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वाह रे वोट पॉलिटिक्स! गाय बचाओ, सांड को मरने दो

    • अभिषेक पाण्डेय
    • Updated: 09 जनवरी, 2016 03:36 PM
  • 09 जनवरी, 2016 03:36 PM
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केंद्र सरकार ने सांडों के जीवन को खतरे में डालकर खेले जाने वाले तमिलनाडु के पारंपरिक खेल जलिकट्टू को मंजूरी दे दी है. वोटों के लिए गाय की रक्षा का मिशन और फिर अब वोटों के लिए ही सांडों के जीवन को खतरे में डालने की भी हामी.

राजनीति और वोट बैंक के लिए नेता इंसानों का ही नहीं बल्कि जानवरों का भी किस तरह से इस्तेमाल करते हैं, इसका उदाहरण देखिए. कुछ महीने पहले बीफ बैन और गोहत्या पर प्रतिबंध के मुद्दे ने पूरे देश में तूफान खड़ा कर दिया था. तब बिहार चुनाव नजदीक थे और इस मु्द्दे से फायदा मिल सकता था. वक्त बदला, चुनाव की जगह बदली और तुरंत ही नेताओं के सुर भी बदल गए.

यानी जो नेता और राजनीतिक दल कभी गायों की रक्षा के लिए अपनी आवाज बुलंद कर रहे थे वही अब उसी गोवंश की नर प्रजाति यानी सांडों के जीवन को खतरे में डालकर खेले जाने वाले खेल जलिकट्टू को भी मंजूरी देने में नहीं हिचक रहे हैं. वाह रे राजनीति, अपने फायदे के लिए गाय की रक्षा का मिशन और फिर अब वोटों के लिए ही सांडों के जीवन को खतरे में डालने की भी हामी.  

केंद्र ने सांडों से लड़ाई के खेल जलिकट्टू से हटाया बैनः

केंद्र सरकार ने तमिलनाडु के विवादित पारंपरिक खेल जलिकट्टू पर लगा बैन हटा लिया है. दरअसल इस खेल में सांडों पर काबू पाने की कोशिश की जाती है. 2011 में सरकार ने सांडों को किसी तमाशा या प्रदर्शनी का हिस्सा बनने पर रोक लगा दी थी. 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने भी सरकार के इस आदेश को सही बताया था. लेकिन अब मोदी सरकार ने इस नियम में फेरबदल करते हुए तमिलनाडु में साडों के इस खेल पर लगी रोक को हटाते हुए इसे जारी रखने को मंजूरी दे दी है.

सरकार द्वार जारी ताजा अधिसूचना में कहा गया है कि सांडों को तमिलनाडु में होने वाले जलिकट्टू और महाराष्ट्र, कर्नाटक, पंजाब, हरियाणा, केरल और गुजरात में होने वाली बैलगाड़ियों की रेस जैसे आयोजनों में तमाशा या प्रशिक्षण के लिए प्रदर्शनकारी जानवरों के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है. हालांकि अधिसूचना में यह भी कहा गया है कि इस छूट को उसी शर्त में लागू किया जा सकता है जब सांडों के साथ ठीक ढंग से व्यवहार किया जाए और निर्दयता न दिखाई जाए.

देखेंः तमिलनाडु में होने वाला जलिकट्टू का खेल

तमिलनाडु...

राजनीति और वोट बैंक के लिए नेता इंसानों का ही नहीं बल्कि जानवरों का भी किस तरह से इस्तेमाल करते हैं, इसका उदाहरण देखिए. कुछ महीने पहले बीफ बैन और गोहत्या पर प्रतिबंध के मुद्दे ने पूरे देश में तूफान खड़ा कर दिया था. तब बिहार चुनाव नजदीक थे और इस मु्द्दे से फायदा मिल सकता था. वक्त बदला, चुनाव की जगह बदली और तुरंत ही नेताओं के सुर भी बदल गए.

यानी जो नेता और राजनीतिक दल कभी गायों की रक्षा के लिए अपनी आवाज बुलंद कर रहे थे वही अब उसी गोवंश की नर प्रजाति यानी सांडों के जीवन को खतरे में डालकर खेले जाने वाले खेल जलिकट्टू को भी मंजूरी देने में नहीं हिचक रहे हैं. वाह रे राजनीति, अपने फायदे के लिए गाय की रक्षा का मिशन और फिर अब वोटों के लिए ही सांडों के जीवन को खतरे में डालने की भी हामी.  

केंद्र ने सांडों से लड़ाई के खेल जलिकट्टू से हटाया बैनः

केंद्र सरकार ने तमिलनाडु के विवादित पारंपरिक खेल जलिकट्टू पर लगा बैन हटा लिया है. दरअसल इस खेल में सांडों पर काबू पाने की कोशिश की जाती है. 2011 में सरकार ने सांडों को किसी तमाशा या प्रदर्शनी का हिस्सा बनने पर रोक लगा दी थी. 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने भी सरकार के इस आदेश को सही बताया था. लेकिन अब मोदी सरकार ने इस नियम में फेरबदल करते हुए तमिलनाडु में साडों के इस खेल पर लगी रोक को हटाते हुए इसे जारी रखने को मंजूरी दे दी है.

सरकार द्वार जारी ताजा अधिसूचना में कहा गया है कि सांडों को तमिलनाडु में होने वाले जलिकट्टू और महाराष्ट्र, कर्नाटक, पंजाब, हरियाणा, केरल और गुजरात में होने वाली बैलगाड़ियों की रेस जैसे आयोजनों में तमाशा या प्रशिक्षण के लिए प्रदर्शनकारी जानवरों के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है. हालांकि अधिसूचना में यह भी कहा गया है कि इस छूट को उसी शर्त में लागू किया जा सकता है जब सांडों के साथ ठीक ढंग से व्यवहार किया जाए और निर्दयता न दिखाई जाए.

देखेंः तमिलनाडु में होने वाला जलिकट्टू का खेल

तमिलनाडु विधानसभा चुनावों में लाभ लेने का खेल?

तमिलनाडु में तीन महीने बाद विधानसभा चुनाव होने हैं. राज्य में बीजेपी की उपस्थिति नाममात्र की है और यही वजह है कि पार्टी ने अगले विधानसभा चुनावों में राजनीतिक फायदा लेने के लिए और इस खेल पर लगे बैन को हटाकर स्थानीय लोगों का दिल जीतने की कोशिश की है. बीजेपी इन चुनावों में जयललिता की एमआईएडीएमके या पीएमके से गंठबंधन करने की कोशिशों में जुटी है. अब बीजेपी को उम्मीद है कि इस खेल से बैन हटाने का फायदा उसे आने वाले चुनावों में मिलेगा. राज्य बीजेपी की अध्यक्षा तमिलिसई सौंदराराजन खुद मानती हैं कि बीजेपी को चुनावों में इसका फायदा मिलेगा. वैसे ऐसा नहीं है कि वोटों की चिंता सिर्फ बीजेपी को है बल्कि इस मामले में कांग्रेस से लेकर तमिलनाडु की स्थानीय पार्टियों तक का रुख भी बीजेपी जैसा ही है. यही वजह है कि न तो कांग्रेस ने और न ही किसी औप पार्टी ने इस बैन को हटाने की आलोचना की है. उल्टे इन पार्टियों ने तो इस कदम का स्वागत किया है.

क्या है जलिकट्टू का खेलः

तमिलनाडु में होने वाले इस पारंपरिक आयोजन में ‘साड़ों पर काबू पाने’ को जलिकट्टू के नाम से जाना जाता है. इस खेल में सांडों की जिस खास प्रजाति का प्रयोग किया जाता है उसे ‘जेलिकट’ कहते हैं. जलिकट्टू का खेल तीसरी और चौथी सदी से तमिलनाडु के लोकप्रिय खेलों में शामिल रहा है. तमिल साहित्य में इस बात का जिक्र मिलता है कि महिलाएं उन्हीं पुरुषों से विवाह करती थीं जो सांडों पर काबू पा लेते थे. आधुनिक समय में इससे जुड़ी विवाह की मान्यता तो खत्म हो गई लेकिन खेल बदस्तूर जारी है. अब माना जाता है कि जो पुरुष अपने से दस गुना ज्यादा ताकतवर सांडों पर काबू पा लेगा वही असली पुरुष माना जाएगा. 

क्यों होती है इस पर बैन की मांगः

हाल के वर्षों में खेल में सांडों के प्रति किए जाने वाले क्रूर व्यवहार के कारण ही इस पर रोक लगाई गई थी. डीएमके के एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि वह व्यक्तिगत तौर पर खुद इस खेल के आयोजन का समर्थन नहीं करते हैं. वह कहते हैं, ‘मैंने खुद सांड़ों (इस खेल में शामिल किए जाने वाले) को पीटे जाने, उनके शरीर में नुकीले औजार घुसाने और बिजली के झटके दिए जाते हुए देखा है. लेकिन जानवरों के साथ निर्दयता का तर्क राजनीति में नहीं चलता है.’

इस खेल का विरोध करने वाले एक सामाजिक कार्यकर्ता का कहना है, ‘इस खेल में शामिल होने वाले करीब 95 फीसदी लोग, अनपढ़ और बेरोजगार ग्रामीण युवा होते हैं, जोकि सिर्फ जानवरों के साथ निर्दयता दिखाते हैं बल्कि अपनी जान भी जोखिम में डालते हैं.’  पिछले दो दशक के दौरान 200 से ज्यादा लोग इस खेल में अपनी जान गंवा चुके हैं.

लेकिन नेताओं को जब इंसानों की जान की ही फिक्र नहीं है तो सांडों की फिक्र क्यों होने लगी भला!


इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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