• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
स्पोर्ट्स

धोनी की बातों में छिपा है विराट के फ्लॉप होने का राज

    • सुशोभित सक्तावत
    • Updated: 05 मार्च, 2017 02:11 PM
  • 05 मार्च, 2017 02:11 PM
offline
बॉर्डर-गावस्कर सीरीज में विराट की टीम लगातार फ्लॉप हो रही है. इसका राज खोला है धोनी ने... जी हां, उनकी बातों में छिपा है विराट की टीम का फ्लॉप होने का राज...

महेंद्र सिंह धोनी के 'पोस्ट मैच इंटरव्यूज' और प्रेसवार्ताओं को मैं बहुत ध्यान से सुना करता था, अब तो ख़ैर वह अवसर आईपीएल में भी नहीं मिलेगा. लेकिन धोनी अकसर पते की बात कर जाया करते थे या फिर वे जो कुछ बोलते थे, उससे उनके दिमाग़ में बन रहे कुछ ज़रूरी 'पैटर्न्स' का पता चलता था.

मसलन, अक्टूबर 2013 में जब भारत ने ऑस्ट्रेलिया के विरुद्ध 1 विकेट पर 363 रन बनाकर वनडे मैच जीता था तो धोनी से पूछा गया कि उन्होंने बल्लेबाज़ों को क्या हिदायत दी थी. धोनी ने कहा था, 'कुछ ख़ास नहीं, बस इतना ही कि पिच अच्छी है, 'डोंट लूज़ योर शेप' और रन बन जाएंगे।' ये एक कमाल की बात थी, 'डोंट लूज़ योर शेप'. मैं उस बात को कभी भूल नहीं पाता. और उस मैच में वाक़ई भारतीय बल्लेबाज़ों ने सीधे बल्ले से खेलते हुए ही इतने रन बना लिए थे.

लेकिन सबसे कमाल की बात जो उन्होंने कही, वह यह थी

2015 के विश्वकप के दौरान धोनी से पूछा गया था कि आपकी टीम विश्वकप से ठीक पहले हुई वनडे सीरीज़ में बहुत ख़राब खेली थी, फिर विश्वकप में पूरी टीम इतने अच्छे फ़ॉर्म में कैसे आ गई (ठीक यही घटना 2003 के विश्वकप से पहले भी घटी थी.

न्यूज़ीलैंड में हुई वनडे सीरीज़ में बुरी तरह धुल चुकी भारतीय टीम विश्वकप का पहला मैच भी हारी, लेकिन फिर उसके बाद ऐसी लय में आई कि फ़ाइनल तक पहुंची), धोनी ने जो जवाब दिया, वो मैंने आज त‍क किसी क्रिकेटर या कॉमेंटेटर के मुंह से नहीं सुना था. धोनी ने कहा, 'देखिए, लाइफ़ की तरह क्रिकेट में बहुत कुछ 'एब्सट्रैक्ट' होता है। कोई ठीक-ठीक नहीं जानता कि अच्छा खेल रहा खिलाड़ी कब अचानक अपनी लय खो दे और ख़राब खेल रही टीम को कब अचानक अपनी लय मिल जाए।' निश्च‍ित ही, कुछ फ़ॉर्मूले होते हैं जो आपके पक्ष में काम करते हैं, लेकिन बहुधा उनका आकलन 'हाइंडसाइट' में किया जाता है, यानी घटना होने के...

महेंद्र सिंह धोनी के 'पोस्ट मैच इंटरव्यूज' और प्रेसवार्ताओं को मैं बहुत ध्यान से सुना करता था, अब तो ख़ैर वह अवसर आईपीएल में भी नहीं मिलेगा. लेकिन धोनी अकसर पते की बात कर जाया करते थे या फिर वे जो कुछ बोलते थे, उससे उनके दिमाग़ में बन रहे कुछ ज़रूरी 'पैटर्न्स' का पता चलता था.

मसलन, अक्टूबर 2013 में जब भारत ने ऑस्ट्रेलिया के विरुद्ध 1 विकेट पर 363 रन बनाकर वनडे मैच जीता था तो धोनी से पूछा गया कि उन्होंने बल्लेबाज़ों को क्या हिदायत दी थी. धोनी ने कहा था, 'कुछ ख़ास नहीं, बस इतना ही कि पिच अच्छी है, 'डोंट लूज़ योर शेप' और रन बन जाएंगे।' ये एक कमाल की बात थी, 'डोंट लूज़ योर शेप'. मैं उस बात को कभी भूल नहीं पाता. और उस मैच में वाक़ई भारतीय बल्लेबाज़ों ने सीधे बल्ले से खेलते हुए ही इतने रन बना लिए थे.

लेकिन सबसे कमाल की बात जो उन्होंने कही, वह यह थी

2015 के विश्वकप के दौरान धोनी से पूछा गया था कि आपकी टीम विश्वकप से ठीक पहले हुई वनडे सीरीज़ में बहुत ख़राब खेली थी, फिर विश्वकप में पूरी टीम इतने अच्छे फ़ॉर्म में कैसे आ गई (ठीक यही घटना 2003 के विश्वकप से पहले भी घटी थी.

न्यूज़ीलैंड में हुई वनडे सीरीज़ में बुरी तरह धुल चुकी भारतीय टीम विश्वकप का पहला मैच भी हारी, लेकिन फिर उसके बाद ऐसी लय में आई कि फ़ाइनल तक पहुंची), धोनी ने जो जवाब दिया, वो मैंने आज त‍क किसी क्रिकेटर या कॉमेंटेटर के मुंह से नहीं सुना था. धोनी ने कहा, 'देखिए, लाइफ़ की तरह क्रिकेट में बहुत कुछ 'एब्सट्रैक्ट' होता है। कोई ठीक-ठीक नहीं जानता कि अच्छा खेल रहा खिलाड़ी कब अचानक अपनी लय खो दे और ख़राब खेल रही टीम को कब अचानक अपनी लय मिल जाए।' निश्च‍ित ही, कुछ फ़ॉर्मूले होते हैं जो आपके पक्ष में काम करते हैं, लेकिन बहुधा उनका आकलन 'हाइंडसाइट' में किया जाता है, यानी घटना होने के बाद. जब वह सब घटित हो रहा होता है, तब तो उसमें नियति की एक अवश्यंभावी सरीखी लय होती है.

ये एक कमाल की "इनसाइट" थी, जैसी सामान्य

हमें फ़िलॉस्फ़रों के यहां मिलती है, क्रिकेटरों के यहां नहीं, क्रिकेट विश्लेषकों तक के यहां नहीं. आज टीवी मीडिया अपनी तात्कालिकता की बाध्यताओं में सिमटकर जो कुछ कह रहा है, उसे मत सुनिए, क्योंकि यह कहना बिलकुल बेतुका है कि अठारह मैचों से अपराजेय रही टीम अचानक हारने कैसे लगी, क्योंकि हार का ऐन यह कारण भी तो हो सकता है कि टीम अठारह मैचों से अपराजेय थी !

क्रिकेट में वाक़ई बहुत कुछ 'एब्सट्रैक्ट' होता है। बहुत-सी चीज़ों के अंदरूनी मनोवैज्ञानिक कारण होते हैं. 'मोमेंटम' की एक लय होती है. आप 'विशफ़ुल थिंकिंग' से क्रिकेट नहीं खेल सकते, कि मैं जाऊंगा और सब ठीक करके आऊंगा, क्योंकि मैंने पहले भी किया है. हद से हद आप अपने बेसिक्स को पुख़्ता कर सकते हैं, लेकिन इसके बावजूद आप वहां जाकर अच्छा कर ही पाएंगे, यह ज़रूरी नहीं है.

यही बात है, जिसने क्रिकेट में आज तक बड़े बड़े खिलाड़ियों को 'हम्बल' बनाया है, मैंने विव रिचर्ड्स, मैल्कम मार्शल, सचिन तेंडुलकर जैसों को धूलिधूसरित होते देखा है, और अब विराट कोहली की बारी है. ऑस्ट्रेलिया के कट्टर विरोधी माइकल वॉन ने एक 'ट्वीट' करके चुटकी ली है कि शायद भारतीय टीम यह सोचकर इस सीरीज़ में उतरी थी कि इंग्लैंड जैसी 'बब्बर' टीम को हरा दिया तो ऑस्ट्रेलिया जैसी 'पिद्दी' टीम को भी हरा ही देंगे. यह भारतीय टीम के प्रदर्शन से निराशा जताने का माइकल वॉन का अपना तरीक़ा था, लेकिन हर कटाक्ष की तरह यह टिप्पणी भी सच्चाई से पूरी तरह से दूर नहीं है.

क्योंकि सवाल तो यही है कि इस सीरीज़ में भारतीय टीम के सामने खेलने की 'प्रेरणा' कहां थी. आखिरी बार आप अवे-गेम कब खेले थे, आखिरी बार आपको चुनौती कब मिली थी? बांग्लादेश के साथ खेला गया टेस्ट मैच अपच की अति थी. कितनी बार विराट कोहली दोहरा शतक लगाएंगे, कितनी बार रविचंद्रन अश्व‍िन पारी में पांच विकेट लेंगे, क्लीन-स्वीप करके आप कितनी सीरीज़ जीतेंगे? आपकी प्रेरणाओं की मांसपेशियां ढीली नहीं पड़ जाएंगी? आप ख़ुद से कहेंगे ज़रूर कि ऑस्ट्रेलिया से जीतना हमारी पहली प्राथमिकता है, लेकिन प्रेसवार्ताओं में कही जाने वाली बातों और वास्तविकताओं में ज़मीन आसमान का फ़ासला होता है और जीवन में बहुत सारी चीज़ें आपकी अंदरूनी प्रेरणा की लय से तय होती हैं.

ये वही तो स्टीव स्मिथ हैं, जो अभी चंद रोज़ पहले ही श्रीलंका से 3 और दक्ष‍िण अफ्रीका से 2 टेस्ट हारने के बाद पत्रकारों के सामने बोल उठे थे कि 'मुझे आपके सामने बैठने में अभी शर्म आ रही है.' अब वे कह रहे हैं कि 'हम बॉर्डर-गावस्कर ट्रॉफ़ी अपने पास रखने से महज़ दो सेशन दूर हैं.' दूसरी तरफ़ ये वही तो विराट कोहली हैं, जो विश्वजयी थे, जो जिस चीज़ को छूते, वो सोना बन जाती थी. अभी चंद रोज़ पहले तक. आप पूछ सकते हैं अचानक कहां कुछ बदल गया.

जवाब आपको महेंद्र सिंह धोनी से मिलेगा : 'जीवन की तरह क्रिकेट में भी बहुत कुछ 'एब्सट्रैक्ट' होता है।' फिर भी, कहीं कुछ ख़त्म नहीं होता है. हर अच्छी चीज़ का अंत होता है, हर बुरी चीज़ ख़ुद से ऊबकर गुज़र जाती है. मैं पिछले 26 सालों से क्रिकेट देख रहा हूं और 1991-92 का सिडनी टेस्ट जब हम जीतते-जीतते रह गए थे, तब वह मेरी पहली "क्रिकेट-निराशा" थी. बाद उसके इतना क्रिकेट देखा है और जीवन में होने वाली चीज़ों से उसकी समतुल्यताओं को इतना विश्लेषित किया है कि अब सम पर आ गया हूं.

आप यह सीरीज़ 4-0 से हारने के लिए तैयार रहिए. लेकिन आप यह सीरीज़ 3-1 से जीत भी सकते हैं. ऐसा नहीं है कि जो कुछ होता है उसके पीछे कहीं कोई तुक नहीं होती, लेकिन जीवन की तमाम बड़ी चीज़ों की तरह क्रिकेट में भी हमेशा दो और दो चार नहीं होता है. यही तो उसकी ख़ूबसूरती है.

ये भी पढ़ें- 

स्पिन के जाल में उलझते भारतीय बल्लेबाज

अपने ही खोदे गड्ढे में गिरी टीम इंडिया

भारत-ऑस्ट्रेलिया सीरीज और बद्जुबानी की जंग

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    महेंद्र सिंह धोनी अपने आप में मोटिवेशन की मुकम्मल दास्तान हैं!
  • offline
    अब गंभीर को 5 और कोहली-नवीन को कम से कम 2 मैचों के लिए बैन करना चाहिए
  • offline
    गुजरात के खिलाफ 5 छक्के जड़ने वाले रिंकू ने अपनी ज़िंदगी में भी कई बड़े छक्के मारे हैं!
  • offline
    जापान के प्रस्तावित स्पोगोमी खेल का प्रेरणा स्रोत इंडिया ही है
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲