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रेप कल्चर वाले देश में श्री रेड्डी के निर्वस्त्र होने पर हंगामा क्यों?

    • अपर्णा कालरा
    • Updated: 12 अप्रिल, 2018 03:11 PM
  • 12 अप्रिल, 2018 03:11 PM
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श्री रेड्डी का विरोध दुनिया तो छोड़िए भारत के लोगों को ही हिला नहीं पाया, लेकिन फिर भी उसने ये जरुर साबित कर दिया कि वो उत्पात फैलानी वाली महिला से कहीं बढ़कर है.

महाश्वेता देवी की एक शानदार लघु कथा है- द्रौपदी. इसमें एक संथाल महिला को हिरासत में लिया जाता है और उसके साथ बार-बार बलात्कार किया जाता है. कहानी तब खत्म होती है, जब वो अपने कपड़े फाड़कर, खून से लथपथ, निर्वस्त्र दौड़ती है और एक ऊंचे ओहदे के पुलिस अधिकारी की पास चली जाती है. वो पुलिस अधिकारी जीवन में पहली बार डर महसूस करता है.

जब भी कोई महिला सार्वजनिक तौर पर अपने कपड़े उतारती है तो पूरे समाज के द्वारा इस काम की भर्त्सना करना परम धर्म हो जाता है. कोई भी महिला पितृसत्ता के नियमों और पितृसत्ता का विरोध करने के लिए ही सार्वजनिक तौर पर निर्वस्त्र होती है. एक महिला की इज्जत उसकी सबसे बड़ी पूंजी है.

यही कारण है कि एक महिला द्वारा सार्वजनिक तौर पर निर्वस्त्र होना विनाशकारी है, क्रांतिकारी है. यह एक स्थापित प्रणाली के खिलाफ विद्रोह का कार्य है.

ये असंस्कारी नहीं, विद्रोही महिला है

तेलुगू अभिनेत्री श्री रेड्डी ने हैदराबाद की सड़कों पर निर्वस्त्र होकर फिल्म इंडस्ट्री में व्याप्त कास्टिंग काउच का विरोध किया. पुलिस ने उसे वहां से "उत्पात मचाने" के कारण हटा दिया. हमने ये भी सुना कि पूरी फिल्म इंडस्ट्री इस घटना से "सदमे" में है. एक दिन बाद, श्री रेड्डी को अपना घर खाली करने के लिए भी कहा गया. क्योंकि उसमें महिलाओं की तरह संस्कारी गुण नहीं थे.

हॉलीवुड में, हार्वे वेंस्टीन के निष्ठुर और क्रूर व्यवहार ने #MeToo आंदोलन को जन्म दिया. हालांकि श्री रेड्डी का विरोध दुनिया तो छोड़िए भारत के लोगों को ही हिला नहीं पाया, लेकिन फिर भी उसने ये जरुर साबित कर दिया कि वो उत्पात फैलानी वाली महिला से कहीं बढ़कर है.

वो एक विद्रोही है. रिबेल.

महिलाओं पर पुरुषों का अत्याचार-

2004 में मणिपुरी महिलाओं ने पूरे देश...

महाश्वेता देवी की एक शानदार लघु कथा है- द्रौपदी. इसमें एक संथाल महिला को हिरासत में लिया जाता है और उसके साथ बार-बार बलात्कार किया जाता है. कहानी तब खत्म होती है, जब वो अपने कपड़े फाड़कर, खून से लथपथ, निर्वस्त्र दौड़ती है और एक ऊंचे ओहदे के पुलिस अधिकारी की पास चली जाती है. वो पुलिस अधिकारी जीवन में पहली बार डर महसूस करता है.

जब भी कोई महिला सार्वजनिक तौर पर अपने कपड़े उतारती है तो पूरे समाज के द्वारा इस काम की भर्त्सना करना परम धर्म हो जाता है. कोई भी महिला पितृसत्ता के नियमों और पितृसत्ता का विरोध करने के लिए ही सार्वजनिक तौर पर निर्वस्त्र होती है. एक महिला की इज्जत उसकी सबसे बड़ी पूंजी है.

यही कारण है कि एक महिला द्वारा सार्वजनिक तौर पर निर्वस्त्र होना विनाशकारी है, क्रांतिकारी है. यह एक स्थापित प्रणाली के खिलाफ विद्रोह का कार्य है.

ये असंस्कारी नहीं, विद्रोही महिला है

तेलुगू अभिनेत्री श्री रेड्डी ने हैदराबाद की सड़कों पर निर्वस्त्र होकर फिल्म इंडस्ट्री में व्याप्त कास्टिंग काउच का विरोध किया. पुलिस ने उसे वहां से "उत्पात मचाने" के कारण हटा दिया. हमने ये भी सुना कि पूरी फिल्म इंडस्ट्री इस घटना से "सदमे" में है. एक दिन बाद, श्री रेड्डी को अपना घर खाली करने के लिए भी कहा गया. क्योंकि उसमें महिलाओं की तरह संस्कारी गुण नहीं थे.

हॉलीवुड में, हार्वे वेंस्टीन के निष्ठुर और क्रूर व्यवहार ने #MeToo आंदोलन को जन्म दिया. हालांकि श्री रेड्डी का विरोध दुनिया तो छोड़िए भारत के लोगों को ही हिला नहीं पाया, लेकिन फिर भी उसने ये जरुर साबित कर दिया कि वो उत्पात फैलानी वाली महिला से कहीं बढ़कर है.

वो एक विद्रोही है. रिबेल.

महिलाओं पर पुरुषों का अत्याचार-

2004 में मणिपुरी महिलाओं ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया. मणिपुर की महिलाओं ने असम राइफल्स के सैनिकों द्वारा मनोरमा के उत्पीड़न और बलात्कार के विरोध में सार्वजनिक रूप से निर्वस्त्र होकर प्रदर्शन किया था. इस विरोध प्रदर्शन ने लोगों को बताया कि जब सशस्त्र बलों को, महिलाओं के खिलाफ हिंसा के लिए कानूनी कार्रवाई या जेल की सजा से विशेष संरक्षण कानून या AFSPA जैसे कानून संरक्षण देते हैं तो महिलाओं पर क्या गुजरती है. उन्हें किस तरह की मुसीबतों का सामना करना पड़ता है.

AFSPA के नाम पर महिलाओं पर अत्याचार किस समाज का हिस्सा?

अक्सर सांप्रदायिक हिंसाओं में महिलाओं के शरीर को एक राजनीतिक हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है. क्योंकि इसके द्वारा एक समुदाय दूसरे समुदाय पर अपनी श्रेष्ठता स्थापित करने की कोशिश करता है. लेखिका सुजाता गीदला बताती हैं कि लोगों के गलत तरह का ध्यान आकर्षित होने के डर से दलित महिलाएं रंगीन कपड़े नहीं पहनती हैं. वो यह भी बताती हैं कि बहुत से ऊपरी जाति के लोगों का मानना होता है कि दलित को छूने से वो अपवित्र हो जाएंगे. लेकिन दलित महिलाओं के यौन शोषण में किसी तरह की बुराई नजर नहीं आती.

आज आठ साल की बच्ची आसिफा के साथ जो सलूक हुआ उसे देखकर जम्मू और कश्मीर में डर का माहौल बन गया है. चरवाहा समुदाय से आने वाली मंदिर में बंदी बनाकर रखा गया, ड्रग्स दिए गए और लगातार गैंगरेप किया गया.

तो फिर किसी महिला के सार्वजनिक तौर पर निर्वस्त्र होनें से दिक्कत क्यों है? क्योंकि एक महिला सार्वजनिक तौर पर निर्वस्त्र होकर, अपने शरीर को एक हथियार की तरह इस्तेमाल कर रही है.

राष्ट्र विरोधी-

पद्म विभूषण और मैग्सेसे पुरस्कार-विजेता महाश्वेता देवी की कहानी में गहरी कल्पना थी कि, पूरी रात हिरासत में सामुहिक बलात्कार करने के बाद जब पुरुष उसे कपड़े देते हैं, और वो संथाल महिला द्रौपदी उसे फाड़कर बाहर निकलती है तो पुरुषों की प्रतिक्रिया क्या होगी. वो बुरी तरह डरे हुए होंगे.

किसी भी महिला के साथ निजी तौर पर जो किया जा सकता है उसे सार्वजनिक रूप से दिखाया नहीं जा सकता है.

2016 में हरियाणा के महेंद्रगढ़ स्थित केंद्रीय विश्वविद्यालय के अंग्रेजी विभाग द्वारा द्रौपदी का मंचन के समय कई दिनों तक विरोध का सामना करना पड़ा. विश्वविद्यालयों का काम होता है सवाल खड़े करना और चुनौती देना. लेकिन एबीवीपी का नजरिया कुछ दूसरा ही है. इसने विरोध में स्थानीय लोगों की सेना को मिला लिया और महाश्वेता देवी की उस लघुकथा को राष्ट्र विरोधी कहने लगे.

श्री रेड्डी ने टाइम्स ऑफ इंडिया को अपने विरोध का कारण बताया: "एकमात्र यही तरीका था जिसके द्वारा मैं उन्हें अपनी बात सुना सकती थी. फिल्म इंडस्ट्री में कई लोगों ने मुझे काम देना का वादा किया और उनके सामने मुझे निर्वस्त्र होना पड़ा. लेकिन फिर भी मुझे कोई रोल नहीं मिला. फिल्म इंडस्ट्री में अपने साथ और और दूसरे कई महिलाओं के साथ हुए अन्यायपूर्ण व्यवहार के बारे में मैं लगातार आवाज उठाती रही, चीख चीख कर बताती रही, लेकिन फिल्म आर्टिस्ट्स एसोसिएशन से कोई जवाब नहीं मिला. इसलिए मैंने सार्वजनिक रूप से निर्वस्त्र होने का फैसला किया."

(DailyO से साभार)

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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