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आत्महत्या क्यों करते हैं लोग? / एक जादू की झप्पी की तलाश सबको है.

    • प्रीति अज्ञात
    • Updated: 16 जून, 2020 09:21 PM
  • 16 जून, 2020 09:21 PM
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एक्टर सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या (Sushant Singh Rajput Suicide) के बाद एक बात तो साफ़ है कि आज इंसान इतना परेशान है कि उसे ये तक समझ में नहीं आता कि अपने अवसाद (Depression) के क्षणों में वो किस्से अपना दुःख साझा करे. साफ़ है कि यदि इंसान बातचीत करे तो मृत्यु की संभावनाओं को टाला जा सकता है.

हम सबके मन के भीतर एक कोना ख़ालिस अंधेरे से भी भरा होता है. इस कोने में तमाम टूटे सपने, दबी हुई ख्वाहिशें, खोए हुए रिश्ते और कुछ ऐसी विषाक्त तस्वीरें ठसाठस भरी होती हैं जिन्हें इंसान चाहकर भी भुला नहीं सकता. उदासी और निराशा भरे दौर में इसी कोने की खिड़कियां अनायास ही धीरे-धीरे फिर खुलने लगती हैं. इससे जुड़ी बुरी स्मृतियां चारों ओर से घेर बेतहाशा प्रहार करती हैं. अब मन ये मान लेना चाहता है कि 'मेरा कोई नहीं.' यही वो पल है जब इंसान अपने जीवन का सबसे मुश्किल और ख़तरनाक निर्णय ले लिया करता है. अपने-आप से दूरी बनाने की इस सोच में उसे 'आत्महत्या' (Suicide) ही एकमात्र तरीक़ा नज़र आता है. वो यह भूल जाता है कि उसके जाने के बाद उन लोगों का क्या होगा, जिन्होंने अपना जीवन उससे जोड़ रखा था? क्या मृत्यु सभी शंकाओं का समाधान है? क्या जीवन से हार मान लेना, मृत्यु पर विजय का संकेत है? क्या आत्महत्या संघर्ष से मुंह छुपाकर भागना नहीं होता? लेकिन इस सबके साथ एक प्रश्न और भी उठता है कि इंसान किन परिस्थितियों में मौत को गले लगाता होगा? मर जाना इतना आसान होता है क्या?

सुशांत की मौत के बाद कहा यही जा सकता है कि काश कोई ऐसा होता जिससे सुशांत बैठकर बात कर पाते

आत्महत्या का निर्णय लेते समय, आंखों के सामने माता-पिता का बिलखता चेहरा जरुर झूलता होगा. मन जरुर सोचता होगा कि मां जाने कब तक आकाश को ताक बादलों में मेरी तस्वीर तलाशेगी. बेसुध हो घंटों रोएगी और एक दिन पागल हो मर ही जाएगी. पिता के सारे सपने भी उन्हीं की तरह उम्र भर के लिए बिखर जाएंगे. दोस्त फूट-फूटकर रोएंगे और उलाहना देते हुए कहेंगे, 'कमीने, एक बार तो गले लग दिल का हाल बताता यार!' कितने सपने जो एक इंसान अपने-आप के लिए देखा करता है.

क्या वे सब उस एक पल में...

हम सबके मन के भीतर एक कोना ख़ालिस अंधेरे से भी भरा होता है. इस कोने में तमाम टूटे सपने, दबी हुई ख्वाहिशें, खोए हुए रिश्ते और कुछ ऐसी विषाक्त तस्वीरें ठसाठस भरी होती हैं जिन्हें इंसान चाहकर भी भुला नहीं सकता. उदासी और निराशा भरे दौर में इसी कोने की खिड़कियां अनायास ही धीरे-धीरे फिर खुलने लगती हैं. इससे जुड़ी बुरी स्मृतियां चारों ओर से घेर बेतहाशा प्रहार करती हैं. अब मन ये मान लेना चाहता है कि 'मेरा कोई नहीं.' यही वो पल है जब इंसान अपने जीवन का सबसे मुश्किल और ख़तरनाक निर्णय ले लिया करता है. अपने-आप से दूरी बनाने की इस सोच में उसे 'आत्महत्या' (Suicide) ही एकमात्र तरीक़ा नज़र आता है. वो यह भूल जाता है कि उसके जाने के बाद उन लोगों का क्या होगा, जिन्होंने अपना जीवन उससे जोड़ रखा था? क्या मृत्यु सभी शंकाओं का समाधान है? क्या जीवन से हार मान लेना, मृत्यु पर विजय का संकेत है? क्या आत्महत्या संघर्ष से मुंह छुपाकर भागना नहीं होता? लेकिन इस सबके साथ एक प्रश्न और भी उठता है कि इंसान किन परिस्थितियों में मौत को गले लगाता होगा? मर जाना इतना आसान होता है क्या?

सुशांत की मौत के बाद कहा यही जा सकता है कि काश कोई ऐसा होता जिससे सुशांत बैठकर बात कर पाते

आत्महत्या का निर्णय लेते समय, आंखों के सामने माता-पिता का बिलखता चेहरा जरुर झूलता होगा. मन जरुर सोचता होगा कि मां जाने कब तक आकाश को ताक बादलों में मेरी तस्वीर तलाशेगी. बेसुध हो घंटों रोएगी और एक दिन पागल हो मर ही जाएगी. पिता के सारे सपने भी उन्हीं की तरह उम्र भर के लिए बिखर जाएंगे. दोस्त फूट-फूटकर रोएंगे और उलाहना देते हुए कहेंगे, 'कमीने, एक बार तो गले लग दिल का हाल बताता यार!' कितने सपने जो एक इंसान अपने-आप के लिए देखा करता है.

क्या वे सब उस एक पल में आंखों के पानी से न बह जाते होंगे ख़ुशी के मुट्ठी भर पल ही सही, एक बार तो याद आते होंगे. इन सारे पलों से जीतकर, ऊपर उठ व्यक्ति मर जाने की चाह रख पाता है. तो यह भी हिम्मत का ही काम है. मैं इसे महिमामंडित नहीं कर रही पर क़ाश! यही हिम्मत उसने जीने के लिए जुटा दी होती.

दिक्कत यही है कि हम सब अपने दुखों को बांटने के लिए एक कंधा तलाश रहे होते हैं कि कोई तो ऐसा हो जो हमें समझे. हमारे सुख-दुःख में साथी बन साथ खड़ा हो. एक ऐसा इंसान जिसके गले लग दुनिया भर के ग़म सदा के लिए अलविदा कह दें. एक ऐसा साथ, जिसका हाथ थाम चल हर यात्रा छोटी लगे. एक ऐसी मुस्कान जिस पर सारे जहां की खुशियाँ क़ुर्बान हो जाएँ. ये ख्व़ाब हम सब देखते हैं. रोज़ देखते हैं.

पैसा, पद, भौतिक सुख-सुविधाएं ये सब बातें बेमानी हैं यदि आपके जीवन में आपको प्यार करने या समझने वाला शख्स न हो. हर वो ख़ुशी खोखली है जब आप उसे किसी के साथ सेलिब्रेट न कर पाएं. वो हंसी भी फ़ीकी ही है जिसमें साथी की आवाज़ मिल ठहाकों में तब्दील न हो जाए. दुःख में झरते उन आंसुओं का भी क्या, जो कोई आगे बढ़ उन्हें पोंछ यूं न कहे कि 'मैं हूं न!' एक जादू की झप्पी की तलाश सबको है.

ये अपेक्षा ही इंसानों को भीतर से तोड़ रही है. जबकि होना ये चाहिए कि कोई हमारा न भी बन सका तो क्या! हम तो लोगों के जीवन में खुशियां भर दें. किसी ने हमें मुसीबत में बीच राह भले ही छोड़ दिया, हम तो किसी की सहायता कर सकें. दूसरों के सुख-दुःख को अपना समझ जिस दिन जीने लगेंगे, उस दिन सारी परेशानियां बौनी नज़र आएंगीं.

समय का रोना सबके पास है. तनाव सबके जीवन में है. डिप्रेशन से बहुत लोग जूझ रहे हैं. इन्हें अपने दुःख का साझेदार न मिला. आसानी से मिलता भी नहीं. ख़ुद को प्यार करना ही इससे निकलने की सरल, सुलभ दवा है. मन कहे तो ढूंढिए किसी ऐसे शख्स को, जो आपकी ख़ुशी का मोल समझे, कुछ लोग आप ही की तरह होते हैं. ग़र ख़ुशकिस्मती हुई तो अनायास मिल भी सकते हैं. न हों तो आप किसी की ख़ुशी बन जाइए. जीवन ऐसे ही जीता जा सकता है.

मैं बार- बार आपको कह रही हूं कि कभी नाउम्मीद न हों. जीवन में रहकर ही इसकी मुश्किलों से लड़ा जा सकता है. समस्याओं का समाधान निकाला जा सकता है. ‘जीवन से बेहतर कोई विकल्प नहीं!’ किसी हाल में नहीं.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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