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राजनीति, रैली, भगदड़ और मौतें ! मगर कब तक ?

    • अरविंद मिश्रा
    • Updated: 11 अक्टूबर, 2016 01:50 PM
  • 11 अक्टूबर, 2016 01:50 PM
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हमारा सरकारी तंत्र पुरानी घटनाओं से सीख लेने के लिए तैयार नहीं है. क्या कभी हम सीखेंगे पुरानी गलतियों से? हमारे यहां हर साल होने वाले बड़े आयोजनों में हादसे होना अब सामान्य बात हो गई है. लगता है कि हमें बड़े आयोजनों की व्यवस्था करना नहीं आता.

BSP सुप्रीमो मायावती की लखनऊ में आयोजित रैली में मची भगदड़ में 3 लोगों की मौत हो गई और कुछ लोग घायल भी हुए. बहुजन समाजवादी पार्टी के संस्थापक एवं दलित नेता कांशीराम की 10वीं पुण्यतिथि के मौके पर लखनऊ में बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर मैदान में रैली का आयोजन किया गया था. मायावती की रैली में भगदड़ पहली बार नहीं हुआ है. इसके पहले 2002 में लखनऊ में ही आयोजित BSP की एक रैली के बाद चारबाग रेलवे स्टेशन पर पार्टी के 12 कार्यकर्ताओं की मौत हो गई थी.

भगदड़ क्या होती है

भगदड़ भीड़ प्रबंधन की असफलता की स्थिति में पैदा हुई मानव निर्मित आपदा है. यह प्रायः भीड़ भरे इलाको में किसी अफवाह के कारण पैदा होती है. इसमें भीड़ अचानक किसी अफवाह, आशंका या भय के कारण तेजी से एक तरफ भागने लगती है जिसके कारण प्रायः बालक, वृद्ध एवं स्त्रियां भागते लोगों के पैरों के नीचे आकर कुचले जाते हैं. यह मूलतः प्रशासनिक अव्यवस्था के कारण पैदा होती है.

प्रशासन की विफलता

हर भगदड़ के बाद रिपोर्ट में प्रशासन की नाकामी की बात निकल कर आती है. सवाल यह उठता है कि क्या हमारा प्रशासन भीड़ प्रबंधन भी नहीं जानता? दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि उसे भीड़ को संभालना नहीं आता.

1954 में इलाहाबाद में चल रहे कुंभ मेले में आठ सौ तीर्थयात्रियों की भगदड़ में जान चली गई थी. जांच रिपोर्ट में चेतावनी दी गई थी कि ऐसे भीड़भाड़ वाले आयोजनों में VIPs को नहीं जाना चाहिए. कहा जाता है कि मेले में आए तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित नेहरू को देखने के लिए मची होड़ के कारण दुर्घटना हुई थी. पर उसके बाद भी धार्मिंक आयोजनों में वीआईपी पहुंचते रहे और भगदड़ से लोगों के मरने का सिलसिला जारी रहा.

BSP सुप्रीमो मायावती की लखनऊ में आयोजित रैली में मची भगदड़ में 3 लोगों की मौत हो गई और कुछ लोग घायल भी हुए. बहुजन समाजवादी पार्टी के संस्थापक एवं दलित नेता कांशीराम की 10वीं पुण्यतिथि के मौके पर लखनऊ में बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर मैदान में रैली का आयोजन किया गया था. मायावती की रैली में भगदड़ पहली बार नहीं हुआ है. इसके पहले 2002 में लखनऊ में ही आयोजित BSP की एक रैली के बाद चारबाग रेलवे स्टेशन पर पार्टी के 12 कार्यकर्ताओं की मौत हो गई थी.

भगदड़ क्या होती है

भगदड़ भीड़ प्रबंधन की असफलता की स्थिति में पैदा हुई मानव निर्मित आपदा है. यह प्रायः भीड़ भरे इलाको में किसी अफवाह के कारण पैदा होती है. इसमें भीड़ अचानक किसी अफवाह, आशंका या भय के कारण तेजी से एक तरफ भागने लगती है जिसके कारण प्रायः बालक, वृद्ध एवं स्त्रियां भागते लोगों के पैरों के नीचे आकर कुचले जाते हैं. यह मूलतः प्रशासनिक अव्यवस्था के कारण पैदा होती है.

प्रशासन की विफलता

हर भगदड़ के बाद रिपोर्ट में प्रशासन की नाकामी की बात निकल कर आती है. सवाल यह उठता है कि क्या हमारा प्रशासन भीड़ प्रबंधन भी नहीं जानता? दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि उसे भीड़ को संभालना नहीं आता.

1954 में इलाहाबाद में चल रहे कुंभ मेले में आठ सौ तीर्थयात्रियों की भगदड़ में जान चली गई थी. जांच रिपोर्ट में चेतावनी दी गई थी कि ऐसे भीड़भाड़ वाले आयोजनों में VIPs को नहीं जाना चाहिए. कहा जाता है कि मेले में आए तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित नेहरू को देखने के लिए मची होड़ के कारण दुर्घटना हुई थी. पर उसके बाद भी धार्मिंक आयोजनों में वीआईपी पहुंचते रहे और भगदड़ से लोगों के मरने का सिलसिला जारी रहा.

 मायावती की रैली में मची भगदड़

इससे तो यही प्रतीत होता है कि कि हमारा सरकारी तंत्र पुरानी घटनाओं से सीख लेने के लिए तैयार नहीं है. क्या कभी हम सीखेंगे पुरानी गलतियों से? हमारे यहां हर साल होने वाले बड़े आयोजनों में हादसे होना अब सामान्य बात हो गई है. लगता है कि हमें बड़े आयोजनों की व्यवस्था करना नहीं आता. अगर आता तो हमारे यहां बार-बार जानलेवा हादसे नहीं होते.

कभी कभी तो ऐसा लगता है मानो हमारे यहां पर किसी को बड़े आयोजन करने की अक्ल तक नहीं है. एक और बात यह है कि लोगों को खुद भी भीड़भाड़ वाले आयोजनों में भाग लेने से बचना होगा. क्योंकि ताजा सूरते हाल से यही लगता है कि हमारे यहां हादसे होते ही रहेंगे.

यह भी पढ़ें- केरल से मक्का वाया कुंभ...क्या लोग ऐसे ही मरते रहेंगे?

यहां पर एक बात और गौर करने की है. सिर्फ धार्मिंक आयोजनों में ही भीड़ के कारण लोग नहीं कुचलते. भारत में क्रिकेट मैच की टिकटों की बिक्री से लेकर मुफ्त खाने और कपडे वितरण के दौरान छीना-झपटी में भी लोग मरते रहे हैं. लगभग हर साल, कभी-कभी एक बार से ज्यादा, त्योहारों, धार्मिंक यात्राओं और चुनावी रैलियों के दौरान लोगों के कुचल कर मारे जाने की खबरें आती हैं

एक नजर अभी तक के बड़े भगदड़ के मामलों पर

राजनीतिक भगदड़ में मौतें-

1954: इलाहाबाद में चल रहे कुंभ मेले में 800 तीर्थयात्रियों की भगदड़ में जान चली गई थी. उस समय जवाहर लाल नेहरू की झलक पाने के दरम्यान भगदड़ हुआ था.

2004: बीजेपी के नेता लालजी टंडन के जन्म दिन के मौके पर साड़ी वितरण के दौरान भगदड़ में 21 लोगों की जान चली गई

2015: आंध्र प्रदेश में गोदावरी नदी के किनारे 27 लोगों की जान चली गई जब वहां मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू पवित्र स्नान करने पहुंचे.

2016: तमिलनाडु में जयललिता के चुनावी रैली में भगदड़ के कारण 2 लोगों कि मौत हुई थी

बड़े धार्मिक भगदड़ और मौतें

2016: उज्जैन समहस्त मेला में 10 लोगों की मौत

2014: पटना में छठ पूजा के दौरान भगदड़ में 32 लोगों ने जान गवाई

2014: मुम्बई में मुस्लिम गुरु के अंतिम दर्शन में भगदड़ से 18 की मौत

2013: मध्य प्रदेश के रतनगढ़ मंदिर में भगदड़ के दौरान 115 लोगों की मौत

2013: इलाहाबाद के कुम्भ मेला में भगदड़ से 36 लोगों की मौत

2011: केरल के सबरीमाला मंदिर में भगदड़ से 102 लोगों की मौत

2008: राजस्थान के चामुंडा देवी मंदिर के भगदड़ में 224 लोगों की मौत

2008: हिमाचल प्रदेश के नैना देवी मंदिर में भगदड़ से 146 लोगों की मौत

भीड़ प्रबंधन

ऐसा लगता है कि भारत में भीड़ प्रबंधन विषय की तरह स्थापित ही नहीं हुआ. भीड़ के प्रबंधन का तंत्र दुनियाभर में अपेक्षाकृत नया विषय है जो समारोहों के दौरान होने वाली भयानक त्रासदियों के प्रतिक्रियास्वरूप विकसित हुआ है.

 लखनऊ का बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर मैदान

सबसे बड़ा अब प्रश्न उठता है कि क्या भगदड़ को रोका नहीं जा सकता है? ऐसा बिल्कुल नहीं है. बेशक, भीड़ प्रबंधन के लिए योजना बनाना अहम है. जिस क्षेत्र में आयोजन हो रहा है, वहां पर एकत्र होनी वाली भीड़ और उसको भगदड़ से निकलने के लिए जरूरी निकासी स्थानों पर नजर रखनी होगी. बेशक, भीड़ प्रबंधकों को भीड़ के बर्ताव में संभावित बदलाव पर भी नजर रखनी होगी.

यह भी पढ़ें- यहां सच में भगवान हम सब के भरोसे बैठे हैं!

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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