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रियो में पाया कुछ भी नहीं , खोया सबकुछ

    • धर्मेन्द्र कुमार
    • Updated: 22 अगस्त, 2016 04:57 PM
  • 22 अगस्त, 2016 04:57 PM
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17 दिनों की जी तोड़ मेहनत के बाद हाथ लगे कुल जमा 2 पदक. एक सिल्वर और एक कांस्य. इसपर भी हम गर्व से सीना चौड़ा कर सकते हैं. लेकिन ऐसा करने पर चार साल बाद एक बार फिर हमें ऐसे ही नतीजे देखने को मिलेंगे.

118 खिलाड़ी, 2 पदक

रियो ओलंपिक में भारत ने अब तक का सबसे भारी भरकम दल यानी 118 खिलाड़ियों का मजबूत दल भेजा था. इस उम्मीद से कि इसबार ओलंपिक में भारत अपने पुराने सारे रिकॉर्ड तोड़ देगा. मगर 17 दिन के बाद जब फाइनल नतीजे आए तो हाथ लगे कुल जमा 2 पदक. एक सिल्वर और एक कांस्य. इसपर भी हम गर्व से सीना चौड़ा करके घूम सकते हैं कि झोली खाली तो नहीं रही. हां ये दीगर की बात है कि इथोपिया, फिजी, प्योर्टो रिको जैसा अदना देश भी हमसे बेहतर प्रदर्शन करने में सफल रहे.

इनपर नाज तो होना ही चाहिए

पीवी सिंधू ने बैडमिंटन में सिल्वर जीता , काबिले तारीफ है.

साक्षी मलिक ने कुश्ती में कांस्य जीता इसपर हमें गर्व करना चाहिए.

दीपा कर्माकर जिम्नास्टिक में कांस्य पदक से चूकीं और वॉल्ट कैटेगरी में चौथे नंबर पर आईं, इससे हौसला जरूर बढ़ना चाहिए.

इसे भी पढ़ें: ओलंपिक में एक-दो मेडल से कब तक संतोष करता रहेगा भारत?

एथलेटिक्स में ललिता बाबर , रोइंग में दत्तू भोकनाल, गोल्फ में अदिति अशोक- इन्होंने उम्मीद से बेहतर किया और इसके लिए इन्हें दाद भी देना चाहिए मगर क्या इनसे जुड़े खेल फेडरेशन भी प्रशंसा के काबिल हैं?

नहीं .....बिल्कुल नहीं. इन लोगों को मेडल का दावेदार माना ही नहीं गया था मगर इन्होंने अपनी जबरदस्त इच्छाशक्ति के दम पर पूरी दुनिया का अपनी तरफ ध्यान खींचा.

हीरो बन गए जीरो

पोडियम पर जिनका चढ़ना करीब करीब पक्का माना जा रहा था उनकी फेहरिस्त भी देखिए-

शूटिंग- जीतू राय, अभिनव बिंद्रा, गगन नारंग

बैडमिंटन- सायना नेहवाल

टेनिस- सानिया मिर्जा और रोहन बोपन्ना की...

118 खिलाड़ी, 2 पदक

रियो ओलंपिक में भारत ने अब तक का सबसे भारी भरकम दल यानी 118 खिलाड़ियों का मजबूत दल भेजा था. इस उम्मीद से कि इसबार ओलंपिक में भारत अपने पुराने सारे रिकॉर्ड तोड़ देगा. मगर 17 दिन के बाद जब फाइनल नतीजे आए तो हाथ लगे कुल जमा 2 पदक. एक सिल्वर और एक कांस्य. इसपर भी हम गर्व से सीना चौड़ा करके घूम सकते हैं कि झोली खाली तो नहीं रही. हां ये दीगर की बात है कि इथोपिया, फिजी, प्योर्टो रिको जैसा अदना देश भी हमसे बेहतर प्रदर्शन करने में सफल रहे.

इनपर नाज तो होना ही चाहिए

पीवी सिंधू ने बैडमिंटन में सिल्वर जीता , काबिले तारीफ है.

साक्षी मलिक ने कुश्ती में कांस्य जीता इसपर हमें गर्व करना चाहिए.

दीपा कर्माकर जिम्नास्टिक में कांस्य पदक से चूकीं और वॉल्ट कैटेगरी में चौथे नंबर पर आईं, इससे हौसला जरूर बढ़ना चाहिए.

इसे भी पढ़ें: ओलंपिक में एक-दो मेडल से कब तक संतोष करता रहेगा भारत?

एथलेटिक्स में ललिता बाबर , रोइंग में दत्तू भोकनाल, गोल्फ में अदिति अशोक- इन्होंने उम्मीद से बेहतर किया और इसके लिए इन्हें दाद भी देना चाहिए मगर क्या इनसे जुड़े खेल फेडरेशन भी प्रशंसा के काबिल हैं?

नहीं .....बिल्कुल नहीं. इन लोगों को मेडल का दावेदार माना ही नहीं गया था मगर इन्होंने अपनी जबरदस्त इच्छाशक्ति के दम पर पूरी दुनिया का अपनी तरफ ध्यान खींचा.

हीरो बन गए जीरो

पोडियम पर जिनका चढ़ना करीब करीब पक्का माना जा रहा था उनकी फेहरिस्त भी देखिए-

शूटिंग- जीतू राय, अभिनव बिंद्रा, गगन नारंग

बैडमिंटन- सायना नेहवाल

टेनिस- सानिया मिर्जा और रोहन बोपन्ना की जोड़ी

तीरंदाजी- दीपिका कुमारी, बॉम्बायला देवी

कुश्ती- योगेश्वर दत्त, नरसिंह यादव

इसे भी पढ़ें: सिंधू के संघर्ष की कहानी हौंसला बढ़ाने वाली है

यानी कुछ टीम इवेंट को मिलाकर पदकों की संख्या दोहरे अंक में जाने की बड़ी उम्मीद की जा रही थी. मगर इनमें से अभिनव बिंद्रा को छोड़ कोई भी मेडल के आसपास भी फटक नहीं पाया. यानी सारे हीरो बन गए जीरो और जिनसे ज्यादा उम्मीदें नहीं थी वो मेडल जीतने में कामयाब रहे. यहां हार खिलाड़ियों की नहीं है बल्कि भारत में खेल चलाने वालों को यही नहीं पता कि वो कितने पानी में हैं?

 रियो ओलंपिक 2016 के लिए भारतीय दल

बड़े बेआबरू होकर रियो से लौटे

पहलवान नरसिंह यादव का मामला ही देख लीजिए. रियो ओलंपिक से पहले आनन फानन में ऐसे फैसले लिए गए कि रातों रात डोपिंग का मामला सुलझाकर मेडल जीतने के दावे किए जाने लगे.

मेडल जीतना तो दूर नरसिंह को वाडा ने खेलने तक नहीं दिया और उल्टे 4 साल का बैन भी लगा दिया. इस विवाद से कुश्ती में भारत को ऐसी पटखनी लगी कि सारे पहलवान चित हो गए और लाज बचा गई एक ऐसी महिला पहलवान जिसे मेडल की रेस में माना ही नहीं गया था.

यहां भी हार पहलवानों की नहीं बल्कि कुश्ती चलाने वाले आकाओं की है.

रिवर्स गियर में भारत

1952 में हुए हेलिसिंकी ओलंपिक में हमें 2 ही मेडल मिले थे. तब 64 खिलाड़ियों के दल ने 1 गोल्ड और 1 कांस्य जीता था. मगर ये देखने और सोचने की फुर्सत भला हमें है कहां? रियो में 16 दिन पसीना बहाने के बाद भारत की झोली में आए 2 मेडल. यानी एकदम से हम 64 साल पहले के प्रदर्शन स्तर पर पहुंच गए. अभी तो केन्द्र सरकार और राज्य सरकारें सिंधू और साक्षी को लाखों, करोड़ों का इनाम बांटने में लगी है. जब तक ये दौर खत्म होगा तब तक हम ये भी भूल जाएंगे. आईना देखने और दिखाने की कोशिश कौन करेगा?

 भारतीय दल के साथ पीएम मोदी की सेल्फी.

इसे भी पढ़ें: क्या सिंधू के ओलंपिक में इतिहास रचने से उनके ब्रांड वैल्यू में इजाफा होगा?

कौन लेगा जिम्मेदारी?

यहां सरकार तो हर 5 साल में बदल जाती है मगर भारत के खेल फेडरेशन में तो जैसे राजतंत्र चल रहा है. सालों से फेडरेशन की कुर्सियों पर कब्जा जमाए नेता अपना ही खेल बनाने में जुटे हैं. ज्यादा मेडल आते तो आगे कर क्रे़डिट लेने में तो ये देरी नहीं करते मगर जब इनके मोहरे पिट गए हैं तो इसकी जिम्मेदारी लेने आगे कहां आएंगे?

खेल फेडरेशन की होगी सफाई?

ओलंपिक तो 4 साल में फिर आएगा मगर क्या रियो ओलंपिक की नाकामी का ठीकरा जिम्मेदार खेल फेडरेशन पर फूटेगा? क्या सालों से फेडरेशन को अपनी दुकान समझ चला रहे नेताओं और अधिकारियों के खिलाफ जिम्मेदारी तय कर कार्रवाई होगी? अगर नहीं तो टोक्यो ओलंपिक में हाल इससे भी बुरा हुआ तो हैरान होने की जरूरत नहीं.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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