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दहेज की जगह उचित शिक्षा की व्यवस्था क्यों नहीं करता समाज?

    • Prince D
    • Updated: 22 जनवरी, 2023 10:33 PM
  • 22 जनवरी, 2023 10:33 PM
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वाह मेरे देश के वीरों इसे भी इतने अच्छे तरीक़े से पेश फ़रमाते हैं कि आज के युग का बाप भी आने वाले 20 वर्ष के बाद भी अपनी बिटिया के लिए शिक्षा नहीं वरन दहेज के लिए पॉलिसी करवाने का सोचे.

आज भारत में जाने कितनी ही कंपनियां हैं जो हमें किसी दुर्घटना के हो जाने पर आर्थिक सुरक्षा प्रदान करने के लिए पॉलिसी करवाती है और फिर ऐसी स्थिति में मदद करती है. पर कुछ दिन पहले मैंने अपने शहर के सब्ज़ी मार्केट में एक विज्ञापन देखा कि "13 लाख अपनी बेटियों के कन्यादान के लिए" फिर दिमाग़ घूम उठा हां वैसे ही जैसे अभी आपका घूमने के स्थिति में हो सकता है कि ऐसा क्या है? पर दिमाग़ असल में थोड़ा अलग तरीक़े से घूमा था कि कन्यादान में 13 लाख की ज़रूरत तो नहीं होती.

हमारे यहां तो लगता है एक मौली धागा, आटे की लोई, एक लोटा और जब तक पंडित का मंत्र ख़त्म न हो जाये तब तक भाई के द्वारा ऊपर से डाला जाने वाला पानी. मगर इतने के लिए 13 लाख तो हरगिज़ नहीं लगते. अच्छा हां फिर समझ आया कि भई ये कन्यादान के नाम पर दी जाने वाली राशि दरअसल में दहेज है. अब तो दिमाग़ चलने लगा कि सबसे बड़ी चीज़ एक तरफ़ दहेज़ को समाज ने सामाजिक बुराई घोषित किया हुआ है और दूसरे तरफ़ उसके लिए इंश्योरेंस पॉलिसी बेची जा रही है. 

वाह मेरे देश के वीरों इसे भी इतने अच्छे तरीक़े से पेश फ़रमाते हैं कि आज के युग का बाप भी आने वाले 20 वर्ष के बाद भी अपनी बिटिया के लिए शिक्षा नहीं वरन दहेज के लिए पॉलिसी करवाने का सोचे. दहेज़ के नाम पर आज भी मैंने देखा है अपने ही आस-पास कितने माता-पिता को लोन लेते और फिर जीवन के अंतिम चरण में भी उस लोन को चुकाते चुकाते मरते हुए. कई ऐसे लोग हैं जिन्होंने अपने जीवन की सारी पूंजी बेटी के दहेज़ के लिए बचाई ना कि बेटी के पढ़ाई के लिए.

फिर वहीं आते हैं वो लोग जो अपनी छवि बनाए रखने के लिए दहेज जैसी इस कुप्रथा का समर्थन करते हैं और अपनी शान बनाने के लिए बेटी को दहेज़ देते हैं और इस सामाजिक बुराई को और सम्मान का विषय बना देते हैं. जाने कहां से आते हैं ये लोग जिनको...

आज भारत में जाने कितनी ही कंपनियां हैं जो हमें किसी दुर्घटना के हो जाने पर आर्थिक सुरक्षा प्रदान करने के लिए पॉलिसी करवाती है और फिर ऐसी स्थिति में मदद करती है. पर कुछ दिन पहले मैंने अपने शहर के सब्ज़ी मार्केट में एक विज्ञापन देखा कि "13 लाख अपनी बेटियों के कन्यादान के लिए" फिर दिमाग़ घूम उठा हां वैसे ही जैसे अभी आपका घूमने के स्थिति में हो सकता है कि ऐसा क्या है? पर दिमाग़ असल में थोड़ा अलग तरीक़े से घूमा था कि कन्यादान में 13 लाख की ज़रूरत तो नहीं होती.

हमारे यहां तो लगता है एक मौली धागा, आटे की लोई, एक लोटा और जब तक पंडित का मंत्र ख़त्म न हो जाये तब तक भाई के द्वारा ऊपर से डाला जाने वाला पानी. मगर इतने के लिए 13 लाख तो हरगिज़ नहीं लगते. अच्छा हां फिर समझ आया कि भई ये कन्यादान के नाम पर दी जाने वाली राशि दरअसल में दहेज है. अब तो दिमाग़ चलने लगा कि सबसे बड़ी चीज़ एक तरफ़ दहेज़ को समाज ने सामाजिक बुराई घोषित किया हुआ है और दूसरे तरफ़ उसके लिए इंश्योरेंस पॉलिसी बेची जा रही है. 

वाह मेरे देश के वीरों इसे भी इतने अच्छे तरीक़े से पेश फ़रमाते हैं कि आज के युग का बाप भी आने वाले 20 वर्ष के बाद भी अपनी बिटिया के लिए शिक्षा नहीं वरन दहेज के लिए पॉलिसी करवाने का सोचे. दहेज़ के नाम पर आज भी मैंने देखा है अपने ही आस-पास कितने माता-पिता को लोन लेते और फिर जीवन के अंतिम चरण में भी उस लोन को चुकाते चुकाते मरते हुए. कई ऐसे लोग हैं जिन्होंने अपने जीवन की सारी पूंजी बेटी के दहेज़ के लिए बचाई ना कि बेटी के पढ़ाई के लिए.

फिर वहीं आते हैं वो लोग जो अपनी छवि बनाए रखने के लिए दहेज जैसी इस कुप्रथा का समर्थन करते हैं और अपनी शान बनाने के लिए बेटी को दहेज़ देते हैं और इस सामाजिक बुराई को और सम्मान का विषय बना देते हैं. जाने कहां से आते हैं ये लोग जिनको बेटी की ख़ुशी के लिए दहेज़ उसका सुरक्षा कवच लगता है न कि उनकी शिक्षा. कुछ ऐसे भी लोग हैं जिन्हें हम आदिवासी कहते हैं पर जब आप उनकी विवाह की प्रथाएं देखेंगे तो वहां दहेज जैसा कुछ नहीं नज़र आता और विवाह में कई जनजातियों में तो धन वधू के परिवार को दिया जाता है. खैर, वो विज्ञापन एलआईसी का था. योजना क्या है ये तो नहीं पता पर बेटी के दहेज के लिए पॉलिसी मुझे तो सीधे दहेज प्रथा को बढ़ावा देने वाली लगी.

अब सीधी सी बात है लड़कों दहेज़ के ख़िलाफ़ जाओ और थोड़ा अपने दम पर सारी चीज़ों को ले यार. मुझे तो विवाह में दहेज शख़्त ग़लत लगता है और ये ऐसी पॉलिसी जो बेटियों के दहेज को बढ़ावा देने वाली लगती है. तो इस बात को कहने की और बार बार कहने की ज़रूरत है की मैं दहेज नहीं लूंगा.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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