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मोदी की विदेश नीति का असर दिखने लगा है

    • आलोक रंजन
    • Updated: 29 अगस्त, 2017 09:53 PM
  • 29 अगस्त, 2017 09:53 PM
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हाल के दिनों में जिस तरह मोदी और ट्रंप की केमिस्ट्री आगे बढ़ी है, उससे पाकिस्तान बिलकुल अलग थलग पड़ता जा रहा है. इसके अलावा, श्रीलंका और चीन के साथ भी भारत काफी डिप्लोमैटिक तरीके से काम कर रहा है.

भारत और अमेरिका के रिश्तों की प्रगाढ़ता का असर दिखाई देना शुरु हो गया है! हाल के दिनों में जिस तरह मोदी और ट्रंप की केमिस्ट्री आगे बढ़ी है, उससे पाकिस्तान बिलकुल अलग थलग पड़ता जा रहा है. आतंकवाद के मुद्दे को लेकर अमेरिका की पाकिस्तान को दो टूक बात को भारत की बहुत बड़ी जीत मानी जाएगी. पाकिस्तान बुरी तरह बौखला गया है. और इसी बौखलाहट में उसने अमेरिका के साथ वार्ता और द्विपक्षीय दौरे को रद्द कर दिया है. यह फैसला उसने हाल ही में अमेरिकी राष्‍ट्रपति ट्रंप द्वारा आतंकवाद के मुद्दे पर पाकिस्‍तान को फटकार लगाने के विरोध में लिया है.

पाकिस्‍तान ने ट्रंप के बयान को काफी गंभीरता से लिया है. पाकिस्तान के एक अख़बार डॉन के मुताबिक दक्षिण एवं मध्‍य एशिया मामले की कार्यवाहक सहायक अमेरिकी विदेश मंत्री एलिस वेल्‍स को मंगलवार को पाकिस्‍तान आना था, मगर दौरा रद्द कर दिया गया. वहीं पाकिस्तान के विदेश मंत्री ख्‍वाजा मोहम्‍मद आसिफ को भी पिछले हफ्ते अमेरिका दौरे पर जाना था, जो पहले से निर्धारित था लेकिन वे दौरे पर नहीं गए. कुछ दिन पहले ही अमेरिकी राष्‍ट्रपति ट्रंप ने अफगानिस्‍तान पर अपनी नई नीति का एलान करते हुए आतंकवाद के मुद्दे पर पाकिस्‍तान को आड़े हाथों लिया था. अमेरिका ने पाकिस्‍तान पर आतंकियों को सरक्षण देने का आरोप लगाया था.

आतंकवाद के मसले पर पाकिस्तान की घेराबंदी 

भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की विदेश नीति के कारण ही पाकिस्तान न केवल अंतराष्ट्रीय मंच पर बल्कि अपने देश में भी अलग-थलग पड़ने लगा है. आतंकवाद को विदेश नीति के रूप में इस्तेमाल करने वाले पाकिस्तान को एक बात तो समझ में आ गई है कि अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उसकी दाल गलने वाली नहीं है. अंतराष्ट्रीय स्तर पर अकेला पड़ने के कारण उसे विपक्ष के हमले का...

भारत और अमेरिका के रिश्तों की प्रगाढ़ता का असर दिखाई देना शुरु हो गया है! हाल के दिनों में जिस तरह मोदी और ट्रंप की केमिस्ट्री आगे बढ़ी है, उससे पाकिस्तान बिलकुल अलग थलग पड़ता जा रहा है. आतंकवाद के मुद्दे को लेकर अमेरिका की पाकिस्तान को दो टूक बात को भारत की बहुत बड़ी जीत मानी जाएगी. पाकिस्तान बुरी तरह बौखला गया है. और इसी बौखलाहट में उसने अमेरिका के साथ वार्ता और द्विपक्षीय दौरे को रद्द कर दिया है. यह फैसला उसने हाल ही में अमेरिकी राष्‍ट्रपति ट्रंप द्वारा आतंकवाद के मुद्दे पर पाकिस्‍तान को फटकार लगाने के विरोध में लिया है.

पाकिस्‍तान ने ट्रंप के बयान को काफी गंभीरता से लिया है. पाकिस्तान के एक अख़बार डॉन के मुताबिक दक्षिण एवं मध्‍य एशिया मामले की कार्यवाहक सहायक अमेरिकी विदेश मंत्री एलिस वेल्‍स को मंगलवार को पाकिस्‍तान आना था, मगर दौरा रद्द कर दिया गया. वहीं पाकिस्तान के विदेश मंत्री ख्‍वाजा मोहम्‍मद आसिफ को भी पिछले हफ्ते अमेरिका दौरे पर जाना था, जो पहले से निर्धारित था लेकिन वे दौरे पर नहीं गए. कुछ दिन पहले ही अमेरिकी राष्‍ट्रपति ट्रंप ने अफगानिस्‍तान पर अपनी नई नीति का एलान करते हुए आतंकवाद के मुद्दे पर पाकिस्‍तान को आड़े हाथों लिया था. अमेरिका ने पाकिस्‍तान पर आतंकियों को सरक्षण देने का आरोप लगाया था.

आतंकवाद के मसले पर पाकिस्तान की घेराबंदी 

भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की विदेश नीति के कारण ही पाकिस्तान न केवल अंतराष्ट्रीय मंच पर बल्कि अपने देश में भी अलग-थलग पड़ने लगा है. आतंकवाद को विदेश नीति के रूप में इस्तेमाल करने वाले पाकिस्तान को एक बात तो समझ में आ गई है कि अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उसकी दाल गलने वाली नहीं है. अंतराष्ट्रीय स्तर पर अकेला पड़ने के कारण उसे विपक्ष के हमले का सामना भी करना पड़ रहा है. हाल के दिनों में भारत ने अमेरिका के माध्यम से पाकिस्तान की घेराबंदी की है उसका नतीजा सबके सामने है. अमेरिका हिज्बुल के कमांडर सैयद सलाहुद्दीन और हिज्बुल मुजाहिद्दीन पर प्रतिबंध लगा कर भारत की मांग को माना है. पाकिस्तान को अपनी धरती आतंकियों को इस्तेमाल न करने के लिए कठोर चेतावनी भी अमेरिका ने दिया है अन्यथा उसे गंभीर परिणाम झेलने होंगें. 

डोकलाम मुद्दे को लेकर चीन पर कूटनीतिक जीत 

भारत-भूटान-चीन तिराहा, डोकलाम, में भारतीय सैनिकों ने चीन को सड़क का निर्माण करने से रोक दिया था, जिसके बाद से दोनों देशों के बीच गतिरोध और तनाव पैदा हुआ था. भारतीय विदेश मंत्रालय ने सोमवार को बयान जारी कर कहा कि दोनों देश डोकलाम से अपनी सेनाएं हटाने पर राजी हो गए हैं. भारत की विदेशी नीति रंग लायी. दोनों देशों के बीच परदे के पीछे चल रही कूटनीतिक वार्ताओं के बाद सेनाएं हटाने पर सहमति बन गई.

एक्सपर्ट का साफ कहना है कि यह निश्चित रूप से भारत की कूटनीतिक जीत है. चीन जिस तरह से लगातार युद्ध की धमकी दे रहा था उससे माहौल काफी तनावपूर्ण हो गया था. लेकिन भारत ने अपनी संयमता नहीं खोया. उसने कूटनीतिक विकल्पों को खुला रखा जिससे विवाद सुलझाने में मदद मिली. भारतीय प्रधानमंत्री की दूरदर्शिता के कारण ही भारत इस मसले से पीछे नहीं हटा और नतीजा सबके सामने है. मोदी जी जानते हैं कि इस विवाद के निपटारे से क्षेत्रीय सुरक्षा और शांति की स्थापना में मदद मिलेगी और वैश्विक स्तर पर भारत की स्थिति और मजबूत होगी. इस मुद्दे पर भारत अंतरराष्ट्रीय दबाव के आगे भी नहीं झुका. यहाँ तक जापान ने भारत को इस मुद्दे पर सहयोग का हाथ तक बढ़ाया. 

श्रीलंका के हंबनटोटा एयरपोर्ट का संचालन भारत को मिल सकता है 

हाल ही में खबर आयी थी कि हंबनटोटा बंदरगाह को लेकर चीन के साथ हुई डील के बाद अब श्रीलंका हंबनटोटा एयरपोर्ट भारत को दे सकता है. सामरिक दृष्टि से अहम हंबनटोटा बंदरगाह का करीब 70 फीसदी हिस्सा श्रीलंका ने चीन की फर्म को दे दिया था. अब श्रीलंका की सरकार इस बंदरगाह के पास बने हुए एयरपोर्ट का संचालन भारत को सौंपने पर विचार कर रही है. यदि संचालन का अधिकार भारत को मिल जाता है तो ये भारत की विदेश नीति की विजय होगी और हिंद महासागर क्षेत्र में उसकी प्रभुत्व और मजबूत होगी.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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