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पर्यावरण के साथ छलावा है पर्यावरण दिवस का एकदिवसीय दिखावा हो जाना

    • सर्वेश त्रिपाठी
    • Updated: 05 जून, 2021 06:52 PM
  • 05 जून, 2021 06:39 PM
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5 जून यानी विश्व पर्यावरण दिवस एक शोशेबाजी से ज्यादा कुछ नहीं है. मतलब एक पेड़ अपनी बालकनी, लॉन, गमले में या कहीं पर लगाओ उसके साथ अपनी फोटू उतारो और फेसबुक पर चेप कर एकदिवसीय पर्यावरण प्रेमी बन जाओ.

आज 5 जून है. दो जून की रोटी खाकर आज लोगबाग विश्व पर्यावरण दिवस मनाते हैं. यानि पर्यावरण की एक दिवसीय चिंता की औपचारिकता आज ही के दिन की जाती है. ये एक दिन वाली औपचारिकता जब से सोशल मीडिया का प्रसार हुआ है तब से कुछ ज्यादा ही हो गया है. चॉकलेट डे, टॉफी डे के तरह हमारे जीवन और अस्तित्व से गहरे सरोकार रखने वाले दिनों को हम अब बस ऐं - वें ही लेने लगे. यानि गंभीरता की जगह शोशेबाजी आ गई. जो नाटक पहले सरकारी और प्रशासनिक स्तर पर होता था उसे अब हमें भी करने में मजा आने लगा है. मतलब एक पेड़ अपनी बालकनी, लॉन, गमले में या कहीं पर लगाओ उसके साथ अपनी फोटू उतारो और फेसबुक पर चेप कर एकदिवसीय पर्यावरण प्रेमी बन जाओ. हम भी तो वही कर रहे जो प्रशासन कागजों और फाइलों पर करता है. देखिएगा आज सुबह से शाम तक फेसबुक से लेकर इंस्टा पर इतना पेड़ रोप दिया जाएगा कि रात तक सब जंगल दिखने लगेगा.

वर्तमान में विश्व पर्यावरण दिवस एक शोशेबाजी से ज्यादा कुछ नहीं है

कई बार सोचता हूं कि अपने 40 साल की उम्र में अब तक हर साल सरकारी आंकड़ों में पर्यावरण दिवस के दिन जितने पेड़ लगते है उसमें से आधे की भी रखरखाव होती तो आज बात ही अलग होती. समस्या यही है जिस पर मैं कहना चाह रहा हूं. सिर्फ पेड़ लगाने के दिखावे से नहीं बल्कि उन पेड़ों वृक्ष के रूप में मजबूत बनने तक हमें देखभाल करने की आदत और संकल्प को विकसित करने की ज़रूरत है.

पर्यावरण संरक्षण के सभी उपाय जिसमें वनीकरण या नए वृक्षों का रोपण, प्रदूषण के तमाम कारकों पर प्रभावी रोकथाम समेत एक हरित संस्कृति को विकसित करने और उसे अमल में लाने की है. अभी कोरोना की दूसरी लहर के चढ़ान पर जिस तरह ऑक्सीजन को लेकर का त्राहिमाम मचा था उस समय बहुत लोग बड़ी भावुक अपील कर रहे थे कि हमें पेड़ लगाने चाहिए.

एक बात और...

आज 5 जून है. दो जून की रोटी खाकर आज लोगबाग विश्व पर्यावरण दिवस मनाते हैं. यानि पर्यावरण की एक दिवसीय चिंता की औपचारिकता आज ही के दिन की जाती है. ये एक दिन वाली औपचारिकता जब से सोशल मीडिया का प्रसार हुआ है तब से कुछ ज्यादा ही हो गया है. चॉकलेट डे, टॉफी डे के तरह हमारे जीवन और अस्तित्व से गहरे सरोकार रखने वाले दिनों को हम अब बस ऐं - वें ही लेने लगे. यानि गंभीरता की जगह शोशेबाजी आ गई. जो नाटक पहले सरकारी और प्रशासनिक स्तर पर होता था उसे अब हमें भी करने में मजा आने लगा है. मतलब एक पेड़ अपनी बालकनी, लॉन, गमले में या कहीं पर लगाओ उसके साथ अपनी फोटू उतारो और फेसबुक पर चेप कर एकदिवसीय पर्यावरण प्रेमी बन जाओ. हम भी तो वही कर रहे जो प्रशासन कागजों और फाइलों पर करता है. देखिएगा आज सुबह से शाम तक फेसबुक से लेकर इंस्टा पर इतना पेड़ रोप दिया जाएगा कि रात तक सब जंगल दिखने लगेगा.

वर्तमान में विश्व पर्यावरण दिवस एक शोशेबाजी से ज्यादा कुछ नहीं है

कई बार सोचता हूं कि अपने 40 साल की उम्र में अब तक हर साल सरकारी आंकड़ों में पर्यावरण दिवस के दिन जितने पेड़ लगते है उसमें से आधे की भी रखरखाव होती तो आज बात ही अलग होती. समस्या यही है जिस पर मैं कहना चाह रहा हूं. सिर्फ पेड़ लगाने के दिखावे से नहीं बल्कि उन पेड़ों वृक्ष के रूप में मजबूत बनने तक हमें देखभाल करने की आदत और संकल्प को विकसित करने की ज़रूरत है.

पर्यावरण संरक्षण के सभी उपाय जिसमें वनीकरण या नए वृक्षों का रोपण, प्रदूषण के तमाम कारकों पर प्रभावी रोकथाम समेत एक हरित संस्कृति को विकसित करने और उसे अमल में लाने की है. अभी कोरोना की दूसरी लहर के चढ़ान पर जिस तरह ऑक्सीजन को लेकर का त्राहिमाम मचा था उस समय बहुत लोग बड़ी भावुक अपील कर रहे थे कि हमें पेड़ लगाने चाहिए.

एक बात और कोरोना के बचाव में तमाम वैज्ञानिक और डॉक्टरों ने बार बार जिस बात के लिए आगाह किया वह थी हमारी इम्यूनिटी. यह भी बात हमें समझनी चाहिए कि मजबूत इम्यूनिटी के लिए बस कुछ दिन की कसरत और पौष्टिक खुराक ही पर्याप्त नहीं है. हमें इस बात को समझना होगा कि स्वच्छ पर्यावरण के साथ हमारी इम्यूनिटी का सीधा संबंध है.

हम अपने शरीर के अंदर अपने पोषण के लिए चाहे पानी पिए या हवा ले या कोई खाद्य पदार्थ ले, जब तक यह सभी प्राकृतिक उत्पाद प्रदूषण मुक्त नहीं होंगे हम एक कमजोर इम्यूनिटी के साथ जीने के लिए अभिशप्त है. इसमें कोई संदेह नहीं है कि हम इंसानों की फितरत है कि जब तक हम किसी चीज़ का दाम न चुकाए तब तक हमें उसकी कीमत समझ में नहीं आती.

सिर्फ पेड़ ही क्यों ये अन्य प्राकृतिक संसाधनों के अपव्यय और क्षय पर भी तो हमें ही ध्यान रखना है. पहाड़ों पर वनों का कटाव, नगरीकरण के कारण कृषि भूमि और वन्य भूमि पर इंसानी छेड़खानी, जहरीले धुआं उगलते फैक्ट्रियां, सड़कों पर दौड़ती अरबों गाडियां, नदियों और सागर में प्रवाहित अपशिष्ट और रसायन युक्त प्रदूषित जल हमारे पृथ्वी के पर्यावरण को गंभीर क्षति पहुंचा चुके है.

जिसका परिणाम ओज़ोन परत के क्षरण और विश्व के बढ़ते तापमान के रूप में सब के सामने है. अभी कोरोना की दूसरी लहर के समय कहीं किसी ने लिखा था कि ग़ज़ब की विडम्बना है कि चांद और मंगल को अपने तकनीकी के दम पर जीतने वाला इंसान एक एक सांस के लिए तरसते हुए सड़क पर मर रहा है. इस बात में छिपे निहितार्थ को हमें समझना होगा.

वैज्ञानिक और भौतिक प्रगति के साथ पर्यावरण के प्रभावी संरक्षण के लिए गंभीर सामूहिक और सामुदायिक प्रयासों को चोंचलेबाजी बनने से रोकना होगा. एक बात और, हम 130 करोड़ की जनसंख्या वाले देश है. ज़ाहिर सी बात है कि जितना प्राकृतिक संसाधन हमारे पास है उस पर बहुत बोझ है. दूषित नदियां और वायुमंडल इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है.

यह एक कार्य तो हमें प्रतिवर्ष करना ही चाहिए कि कुल जनसंख्या के कम से कम 1 तिहाई पेड़ों को ही लगाने के बाद उन्हें चिन्हित कर उनके वृक्ष बनने तक बचाने के लिए हममें से हर किसी को जिम्मेदारी के साथ लगा रहे. भगवान जाने प्रधानमंत्री की टोटल इकोफ्रेंडली 100 स्मार्ट सिटी कब तक बनकर तैयार होगी लेकिन उससे पहले ही हम सब को कम से कम अपने आसपास के परिवेश में इकोफ्रेंडली माहौल का निर्माण करना ही होगा.

नहीं साहब प्रकृति का क्या है जब वह खेलना शुरू करेगी तो हम सब के पास बचने की न कोई जगह होगी और न ही समय. तो आज के दिन आपसे मेरी यही गुज़ारिश है कि जो भी पेड़ लगाए उसकी हिफ़ाज़त करे.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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