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बर्लिन के मुसलमानों ने लिबरल मस्जिद बनाकर खतरा मोल ले लिया है

    • आईचौक
    • Updated: 18 जून, 2017 02:55 PM
  • 18 जून, 2017 02:55 PM
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जर्मनी के बर्लिन में एक ऐसी मस्जिद का निर्माण हो चुका है जिसमें इबादत के लिए 'मर्द' होने की शर्त को खारिज कर दिया गया है और जिसके मद्देनजर यहां इबादत करने स्त्री से लेकर पुरुष तक कोई भी आ सकता है.

एक बेहतर समाज का निर्माण तब ही संभव है जब उसमें रहने वाले लोग बराबर हों और साथ ही रूढ़ियों, पाखंड और आडम्बरों को तोड़ कर आगे बढ़ें. आज हम इस लेख के जरिये आपको एक ऐसी खबर से अवगत करा रहे हैं जिसने न सिर्फ रूढ़ियों और बरसों से चली आ रही परंपरा को तोड़ा है बल्कि एक ऐसी पहल करी है जो समाज में एक बहुत बड़े बदलाव की सूचक है.

खबर है कि जर्मनी में एक ऐसी मस्जिद का निर्माण हुआ है जो हर एक तरह से 'लिबरल' है. मस्जिद का नाम इब्न रुश्द गोएथे मस्जिद है जो एक ऐसी मस्जिद जहां समलैंगिक, लेस्बियन, ट्रांसजेंडर, बाईसेक्सुअल, स्त्री, पुरुष कुल मिलकर जिसका भी मन हो वो नमाज अदा करने आ सकता है.

बात अगर इस मस्जिद की खासियतों पर हो तो जो बात इस मस्जिद को लेकर लोगों को आश्चर्य में डालेगी वो ये कि इस मस्जिद का इमाम कोई पुरुष नहीं बल्कि एक महिला है. मस्जिद के बारे में एक अन्य दिलचस्प बात ये भी है कि चूंकि ये मस्जिद कुछ ज्यादा ही लिबरल है अतः किसी भी तरह की अप्रिय घटना से निपटने के लिए मस्जिद को पुलिस प्रोटेक्शन मिला है. जाहिर है ये खतरा जेहादियों से ही है.

बर्लिन की इस मस्जिद की इमाम एक महिला है. 

जी हां बिल्कुल सही सुना आपने, जर्मनी के बर्लिन में एक ऐसी मस्जिद का निर्माण हो चुका है जिसमें इबादत के लिए 'मर्द' होने की शर्त को खारिज कर दिया गया है और जिसके मद्देनजर यहां इबादत करने कोई भी आ सकता है. ज्ञात हो कि अब तक हमने प्रायः ऐसी ही मस्जिदें देखी हैं जिनमें महिलाओं का प्रवेश वर्जित होता था और उनमें पुरुष ही इबादत करते थे.

गौरतलब है कि सम्पूर्ण विश्व ये मानता है कि इस्लाम का शुमार उन धर्मों में है जिसमें आज भी तमाम तरह की आदिम रूढ़ियां हैं और साथ ही इसमें सुधार की तमाम तरह की संभावनाएं हैं. लोगों का मत है कि इस धर्म का सुधार तब तक नहीं हो...

एक बेहतर समाज का निर्माण तब ही संभव है जब उसमें रहने वाले लोग बराबर हों और साथ ही रूढ़ियों, पाखंड और आडम्बरों को तोड़ कर आगे बढ़ें. आज हम इस लेख के जरिये आपको एक ऐसी खबर से अवगत करा रहे हैं जिसने न सिर्फ रूढ़ियों और बरसों से चली आ रही परंपरा को तोड़ा है बल्कि एक ऐसी पहल करी है जो समाज में एक बहुत बड़े बदलाव की सूचक है.

खबर है कि जर्मनी में एक ऐसी मस्जिद का निर्माण हुआ है जो हर एक तरह से 'लिबरल' है. मस्जिद का नाम इब्न रुश्द गोएथे मस्जिद है जो एक ऐसी मस्जिद जहां समलैंगिक, लेस्बियन, ट्रांसजेंडर, बाईसेक्सुअल, स्त्री, पुरुष कुल मिलकर जिसका भी मन हो वो नमाज अदा करने आ सकता है.

बात अगर इस मस्जिद की खासियतों पर हो तो जो बात इस मस्जिद को लेकर लोगों को आश्चर्य में डालेगी वो ये कि इस मस्जिद का इमाम कोई पुरुष नहीं बल्कि एक महिला है. मस्जिद के बारे में एक अन्य दिलचस्प बात ये भी है कि चूंकि ये मस्जिद कुछ ज्यादा ही लिबरल है अतः किसी भी तरह की अप्रिय घटना से निपटने के लिए मस्जिद को पुलिस प्रोटेक्शन मिला है. जाहिर है ये खतरा जेहादियों से ही है.

बर्लिन की इस मस्जिद की इमाम एक महिला है. 

जी हां बिल्कुल सही सुना आपने, जर्मनी के बर्लिन में एक ऐसी मस्जिद का निर्माण हो चुका है जिसमें इबादत के लिए 'मर्द' होने की शर्त को खारिज कर दिया गया है और जिसके मद्देनजर यहां इबादत करने कोई भी आ सकता है. ज्ञात हो कि अब तक हमने प्रायः ऐसी ही मस्जिदें देखी हैं जिनमें महिलाओं का प्रवेश वर्जित होता था और उनमें पुरुष ही इबादत करते थे.

गौरतलब है कि सम्पूर्ण विश्व ये मानता है कि इस्लाम का शुमार उन धर्मों में है जिसमें आज भी तमाम तरह की आदिम रूढ़ियां हैं और साथ ही इसमें सुधार की तमाम तरह की संभावनाएं हैं. लोगों का मत है कि इस धर्म का सुधार तब तक नहीं हो सकता जब तक इस धर्म से जुड़े लोग खुद अपनी मानसिकता बदलने का प्रयास नहीं करते.

मस्जिद की खास बात ये है कि यहां कोई भी आ सकता हैकहा जा सकता है कि धार्मिक स्वतंत्रता के उद्देश्य से निर्मित इस मस्जिद की खास बात ये भी है कि इसके जरिये बताने का प्रयास किया जा रहा है कि धर्म चाहे कोई भी हो वो तभी आगे बढ़ सकता है जब उसके अन्दर रह रहे तमाम लोगों को समानता के अधिकार मिलें.

बहरहाल इस लिबरल मस्जिद को देखकर यही कहा जा सकता है कि तमाम मुस्लिम देशों के अलावा अन्य देशों में रह रहे मुस्लिम लोगों को भी इस मस्जिद से प्रेरणा लेनी चाहिए और अपने यहां इस तरह की मस्जिदों के निर्माण को बढ़ावा देना चाहिए.

ज्ञात हो कि अब तक तमाम मुस्लिम धर्म गुरुओं द्वारा प्राचीन इस्लाम के बारे में लोगों को बताया जा रहा था. कहा जा सकता है कि यदि मुस्लिम धर्मगुरु धर्म में कुछ सुधार करते हुए उसमें कुछ नई बातें जोड़ें तो निश्चित तौर पर इस्लाम और मुस्लिम समुदाय को लेकर लोगों के मन में बसी छवि बदलेगी.       

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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