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Pink Ball Test Match से जुड़े अपने कंफ्यूजन दूर कर लीजिए!

    • आईचौक
    • Updated: 16 नवम्बर, 2019 04:49 PM
  • 16 नवम्बर, 2019 04:49 PM
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एक सामान्य सा सवाल है जो बहुत से लोगों के मन में उठ रहा है कि आखिर भारत और बांग्लादेश (India vs Bangladesh Test Match) के बीच होने वाले दूसरे टेस्ट मैच में Pink Ball क्यों इस्तेमाल हो रही है? जवाब यहां है.

क्रिकेट की दुनिया में आने वाले दिनों में पिंक बॉल (Pink Ball) की एंट्री होने वाली है. इसी महीने के आखिर में कोलकाता में होने वाले डे-नाइट टेस्ट मैच (Day Night Test Match) के दौरान पिंक बॉल से मैच खेला जाना है. 22 नवंबर से कोलकाता के ईडन गार्डन्स में भारत और बांग्लादेश (India vs Bangladesh Test Match) के बीच होने वाले दूसरे टेस्ट मैच में पहली बार गुलाबी बॉल का इस्तेमाल होगा. अभी गुलाबी गेंद मैदान पर उतरी भी नहीं है और उसे लेकर तरह-तरह के कयास लगाए जाने लगे हैं. कुछ लोग बता रहे हैं कि ये अच्छी होगी, तो कुछ का मानना है कि इससे नुकसान होगा. यहां तक कि खिलाड़ी भी ऐसी अलग-अलग राय रखते हैं. चेतेश्वर पुजारा कहते हैं कि वह दिलीप ट्रॉफी में गुलाबी गेंद से खेल चुके हैं और घरेलू स्तर पर गुलाबी गेंद फायदेमंद हो सकती है. वहीं दूसरी ओर वह यह भी मान रहे हैं कि सूरज ढलने के समय दिक्कत हो सकती है. दरअसल, अभी तक लाल और सफेद गेंद से खेला जाता था, लेकिन गुलाबी गेंद ने कई तरह के सवाल पैदा कर दिए हैं. आइए देते हैं आपके सवालों के जवाब.

गुलाबी गेंद की बातें जब से शुरू हुई है, कई तरह के कंफ्यूजन भी पैदा हो गए हैं.

गुलाबी ही क्यों?

एक सामान्य सा सवाल है जो बहुत से लोगों के मन में उठ रहा है कि आखिर गुलाबी गेंद ही क्यों? किसी और रंग की गेंद क्यों नहीं? हरी, पीली, नीली, काली... सिर्फ गुलाबी गेंद ही क्यों चुनी गई? दरअसल, गुलाबी गेंद लाल गेंद और सफेद गेंद के बीच की है. यानी इसमें टेस्ट मैच खेली जाने वाली लाल गेंद और वन डे मैच खेली जाने वाली सफेद मैच दोनों का अंश होगा. कहना गलत नहीं होगा कि ये दोनों से मिलकर बनी है. टेस्ट मैच में सफेद ड्रेस के सामने सफेद गेंद ठीक से नहीं दिखती, इसलिए लाल गेंद से खेलते हैं, जबकि वन डे मैच में रंगीन जर्सी...

क्रिकेट की दुनिया में आने वाले दिनों में पिंक बॉल (Pink Ball) की एंट्री होने वाली है. इसी महीने के आखिर में कोलकाता में होने वाले डे-नाइट टेस्ट मैच (Day Night Test Match) के दौरान पिंक बॉल से मैच खेला जाना है. 22 नवंबर से कोलकाता के ईडन गार्डन्स में भारत और बांग्लादेश (India vs Bangladesh Test Match) के बीच होने वाले दूसरे टेस्ट मैच में पहली बार गुलाबी बॉल का इस्तेमाल होगा. अभी गुलाबी गेंद मैदान पर उतरी भी नहीं है और उसे लेकर तरह-तरह के कयास लगाए जाने लगे हैं. कुछ लोग बता रहे हैं कि ये अच्छी होगी, तो कुछ का मानना है कि इससे नुकसान होगा. यहां तक कि खिलाड़ी भी ऐसी अलग-अलग राय रखते हैं. चेतेश्वर पुजारा कहते हैं कि वह दिलीप ट्रॉफी में गुलाबी गेंद से खेल चुके हैं और घरेलू स्तर पर गुलाबी गेंद फायदेमंद हो सकती है. वहीं दूसरी ओर वह यह भी मान रहे हैं कि सूरज ढलने के समय दिक्कत हो सकती है. दरअसल, अभी तक लाल और सफेद गेंद से खेला जाता था, लेकिन गुलाबी गेंद ने कई तरह के सवाल पैदा कर दिए हैं. आइए देते हैं आपके सवालों के जवाब.

गुलाबी गेंद की बातें जब से शुरू हुई है, कई तरह के कंफ्यूजन भी पैदा हो गए हैं.

गुलाबी ही क्यों?

एक सामान्य सा सवाल है जो बहुत से लोगों के मन में उठ रहा है कि आखिर गुलाबी गेंद ही क्यों? किसी और रंग की गेंद क्यों नहीं? हरी, पीली, नीली, काली... सिर्फ गुलाबी गेंद ही क्यों चुनी गई? दरअसल, गुलाबी गेंद लाल गेंद और सफेद गेंद के बीच की है. यानी इसमें टेस्ट मैच खेली जाने वाली लाल गेंद और वन डे मैच खेली जाने वाली सफेद मैच दोनों का अंश होगा. कहना गलत नहीं होगा कि ये दोनों से मिलकर बनी है. टेस्ट मैच में सफेद ड्रेस के सामने सफेद गेंद ठीक से नहीं दिखती, इसलिए लाल गेंद से खेलते हैं, जबकि वन डे मैच में रंगीन जर्सी होती है, इसलिए सफेद गेंद से खेलते हैं. ऐसे में गुलाबी गेंद इसलिए चुनी गई है, ताकि उससे दिन में, शाम को और रात में आसानी से देखा जा सके. सिर्फ जानकारी के लिए आपको बता दें कि लाल रंग की बॉल को डाई किया जाता है, जबकि सफेद और गुलाबी रंग की बॉल पर पेंट किया जाता है और उसकी एक खास तरह के कैमिकल (लाख या lacquer) से कोटिंग की जाती है, ताकि रंग लंबे समय तक बना रहे.

सफेद बॉल से भी काम चल रहा था, तो गुलाबी की क्या जरूरत?

एक सवाल ये भी है कि जब सफेद बॉल से भी रात में और दिन में खेला ही जा रहा था तो गुलाबी की क्या जरूरत है? दरअसल, टेस्ट मैच में खिलाड़ियों को 80 ओवर के बाद क्रिकेट की दूसरी बॉल मिलती है. यानी 80 ओवर तक एक ही बॉल से खेलना होता है. सफेद बॉल इतने अधिक ओवर तक बहुत अधिक खराब हो जाती है. बता दें कि 50 ओवर के वन डे मैच में दो गेंदों का इस्तेमाल किया जाता है, जिनसे पिच के दोनों हिस्सों से 25-25 ओवर खेले जाते हैं. बॉल बनाने वाली कंपनी कूकाबुर्रा ने इसे बनाने में काफी मेहनत की है, ताकि सफेद बॉल की तरह ये जल्दी खराब ना हो और इससे देर तक खेला जा सके.

बल्लेबाज को होने वाली दिक्कतें

अगल फुल पिच गेंद फेंकी जाती है तो बल्लेबाज को उसे समझने में दिक्कत होती है. साथ ही, ये भी समझने में दिक्कत होती है कि बॉल कैसे और कितनी तेज स्पिन कर रही है. दरअसल, लाल बॉल में सफेद सिलाई होती है, जो गेंद की स्पिन को दिखा देती है, लेकिन गुलाबी गेंद की सफेद सिलाई लाल गेंद जितनी उभर कर नहीं दिखती. साथ ही सूरज ढलने के समय का खेल गुलाबी गेंद से खेलने में दिक्कत होती है, जिसका जिक्र चेतेश्वर पुजारा भी कर चुके हैं.

गेंदबाजों को भी होती है दिक्कत

एक बात तो ये है कि लाल गेंद के मुकाबले गुलाबी गेंद जल्दी पुरानी हो जाती है. ये शुरू-शुरू में तो खूब शाइन करती है और स्विंग करती है, लेकिन जल्द ही अपनी शाइन खो देती है और फिर सामान्य सी हो जाती है. ऐसी स्थिति में गुलाबी गेंद को बल्लेबाज खूब पीटते हैं.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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