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ओलंपिक जैसे इवेंट्स तक ही खिलाड़ियों पर इनामों की बौछार सीमित क्यों है?

    • देवेश त्रिपाठी
    • Updated: 06 अगस्त, 2021 06:44 PM
  • 06 अगस्त, 2021 06:43 PM
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दुनियाभर में हर खेल के तमाम इवेंट होते हैं. इन खेलों के ओलंपिक और वर्ल्ड चैंपियनशिप जैसे बड़े इवेंट्स को छोड़ दिया जाए, तो भारतीय खिलाड़ियों को प्रोत्साहन के नाम पर दिए जाने वाले कैश प्राइज में भी जमीन-आसमान का अंतर साफ नजर आता है. वहीं, जूनियर लेवल पर भी बड़े इवेंट्स के अलावा प्रतिभाओं को प्रोत्साहित करने के लिए भारत में कोई खास कदम नहीं उठाए जाते हैं.

टोक्यो ओलंपिक 2021 (Tokyo Olympic 2021) का सफर अभी तक भारत के लिए काफी हद तक सुखद रहा है. दो रजत और तीन कांस्य पदकों के साथ भारत के खिलाड़ियों का जोश आसमान छूता नजर आ रहा है. टोक्यो ओलिंपिक के आखिरी दिनों में कुछ और मेडल भी भारत की झोली में आ सकते हैं. नीरज चोपड़ा और बजरंग पुनिया जैसे खिलाड़ियों ने इस उम्मीद को पंख लगा दिए हैं. भारत की ओर से की जा रही सभी उम्मीदें पूरी हो जाती हैं, तो टोक्यो ओलंपिक देश के लिए अब तक के सबसे बेहतरीन ओलंपिक्स में शामिल हो जाएगा. टोक्यो ओलंपिक मेडल टैली को देखकर कहा जाने लगा है कि भारत खेल जगत में नई ताकत के तौर पर उभर रहा है. अभी तक जिन खिलाड़ियों ने ओलंपिक में पदक पर कब्जा जमाया है, उन पर इनामों की बौछार भी शुरू हो चुकी है. कैश प्राइज से लेकर सरकारी नौकरी तक सरकारों ने इन पदक जीतने वाले खिलाड़ियों के लिए खजाना खोल दिया है. लेकिन, इन तमाम बातों के बीच एक अहम सवाल ये है कि आखिर खिलाड़ियों पर इनामों की बौछार केवल ओलंपिक जैसे इवेंट्स तक ही सीमित क्यों है?

खिलाड़ियों की जीत के बाद उनके बारे में सामने आने वाली गरीबी और सुविधाओं के अभाव की खबरें कुछ ही दिनों में भुला दी जाती हैं.

दुनियाभर में हर खेल के तमाम इवेंट होते हैं. इन खेलों के ओलंपिक और वर्ल्ड चैंपियनशिप जैसे बड़े इवेंट्स को छोड़ दिया जाए, तो भारतीय खिलाड़ियों को प्रोत्साहन के नाम पर दिए जाने वाले कैश प्राइज में भी जमीन-आसमान का अंतर साफ नजर आता है. वहीं, जूनियर लेवल पर भी बड़े इवेंट्स के अलावा प्रतिभाओं को प्रोत्साहित करने के लिए भारत में कोई खास कदम नहीं उठाए जाते हैं. अगर किसी प्रतिभाशाली खिलाड़ी को शुरुआती दौर से ही कोई प्रोत्साहन नहीं मिलेगा, तो दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी जनसंख्या वाले देश को ओलंपिक में पदकों के लिए तरसना पड़ेगा ही. खेल...

टोक्यो ओलंपिक 2021 (Tokyo Olympic 2021) का सफर अभी तक भारत के लिए काफी हद तक सुखद रहा है. दो रजत और तीन कांस्य पदकों के साथ भारत के खिलाड़ियों का जोश आसमान छूता नजर आ रहा है. टोक्यो ओलिंपिक के आखिरी दिनों में कुछ और मेडल भी भारत की झोली में आ सकते हैं. नीरज चोपड़ा और बजरंग पुनिया जैसे खिलाड़ियों ने इस उम्मीद को पंख लगा दिए हैं. भारत की ओर से की जा रही सभी उम्मीदें पूरी हो जाती हैं, तो टोक्यो ओलंपिक देश के लिए अब तक के सबसे बेहतरीन ओलंपिक्स में शामिल हो जाएगा. टोक्यो ओलंपिक मेडल टैली को देखकर कहा जाने लगा है कि भारत खेल जगत में नई ताकत के तौर पर उभर रहा है. अभी तक जिन खिलाड़ियों ने ओलंपिक में पदक पर कब्जा जमाया है, उन पर इनामों की बौछार भी शुरू हो चुकी है. कैश प्राइज से लेकर सरकारी नौकरी तक सरकारों ने इन पदक जीतने वाले खिलाड़ियों के लिए खजाना खोल दिया है. लेकिन, इन तमाम बातों के बीच एक अहम सवाल ये है कि आखिर खिलाड़ियों पर इनामों की बौछार केवल ओलंपिक जैसे इवेंट्स तक ही सीमित क्यों है?

खिलाड़ियों की जीत के बाद उनके बारे में सामने आने वाली गरीबी और सुविधाओं के अभाव की खबरें कुछ ही दिनों में भुला दी जाती हैं.

दुनियाभर में हर खेल के तमाम इवेंट होते हैं. इन खेलों के ओलंपिक और वर्ल्ड चैंपियनशिप जैसे बड़े इवेंट्स को छोड़ दिया जाए, तो भारतीय खिलाड़ियों को प्रोत्साहन के नाम पर दिए जाने वाले कैश प्राइज में भी जमीन-आसमान का अंतर साफ नजर आता है. वहीं, जूनियर लेवल पर भी बड़े इवेंट्स के अलावा प्रतिभाओं को प्रोत्साहित करने के लिए भारत में कोई खास कदम नहीं उठाए जाते हैं. अगर किसी प्रतिभाशाली खिलाड़ी को शुरुआती दौर से ही कोई प्रोत्साहन नहीं मिलेगा, तो दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी जनसंख्या वाले देश को ओलंपिक में पदकों के लिए तरसना पड़ेगा ही. खेल सुविधाओं को लेकर देश में तमाम बातें होती हैं. लेकिन, खेलों के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर की स्थिति भारत में कैसी है, इसे बताने की जरूरत नही पड़ेगी. राष्ट्रीय स्तर पर पहुंचने वाले खिलाड़ियों को तब भी तमाम सुविधाएं मिलती हैं. लेकिन, जूनियर लेवल पर जहां से प्रतिभाओं का निखार शुरू होता है. वहां खिलाड़ियों को स्पोर्ट्स किट तक के लिए खुद ही व्यवस्था करनी पड़ती है.

भारत के खिलाड़ियों की जीत के बाद उनके बारे में सामने आने वाली गरीबी और सुविधाओं के अभाव की खबरें कुछ ही दिनों में भुला दी जाती हैं. कुछ दिनों के उत्साह और जोश के बाद सब कुछ ठीक वैसे ही पुराने ढर्रे पर वापस लौट आता है, जैसा पहले चल रहा था. खेल के उपकरण से लेकर अभ्यास तक की सुविधाएं फिर से भगवान भरोसे हो जाती हैं. दैनिक भास्कर की एक खबर के अनुसार, भारतीय पुरुष और महिला हॉकी टीम को स्पॉन्सर करने वाली ओडिशा सरकार ने खिलाड़ियों को करीब तीन साल तक एक अच्छे होटल में रखा. ओडिशा सरकार ने इस सुविधा के लिए तर्क दिया था कि खिलाड़ियों की पर्सनल लाइफ स्टाइल का असर परफॉर्मेंस पर पड़ता है. अच्छे आवास, सही डाइट और सुविधाओं से लैस टीम का प्रदर्शन अपनेआप बढ़ जाता है. क्या भारत में इस बात की कल्पना की जा सकती है कि खेल प्रतिभाओं को उनके शुरुआती दौर में ही इस तरह की सुविधाएं दी जाएं.

इस मामले में भारत को चीन जैसे देश से सीख लेनी चाहिए, जो इस टोक्यो ओलंपिक के मेडल टैली में टॉप पोजीशन पर है. चीन में खेलों के लिए बुनियादी इंफ्रास्ट्रक्चर के साथ ही खेल प्रतिभाओं को जूनियर लेवल से ही तराशने का काम शुरू कर दिया जाता है. इन्हें पदक लाने लायक बनाने में किसी तरह की कमी नहीं रखी जाती है. वो कमी आर्थिक हो या कोई और, चीन में खेलों में प्रदर्शन को वरीयता दी जाती है और इसके सहारे विश्व में उसका दबदबा कायम करने की ओर जोर दिया जाता है. वहीं, भारत में इसके उलट बच्चों को खेल से ज्यादा नौकरी और शिक्षा पर ध्यान देने का बारे में कहा जाता है. भारत में खेल प्रतिभाओं को सही तरीके से खोजने का कोई तंत्र भी स्थापित नहीं है. भारत में खेलों को सिर्फ सरकारी नौकरी पाने का जरिया बना दिया गया है. परिवार और समाज भी खेलों को नौकरी के लिए एक अच्छे अवसर से ऊपर नहीं देखता है. और, ये सरकारी नौकरियां भी उन्हीं खिलाड़ियों के लिए है, जो खेलों में पदक लाए हैं या बेहतरीन प्रदर्शन कर पदक की उम्मीद जगाए रखते हैं.

अगर जूनियर लेवल से ही खेल प्रतिभाओं पर फेलियर के बाद करियर की चिंता रहेगी, तो कितने खिलाड़ी अपना अच्छा प्रदर्शन कर पाएंगे. एक खिलाड़ी को इस तरह की चिंता या तनाव से दूर रखने के लिए एक व्यापक नीति बनाने की ओर ध्यान दिया जाना चाहिए. सही मायनों में खिलाड़ियों पर इनामों की बौछार केवल ओलंपिक जैसे इवेंट्स तक ही सीमित नहीं होनी चाहिए. छोटे स्तर से ही खिलाड़ियों को देश के लिए पदक जीतने का प्रोत्साहन मिलना चाहिए. ये प्रोत्साहन कैसा और कितना हो, ये तय करना सरकार की जिम्मेदारी है. लेकिन, सरकारों को ये भी तय करना चाहिए कि सभी खेलों में प्रोत्साहन एक ही आधार पर किया जाए. वरना धर्म और जाति के विभेद से जूझ रहे देश में खेलों में भी भेद होने लगेगा, जैसा फिलहाल क्रिकेट को लेकर देखा जा रहा है.


इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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