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इन महिलाओं का 'अंग प्रदर्शन' प्रेरणा देता है...

    • विनीत कुमार
    • Updated: 07 अप्रिल, 2016 07:12 PM
  • 07 अप्रिल, 2016 07:12 PM
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ये आम धारणा है कि बॉडी बिल्डिंग के खेल पर पुरुषों का हक है. एक 'नाजुक, कोमल, कमसिन और अबला' नारी को इससे दूर रहना चाहिए. लेकिन खुशी की बात ये है कि धीरे-धीरे ही सही बॉडी बिल्डिंग में पुरुषों का वर्चस्व टूट रहा है.

अपने दिल से बहुत ईमानदारी से पूछिए कि जब कभी आप सड़क पर किसी लड़की या महिला को बेहद व्यस्त ट्रैफिक के बीच बुलेट या कोई एसयूवी गाड़ी चलाते देखते हैं तो क्या महसूस करते हैं? क्या एकदम से झटका नहीं लगता? अचंभा नहीं होता उस दृश्य को देखकर कि हमारे आसपास कितना कुछ बदल रहा है. गाड़ी चलाना या मंदिर में प्रवेश मात्र की लड़ाई जीत लेना नारी सशक्तिकरण का पैमाना नहीं है लेकिन ये सभी बदलाव का एक प्रतीक तो हैं ही.

अब बॉडी बिल्डिंग को ही ले लीजिए. ये आम धारणा है कि इस पर पुरुषों का हक है. एक नाजुक, कोमल, कमसिन और अबला नारी को इससे दूर रहना चाहिए. लेकिन खुशी की बात ये है कि धीरे-धीरे ही सही बॉडी बिल्डिंग में पुरुषों का वर्चस्व टूट रहा है. महिलाओं की संख्या अभी कम है लेकिन तादाद बढ़ रही है. वे पुरानी मान्यताओं को चुनौती दे रही हैं. रूढ़िवादी सोच से आगे जाने का रास्ता तैयार कर रही है.

पिछले ही महीने उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर में नेशनल बॉडी बिल्डिंग पुरुष और महिला चैंपियनशिप आयोजित की गई. इसमें देश भर से 27 राज्यों के बॉडी बिल्डरों ने भाग लिया. महिलाओं के वर्ग में यास्‍मीन चौहान को मिस इंडिया चुना गया. वे 36 साल की हैं और पिछले 17 वर्षों से वेट लिफ्टिंग के खेल से जुड़ी हैं. करीब तीन साल पहले उनकी रूचि बॉडी बिल्डिंग में जगी और फिर वो कुछ नया करने की कोशिश में जुट गईं.

 यास्मीन चौहान

दिल्ली में जन्मीं यास्‍मीन ने जब बॉडी बिल्डिंग की दिशा में अपना करियर ले जाने की सोची तो रास्ता आसान नहीं था. भारत जैसे देश में तो ये और भी मुश्किल था. लेकिन यास्‍मीन ने हार नहीं मानी और एक मुकाम हासिल किया. आज उनका अपना जिम है और वे...

अपने दिल से बहुत ईमानदारी से पूछिए कि जब कभी आप सड़क पर किसी लड़की या महिला को बेहद व्यस्त ट्रैफिक के बीच बुलेट या कोई एसयूवी गाड़ी चलाते देखते हैं तो क्या महसूस करते हैं? क्या एकदम से झटका नहीं लगता? अचंभा नहीं होता उस दृश्य को देखकर कि हमारे आसपास कितना कुछ बदल रहा है. गाड़ी चलाना या मंदिर में प्रवेश मात्र की लड़ाई जीत लेना नारी सशक्तिकरण का पैमाना नहीं है लेकिन ये सभी बदलाव का एक प्रतीक तो हैं ही.

अब बॉडी बिल्डिंग को ही ले लीजिए. ये आम धारणा है कि इस पर पुरुषों का हक है. एक नाजुक, कोमल, कमसिन और अबला नारी को इससे दूर रहना चाहिए. लेकिन खुशी की बात ये है कि धीरे-धीरे ही सही बॉडी बिल्डिंग में पुरुषों का वर्चस्व टूट रहा है. महिलाओं की संख्या अभी कम है लेकिन तादाद बढ़ रही है. वे पुरानी मान्यताओं को चुनौती दे रही हैं. रूढ़िवादी सोच से आगे जाने का रास्ता तैयार कर रही है.

पिछले ही महीने उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर में नेशनल बॉडी बिल्डिंग पुरुष और महिला चैंपियनशिप आयोजित की गई. इसमें देश भर से 27 राज्यों के बॉडी बिल्डरों ने भाग लिया. महिलाओं के वर्ग में यास्‍मीन चौहान को मिस इंडिया चुना गया. वे 36 साल की हैं और पिछले 17 वर्षों से वेट लिफ्टिंग के खेल से जुड़ी हैं. करीब तीन साल पहले उनकी रूचि बॉडी बिल्डिंग में जगी और फिर वो कुछ नया करने की कोशिश में जुट गईं.

 यास्मीन चौहान

दिल्ली में जन्मीं यास्‍मीन ने जब बॉडी बिल्डिंग की दिशा में अपना करियर ले जाने की सोची तो रास्ता आसान नहीं था. भारत जैसे देश में तो ये और भी मुश्किल था. लेकिन यास्‍मीन ने हार नहीं मानी और एक मुकाम हासिल किया. आज उनका अपना जिम है और वे सैकड़ों लकड़ों-लड़कियों को ट्रेनिंग देने का काम भी करती हैं.

कई और महिलाएं हैं मैदान में

भारत में महिला बॉडी बिल्डिंग को आगे ले जाने का भार केवल यास्‍मीन के कंधे पर नहीं है. पिछले कुछ वर्षों में कई और महिलाएं आगे आई हैं. देहरादून की 22 साल की भूमिका शर्मा का उदाहरण ही ले लीजिए. वो बुलंदशहर में हुई प्रतियोगिता में दूसरे स्थान पर रही थीं. इस फील्ड में अपनी पहचान बनाने के लिए उन्हें भी कम मुश्किल हालातों का सामना नहीं करना पड़ा. 2014 में जब उन्होंने ये फैसला किया कि वे बॉडी बिल्डिंग में अपना करियर बनाना चाहती हैं तो परिवार वालों का भारी विरोध झेलना पड़ा. उनके माता-पिता चाहते थे कि वे निशानेबाजी में अपना हाथ आजमाएं.

 भूमिका शर्मा

जब महिला बॉडी बिल्डरों की बात हो रही है तो जिक्र श्वेता राठौड़ का भी जरूरी है. वह पहली भारतीय महिला बॉडी बिल्डर हैं जिन्होंने एशियन चैंपियनशिप में सिल्वर मेडल हासिल किया. इस सफलता के जरिए उन्होंने पूरी दुनिया को साबित कर दिया कि भारतीय महिलाएं भी वो सब कुछ कर सकती हैं जो दुनिया भर की दूसरी महिलाएं कर रही हैं.

 श्वेता राठौड़

एक कॉरपोरेट जॉब को छोड़ बॉडी बिल्डिंग के क्षेत्र में हाथ आजमाने उतरीं 27 साल की श्वेता 2014 में मिस वर्ल्ड (फिटनेस फिजिक) और 2015 में मिस एशिया (फिटनेस फिजिक) खिताब भी जीत चुकी हैं. मार्च में दिल्ली में हुई नेशनल बॉडी बिल्डिंग चैंमपियनशिप में भी श्वेता ने गोल्ड मेडल अपने नाम किया था.

 श्वेता राठौड़

ऐसे ही कोलकाता की शिबालिका शाह, पुणे की दीपिका चौधरी, महाराष्ट्र के रायगढ़ से अश्विनी वास्कर, वाटिका ग्रोवर जैसी कई महिलाएं आज हम सबके सामने हैं जो इतिहास लिखने में जुटी हुई हैं. 26 साल की वाटिका ने तो 12 साल टेनिस खेलने के बाद बॉडी बिल्डिंग की ओर रूख किया. 2014 में मुंबई में हुई वर्ल्ड चैंपियनशिप में वह सातवें और फिर पिछले साल उज्बेकिस्तान में पांचवे स्थान पर रही थीं.

महिला बॉडी बिल्डिंग में भारत कहां?

वैश्विक स्तर पर हम बहुत पीछे जरूर हैं लेकिन धीरे-धीरे भारत में महिला बॉडी बिल्डिंग की तस्वीर बदल रही है. इसी साल सितंबर में भूटान में एशियन बॉडी बिल्डिंग एंड फिजिक चैंपियनशिप होनी है. सबकी नजरें उस ओर हैं. तो, उम्मीद कीजिए कि नजाकत से बहुत दूर ताकत दिखाती ये महिलाएं कामयाबी के और नए कीर्तिमान रचने में कामयाब हों.


इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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