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MS Dhoni Retirement: कारण तमाम हैं 'माही' तुम बहुत याद आओगे!

    • vinaya.singh.77
    • Updated: 15 अगस्त, 2020 10:56 PM
  • 15 अगस्त, 2020 10:54 PM
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टीम इंडिया (Team India) के पूर्व कप्तान महेंद्र सिंह धोनी (Mahendra Singh Dhoni) ने क्रिकेट से सन्यास (Dhoni Retirement) ले लिया है. क्रिकेट फैंस धोनी को उनके खेल के अलावा इसलिए भी याद करेंगे क्योंकि उनका शुमार उन चुनिंदा लोगों में है जो एक खास मुकाम पर पहुंचने के बावजूद अपने व्यवहार में बहुत सहज हैं.

एमएस धोनी उर्फ़ 'माही' (MS Dhoni)ने आज आखिरकार इंटरनेशनल क्रिकेट (International Cricket) के सभी फॉर्मेट को अलविदा कह दिया, मतलब एक ऐसे खिलाड़ी को अब हम वन-डे (One Day) या टी 20 (T-20) में खेलते हुए नहीं देख पाएंगे. हां क्रिकेट के अन्य फॉर्मेट जैसे आईपीएल (IPL) इत्यादि में हम अभी भी कप्तान कूल (Captain Cool) को खेलते हुए देख सकते हैं. क्रिकेट हिन्दुस्तान में क्या अहमियत रखता है इसपर कुछ कहने की जरुरत नहीं है लेकिन यह जरूर कहा जा सकता है कि जब क्रिकेट चलता है तो बस क्रिकेट ही चलता है, बाकी सब बंद रहता है. किसी भी खिलाड़ी के लिए लगातार क्रिकेट (Cricket) खेलना, वह भी हिन्दुस्तान के लिए जहाँ जरुरत से बहुत ज्यादा क्रिकेट खेली जाती है, बहुत मुश्किल होता है. लगातार खेलते हुए फॉर्म बरकरार रखना, फिटनेस बरकरार रखना और उससे भी ज्यादा मैदान पर या उसके बाहर भी अपना टेम्परामेंट बरकरार रखना, यह बेहद कठिन होता है. और इस मामले में माही ने अपने समकालीन खिलाडियों से कहीं बेहतर किया, इसमें कोई शक की गुंजाइश नहीं है.

बतौर खिलाड़ी खेलना और बतौर कप्तान खेलना, दोनों में बहुत फ़र्क़ होता है. और उस समय तो और भी मुश्किल हो जाता है जब एक पस्त हिम्मत टीम की कमान आपको सौंपी जाए और आपके सामने बहुत कुछ दांव पर लगा हो. खैर 2004 से 2020 लगभग 16 साल का वक़्त धोनी ने भारतीय क्रिकेट को दिया और इस सारे समय में शायद ही कोई मौका आया हो जब उनके मैदान पर या बाहर व्यवहार को लेकर कोई विवाद हुआ हो. धोनी ने कितने मैच खेले, कितने जिताये, कितने विश्व कप हिन्दुस्तान की झोली में डाले, यह आंकड़ा आसानी से उपलब्ध है.

एक क्रिकेटर के अलावा धोनी अपने फैंस के बीच अपनी सजहता के कारण भी याद किये जाएंगे

लेकिन बतौर इंसान धोनी ने जो कुछ खेल को दिया, वह इस खेल को नजदीक से देखने और...

एमएस धोनी उर्फ़ 'माही' (MS Dhoni)ने आज आखिरकार इंटरनेशनल क्रिकेट (International Cricket) के सभी फॉर्मेट को अलविदा कह दिया, मतलब एक ऐसे खिलाड़ी को अब हम वन-डे (One Day) या टी 20 (T-20) में खेलते हुए नहीं देख पाएंगे. हां क्रिकेट के अन्य फॉर्मेट जैसे आईपीएल (IPL) इत्यादि में हम अभी भी कप्तान कूल (Captain Cool) को खेलते हुए देख सकते हैं. क्रिकेट हिन्दुस्तान में क्या अहमियत रखता है इसपर कुछ कहने की जरुरत नहीं है लेकिन यह जरूर कहा जा सकता है कि जब क्रिकेट चलता है तो बस क्रिकेट ही चलता है, बाकी सब बंद रहता है. किसी भी खिलाड़ी के लिए लगातार क्रिकेट (Cricket) खेलना, वह भी हिन्दुस्तान के लिए जहाँ जरुरत से बहुत ज्यादा क्रिकेट खेली जाती है, बहुत मुश्किल होता है. लगातार खेलते हुए फॉर्म बरकरार रखना, फिटनेस बरकरार रखना और उससे भी ज्यादा मैदान पर या उसके बाहर भी अपना टेम्परामेंट बरकरार रखना, यह बेहद कठिन होता है. और इस मामले में माही ने अपने समकालीन खिलाडियों से कहीं बेहतर किया, इसमें कोई शक की गुंजाइश नहीं है.

बतौर खिलाड़ी खेलना और बतौर कप्तान खेलना, दोनों में बहुत फ़र्क़ होता है. और उस समय तो और भी मुश्किल हो जाता है जब एक पस्त हिम्मत टीम की कमान आपको सौंपी जाए और आपके सामने बहुत कुछ दांव पर लगा हो. खैर 2004 से 2020 लगभग 16 साल का वक़्त धोनी ने भारतीय क्रिकेट को दिया और इस सारे समय में शायद ही कोई मौका आया हो जब उनके मैदान पर या बाहर व्यवहार को लेकर कोई विवाद हुआ हो. धोनी ने कितने मैच खेले, कितने जिताये, कितने विश्व कप हिन्दुस्तान की झोली में डाले, यह आंकड़ा आसानी से उपलब्ध है.

एक क्रिकेटर के अलावा धोनी अपने फैंस के बीच अपनी सजहता के कारण भी याद किये जाएंगे

लेकिन बतौर इंसान धोनी ने जो कुछ खेल को दिया, वह इस खेल को नजदीक से देखने और समझने वाला ही जान सकता है. खैर मैं इस मामले में खुशकिस्मत रहा हूं कि मुझे धोनी से व्यक्तिगत तौर पर मिलने का मौका दो तीन बार मिला है. दरअसल मेरी पोस्टिंग जब अगस्त 2013 में जोहानसबर्ग हुई थी तो मेरे घर के सामने ही वांडरर्स स्टेडियम था. जैसे ही मैं वहां पहुंचा तो भारतीय टीम के दक्षिण अफ्रीका में खेलने, वहां आयोजित हुए आईपीएल इत्यादि की यादें ताज़ा हो गयीं.

सबसे पहले दो महीने बाद ही पकिस्तान की टीम वहां आयी थी और उनका टी 20 मैच वांडरर्स में था. मैंने सपरिवार उस मैच का आनंद लिया था और तभी मन में यह बात आयी थी कि कब भारतीय टीम दक्षिण अफ्रीका आये और उसके मैच देखने को मिलें. और दिसंबर में वह मौका आ ही गया जब हिन्दुस्तानी टीम जोहानसबर्ग आयी. जोहानसबर्ग में जिस माल में हमारा ऑफिस था, उसी में दो बड़े 5 स्टार होटल थे और जो भी टीम वहां आती थी, चाहे वह भारत की हो, पकिस्तान कि हो या किसी भी अन्य देश की हो, सभी वहीँ पर ठहरते थे.

और वहां पर चूंकि क्रिकेट का क्रेज हिन्दुस्तान की तरह नहीं है (वहां रग्बी और फुटबाल के दीवाने ज्यादा हैं), इसलिए खिलाडियों के लिए हिन्दुस्तान जैसा पागलपन भी नहीं है. भारतीय खिलाडियों के लिए तो फिर भी खूब था लेकिन वहां के स्थानीय क्रिकेट खिलाडियों को शायद ही कोई पूछता था. मैंने खुद उस माल में दो बार दक्षिण अफ्रीकन क्रिकेट टीम के कप्तान डुप्लेसिस को अकेले टहलते देखा और मैं ही एक शख्स था जिसने उसे पहचाना और उससे बात की. इंग्लैंड, वेस्ट इंडीज, ऑस्ट्रेलिया, पकिस्तान, श्री लंका आदि सभी देशों के खिलाड़ी उसी माल में ठहरते थे और शायद ही कोई उनको पूछता था.

खैर भारतीय खिलाडियों का क्रेज वहां भी था और जब टीम आकर उस माल में रुकी तो उनसे मिलने के लिए काफी भारतीय लोग आते रहते थे. अब चूंकि हमारा ऑफिस ही उस माल में था तो हम लोग तो लगभग रोज ही वहां दोपहर और शाम को टहलते थे. ऐसे में कोई न कोई खिलाड़ी वहां टकरा ही जाता था और एकाध को छोड़कर बाकि सब मिलते थे (कोहली इसका अपवाद था, वह उस समय भी अपने आप को बहुत बड़ा खिलाड़ी समझता था). खैर पहला टेस्ट मैच वांडरर्स में ही हुआ और हम लोग शनिवार और रविवार दोनों दिन का खेल देखने मैदान में पहुंचे (चूंकि दोनों दिन ऑफिस बंद रहता था इसलिए भी और स्टेडियम घर के ठीक सामने ही था, इसलिए भी).

मैं मैच के दौरान भारतीय तिरंगा साथ रखता था और एक बड़ा सा पोस्टर भी जिसमें लिखा रहता था 'मिस यू तेंदुलकर' (तेंदुलकर मेरा सबसे पसंदीदा खिलाड़ी हुआ करता था). इस वजह से काफी लोगों का ध्यान भी मेरी तरफ आकर्षित हो जाता था कि मैच में तेंदुलकर खेल नहीं रहा है फिर भी उसका पोस्टर लेकर कोई बैठा हुआ है. मैच ख़तम हुआ और उसके अगले दिन शाम को माल में टहलते समय अचानक बेटी को माही दिख गए, उसने मुझे बताया और बोला कि माही से तो मिलना ही है.

माही हमसे काफी आगे चल रहे थे इसलिए बेटी ने आवाज लगायी और आवाज सुनकर माही खड़े हो गए. हम लोग लपककर माही के पास पहुंचे और फॉर्मल हेलो करने के बाद साथ एक यादगार तस्वीर खिंचवाने की इच्छा जाहिर की. माही ने एक बार भी न नुकुर नहीं किया, पहले हम दोनों ने साथ फोटो लिए, फिर बेटी ने अकेले फोटो खिंचवाया. इस बीच कुछ और भारतीय भी वहां पहुंच गए और सबने एक एक फोटो खिंचवाई.

इसके बाद हमने माही को धन्यवाद दिया और वापस मुड़ गए, माही के कूल व्यवहार ने हमें काफी प्रभावित किया. उस समय हमने लगभग सभी क्रिकेटरों से मुलाकात की लेकिन माही, अमित मिश्रा और भुवनेश्वर कुमार के व्यवहार ने सबसे ज्यादा प्रभावित किया. हां सबसे ज्यादा शर्मीला कोई था तो वह था चेतेश्वर पुजारा. कुछ दिनों बाद भारतीय उच्चायोग ने क्रिकेटर्स के लिए एक रात्रि भोज रखा जिसमें मुझे भी सपरिवार निमंत्रण मिला.

वहां भी तमाम खिलाडियों से मिलने और बातचीत करने का मौका मिला. आज भी हमारे जेहन में वह मुलाकात वैसी की वैसी ही मौजूद है और रांची में एक बार फिर धवन से मुलाक़ात हुई तो मैंने उसे जोहानसबर्ग में हुई मुलाकात के बारे में याद दिलाया. हिन्दुस्तान में इन खिलाडियों से मिलना कितना मुश्किल होता है, यह सबको पता है लेकिन विदेशों में रहते हुए इनसे मिलना बेहद आसान हो जाता है. उसकी एक वजह यह भी है कि जिस पहचान की आदत इनको पड़ जाती है, वह वहां काफी कम हो जाता है.

शायद इन्हें यह खलता भी हो लेकिन हम लोगों के लिए इनको हेलो करना कत्तई कठिन नहीं होता. बहरहाल माही अभी कुछ साल तक क्रिकेट खेलेंगे और शायद उसके बाद कोचिंग भी शुरू करें लेकिन हिन्दुस्तान को दूसरा माही शायद ही मिले. माही की कमी बहुत खलेगी, बतौर खिलाड़ी भी और बतौर 'कैप्टन कूल' भी.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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