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स्मॉल पॉक्स को 'माता' क्यों कहते हैं ? कैंसर और अन्य बीमारियां 'कर्म' का फल !

    • श्रुति दीक्षित
    • Updated: 24 नवम्बर, 2017 11:42 AM
  • 24 नवम्बर, 2017 11:42 AM
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भले ही कैंसर शब्‍द अभी प्रचलन में आया हो, लेकिन कर्क रोग तो न जाने कब से भारतीय लोगों की जुबान पर रहता था. जरा सोचिए ऐसी कितनी ही मान्‍यताएं प्रचलित हैं जो कहती हैं कि बीमारियां या तो भगवान का श्राप है या फिर वो हमारे अपने कर्मों की सजा हैं..

असम के हेल्थ मिनिस्टर हेमंत बिस्वास सरमा की मानें तो कैंसर और एक्सिडेंट हमारे अपने कर्मों का फल होता है. जब से उन्होंने ये बात कही है सभी उनके पीछे पड़ गए हैं. कुछ लोगों का मानना है कि पार्टी बदल कर भाजपा में जाने के कारण उनकी सोच ऐसी हो गई है तो कुछ इसमें मोदी को भी खींच लाए. आखिर मोदी ने भी तो कहा था कि दुनिया की पहली प्लास्टिक सर्जरी श्री गणेश की है.

इसमें तो कोई शक नहीं कि ये स्टेटमेंट गलत था और दुनिया भर के कैंसर और एक्सिडेंट पेशंट्स के साथ नाइंसाफी थी. भले ही कोई कुछ भी कहे, लेकिन एक मिनिस्टर को इस तरह की बात शोभा नहीं देती है. फिर भी अगर देखा जाए तो सरमा जी ने कुछ भी ऐसा नहीं कहा जो शायद आम मान्यता न हो.

एक तरह से गौर करें तो सिर्फ हिंदू मान्यताएं ही नहीं बल्कि दुनिया भर के अनेको ग्रंथों में ऐसी बातें लिखी गई हैं कि बीमारियां हमारे कर्मों का फल होती हैं और ये भगवान द्वारा दिया गया श्राप है. एक बात खुद सोचिए जो लोग हेमंत बिस्वास सरमा की बातों को कोरा अंधविश्वास कह रहे हैं वो ही शायद चिकन पॉक्स और स्मॉल पॉक्स को बड़ी माता, छोटी माता कहते हैं..

भले ही कैंसर अभी प्रचलन में आया हो, लेकिन कर्क रोग तो न जाने कब से भारतीय लोगों की जुबान पर रहता था. जरा सोचिए ऐसी कितनी ही कहानियां प्रचलित हैं जो कहती हैं कि बीमारियां या तो भगवान का श्राप है या फिर वो हमारे अपने कर्मों की सजा हैं..

1. चिकन पॉक्‍स को कहते हैं माता...

शीतला माता से इस बीमारी को जोड़कर देखा जाता है. किंवदंती कहती है कि शीतला माता के एक हाथ में चांदी की झाड़ू रहती है जो बीमारियों का प्रतीक है और दूसरे हाथ में ठंडा जल जिससे लोगों को ठीक किया जाता है. शीतला सप्तमी इसलिए मनाई जाती है क्योंकि शीतला माता को ठंडा पसंद है और उस दिन एक दिन पहले बनाया हुआ खाना खाया जाता है. कुछ भी गर्म नहीं. जब माता आती है तो मरीज को कोई इलाज नहीं दिया जाता. उसके आसपास सिर्फ नीम की पत्तियों को रखा जाता है. इसके अलावा, घर में कुछ छौंका भी नहीं...

असम के हेल्थ मिनिस्टर हेमंत बिस्वास सरमा की मानें तो कैंसर और एक्सिडेंट हमारे अपने कर्मों का फल होता है. जब से उन्होंने ये बात कही है सभी उनके पीछे पड़ गए हैं. कुछ लोगों का मानना है कि पार्टी बदल कर भाजपा में जाने के कारण उनकी सोच ऐसी हो गई है तो कुछ इसमें मोदी को भी खींच लाए. आखिर मोदी ने भी तो कहा था कि दुनिया की पहली प्लास्टिक सर्जरी श्री गणेश की है.

इसमें तो कोई शक नहीं कि ये स्टेटमेंट गलत था और दुनिया भर के कैंसर और एक्सिडेंट पेशंट्स के साथ नाइंसाफी थी. भले ही कोई कुछ भी कहे, लेकिन एक मिनिस्टर को इस तरह की बात शोभा नहीं देती है. फिर भी अगर देखा जाए तो सरमा जी ने कुछ भी ऐसा नहीं कहा जो शायद आम मान्यता न हो.

एक तरह से गौर करें तो सिर्फ हिंदू मान्यताएं ही नहीं बल्कि दुनिया भर के अनेको ग्रंथों में ऐसी बातें लिखी गई हैं कि बीमारियां हमारे कर्मों का फल होती हैं और ये भगवान द्वारा दिया गया श्राप है. एक बात खुद सोचिए जो लोग हेमंत बिस्वास सरमा की बातों को कोरा अंधविश्वास कह रहे हैं वो ही शायद चिकन पॉक्स और स्मॉल पॉक्स को बड़ी माता, छोटी माता कहते हैं..

भले ही कैंसर अभी प्रचलन में आया हो, लेकिन कर्क रोग तो न जाने कब से भारतीय लोगों की जुबान पर रहता था. जरा सोचिए ऐसी कितनी ही कहानियां प्रचलित हैं जो कहती हैं कि बीमारियां या तो भगवान का श्राप है या फिर वो हमारे अपने कर्मों की सजा हैं..

1. चिकन पॉक्‍स को कहते हैं माता...

शीतला माता से इस बीमारी को जोड़कर देखा जाता है. किंवदंती कहती है कि शीतला माता के एक हाथ में चांदी की झाड़ू रहती है जो बीमारियों का प्रतीक है और दूसरे हाथ में ठंडा जल जिससे लोगों को ठीक किया जाता है. शीतला सप्तमी इसलिए मनाई जाती है क्योंकि शीतला माता को ठंडा पसंद है और उस दिन एक दिन पहले बनाया हुआ खाना खाया जाता है. कुछ भी गर्म नहीं. जब माता आती है तो मरीज को कोई इलाज नहीं दिया जाता. उसके आसपास सिर्फ नीम की पत्तियों को रखा जाता है. इसके अलावा, घर में कुछ छौंका भी नहीं जाता है. साफ-सफाई का ध्यान रखा जाता है. माना जाता है कि छोटी माता ढाई दिन और बड़ी 6-7 दिनों में ठीक हो जाती है. नीम इसलिए रखी जाती है क्योंकि ये माना जाता है कि शीतला माता अपनी 7 बहनों के साथ नीम के आस-पास रहती हैं.

2. पंडोरा का पिटारा भी कुछ ऐसा ही...

पंडोरा ग्रीक माइथोलॉजी के अनुसार दुनिया की पहली महिला थी और उसे सभी देवताओं ने कुछ न कुछ तोहफा दिया था. किसी ने उसे खूबसूरती दी थी ताकि वो मर्दों पर राज कर सके, किसी ने उसे तेज दिमाग दिया था.. इसी सब के बीच पंडोरा को एक मर्तबान मिला जिसे बाद में पिटारा या बक्सा कहा गया. पंडोरा के उस बक्से में अनेकों बीमारियां थीं. पंडोरा से उसे न खोलने के लिए कहा गया था, लेकिन उसने उस पिटारे को खोल दिया और उसके बाद धरती पर बीमारियां फैल गईं. उसके बाद ही धरती से इंसानों का स्वर्णिम युग खत्म हो गया और धरती पर बीमारियों का वास हुआ.

3. शिव और बीमारियां...

भगवान शिव को भी बीमारियों से जोड़कर देखा जाता है. दुनिया के बनने और बीमारियों के आने से जोड़कर शिव को भी देखा जाता है. दक्ष यानि सती के पिता और शिव के ससुर ने एक घोड़े की बली देने और यज्ञ करने की सोची. हर देवता को बुलाया गया सिवाए शिव के. सती ने शिव से पूछा कि वो क्यों नहीं जा रहे हैं तो शिव ने उन्हें बताया. सती को बहुत बुरा लगा और उन्होंने कहा कि वो (शिव) सबसे ऊपर हैं. अपने पति के अपमान के कारण सती ने आत्मदाह भी कर लिया था.

इससे गुस्साए शिव ने दक्ष पर हमला कर दिया. दक्ष का पीछा करते हुए शिव का पसीना भूमि पर गिरा और उससे एक लाल आखों वाले छोटे कद के आदमी की रचना हुई. यही बीमारी थी. सभी देवताओं ने कहा कि इसे विभाजित कर दिया जाए क्योंकि दुनिया इसे झेल नहीं पाएगी और यही कारण है कि बीमारियां अलग-अलग भागों में बट गईं.

4. साईं भगवान और बीमारियां...

कहा जाता है कि साईंनाथ पानी से दिए जलाते थे और एक बार पूरे गांव को बीमारी से बचाया था. उन्होंने गेहूं पीसा और आटे की लकीर गांव के चारों ओर बना दी और रोग को गांव में आने से रोक लिया. इसके अलावा, माता को भी सांई नाथ छूकर ही ठीक कर देते थे.

चाहें साईं भगवान हों, शिव जी हों, शीतला माता हों सभी मान्यताएं पुष्तों से चली आ रही हैं. ग्रीक, कैथोलिक, तिब्बतियन और कई धर्म देशों में ऐसी ही मान्यताएं हैं. और देखा जाए तो सरमा जी की बात गलत भी नहीं है क्योंकि ग्रंथों और पुराणों में ऐसा लिखा है कि रोग कर्म के हिसाब से मिलता है. ये बात एक मिनिस्टर बोले तो गलत ही लगेगी क्योंकि वो एक ऐसे पद पर हैं जहां मान्यताओं को ज्यादा मानना उनके लिए सही नहीं. लेकिन किसी मिनिस्टर को ऐसे वाक्य पर अंधविश्वासी कहना और खुद ऐसा ही अंधविश्वास करना पाखंड से कम नहीं है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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