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गर्भपात कानून की लड़ाई में बात सिर्फ महिलाओं की सुनी जाना चाहिए

    • पारुल चंद्रा
    • Updated: 25 मई, 2018 08:11 PM
  • 25 मई, 2018 08:11 PM
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महिलाएं आयरलैंड में गर्भपात जनमत संग्रह में वोट डालने के लिए हजारों मील दूर से अपने देश आ रही हैं. वजह सिर्फ एक कि गर्भपात के सख्त कानून में बदलाव किए जाएं.

2012 में डबलिन में भारतीय मूल की डेंटिस्ट सविता हलप्पनवार की मौत ने पूरी दुनिया को हिला दिया था. मामला था 17 हफ्ते की गर्भवती सविता को गर्भपात कराने की इजाजत नहीं दिया जाना, जिसके बाद खून में जहर फैलने से उनकी जान चली गई थी. क्योंकि रोमन कैथलिक देश आयरलैंड गर्भपात के मामले में दुनिया के कुछ बेहद सख्त नियमों वाले देशों में शामिल है.

सविता की मौत के बाद हजारों लोग कई बार आयरलैंड में गर्भपात के नियमों के खिलाफ विरोध करते आए हैं लेकिन अब जाकर गर्भपात के कानून पर वहां जनमत संग्रह हो रहा है. भारतीय मूल के प्रधानमंत्री लियो वराडकर ने गर्भपात पर प्रतिबंध हटाने के लिए काफी प्रचार किया और मतदाताओं से अपील की थी कि लोग बड़ी संख्या में मतदान करें जिससे संविधान में 8वें संशोधन को निरस्त किया जा सके. संविधान में 8वां संशोधन गर्भपात पर प्रतिबंध लगाता है. और अगर ऐसा होता है तो ये इतिहास को बदलने जैसा होगा.

सविता की मौत के बाद पूरे देश में प्रदर्शन हुआ था

और इसी अभियान को सफल बनाने के लिए सोशल मीडिया पर एक हैशटैग #hometovote चल रहा है. जिसके अंतर्गत महिलाएं हजारों मील दूर से वापस आयरलैंड आ रही हैं जिससे वो गर्भपात जनमत संग्रह में वोट डाल सकें. सब का यही कहना है कि repeal यानी निरस्त करो. महिलाओं के लिए अब दूरी मायने नहीं रख रही, मायने रखता है तो ये क्रूर कानून जिसकी वजह से हर रोज करीब 10 आयरिश महिलाओं को गर्भपात के लिए देश से बाहर जाना पड़ता है. 

2012 में डबलिन में भारतीय मूल की डेंटिस्ट सविता हलप्पनवार की मौत ने पूरी दुनिया को हिला दिया था. मामला था 17 हफ्ते की गर्भवती सविता को गर्भपात कराने की इजाजत नहीं दिया जाना, जिसके बाद खून में जहर फैलने से उनकी जान चली गई थी. क्योंकि रोमन कैथलिक देश आयरलैंड गर्भपात के मामले में दुनिया के कुछ बेहद सख्त नियमों वाले देशों में शामिल है.

सविता की मौत के बाद हजारों लोग कई बार आयरलैंड में गर्भपात के नियमों के खिलाफ विरोध करते आए हैं लेकिन अब जाकर गर्भपात के कानून पर वहां जनमत संग्रह हो रहा है. भारतीय मूल के प्रधानमंत्री लियो वराडकर ने गर्भपात पर प्रतिबंध हटाने के लिए काफी प्रचार किया और मतदाताओं से अपील की थी कि लोग बड़ी संख्या में मतदान करें जिससे संविधान में 8वें संशोधन को निरस्त किया जा सके. संविधान में 8वां संशोधन गर्भपात पर प्रतिबंध लगाता है. और अगर ऐसा होता है तो ये इतिहास को बदलने जैसा होगा.

सविता की मौत के बाद पूरे देश में प्रदर्शन हुआ था

और इसी अभियान को सफल बनाने के लिए सोशल मीडिया पर एक हैशटैग #hometovote चल रहा है. जिसके अंतर्गत महिलाएं हजारों मील दूर से वापस आयरलैंड आ रही हैं जिससे वो गर्भपात जनमत संग्रह में वोट डाल सकें. सब का यही कहना है कि repeal यानी निरस्त करो. महिलाओं के लिए अब दूरी मायने नहीं रख रही, मायने रखता है तो ये क्रूर कानून जिसकी वजह से हर रोज करीब 10 आयरिश महिलाओं को गर्भपात के लिए देश से बाहर जाना पड़ता है. 

महिलाएं ही नहीं पुरुष भी वोट के लिए आयरलैंड आ रहे हैं

गर्भपात को लेकर आयरिश कानून इतना सख्त क्यों है ये जानने से पहले ये जान लेते हैं कि आखिर क्या है वहां का कानून-

क्या है 8वां संशोधन-

आयरलैंड में जनमत संग्रह के बाद 8वां संशोधन 1983 में वहां के संविधान में डाला गया था. ये कानून मां और गर्भ में पल रहे  शिशु दोनों के जीवन को बराबर अधिकार की मान्यता देता है, इसीलिए ज्यादातर सभी मामलों में गर्भपात प्रतिबंधित है.

1992 में दो और जनमत संग्रह हुए, जिसके बाद 13वां संशोधन हुआ, जिससे महिलाओं को गर्भपात करने के लिए आयरलैंड और आयरलैंड से बाहर यात्रा करने की अनुमति मिलती है (बताया जा रहा है कि आयरलैंड की 170,000 महिलाओं को गर्भपात के लिए अपना देश छोड़कर बाहर जाना पड़ा था.) और 14वां, जो विदेशी गर्भपात सेवाओं के बारे में जानकारी अधिकृत करता है. 2013 में गर्भपात की अनुमति देने के लिए कानून को बदला गया लेकिन तब ही जब डॉक्टरों को लगता है कि गर्भावस्था की वजह से महिला के जीवन को खतरा हो सकता है. और अगर कोई भी डॉक्टर ये कानून तोड़ता है तो उसे 14 साल की जेल होगी.

लेकिन इसके बाद किसी सरकार ने कानून में बदलाव करने की कोशिश नहीं की, ताकि चिकित्सकों के सामने यह स्पष्ट हो पाता कि वह किन-किन परिस्थितियों में गर्भपात कर सकते हैं.

3-5 महिलाओं को गर्भपात के लिए अवैध गोलियां खानी पड़ती हैं, जिसके इस्तेमाल करने पर 14 साल की जेल का प्रावधान है

दो मान्यताओं का टकराव

8वें संशोधन को निरस्त करने के लिए लोग जितना प्रचार कर रहे हैं, उतना ही प्रचार इसे निरस्त न किए जाने के लिए भी किया जा रहा है. रोमन कैथलिक देश होने के कारण वहां की मान्यता ये है कि वो किसी की जान नहीं ले सकते, क्योंकि उनका कहना है कि 22 दिन के बाद ही भ्रूण का दिल धड़कने लगता है तो उसकी जान लेना गैरकानूनी है. इस देश के लोगों की आस्था भी यही कहती है कि हर किसी का जान अहमियत रखती है.

जहां गर्भपात कानून के खिलाफ बात कही जा रही है वहीं उसे मानने के कारण भी बताए जा रहे हैं

क्या होगा अगर ये संशोधन निरस्त होगा-

अगर लोग इस कानून को निरस्त करने के लिए वोट देंगे तो आयरिश सरकार का प्रस्ताव होगा कि गर्भावस्था के पहले 12 सप्ताह के भीतर महिलाएं गर्भपात करवा सकती हैं, और अगर किसी महिला को जान का खतरा हो तो वो 24वें हफ्ते तक गर्भपात करवा सकती हैं.

इस मामले में आयरलैंड अकेला देश नहीं है

ऐसा नहीं कि आयरलैंड ही गर्भपात के कानून को लेकर इतना सख्त रवैया अपनाता है. कैथौलिक मान्यता वाले सभी देशों में गर्भपात को लेकर सख्त कानून हैं. लैटिन अमेरिका के कई देश, अल सल्वाडोर, इंडियाना, मीना के कई देश, अफ्रीका के करीब आधे देश, एशिया पैसिफिक के 7 देश और यूरोप के दो देश मालता और आयरलैंड में गर्भपात को लेकर कानून काफी सख्त है.

वेटिकन सिटी में गर्भपात को इजाजत नहीं है. कुछ धर्मनिरपेक्ष देश जिसमें अति धार्मिक लोग रहते हैं वो सभी ऐसे ही नियमों का पालन करते हैं. यूरोप के माल्ता में 90 प्रतिशत लोग ईश्वर को मानते हैं और कैथोलिक हैं, यहां किसी भी सूरत में गर्भपात नहीं हो सकता. कुछ छोटे देश जैसे सेन मारियो और एनडोरा में भी इसी तरह के कड़े नियम हैं. यहां भी 90 प्रतिशत लोग कैथौलिक हैं और अगर कोई महिला गर्भपात करवाती है तो उसे 2 से 2.5 साल तक की जेल की सजा होती है. 2009 तक मोनेको में भी गर्भपात पर प्रतिबंध था, लेकिन अब कुछ खास मामलों में गर्भपात किया जा सकता है. पोलेंड में भी यही हालात हैं. 

महिलाओं का शरीर उनका अपना है, गर्भपात को लेकर उनके फैसले अपने होने चाहिए, प्रजनन अधिकारों के लिए महिलाएं हमेशा से ही आवाज उठाती रही हैं. उम्मीद है कि न सिर्फ आयरलैंड बल्कि बाकी देशों में भी लोग महिलाओं के अधिकारों के बारे में गंभीरता से सोचें. अब तक गर्भपात के सख्त कानून के आगे महिलाएं ही हारती रही हैं, लेकिन अम्मीद ही की जा सकती है कि अब जीन उनकी हो.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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