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महिला क्रिकेटर्स को पुरुष खिलाड़ियों के बराबर मैच फीस देना, एक नए युग की शुरुआत करना है

    • ज्योति गुप्ता
    • Updated: 28 अक्टूबर, 2022 12:08 AM
  • 28 अक्टूबर, 2022 12:08 AM
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बीसीसीआई (BCCI) के ऐतिहासिक फैसले के बाद अब महिला क्रिकेटर्स (Cricketers) को पुरुष खिलाड़ियों के समान ही मैच की सैलरी दी जाएगी. वरना यह बात सभी को पता है कि महिला खिलाड़ियों को वह स्टारडम कभी नहीं मिला जो पुरुष खिलाड़ियों को मिलता है.

बीसीसीआई (BCCI) ने तो आज महिला क्रिकेटर्स (Female Cricketers) का दिन ही बना दिया. असल में बीसीसीआई सचिव जय शाह (Jay Shah) ने ऐलान किया है कि, अब क्रिकेट जगत की महिला खिलाड़ियों को भी पुरुषों के बराबर मैच की फीस मिलेगी. यह खबर सुनकर कई लोगों को काफी खुशी हुई.

सच में यह एक ऐतिहासिक फैसला है. वरना यह बात सभी को पता है कि महिला खिलाड़ियों को वह स्टारडम कभी नहीं मिला जो पुरुष खिलाड़ियों को मिलता है. ना ही लोगों के अंदर महिला खिलाड़ियों को लेकर वह क्रेज रहा है जो पुरुष खिलाड़ियों के लिए होता है.

इसका सबका बड़ा उदाहरण मिताली राज हैं. जिन्हें 'लेडी सचिन तेंदुलकर' तो कहा गया, जबकि उनके लिए उनका नाम की काफी होना चाहिए. ये कौन सी बात हुई कि बेटियां कुछ अच्छा करें तो आप उन्हें गर्व से बोल दो कि, ये तो हमारा बेटा है. वैसे ही अगर महिला खिलाड़ी अच्छा खेल रही है तो उसे लेडी सचिन बना दो. अरे बेटी को बेटी ही कहो और मिताली को उसके नाम से ही बुलाओ, ना कि उसे किसी और के नाम की उपाधि दो.

अब भारत में महिला खिलाड़ियों के लिए एक नई शुरुआत होगी

ऐसे तो वह हमेशा उस नाम के नीचे ही दबी रहेगी. मिताली राज यानी महिला क्रिकेट की सचिन तेंडुलकर लेकिन क्यों? वह मिताली हैं जिन्होंने खुद क्रिकेट जगत में रिकॉर्ड बनाए हैं. वे आज की युवा महिलाओं की आदर्श हैं. उनकी पहचान किसी और के नाम से नहीं होनी चाहिए. उन्होंने अपनी इतनी जगह बना ली है कि उन्हें किसी महान खिलाड़ी का नाम देने की जरूरत ही नहीं है. लेडी सचिन नाम देने से अगर उन्हें कोई नुकसान नहीं है तो फायदा भी नहीं है.

महिला खिलड़ियों की बात कर लोग ऐसे रिएक्शन दते हैं जैसे उन्होंने एहसान कर दिया हो. लोग कहते हैं कि 21वीं सदी में पुरुषों और महिलाओं के बीच का अंतर खत्म हो गया है, लेकिन यह अंतर महिला...

बीसीसीआई (BCCI) ने तो आज महिला क्रिकेटर्स (Female Cricketers) का दिन ही बना दिया. असल में बीसीसीआई सचिव जय शाह (Jay Shah) ने ऐलान किया है कि, अब क्रिकेट जगत की महिला खिलाड़ियों को भी पुरुषों के बराबर मैच की फीस मिलेगी. यह खबर सुनकर कई लोगों को काफी खुशी हुई.

सच में यह एक ऐतिहासिक फैसला है. वरना यह बात सभी को पता है कि महिला खिलाड़ियों को वह स्टारडम कभी नहीं मिला जो पुरुष खिलाड़ियों को मिलता है. ना ही लोगों के अंदर महिला खिलाड़ियों को लेकर वह क्रेज रहा है जो पुरुष खिलाड़ियों के लिए होता है.

इसका सबका बड़ा उदाहरण मिताली राज हैं. जिन्हें 'लेडी सचिन तेंदुलकर' तो कहा गया, जबकि उनके लिए उनका नाम की काफी होना चाहिए. ये कौन सी बात हुई कि बेटियां कुछ अच्छा करें तो आप उन्हें गर्व से बोल दो कि, ये तो हमारा बेटा है. वैसे ही अगर महिला खिलाड़ी अच्छा खेल रही है तो उसे लेडी सचिन बना दो. अरे बेटी को बेटी ही कहो और मिताली को उसके नाम से ही बुलाओ, ना कि उसे किसी और के नाम की उपाधि दो.

अब भारत में महिला खिलाड़ियों के लिए एक नई शुरुआत होगी

ऐसे तो वह हमेशा उस नाम के नीचे ही दबी रहेगी. मिताली राज यानी महिला क्रिकेट की सचिन तेंडुलकर लेकिन क्यों? वह मिताली हैं जिन्होंने खुद क्रिकेट जगत में रिकॉर्ड बनाए हैं. वे आज की युवा महिलाओं की आदर्श हैं. उनकी पहचान किसी और के नाम से नहीं होनी चाहिए. उन्होंने अपनी इतनी जगह बना ली है कि उन्हें किसी महान खिलाड़ी का नाम देने की जरूरत ही नहीं है. लेडी सचिन नाम देने से अगर उन्हें कोई नुकसान नहीं है तो फायदा भी नहीं है.

महिला खिलड़ियों की बात कर लोग ऐसे रिएक्शन दते हैं जैसे उन्होंने एहसान कर दिया हो. लोग कहते हैं कि 21वीं सदी में पुरुषों और महिलाओं के बीच का अंतर खत्म हो गया है, लेकिन यह अंतर महिला और पुरुष क्रिकेट जगत में हम सरेआम देखा सकता है. दोनों के खेल के तरीके में ही अंतर है तो बाकी का तो छोड़ ही दीजिए.

सैलरी में कितना अंतर था-

साल 2021 में tv9 में छपी एक रीपोर्ट के अनुसार, पुरुष और महिला खिलाड़ियों की सैलरी में जमीन-आसमान का अंतर होता है. भारतीय महिला टीम की कप्तान मिताली राज को बीसीसीआई ने बी ग्रेड लिस्ट में रखा था. उस वक्त मिताली का सालाना इनकम 30 लाख रुपये थी, जबकि पुरुष टीम के कप्तान विराट कोहली A+ ग्रेड में थे और उनकी एक साल की सैलरी 7 करोड़ रुपए थी. इस रिपोर्ट के अनुसार तो विराट को मिताली से 23 गुना से ज्यादा सैलरी मिलती थी. सबसे बड़ा अंतर तो यही हैं. इसी तरह पुरुष खिलाड़ियों की तुलना में महिला खिलाड़ियों का इंक्रीमेंट भी कम होने की बातें भी सामने आई हैं.

इस हिसाब से अब भारत में महिला खिलाड़ियों के लिए एक नई शुरुआत होगी, जिसे पूरी दुनिया देखेगी और अपनाएगी. सोचिए जिन खिलाड़ियों ने फीस में भेदभाव का सामना किया होगा वे आज कितना खुश होंगी. हो सकता है कि वे अपने समय को याद कर भावुक भी हो रही होंगी.

सच में इस फैसले का दिल खोलकर स्वागत किया जाना चाहिए, क्योंकि इसकी बदौलत हम अपने देश में महिला क्रिकेट के लिए एक नए युग की शुरुआत कर रहे हैं. इस फैसले के बाद लोग अपनी बेटियों को क्रिकेट जगत में भेजने का मन बनाएंगे. समाज में बराबरी देख, शायद अब लोगों को बेटियां बोझ न लगें. यह सिर्फ एक फैसला नहीं है बल्कि एक एहसास है जिसे आज हर देशवासी महसूस कर रहा है. इसे कहते हैं सही मायने में जेंडर इक्वलिटी...

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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