सुरक्षा बलों से एनकाउंटर में मारा गया था.

इसे भी पढ़ें: क्‍या अब भी कहेंगे भारत कश्मीर में दमनचक्र चला रहा है!

कश्मीर के मौजूदा हालात पर नबील कहते हैं, "आजकल सब बुरहान वानी की बात कर रहे हैं. वो भी वानी था और मैं भी वानी हूं - लेकिन आप फर्क देख सकते हैं."

वाकई फर्क साफ दिख रहा है. नबील को बताने की जरूरत नहीं है. नबील के काम ही फर्क समझाने के लिए काफी हैं. नबील की नजर में कश्मीर में आतंकवाद सबसे बड़ी समस्या है और उसका हल सिर्फ डिफेंस फोर्स ही है. यही वजह है कि नबील शुरू से फोर्स ज्वाइन करना चाहते थे - और उसके लिए उन्हें कड़ा संघर्ष करना पड़ा.

फेमिली बैकग्राउंड

दोनों वानी में एक बेसिक फर्क है - और वही...

जनवरी में जब दसवीं का रिजल्ट आया तो गालिब ने 95 फीसदी अंकों के साथ A1 ग्रेड हासिल किया. तब से पहले गालिब को लोग एक आतंकी के बेटे के तौर पर जानते थे. गालिब के पिता अफजल गुरु को 9 फरवरी 2013 को संसद हमले के जुर्म में फांसी दी गई थी. गालिब ने बताया कि उसका आतंक या ‘कश्‍मीर की आजादी’ के नाम पर चल रही मुहिम से कोई लेना-देना नहीं है - बल्कि वो तो एम्‍स में दाखिला लेकर डॉक्‍टर बनना चाहता है. गालिब ने उम्मीद की एक नई किरण दिखाई है.

कश्मीर से उम्मीद की एक नई किरण और निकली है जिसका नाम है - नबील अहमद वानी. एक वानी के चलते जलते कश्मीर की आग बुझाने के लिए दूसरे वानी ने अवतार लिया है.

वानी बनाम वानी

नबील अहमद वानी ने बॉर्डर सिक्युरिटी फोर्स के असिस्टेंट कमांडेंट (वर्क्स) एग्जाम में ऑल इंडिया फर्स्ट रैंक हासिल किया है. पिछले दो महीने से कश्मीर में हिंसा और कर्फ्यू के लिए आतंक का जो चेहरा जिम्मेदार है उसका नाम है - बुरहान वानी. हिज्बुल मुजाहिद्दीन का ये कमांडर सुरक्षा बलों से एनकाउंटर में मारा गया था.

इसे भी पढ़ें: क्‍या अब भी कहेंगे भारत कश्मीर में दमनचक्र चला रहा है!

कश्मीर के मौजूदा हालात पर नबील कहते हैं, "आजकल सब बुरहान वानी की बात कर रहे हैं. वो भी वानी था और मैं भी वानी हूं - लेकिन आप फर्क देख सकते हैं."

वाकई फर्क साफ दिख रहा है. नबील को बताने की जरूरत नहीं है. नबील के काम ही फर्क समझाने के लिए काफी हैं. नबील की नजर में कश्मीर में आतंकवाद सबसे बड़ी समस्या है और उसका हल सिर्फ डिफेंस फोर्स ही है. यही वजह है कि नबील शुरू से फोर्स ज्वाइन करना चाहते थे - और उसके लिए उन्हें कड़ा संघर्ष करना पड़ा.

फेमिली बैकग्राउंड

दोनों वानी में एक बेसिक फर्क है - और वही शायद सबसे बड़ा फर्क है - फेमिली बैकग्राउंड. दिलचस्प बात ये है कि दोनों ही वानी के परिवारों को अपने अपने बेटों पर गर्व है.

बुरहान वानी की मां तो मानती हैं कि अगर उनका बेटा गलत होता तो इतने लोग समर्थन में सड़कों पर कभी नहीं निकलते.

बीबीसी से बातचीत में बुरहान की मां ने कहा था, "हमने बेटा खो दिया, लेकिन अल्लाह साथ है. हमें उस पर पूरा भरोसा है. जब 2010 में घाटी में प्रदर्शन हो रहे थे तो बेटे का फोन आया. उस समय मैं नमाज के लिए बैठने जा रही थी. उसने पूछा कि अल्लाह से मेरे लिए क्या दुआ करोगी? मैंने कहा यही कि अल्लाह बेटे को अच्छा डॉक्टर इंजीनियर बनाने में मदद करे. तब उसने कहा, अल्लाह से दुआ करना कि मेरा बेटा मुजाहिद बने."

सबसे खतरनाक होता है सपनों का भटक जाना...

मां ने दुआ की और उसे नाज है कि वो कबूल भी हो गयी, "जिहाद की ओर जाने के बारे में उससे कोई बात नहीं हुई. जिहाद तो हमारा फर्ज है. जब दुनिया से जाएंगे तो अल्लाह पूछेगा कि क्या किया मेरे लिए? जब बेटा जवान हुआ तो हमने अल्लाह के रास्ते पर जाने दिया. बुरहान जब अल्लाह के सामने खड़ा होगा तो बताएगा कि जब मैं 15 साल का था तब घर से निकला. मैंने अपनी जान दी."

बुरहान को भी बेटे पर गर्व है, "उसने जिस मुद्दे के लिए अपनी जान दी, उसके लिए हर कोई अपनी जान का नजराना पेश करता है."

तस्वीर का दूसरा पहलू भी गौर करने लायक है. नबील और उनके पिता ने बहुत पहले साथ मिल कर एक सपना देखा था - वो नबील को अफसर के रूप में देखना चाहते हैं. दुर्भाग्यवश जब सपना पूरा हुआ तो नबील और पिता साथ नहीं हैं.

नबील को भी अल्लाह पर ही भरोसा है. अपनी फेसबुक पोस्ट में नबील ने उन्हीं दिनों को याद किया है.

"डियर पापा, एक दिन हमने मिलकर एक सपना देखा था कि मैं फोर्स में अफसर बनूं. आप जन्नत पहुंच गये और ये सपना मेरे साथ ही रह गया. आज मैं कह सकता हूं कि मैंने पिता का लक्ष्य पा लिया है. अब मैं असिस्टेंट कमिश्नर हूं. बीएसएफ में डीएसपी... ऑल इंडिया रैंक #1. अब मेरे कंधे पर तीन स्टार हैं और साथ ही ढेरों जिम्मेदारियां भी. मम्मी और बहन ये सब आपकी वजह से है."

सवाल का जवाब

एक और फेसबुक पोस्ट में नबील लिखते हैं, "सपने अभी पूरे नहीं हुए हैं... मैं कहना चाहूंगा सपना हकीकत का रूप लेने लगा है... अगर किसी ने मुझे अकेला नहीं छोड़ा तो वो अल्लाह है... अल्लाह मुझे मजबूत बनाये और मैं हमेशा जमीन पर रहूंगा और कभी नहीं भूलूंगा कि मैं आम आदमी हूं." नबील आगे कहते हैं, "मेरा अगला लक्ष्य NIA है - मैं आ रहा हूं."

इसे भी पढ़ें: मजबूरी ही सही कश्मीर के लिए अच्छा है महबूबा का ताजा स्टैंड

नबील कश्मीर के लोगों के उन हर सवालों के जवाब हैं जो उनके दिलो दिमाग पर छाया हुआ है. जिन बातों को लेकर उन्हें सेना और सुरक्षा बलों से चिढ़ मची है. 'हमारी जमीन पर हमीं से पूछते हैं कि हम कौन हैं?

नबील अपवाद हो सकते हैं लेकिन कश्मीर के नौजवानों के लिए मिसाल क्यों नहीं हो सकते? आखिर नबील को उन चीजों ने अट्रैक्ट क्यों नहीं किया जिनसे बुरहान आकर्षित हुआ?

तो क्या जिस दिन नबील एनआईए की ओर से सर्च ऑपरेशन के लिए जाएंगे तो भी उन लोगों का सवाल यही होगा? क्या उसी जमीन पर पैदा हुआ उनका बेटा पराया हो जाएगा? क्या तब लोग उसी बेटे को किसी और के एजेंट के तौर पर देखने लगेंगे? क्योंकि सर्च के दौरान नबील का भी सवाल तो वही होगा.

अनुज लुगुन जिन्हें उनकी कविता 'अघोषित उलगुलान' के लिए वर्ष 2011 का भारत भूषण अग्रवाल पुरस्‍कार दिया गया, एक बार कहा था, हमारे साथी जिस मकसद के लिए बंदूक उठाते हैं हम उसके लिए कलम का इस्तेमाल करेंगे.

नबील वानी की भी बिलकुल वही राय है, ''मुझे लगता है कि हाथ में पत्थर उठाने से काम नहीं मिलेगा. पेन उठाने से मिलेगा. मेरी भी जिंदगी में मुश्किलें थीं, लेकिन मैंने तो बंदूक नहीं उठाई. बेरोजगारी खत्म होगी तो मुश्किलें भी कम होंगी.''

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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