• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
समाज

भारत दान-पुण्य के मामले में पड़ोसियों से पीछे है, लेकिन इस स्‍टडी में एक झोल है

    • आईचौक
    • Updated: 19 नवम्बर, 2019 04:13 PM
  • 19 नवम्बर, 2019 04:13 PM
offline
दसवीं वर्ल्ड गिविंग इंडेक्स (WGI) के मुताबिक पिछले दस साल के आंकड़े बताते हैं कि दूसरों की मदद करने के मामले में भारतीय पड़ोसी देशों से पीछे हैं. जी हां, पाकिस्तान से भी.

नेकी कर दरिया में डाल...ये कहावत हम सभी ने सुनी है और हम में से बहुत से लोग इसपर अमल भी करते हैं. यानी कोई अच्छा काम करने के बाद या किसी की मदद करने के बाद उसका ढिंढोरा नहीं पीटते. लेकिन हम भारतीयों की इस सोच की वजह से भारत को कम परोपकारी समझा जा रहा है.

हाल ही में एक सर्वे रिपोर्ट प्रकाशित की गई जिसके आंकड़ों ने ये साबित किया है कि परोपकार के मामले में भारतीय पड़ोसी देशों से पीछे हैं. जी हां, पाकिस्तान से भी. दसवीं वर्ल्ड गिविंग इंडेक्स (WGI) के मुताबिक पिछले दस साल के आंकड़े बताते हैं कि दूसरों की मदद करने के मामले में भारत दुनियाभर के 128 देशों की लिस्ट में 82वें स्थान पर है. रिपोर्ट इंडेक्स के तीन मानकों- अजनबी की मदद करने, धन दान करने और स्वयं सेवा करने पर आधारित है. पिछले 9 साल (2009-2018) में 128 देशों के 13 लाख लोगों का सर्वे करने के बाद ये रिपोर्ट प्रकाशित की गई.

दूसरों की मदद करने के मामले में भारत दुनियाभर के 128 देशों की लिस्ट में 82वें स्थान पर है

रिपोर्ट में पाया गया कि एक तिहाई भारतीयों ने किसी अजनबी की मदद की. चार में से एक ने पैसे दान किए और पांच में से एक ने अपना समय दूसरों की मदद में लगाया. भारत का डब्ल्यूजीआई स्कोर 26% है जो अमेरिका के 58% के आधे से भी कम है. इस लिस्ट में अमेरिका सबसे ऊपर है जबकि चीन, 16% के स्कोर के साथ, इंडेक्स में सबसे नीचे है.

कुछ देशों ने अपनी रैंकिंग में सुधार किया है जिसमें इंडोनेशिया भी है. पैसे दान करने और स्वयं सेवा के मामलों में इंडोनेशिया, शुरु के 10 देशों की लिस्ट में शामिल हो गया है. स्वयं सेवा के पैमाने पर श्रीलंका ने दुनिया में सबसे ज़्यादा स्कोर (46%) हासिल किया है और भारत 19%पर है.

रैंकिंग में बढ़ोत्तरी के पीछे सांस्कृतिक कारण बताए गए...

नेकी कर दरिया में डाल...ये कहावत हम सभी ने सुनी है और हम में से बहुत से लोग इसपर अमल भी करते हैं. यानी कोई अच्छा काम करने के बाद या किसी की मदद करने के बाद उसका ढिंढोरा नहीं पीटते. लेकिन हम भारतीयों की इस सोच की वजह से भारत को कम परोपकारी समझा जा रहा है.

हाल ही में एक सर्वे रिपोर्ट प्रकाशित की गई जिसके आंकड़ों ने ये साबित किया है कि परोपकार के मामले में भारतीय पड़ोसी देशों से पीछे हैं. जी हां, पाकिस्तान से भी. दसवीं वर्ल्ड गिविंग इंडेक्स (WGI) के मुताबिक पिछले दस साल के आंकड़े बताते हैं कि दूसरों की मदद करने के मामले में भारत दुनियाभर के 128 देशों की लिस्ट में 82वें स्थान पर है. रिपोर्ट इंडेक्स के तीन मानकों- अजनबी की मदद करने, धन दान करने और स्वयं सेवा करने पर आधारित है. पिछले 9 साल (2009-2018) में 128 देशों के 13 लाख लोगों का सर्वे करने के बाद ये रिपोर्ट प्रकाशित की गई.

दूसरों की मदद करने के मामले में भारत दुनियाभर के 128 देशों की लिस्ट में 82वें स्थान पर है

रिपोर्ट में पाया गया कि एक तिहाई भारतीयों ने किसी अजनबी की मदद की. चार में से एक ने पैसे दान किए और पांच में से एक ने अपना समय दूसरों की मदद में लगाया. भारत का डब्ल्यूजीआई स्कोर 26% है जो अमेरिका के 58% के आधे से भी कम है. इस लिस्ट में अमेरिका सबसे ऊपर है जबकि चीन, 16% के स्कोर के साथ, इंडेक्स में सबसे नीचे है.

कुछ देशों ने अपनी रैंकिंग में सुधार किया है जिसमें इंडोनेशिया भी है. पैसे दान करने और स्वयं सेवा के मामलों में इंडोनेशिया, शुरु के 10 देशों की लिस्ट में शामिल हो गया है. स्वयं सेवा के पैमाने पर श्रीलंका ने दुनिया में सबसे ज़्यादा स्कोर (46%) हासिल किया है और भारत 19%पर है.

रैंकिंग में बढ़ोत्तरी के पीछे सांस्कृतिक कारण बताए गए हैं. जैसे म्यांमार में ज़्यादातर लोग बौद्ध धर्म को मानने वाले हैं, जिनमें से 99% लोग थेरावादा शाखा के अनुयायी हैं जिसका मुख्य संदेश ही दान करना है. श्रीलंका में भी थेरावादा बौद्धों की आबादी काफी ज्यादा है. उसी तरह से दुनिया में मुसलमानों की सबसे ज्यादा आबादी वाले देश इंडोनेशिया में दान या ज़कात को सबसे अहम समझा जाता है. और यही वजह है कि पाकिस्तान मुस्लिम देश होने की वजह से भारत से भी ऊपर है.

भारत में गुप्त दान को ही सर्वोत्तम माना गया है

लेकिन इसका मतलब ये जरा भी नहीं कि भारत में दान-धर्म कम होता है. दान और नेकी के बारे में हमारे शास्त्रों में ही लिखा हुआ है कि एक हाथ से किए गए दान का पता दूसरे हाथ को भी नहीं लगना चाहिए. गुप्त दान पर ही जोर दिया जाता है. क्योंकि दान को पुण्य का काम कहा जाता है. मंदिरों के दान पात्र में आप कितने रुपए डालते हैं वो सिर्फ आपको ही पता होता है.  

भारत में दान पुण्य का कोई एक तरीका है ही नहीं. हमारे रीति रिवाज, तीज त्योहार, जीवन से जुड़ी महत्वपूर्ण तिथियों पर धार्मिक दान को परंपरा के तौर पर निभाया जाता है. सिर्फ हिंदू नहीं बल्कि हर धर्म में दान का महत्व है. दान लोगों के धर्म से जुड़ा है जिसका हिसाब लोग नहीं लिखते. मंदिर के बाहर बैठे भिखारियों को खाना खिलाना हो या उन्हें रुपए कपड़े देना, ब्राह्मणों को भोजन खिलाना हो या फिर किसी अनाथालय में बच्चों को मिठाई बांटना. भारत में जो कोई भी इस तरह का दान करता है वो मन से जुड़ा होता है धन से नहीं. इसके साथ ही हिंदू रीति रिवाजों में तो चाहे जन्म हो या फिर ब्याह या मृत्यु, हर अवसर पर दान धर्म का विशेष महत्व होता है. और लोग अपनी खुशी और सामर्थ्य से दान पुण्य करते हैं. भारत में हर सिगनल पर मांगने वाले जरूर मिलते हैं क्या उन्हें दी गई भीख को हिसाब रखा जाता है. सबसे बड़ी बात तो ये कि लोग अपना कर्तव्य समझकर ये सब करते हैं. और इसलिए इस रिपोर्ट पर भरोसा नहीं किया जा सकता.

बहुत से दान कर्म का हिसाब नहीं रखा जा सकता

एक-दूसरे की मदद करना, दान पुण्य करना भारत की परंपरा है. सीएएफ़ ग्लोबल अलायंस की भारत पर आधारित इंडिया गिविंग रिपोर्ट के  मुताबिक, 64% भारतीय ज़रूरतमंद लोगों और परिवारों को, या धार्मिक संगठनों को सीधे पैसा देते हैं. गैर-लाभकारी या धर्मार्थ संगठनों को देने वाले 58% थे.

ये बात खुद रिपोर्ट में भी कही गई है कि भारत की कम रैंकिंग परिवार, समुदाय और धार्मिक कामों में अनौपचारिक रूप से दी गई मदद की वजह से ही है. और ये सलाह भी दी गई है कि परोपकार या दान करने के लिए और ज्यादा औपचारिक तरीके अपनाए जाएं. भारत में भी बहुत चैरिटी काम करती हैं, लेकिन हर कोई संस्थाओं और NGO में डोनेशन नहीं दिया करता. भारतीयों का अपना तरीका है और वो अपनी परंपराओं के साथ ही खुश हैं. उन्हें दुनिया की वर्ल्ड गिविंग इंडेक्स में नाम करने के लिए खुद के संस्कारों के साथ समझौता नहीं करना. हम भारतीय अगर 82वें स्थान पर हैं तो ऐसे ही संतुष्ट हैं.

ये भी पढ़ें-

JN protest: फीस वृद्धि के नाम पर बवाल काट रहे स्टूडेंट्स क्‍यों भर्त्सना के पात्र हैं

सबरीमाला के लिए बीजेपी के आंदोलन में अयोध्‍या की झलक

यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ के लिए बेहतर है राम मंदिर निर्माण की जिम्‍मेदारी निभाना!

 


इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    आम आदमी क्लीनिक: मेडिकल टेस्ट से लेकर जरूरी दवाएं, सबकुछ फ्री, गांवों पर खास फोकस
  • offline
    पंजाब में आम आदमी क्लीनिक: 2 करोड़ लोग उठा चुके मुफ्त स्वास्थ्य सुविधा का फायदा
  • offline
    CM भगवंत मान की SSF ने सड़क हादसों में ला दी 45 फीसदी की कमी
  • offline
    CM भगवंत मान की पहल पर 35 साल बाद इस गांव में पहुंचा नहर का पानी, झूम उठे किसान
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲