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फिर से गुलज़ार हो रहा है धरती का स्वर्ग

    • अभिनव राजवंश
    • Updated: 17 जनवरी, 2017 02:45 PM
  • 17 जनवरी, 2017 02:45 PM
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गुलमर्ग में फिलहाल प्रतिदिन 1000 लोग आ रहे हैं. पिछले 6 सालों से तुलना करें तो इस साल घाटी में बर्फबारी भी अच्छी हुई है. बुरहान वानी के बाद जो भी आतंकी घटनाएं हुई हैं उनपर अब विराम लग गया है. अब घाटी एक बार फिर आबाद हो रही है.

"गर फिरदौस बर रूये ज़मी अस्त/ हमी अस्तो हमी अस्तो हमी अस्त" कश्मीर के बारे में किसी शायर ने ये बातें सही ही कही हैं कि धरती पर अगर कहीं स्वर्ग है, तो यहीं है, यहीं है, यही हैं. मगर पिछले कुछ समय से धरती के इस स्वर्ग को किसी की नज़र लग गयी थी, कश्मीर लगातार गलत कारणों से चर्चा में था. पिछले साल जुलाई के महीने में आतंकी बुरहान वानी के मारे जाने के बाद से कश्मीर से आये दिन हिंसा की ख़बरें आम हो गयी थीं, इन सब का असर कश्मीर में आने वाले सैलानियों की घटती हुई संख्या में दिखा. जो कश्मीर कभी सैलानियों का पसंदीदा स्थल हुआ करता था, वहां पर्यटन उद्योग भारी घाटे में चला गया. 2016 में कश्मीर में आने वाले सैलानियों की संख्या घट कर 4,03,442 हो गयी जो साल 2015 की तुलना में 55% कम है.

मगर साल 2017 कश्मीर के लिए बेहतर खबर लेकर आया, जहाँ कश्मीर की घाटी शांत हुई तो वही प्रकृति ने भी वापस से कश्मीर को उसकी खूबसूरती प्रदान कर दी. जहाँ पिछले कुछ सालों से घाटी में कम बर्फ़बारी देखने को मिल रही थी तो वहीं इस साल की शुरुआत से ही अच्छी बर्फ़बारी देखने को मिली. कश्मीर की घाटियों में छह साल बाद इतनी अच्छी बर्फ़बारी हुई है. बर्फ़बारी का असर ये हो रहा है कि सैलानियों ने वापस से कश्मीर की तरफ रूख करना शुरू कर दिया है.

 कश्मीर के पिछले साल के घाटे को काफी हद तक इस साल आने वाले सैलानी पूरा कर देंगे

पिछले साल सैलानियों के लिए तरस रही कश्मीर की घाटी इस साल सैलानियों से गुलज़ार है. सैलानियों की पसंदीदा जगहों में से एक गुलमर्ग में सैलानियों का हुजूम देख प्रशासनिक महकमा भी गदगद है. प्रशासनिक आंकड़ों के अनुसार बर्फ़बारी के बाद से गुलमर्ग में प्रतिदिन 1000 से...

"गर फिरदौस बर रूये ज़मी अस्त/ हमी अस्तो हमी अस्तो हमी अस्त" कश्मीर के बारे में किसी शायर ने ये बातें सही ही कही हैं कि धरती पर अगर कहीं स्वर्ग है, तो यहीं है, यहीं है, यही हैं. मगर पिछले कुछ समय से धरती के इस स्वर्ग को किसी की नज़र लग गयी थी, कश्मीर लगातार गलत कारणों से चर्चा में था. पिछले साल जुलाई के महीने में आतंकी बुरहान वानी के मारे जाने के बाद से कश्मीर से आये दिन हिंसा की ख़बरें आम हो गयी थीं, इन सब का असर कश्मीर में आने वाले सैलानियों की घटती हुई संख्या में दिखा. जो कश्मीर कभी सैलानियों का पसंदीदा स्थल हुआ करता था, वहां पर्यटन उद्योग भारी घाटे में चला गया. 2016 में कश्मीर में आने वाले सैलानियों की संख्या घट कर 4,03,442 हो गयी जो साल 2015 की तुलना में 55% कम है.

मगर साल 2017 कश्मीर के लिए बेहतर खबर लेकर आया, जहाँ कश्मीर की घाटी शांत हुई तो वही प्रकृति ने भी वापस से कश्मीर को उसकी खूबसूरती प्रदान कर दी. जहाँ पिछले कुछ सालों से घाटी में कम बर्फ़बारी देखने को मिल रही थी तो वहीं इस साल की शुरुआत से ही अच्छी बर्फ़बारी देखने को मिली. कश्मीर की घाटियों में छह साल बाद इतनी अच्छी बर्फ़बारी हुई है. बर्फ़बारी का असर ये हो रहा है कि सैलानियों ने वापस से कश्मीर की तरफ रूख करना शुरू कर दिया है.

 कश्मीर के पिछले साल के घाटे को काफी हद तक इस साल आने वाले सैलानी पूरा कर देंगे

पिछले साल सैलानियों के लिए तरस रही कश्मीर की घाटी इस साल सैलानियों से गुलज़ार है. सैलानियों की पसंदीदा जगहों में से एक गुलमर्ग में सैलानियों का हुजूम देख प्रशासनिक महकमा भी गदगद है. प्रशासनिक आंकड़ों के अनुसार बर्फ़बारी के बाद से गुलमर्ग में प्रतिदिन 1000 से ज्यादा सैलानी आ रहे हैं. सैलानियों की संख्या में भारी इजाफे के बाद अब प्रशासन सैलानियों के लिए 'स्नो कार्निवाल' आयोजित करने जा रहा है, जिसमे आइस हॉकी, स्नो बोर्डिंग, स्नो स्लेड्जिंग, स्नोबॉल फाइट जैसे आयोजन किये जायेंगे.

ये भी पढ़ें-कश्‍मीरी युवाओं की उम्‍मीदों को पटखनी दे दी है जाइरा ने

छह साल बाद अपने पूरे शबाब पर लौटी बर्फ़बारी से कारोबार से जुड़े लोगों के भी चेहरे खिल गए हैं और उन्हें उम्मीद है कि पर्यटकों की गहमागहमी गर्मियों में तनाव के दौरान अर्थव्यवस्था को हजारों करोड़ के हुए नुकसान की कुछ हद तक भरपाई करने में सफल होगी. कश्मीर घाटी में सैलानियों का आगमन कई मायनो में बेहद खास है, जहाँ इससे कश्मीर के कारोबारियों को एक नयी संजीवनी मिलेगी तो वहीं कश्मीर की अर्थव्यवस्था के लिए भी यह काफी अहम होगा. कश्मीर का गुलज़ार होना यहाँ पनपे चरमपंथी गुटों के हौसले भी पस्त करेगा और साथ ही कश्मीरी युवाओं को भी रोजगार के कई अवसर प्रदान करेगा. ऐसे में उम्मीद यही है कि धरती की इस जन्नत पर प्रकृति इसी तरह मेहरबान रहे ताकि हम भारतियों को बर्फ का दीदार करने विदेश न जाना पड़े. 

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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