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World Sparrow Day : क्या तुम दोबारा मेरे जीवन में आ सकती हो

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 20 मार्च, 2018 10:22 PM
  • 20 मार्च, 2018 10:22 PM
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तकनीक के बढ़ते प्रयोग के कारण हमने गौरैया को आज अपने जीवन से अलग कर दिया है.गौरैया को एक खुला खत ये बताने के लिए कि कैसे उसके बिना बचपन और उस बचपन से जुड़ी यादें सूनी हैं.

प्यारी गौरैया

आज का दिन तुम्हारे नाम है. मुझे आज भी अच्छे से याद है वो बचपन के दिन, जब तुम कभी मेरे छज्जे के पास या फिर बालकनी के सामने वाले हाते पर नज़र आती थीं. आह क्या दिन थे वो. कितनी अच्छी लगती थीं मुझे तुम. मुझे आज भी अच्छे से याद है कि कैसे मैं मारे खुशी के ताली बजाता था जब मैं तुम्हें आंगन के दाएं छोर पर लगे उस आम के पेड़ पर फुदकते देखता था. यकीन करो मेरा, उस वक़्त तो मेरी खुशी का ठिकाना नहीं होता था जब मैं तुम्हें पानी के उस टब में अटखेलियां कर अपने पंख सुखाते हुए देखता था. उन क्षणों में मैं, मन्त्र मुग्ध सा तुम्हें देखता बस देखता जाता था.

अगर आज हमारे परिवेश से पक्षी गायब हैं तो कहीं न कहीं इसके जिम्मेदार हम खुद हैं

तब की उन बातों में और आज में बहुत फर्क है. अब तुम मुझे नहीं दिखती हो. मैं तुम्हें खोजता हूं और खाली हाथ लौट आता हूं. आज भी जब मैं घर की दालानों, दहलीजों को देखता हूं और वहां तुम्हें नहीं पाता हूं तो जो दुःख मुझे होता है तुम शायद ही कभी उसका अंदाजा लगा सको. बेबसी के उस आलम में मेरे दिमाग में कुछ उल्टे सीधे प्रश्न आते हैं. मैं खुद से सवाल करता हूं, खुद को ही जवाब देता हूं. मैं अपने आप को ये कहकर दिलासा देता हूं कि शायद मेरी गौरैया अब मुझसे रूठ गयी है.

हां गौरैया, बहुत ध्यान से सुनो, मैं आज फिर तुमसे मिलना और तुम्हें मानना चाहता हूं मगर तुम हो कि मुझसे मिलने को तैयार ही नहीं हो. कहीं ऐसा तो नहीं कि अब तुम खुद भी मेरे पास नहीं आना चाहती हो. अभी मुझे अचानक ही वो पल याद आ गया. जब एक बार खेलते हुए तुम मेरे पास आई थीं और कहा था कि अगर मैं तुमसे अपनी दोस्ती बरकरार रखना चाहता हूं तो मुझे अपने पास से उस मोबाइल को अलग कर देना चाहिए जिसको तुमने अपनी जान का दुश्मन बताया था. 

प्यारी गौरैया

आज का दिन तुम्हारे नाम है. मुझे आज भी अच्छे से याद है वो बचपन के दिन, जब तुम कभी मेरे छज्जे के पास या फिर बालकनी के सामने वाले हाते पर नज़र आती थीं. आह क्या दिन थे वो. कितनी अच्छी लगती थीं मुझे तुम. मुझे आज भी अच्छे से याद है कि कैसे मैं मारे खुशी के ताली बजाता था जब मैं तुम्हें आंगन के दाएं छोर पर लगे उस आम के पेड़ पर फुदकते देखता था. यकीन करो मेरा, उस वक़्त तो मेरी खुशी का ठिकाना नहीं होता था जब मैं तुम्हें पानी के उस टब में अटखेलियां कर अपने पंख सुखाते हुए देखता था. उन क्षणों में मैं, मन्त्र मुग्ध सा तुम्हें देखता बस देखता जाता था.

अगर आज हमारे परिवेश से पक्षी गायब हैं तो कहीं न कहीं इसके जिम्मेदार हम खुद हैं

तब की उन बातों में और आज में बहुत फर्क है. अब तुम मुझे नहीं दिखती हो. मैं तुम्हें खोजता हूं और खाली हाथ लौट आता हूं. आज भी जब मैं घर की दालानों, दहलीजों को देखता हूं और वहां तुम्हें नहीं पाता हूं तो जो दुःख मुझे होता है तुम शायद ही कभी उसका अंदाजा लगा सको. बेबसी के उस आलम में मेरे दिमाग में कुछ उल्टे सीधे प्रश्न आते हैं. मैं खुद से सवाल करता हूं, खुद को ही जवाब देता हूं. मैं अपने आप को ये कहकर दिलासा देता हूं कि शायद मेरी गौरैया अब मुझसे रूठ गयी है.

हां गौरैया, बहुत ध्यान से सुनो, मैं आज फिर तुमसे मिलना और तुम्हें मानना चाहता हूं मगर तुम हो कि मुझसे मिलने को तैयार ही नहीं हो. कहीं ऐसा तो नहीं कि अब तुम खुद भी मेरे पास नहीं आना चाहती हो. अभी मुझे अचानक ही वो पल याद आ गया. जब एक बार खेलते हुए तुम मेरे पास आई थीं और कहा था कि अगर मैं तुमसे अपनी दोस्ती बरकरार रखना चाहता हूं तो मुझे अपने पास से उस मोबाइल को अलग कर देना चाहिए जिसको तुमने अपनी जान का दुश्मन बताया था. 

ये पर्यावरण के प्रति हमारा लचर रवैया ही है जिसके चलते गौरैया हमारे पास से नदारद है

गौरैया तब मैं शायद नादान था. मुझे तुम्हारी बात समझ में नहीं आई थी. आज मुझे इस बात का एहसास हो गया है कि सच में ये मोबाइल तुमको अच्छा नहीं लगता और जो आज तुम मुझसे दूर हुई हो ये सब इसी मोबाइल और उससे निकली तरंगों के कारण हुआ है. ये कितना दुर्भाग्यपूर्ण है कि तब मैंने तुमपर हंसते हुए तुम्हारी कही बात को अनसुना कर दिया था. तब शायद मुझे ये लगा था कि तुम यूं ही बेवजह इमोशनल हो रही हो. लेकिन जब आज मैं उन बातों को सोचता हूं तो पाता हूं कि तुम्हरी और मेरी जुदाई का कारण मेरा ये टेक्नोलॉजी का गुलाम होना है.

आज तुम मेरे पास से जा चुकी हो और मुझे ये भी यक़ीन है कि तुम जहां कहीं भी होगी मेरी और टेक्नोलॉजी दोनों की सलामती की दुआएं कर रही होगी. आज फिर, हर बार कि तरह मैंने तुम्हें खोजने की नाकाम कोशिश की और खाली हाथ लौट आया. आज फिर न जाने क्यों मैं तुम्हें, तुम्हारे घोंसले, तुम्हारे अण्डों को मिस कर रहा हूं और शायद मिस कर रहा हूं अपने "बचपन" को. वो बचपन जब मैं तुम्हें देखकर फूला नहीं समाता था. मारे ख़ुशी के ताली बजाता था. तुम्हें पकड़ने के लिए दौड़ता और तुम फुर्र से उड़ जाया करती और मैं बस देखता रह जाता था.

गौरैया

आई मिस यूप्लीज मेरी जिंदगी में वापस लौट आओ

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सुन लीजिए, गौरैया की बात वरना सिर्फ गूगल पर पढ़िएगा..


इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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