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संस्कृति

जल्लीकट्टू के बारे में वो सबकुछ जो आप जानना चाहते हैं

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 19 जनवरी, 2017 09:56 PM
  • 19 जनवरी, 2017 09:56 PM
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जल्लीकट्टू पर बैन को लेकर तमिलनाडु राज्य की जनता एक साथ एक प्लेटफार्म पर आ गयी है और आज राज्य के अलग-अलग हिस्सों में भी विरोध-प्रदर्शन पहले के मुकाबले ज्यादा उग्र हो गया है.

तमिलनाडु का लोकप्रिय पर्व जल्लीकट्टू न सिर्फ भारत में बल्कि सम्पूर्ण विश्व में चर्चा का केन्द्र बना हुआ है. जगह–जगह से इसके बारे में खबरें लिखी जा रही हैं. दुनिया भर में रह रहे तमिलियन उन खबरों पर अपनी प्रतिक्रिया देकर बता रहे हैं कि पर्व पर पाबन्दी उनकी प्राचीन संस्कृति के साथ छेड़छाड़ है और जिसे किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं किया जाएगा.

ज्ञात हो कि जल्लीकट्टू पर प्रतिबंध काफी पहले था और आज इस मुद्दे को एक बार फिर से भुनाया जा रहा है. राज्य के इस लोकप्रिय पर्व जल्लीकट्टू पर लगे बैन को हटाने की मांग पूरे तमिलनाडु में फैल गई है. बताया जा रहा है कि इस पर्व पर लगे प्रतिबन्ध को लेकर सम्पूर्ण राज्य की जनता एक साथ एक प्लेटफार्म पर आ गयी है और आज राज्य के अलग-अलग हिस्सों में भी विरोध-प्रदर्शन पहले के मुकाबले ज्यादा उग्र हो गया है.

 2014 में जल्लीकट्टू पर पूर्ण रूप से प्रतिबंध लग गया था

मुख्यमंत्री ओ. पनीरसेल्वम ने फौरन एक अध्यादेश लाने की मांग के साथ गुरुवार को पीएम मोदी से मुलाकात की. हालांकि, उन्‍हें कोई सीधा आश्‍वासन नहीं मिला है. 

राज्य के नेताओं को नयी पैकिंग में ज़ेर-ए-बहस एक पुराना मुद्दा मिल गया है. कहा जा सकता है कि पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता के स्वर्गवास के बाद जल्लीकट्टू ही राज्य का अहम मुद्दा है और इस मुद्दे को लेकर जो भी हो रहा है वही पॉलिटिक्स है. वही पॉलिटिक्स जो राज्य के नेताओं को वोट दिलवाएगी.

गौरतलब है कि सर्वोच्च न्यायालय ने तमिलनाडु में मई 2014 के दौरान जल्लीकट्टू पर पूर्ण रूप से प्रतिबंध लगा दिया था. जिसके बाद केंद्र सरकार ने अध्यादेश जारी कर इस खेल को करे जाने की इजाजत...

तमिलनाडु का लोकप्रिय पर्व जल्लीकट्टू न सिर्फ भारत में बल्कि सम्पूर्ण विश्व में चर्चा का केन्द्र बना हुआ है. जगह–जगह से इसके बारे में खबरें लिखी जा रही हैं. दुनिया भर में रह रहे तमिलियन उन खबरों पर अपनी प्रतिक्रिया देकर बता रहे हैं कि पर्व पर पाबन्दी उनकी प्राचीन संस्कृति के साथ छेड़छाड़ है और जिसे किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं किया जाएगा.

ज्ञात हो कि जल्लीकट्टू पर प्रतिबंध काफी पहले था और आज इस मुद्दे को एक बार फिर से भुनाया जा रहा है. राज्य के इस लोकप्रिय पर्व जल्लीकट्टू पर लगे बैन को हटाने की मांग पूरे तमिलनाडु में फैल गई है. बताया जा रहा है कि इस पर्व पर लगे प्रतिबन्ध को लेकर सम्पूर्ण राज्य की जनता एक साथ एक प्लेटफार्म पर आ गयी है और आज राज्य के अलग-अलग हिस्सों में भी विरोध-प्रदर्शन पहले के मुकाबले ज्यादा उग्र हो गया है.

 2014 में जल्लीकट्टू पर पूर्ण रूप से प्रतिबंध लग गया था

मुख्यमंत्री ओ. पनीरसेल्वम ने फौरन एक अध्यादेश लाने की मांग के साथ गुरुवार को पीएम मोदी से मुलाकात की. हालांकि, उन्‍हें कोई सीधा आश्‍वासन नहीं मिला है. 

राज्य के नेताओं को नयी पैकिंग में ज़ेर-ए-बहस एक पुराना मुद्दा मिल गया है. कहा जा सकता है कि पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता के स्वर्गवास के बाद जल्लीकट्टू ही राज्य का अहम मुद्दा है और इस मुद्दे को लेकर जो भी हो रहा है वही पॉलिटिक्स है. वही पॉलिटिक्स जो राज्य के नेताओं को वोट दिलवाएगी.

गौरतलब है कि सर्वोच्च न्यायालय ने तमिलनाडु में मई 2014 के दौरान जल्लीकट्टू पर पूर्ण रूप से प्रतिबंध लगा दिया था. जिसके बाद केंद्र सरकार ने अध्यादेश जारी कर इस खेल को करे जाने की इजाजत दे दी थी. इसके कुछ समय बाद ही इस अध्यादेश के विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट में फिर से याचिका दायर की गई थी, जिस पर अंतिम फैसले अभी किया जाना है.

ये भी पढ़ें- वाह रे वोट पॉलिटिक्स! गाय बचाओ, सांड को मरने दो

बहरहाल आज इस लेख के जरिये हम आपको अवगत करेंगे कि असल में जल्लीकट्टू है क्या और क्यों इसके बैन होने से सम्पूर्ण तमिलनाडु की भावना आहत हो गयी है.

क्या है जल्लीकट्टू

जल्लीकट्टू खूंखार सांड को काबू करने का एक खेल है जिसका तमिलनाडु में बहुत क्रेज है. ये खेल यहां के गांवों में मुख्य पोंगल त्योहार से ठीक पहले मट्टू पोंगल के दौरान खेला जाता है. जहां व्यक्ति को अपने शारीरिक बल के अलावा दिमाग का परिचय देते हुए एक खतरनाक सांड को काबू करना होता है. जल्लीकट्टू शब्द की उत्पत्ति एक तमिल शब्द सल्ली कासू से हुई है जिसका मतलब होता है सिक्कों की पोटली. इस पर्व के दौरान सिक्कों कि पोटली को सांड की सींगों के ऊपर बांधा जाता है जो इस प्रतियोगिता का इनाम होता है. ये इनाम उसे मिलता है जो अधिक समय तक सांड को काबू कर पाता है.

 खूंखार सांड को काबू करने का एक खेल है जल्लीकट्टू

मजेदार बात ये है कि इस खेल के लिए जिस सांड को तैयार किया जाता है वो एक विशेष नस्ल पुलिकुलम या जेलिकट का होता है. इस नस्ल की खास बात ये है कि ये प्रजाति बड़ी आक्रामक होती है और खतरे के दौरान अपनी प्राण रक्षा करते हुए वार करती है.

इस खेल को तीन भागों में खेल जाता है. जो क्रमशः इस प्रकार हैं वदी मनुवीरत्तु, वायली विरत्तु और वदम मंजुवीरत्तु

वदी मनुवीरत्तु

ये इस खेल का सबसे खतरनाक फॉर्म होता है. जैसे ही खूंखार सांड को छोड़ा जाता है उसी दौरान व्यक्ति को इस छूटे हुए सांड की पीठ पर बैठना होता है. ये देखा गया है कि वदी मनुवीरत्तु के दौरान लोग कई बार गम्भीर रूप से घायल होते हैं और कई बार उनकी मौत तक हो जाती है. कभी न कभी आपने दक्षिण की फिल्मों के सीन में इस दृश्य को देखा होगा.

वायली विरत्तु

खेल के इस फॉर्म में सांड को एक ओपन एरीना में छोड़ दिया जाता है. यहां जो भी व्यक्ति सांड के करीब आता है उस पर सांड आकर्मण करता है और फिर शुरुआत होती है इंसान और जानवर के बीच की जंग की.

वदम मंजुवीरत्तु

जल्लीकट्टू के ये फॉर्म सबसे सुरक्षित माना जाता है और इसमें रिस्क भी कम होता है. इस फॉर्म में रिस्क की गुंजाईश कम रहती है. वदम मंजुवीरत्तु में सांड को एक 50 फीट लंबी रस्सी से बांधा जाता है जहां 7 से लेके 9 आदमियों का समूह सांड पर चढ़ाई कर उसे पराजित करता है. वदम मंजुवीरत्तु में समूह को 30 मिनट में सांड को काबू करना होता है.

बहरहाल चूंकि जल्लीकट्टू स्पेनिश बुल फाइटिंग से काफी मिलता जुलता है परन्तु यहां स्पेन की तर्ज पर सांडों को मारा नहीं जाता है और इसे केवल एक खेल की तरह लिया जाता है. गौरतलब है कि राज्य सरकार द्वारा जानवरों और खिलाडियों की सुरक्षा का पूरा ध्यान रखा जाता है साथ ही यहां पर पूरे आयोजन के दौरान कुशल डॉक्टरों की टीम भी मौजूद रहती है. तो अब अगर आप अपने को खतरे के खिलाड़ी हैं और अपने को एडवेंचर के शौकीन लोगों में शुमार करते हैं और भारत में रहते हुए स्पेन वाली बुल फाइटिंग का मजा लेना चाहते हैं तो बैन हटने के बाद तमिलनाडु आइये और जल्लीकट्टू का आनंद लीजिये.


इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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