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सिंधू के संघर्ष की कहानी हौंसला बढ़ाने वाली है

    • आईचौक
    • Updated: 19 अगस्त, 2016 06:46 PM
  • 19 अगस्त, 2016 06:46 PM
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रियो ओलंपिक में इतिहास रचने वाली पीवी सिंधू के लिए एक समय वह भी था, जब गोपीचंद ने उन्‍हें रैकेट छूने से मना कर दिया था और वे रो पड़ी थीं...

तब रियो ओलंपिक शुरू होने में करीब एक साल बाकी था. पीवी सिंधू रोज की तरह हैदराबाद के पुलेला गोपीचंद बैडमिंटन एकेडमी में अभ्यास के लिए पहुंची थीं. स्वभाव से बेहद शांत और सौम्य सिंधू अपना अभ्यास शुरू ही करने जा रही थीं कि गोपीचंद बीच में आ गए. कहा- जब तक वो वहां मौजूद 50 खिलाड़ियों और दूसरे कोच के सामने बीच कोर्ट में खड़ी होकर जोर-जोर से नहीं चिल्लाएंगी... वो उन्हें रैकेट नहीं छूने देंगे.

इस घटना के समय सिंधू के पिता पीवी रमन्ना भी वहीं मौजूद थे. सिंधू के लिए ये कर पाना मुश्किल था. वो रो पड़ीं लेकिन गोपीचंद अपनी जिद पर अड़े रहे. आखिरकर सिंधू तैयार हुईं.

यह भी पढ़ें- ये पीवी सिंधू कभी नहीं देखी होगी !

पहली बार अकेले ही सही लेकिन बीच कोर्ट में सिंधू चिल्लाने के लिए तैयार हुई. और फिर धीरे-धीरे ये आक्रमकता उनके खेल में शुमार होता गया. सिंधू पर 'शॉउट एंड प्ले' की ये रणनीति ही थी कि वे ओलंपिक में सफलता का झंडा फहरा सकीं.

 रियो ओलंपिक में सिंधू का कमाल...

निश्चित तैर पर कोर्ट पर इस तरह का अग्रेशन विरोधी खिलाड़ियों को दबाव में डालता है. और पूरे ओलंपिक में हर प्वाइंट के बाद खुल कर चिल्लाती और मुट्ठी बांध कर खुशी मनाती सिंधू को पूरे देश ने देखा. ये उनके व्यक्तित्व से बिल्कुल अलग था. रियो ओलंपिक में इतिहास रच चुकीं सिंधू ने आखिर कैसे गोपीचंद के नेतृत्व में की थी पूरी तैयारी, आईए जानते हैं-

1. सिंधू पिछले करीब 12 साल से गोपीचंद से बैडमिंटन का प्रशिक्षण...

तब रियो ओलंपिक शुरू होने में करीब एक साल बाकी था. पीवी सिंधू रोज की तरह हैदराबाद के पुलेला गोपीचंद बैडमिंटन एकेडमी में अभ्यास के लिए पहुंची थीं. स्वभाव से बेहद शांत और सौम्य सिंधू अपना अभ्यास शुरू ही करने जा रही थीं कि गोपीचंद बीच में आ गए. कहा- जब तक वो वहां मौजूद 50 खिलाड़ियों और दूसरे कोच के सामने बीच कोर्ट में खड़ी होकर जोर-जोर से नहीं चिल्लाएंगी... वो उन्हें रैकेट नहीं छूने देंगे.

इस घटना के समय सिंधू के पिता पीवी रमन्ना भी वहीं मौजूद थे. सिंधू के लिए ये कर पाना मुश्किल था. वो रो पड़ीं लेकिन गोपीचंद अपनी जिद पर अड़े रहे. आखिरकर सिंधू तैयार हुईं.

यह भी पढ़ें- ये पीवी सिंधू कभी नहीं देखी होगी !

पहली बार अकेले ही सही लेकिन बीच कोर्ट में सिंधू चिल्लाने के लिए तैयार हुई. और फिर धीरे-धीरे ये आक्रमकता उनके खेल में शुमार होता गया. सिंधू पर 'शॉउट एंड प्ले' की ये रणनीति ही थी कि वे ओलंपिक में सफलता का झंडा फहरा सकीं.

 रियो ओलंपिक में सिंधू का कमाल...

निश्चित तैर पर कोर्ट पर इस तरह का अग्रेशन विरोधी खिलाड़ियों को दबाव में डालता है. और पूरे ओलंपिक में हर प्वाइंट के बाद खुल कर चिल्लाती और मुट्ठी बांध कर खुशी मनाती सिंधू को पूरे देश ने देखा. ये उनके व्यक्तित्व से बिल्कुल अलग था. रियो ओलंपिक में इतिहास रच चुकीं सिंधू ने आखिर कैसे गोपीचंद के नेतृत्व में की थी पूरी तैयारी, आईए जानते हैं-

1. सिंधू पिछले करीब 12 साल से गोपीचंद से बैडमिंटन का प्रशिक्षण ले रही हैं. सिंधू खुद मानती हैं कि बैडमिंटन में उन्होंने जो कुछ सीखा है, उसका श्रेय केवल गोपीचंद को जाता है और वो उनकी हर बात को आंख मूंद कर मानती हैं.

2. खाने में चॉकलेट और हैदराबादी बिरयानी सिंधू की पसंदीदा हैं. लेकिन गोपीचंद ने इसे लेकर भी सिंधू पर पाबंदी लगा रखी है. बाहर का पानी पीने तक की इजाजत नहीं है. मिठाईयों, बाहर से आने वाली दूसरी चीजों और यहां तक कि मंदिर से आने वाले प्रसाद तक पर गोपीचंद का पहरा है. कई मीडिया रिपोर्ट्स में तो ये भी बताया गया है कि ब्रेड और शुगर से भी गोपीचंद अपने खिलाड़ियों को दूर रखते हैं. खिलाड़ी उनकी बात माने, इसके लिए खुद गोपीचंद भी इन कड़े नियमों का पालन करते हैं. इतनी पाबंदियां डोपिंग और दूसरे कारणों से भी लागू हैं. वैसे भी हम देख चुके हैं कि नरसिंह यादव के मामले में क्या हुआ.

यह भी पढ़ें- रियो ओलंपिकः इन एथलीटों की हार तो जीत से भी बड़ी है!

3. सिंधू के पिता पीवी रमन्ना और उनकी मां विजया रमन्ना भले ही ओलंपिक खेलों के दौरान उनके साथ ब्राजील में न रहे हों लेकिन तैयारी में इन्होंने भी अपनी ओर से कोई कसर नहीं छोड़ी थी. पिता रोज सुबह चार बजे सिंधू को लेकर गोपीचंद ट्रेनिंग एकेडमी पहुंच जाते थे. यही नहीं, वॉलीबॉल खिलाड़ी रहे और फिलहाल रेलवे में काम करने वाले रमन्ना ने रियो ओलंपिक से पहले आठ महीने की छुट्टी ले ली थी ताकि अपनी बेटी की हर जरूरत को पूरी कर सकें.

4. भारत जैसे देश में जहां खेलों को अभी भी दूसरे दर्जे का माना जाता है वहां एक माता-पिता का ये समर्पण अपने आप में काबिलेतारीफ है. और कई लोगों के लिए एक उदाहरण भी. ग्लास्गो में हुए कॉमनवेल्थ गेम्स के बाद से ही सिंधू पर सबकी निगाहें टिक गई थीं. जब उन्होंने सेमीफाइनल तक का रास्ता तय किया था.

5. बैडमिंटन को लेकर सिंधू किस कदर समर्पित थी, इसका अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि वे बचपन में रोज 56 किलोमीटर तक की दूरी अपने घर से कोचिंग कैंप आने तक के लिए तय करती थीं. अखबार की ये रिपोर्ट इस बात की तस्दीक करती है. जब अखबार में ये स्टोरी छपी तब सिंधू सातवीं कक्षा में पढ़ती थीं और घर से दूरी होने के बावजूद समय पर कोचिंग कैंप पहुंचना उनकी आदतों में शुमार था.

वाकई, सिंधू सही मायनों में चैंपियन हैं. ये भी दिलचस्प है कि उनके कोच गोपीचंद द्रोणाचार्य अवार्ड से नवाजे जा चुके हैं जबकि सिंधू अर्जुन अवार्ड विनर. ऐसे में उम्मीद कीजिए कि 'द्रोणाचार्य और अर्जुन' की ये कमाल की जोड़ी आगे भी भारत के लिए ऐसे ही इतिहास रचने का काम करती रहेगी.

यह भी पढ़ें- रोहतक से रियो तक, बस साक्षी की मेहनत ही मेहनत

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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