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सुनील छेत्री को मैदान पर खेलते देखने से अच्छा कुछ भी नहीं

    • सुहानी सिंह
    • Updated: 16 जून, 2018 04:22 PM
  • 16 जून, 2018 04:22 PM
offline
सुनील छेत्री ने हम फुटबॉल प्रेमियों को एकजुट कर दिया. मैं इसके लिए जीवनभर उनकी आभारी रहूंगी.

पिछले दिनों भारत की राष्ट्रीय फुटबॉल टीम के कप्तान और देश के सबसे ज्यादा गोल करने वाले खिलाड़ी सुनील छेत्री ने ट्वीटर पर एक वीडियो डाला था. मैंने उस वीडियो को देखा. उनके उस वीडियो ने हिला दिया. 2007 से मैं एफसी बार्सिलोना की प्रशंसक हूं. मैं इसके 11 खिलाड़ियों का नाम उंगलियों पर गिना सकती हूं. लेकिन भारतीय फुटबॉल टीम के किसी खिलाड़ी का नाम मुझे पता नहीं. हालांकि ये कहते हुए मुझे कोई गर्व नहीं है, लेकिन फिर भी सच यही है.

मेरा भाई मानस सिंह, एक टेलीविजन होस्ट है और यूरोप के फुटबॉल टीम लिवरपूल का कट्टर समर्थक है. मुंबई फुटबॉल एरिना जिसे अंधेरी स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स के नाम से जाना जाता है में वो मौजूद था. वहां उसने इंटरकांटिनेंटल कप में छेत्री की हैट-ट्रिक और ताइपे पर भारतीय टीम को 5-0 से जीतते भी देखा. उसने बताया कि स्टेडियम में मौजूद 500 से कम लोगों में से एक वो भी था, जिन्होंने खिलाड़ियों के लिए चियर किया और उन्हें उत्साहित किया. मैं निराश थी. लेकिन क्या अपनी टीम की इस हालत के लिए मैं भी जिम्मेदार नहीं हूं?

अपने कप्तान को होटल के कमरे में एक वीडियो शूट करते देखना और हम दर्शकों से स्टेडियम में आकर मैच देखने के लिए अपील करना. बहुत दुखी करने वाला नजारा है, इतना कह देना ही काफी नहीं है. आखिर ये स्थिति आई ही क्यों? हम सभी अपने टीवी और मोबाइल पर ही टीमों का समर्थन कर और मैच देखकर संतुष्ट हो जाते हैं. हम इतने व्यस्त हैं कि हमारे पास स्टेडियम में जाकर अपनी टीम का समर्थन करने का भी टाइम नहीं है. भले ही फिर चाहे उन मैचों के टिकट एक फिल्म के टिकट जितने या उससे भी सस्ते हों. या फिर वो हमारे घर के पीछे वाले स्टेडियम में ही क्यों न हो रहा हो. आखिर हमारे पास इसके लिए क्या बहाना है?

मैदान पर मैच देखने का वो नजारा...

पिछले दिनों भारत की राष्ट्रीय फुटबॉल टीम के कप्तान और देश के सबसे ज्यादा गोल करने वाले खिलाड़ी सुनील छेत्री ने ट्वीटर पर एक वीडियो डाला था. मैंने उस वीडियो को देखा. उनके उस वीडियो ने हिला दिया. 2007 से मैं एफसी बार्सिलोना की प्रशंसक हूं. मैं इसके 11 खिलाड़ियों का नाम उंगलियों पर गिना सकती हूं. लेकिन भारतीय फुटबॉल टीम के किसी खिलाड़ी का नाम मुझे पता नहीं. हालांकि ये कहते हुए मुझे कोई गर्व नहीं है, लेकिन फिर भी सच यही है.

मेरा भाई मानस सिंह, एक टेलीविजन होस्ट है और यूरोप के फुटबॉल टीम लिवरपूल का कट्टर समर्थक है. मुंबई फुटबॉल एरिना जिसे अंधेरी स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स के नाम से जाना जाता है में वो मौजूद था. वहां उसने इंटरकांटिनेंटल कप में छेत्री की हैट-ट्रिक और ताइपे पर भारतीय टीम को 5-0 से जीतते भी देखा. उसने बताया कि स्टेडियम में मौजूद 500 से कम लोगों में से एक वो भी था, जिन्होंने खिलाड़ियों के लिए चियर किया और उन्हें उत्साहित किया. मैं निराश थी. लेकिन क्या अपनी टीम की इस हालत के लिए मैं भी जिम्मेदार नहीं हूं?

अपने कप्तान को होटल के कमरे में एक वीडियो शूट करते देखना और हम दर्शकों से स्टेडियम में आकर मैच देखने के लिए अपील करना. बहुत दुखी करने वाला नजारा है, इतना कह देना ही काफी नहीं है. आखिर ये स्थिति आई ही क्यों? हम सभी अपने टीवी और मोबाइल पर ही टीमों का समर्थन कर और मैच देखकर संतुष्ट हो जाते हैं. हम इतने व्यस्त हैं कि हमारे पास स्टेडियम में जाकर अपनी टीम का समर्थन करने का भी टाइम नहीं है. भले ही फिर चाहे उन मैचों के टिकट एक फिल्म के टिकट जितने या उससे भी सस्ते हों. या फिर वो हमारे घर के पीछे वाले स्टेडियम में ही क्यों न हो रहा हो. आखिर हमारे पास इसके लिए क्या बहाना है?

मैदान पर मैच देखने का वो नजारा मैं जीवनभर नहीं भूलूंगी

मैंने अपने भाई को मेरे लिए एक टिकट लेने के लिए कहा. मेरे लिए इससे बढ़िया गिफ्ट कुछ नहीं हो सकता था. और वो मेरे लिए एक यादगार रात थी. स्टेडियम के अंदर के वातावरण को बारिश, बिजली और गरज ने और ही जादूई बना दिया.

मैच शुरु होने के दो मिनट स्टेडियम पहुंचने पर हम सीधे स्टैंड नंबर चार में चले गए. यहां पर हमारी टीम के प्रशंसक पूरे स्टैंड में जमा थे. टीम को सपोर्ट करने के लिए वो बैनर, ड्रम, छेत्री का मास्क, भारत का झंडा और मंत्र तक बनाकर लाए थे. वहां पर चुपचाप बैठकर मैच देखने का ऑप्शन नहीं था. जहां तक मुझे याद है सबसे ज्यादा देर जो मैं चुप रही थी वो मात्र 30 सेकंड के लिए थी. मुझे ये बताने में बड़ा गर्व महसूस हो रहा है कि आज मेरा गला पूरा बैठा हुआ है.

ये मैच के दौरान अनगिनत बार एआर रहमान के "मां तुझे सलाम" गाने को गाया. मैंने "हम होंगे कामयाब" के एक संशोधित संस्करण को भी गाया.

वो इस तरह था:

"भारत विश्व कप खेलेगा, भारत विश्व कप खेलेगा, भारत विश्व कप खेलेगा

एक दिन, ओहो मन में है विश्वास, पूरा है विश्वास,

भारत विश्व कप खेलेगा एक दिन."

मैंने हमारे कुछ फुटबॉलरों के नामों को सीखा- संदेश झिंगन (दाढ़ी और चोटी वाला एक ही खिलाड़ी), जेजे लालपेख्लुआ (सबसे मज़ेदार मंत्र वाला खिलाड़ी) और बलवंत सिंह. मैच से पहले मैं केवल गुरुपीत सिंह संधू, सुनील छेत्री और रॉबिन सिंह के बारे में जानती थी. मैंने ये महसूस किया है कि हम डिफेन्सिव खेल का समर्थन करने वाले नहीं हैं. जब भी केन्या के पास ज्यादा देर तक गेंद रहती मैं शोर मचाने लगती. और जैसे ही गेंद हमारे खिलाड़ी के पास आती मैं अपने टीम का मनोबल बढ़ाने के लिए चिल्लाना शुरु कर देती.

छेत्री को मैदान पर खेलते देखने जादू जैसा है

और 9 हजार ब्लू प्रशंसकों के साथ एकजुट होकर हमने "ब्लू" "ब्लू" का शोर मचाया और "वाइकिंग क्लैप" किया. ये बिल्कुल हाई करने वाला एक्सपिरियंस था. पहले संदेश झिंगन के नेतृत्व में, और फिर गुरप्रीत सिंह संधू हमारे साथ शामिल हो गए.

मैंने देखा कि एक पिता ने अपने छोटे बेटे को पूरे मैच के दौरान अपने कंधों पर चढ़ा रखा था ताकि वो मैच देख पाए. बच्चा छेत्री का मुखौटा पहने खूब खुश था. मैंने देखा कि प्रशंसकों एक दूसरे को पानी की बोतलें पास कर रहे हैं. हजारों पुरुषों के बीच में भी मैं खुद को सुरक्षित महसूस कर रही थी. मुझे अपनी मनपसंद सीट दी गई. खचाखच भरे स्टेडियम में ये एक लक्जरी जैसा है. मैंने भीड़ में कुछ महिलाएं, बूढ़े लोगों को देखा.

हम फुटबॉल प्रेमियों को एकजुट करने के लिए मैं सुनील छेत्री का जितना भी धन्यवाद करुं वो कम है. और साथ ही यादगार गोल करने के लिए भी.

प्रिय कप्तान, अगली बार आपको वीडियो बनाने और ट्विटर पर पोस्ट करने की जरुरत नहीं पड़ेगी. मैं #backtheblue के लिए स्टेडियम में मौजूद रहूंगी.

(DailyO से साभार)

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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