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क्यों देश के लिए बेहद जरूरी है, नो हॉर्न प्लीज!

    • आईचौक
    • Updated: 05 जुलाई, 2016 06:08 PM
  • 05 जुलाई, 2016 06:08 PM
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लोगों की ज्यादा हॉर्न बजाने की समस्या से निजात पाने के लिए सरकार जल्द ही ज्यादा हॉर्न बजाने वालों पर जुर्माना लगाने का नियम बनाने जा रही है, जानिए क्यों जरूरी है भारत के लिए नो, हॉर्न प्लीज?

एक ऐसे देश में जहां बिना हॉर्न बजाए कुछ कदम भी चलना मुश्किल हो बेंगलुरु के इंजीनियर मंसूर अली शरीफ की अपनी कार में बिना हॉर्न के ही चलाते हैं. मंसूर ऐसा पिछले कई वर्षों से सफलतापूर्वक कर रहे हैं. अब तो मंसूर भारत को हॉर्न से मुक्ति दिलाने की मुहिम में जुट गए हैं. लेकिन मंसूर जैसे लोग भारत में गिने-चुने हैं, जोकि हॉर्न नहीं बजाते हैं. वर्ना यहां तो दो पहिए से लेकर चार पहिए और ट्रक से लेकर ऑटो रिक्शा ड्राइवर तक एकदूसरे को हॉर्न बजाने की होड़ में मात देने में लगे रहते है.

एक मजेदार कहावत है कि भारत के दिल्ली, मुंबई जैसे शहरों में एक ड्राईवर जितना हॉर्न बजाता है उतना तो यूरोप में कोई ड्राइवर साल भर में भी नहीं बजाता. ये बात कितनी सच है ये शायद आपको बताने की जरूरत नहीं होगी. भारत जैसे देश में हॉर्न किसी गाड़ी के लिए उतना ही जरूरी माना जाता है जितनी की ब्रेक. यहां लोगों की मानसिकता ही है कि अगर आपको दुर्घटना से बचना है तो हॉर्न बजाना सबसे जरूरी है. शायद इसीलिए यहां लोग गाड़ी चलाना बाद में सीखते है लेकिन हॉर्न बजाना पहले.

इसलिए मंसूर जैसे लोग उम्मीद जगाते हैं, उस बदलाव की जोकि इस देश के लिए बहुत जरूरी है. हॉर्न से मुक्ति पाकर भारत ध्वनि प्रदूषण और रोड रेज जैसी कई समस्याओं से काफी हद तक छुटकारा पा सकता है. आइए जानें आखिर क्यों देश के लिए जरूरी है हॉर्न से मुक्ति पाना.

भारत में लोग क्यों बजाते हैं ज्यादा हॉर्न?

इसकी सब, बड़ी वजह लोगों की मानसिकता है. दरसअल उन्हें बचपन से ही यही सीख मिलती है कि रोड पर जल्दी और सुरक्षित चलने के लिए हॉर्न बजाना बेहद जरूरी है. इसकी दूसरी वजह सड़कों पर गाड़ियों की भारी भीड़ है. भारत में ट्रैफिक इतना ज्यादा होता है कि बिना हॉर्न के काम नहीं चल पाता. पिछले दो दशकों के दौरान देश में गाड़ियों की तादाद करीब 212 फीसदी बढ़ी है जबकि सड़कों की संख्या 17 फीसदी ही बढ़ी. जाहिर सी बात है कि सड़क पर गाड़ियों की संख्या दिनोंदिन बढ़ती ही चली गई.

लेकिन सिर्फ...

एक ऐसे देश में जहां बिना हॉर्न बजाए कुछ कदम भी चलना मुश्किल हो बेंगलुरु के इंजीनियर मंसूर अली शरीफ की अपनी कार में बिना हॉर्न के ही चलाते हैं. मंसूर ऐसा पिछले कई वर्षों से सफलतापूर्वक कर रहे हैं. अब तो मंसूर भारत को हॉर्न से मुक्ति दिलाने की मुहिम में जुट गए हैं. लेकिन मंसूर जैसे लोग भारत में गिने-चुने हैं, जोकि हॉर्न नहीं बजाते हैं. वर्ना यहां तो दो पहिए से लेकर चार पहिए और ट्रक से लेकर ऑटो रिक्शा ड्राइवर तक एकदूसरे को हॉर्न बजाने की होड़ में मात देने में लगे रहते है.

एक मजेदार कहावत है कि भारत के दिल्ली, मुंबई जैसे शहरों में एक ड्राईवर जितना हॉर्न बजाता है उतना तो यूरोप में कोई ड्राइवर साल भर में भी नहीं बजाता. ये बात कितनी सच है ये शायद आपको बताने की जरूरत नहीं होगी. भारत जैसे देश में हॉर्न किसी गाड़ी के लिए उतना ही जरूरी माना जाता है जितनी की ब्रेक. यहां लोगों की मानसिकता ही है कि अगर आपको दुर्घटना से बचना है तो हॉर्न बजाना सबसे जरूरी है. शायद इसीलिए यहां लोग गाड़ी चलाना बाद में सीखते है लेकिन हॉर्न बजाना पहले.

इसलिए मंसूर जैसे लोग उम्मीद जगाते हैं, उस बदलाव की जोकि इस देश के लिए बहुत जरूरी है. हॉर्न से मुक्ति पाकर भारत ध्वनि प्रदूषण और रोड रेज जैसी कई समस्याओं से काफी हद तक छुटकारा पा सकता है. आइए जानें आखिर क्यों देश के लिए जरूरी है हॉर्न से मुक्ति पाना.

भारत में लोग क्यों बजाते हैं ज्यादा हॉर्न?

इसकी सब, बड़ी वजह लोगों की मानसिकता है. दरसअल उन्हें बचपन से ही यही सीख मिलती है कि रोड पर जल्दी और सुरक्षित चलने के लिए हॉर्न बजाना बेहद जरूरी है. इसकी दूसरी वजह सड़कों पर गाड़ियों की भारी भीड़ है. भारत में ट्रैफिक इतना ज्यादा होता है कि बिना हॉर्न के काम नहीं चल पाता. पिछले दो दशकों के दौरान देश में गाड़ियों की तादाद करीब 212 फीसदी बढ़ी है जबकि सड़कों की संख्या 17 फीसदी ही बढ़ी. जाहिर सी बात है कि सड़क पर गाड़ियों की संख्या दिनोंदिन बढ़ती ही चली गई.

लेकिन सिर्फ ट्रैफिक को ही ज्यादा हॉर्न बजाने के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता. भारत में हॉर्न बजाना लोगों की आदत में शुमार हो चुका है. जैसे यहां ट्रक वाले तो बिना हॉर्न के चल ही नहीं सकते, हॉर्न से ही उन्हें पता चलता है कि कौन उन्हें ओवरटेक कर रहा है और इसी की बदौलत वे पैदल चलने वालों, छोटी गाड़ियों और जानवरों तक को अपने से दूर हटाते हैं. रेड लाइट पर खड़े लोगों का बेसब्र होकर हॉर्न बजाते रहना किसी जरूरत नहीं बल्कि गलत आदत का ही नतीजा है. या यूं कहें कि बेवजह कि जल्दबाजी, बेचैनी और गलत आदत ही भारत में ज्यादा हॉर्न बजाने की वजह है.  

भारत में हॉर्न बजाना फैशन और शौक जैसा है!

क्यों भारत के लिए जरूरी है, नो हॉर्न प्लीज!

एक रिपोर्ट्स के मुताबिक भारत के बड़े महानगरों में होने वाले ध्वनि प्रदूषण में से 60-70 फीसदी गाड़ियों के हॉर्न की वजह से होता है. गाड़ियों के तेज हॉर्न से पैदा होने वाला ध्वनि प्रदूषण स्वास्थ्य के लिए इतना हानिकारक होता है कि इसकी वजह से चिड़चिड़ापन, हाई ब्लड प्रेशर और कई बार तो दिल की बीमारियों के भी बढ़ने का खतरा रहता है. इतना ही नहीं गाड़ियों की तेज ध्वनि आपको बहरा भी बनाती है. इसीलिए महनगरों में गाड़ियों के हॉर्न के शोर के बीच रहने वालों लोगों में आंशिक बहरापन पैदा हो जाता है.

तेज हॉर्न कई बार रोड रेज और ऐक्सिडेंट की घटनाओं का भी कारण बनता है. दिल्ली में पिछले कुछ वर्षों के दौरान रोड रेज की ऐसी कई घटनाएं हुई हैं जिनमें बार-बार हॉर्न बजाए जाने की वजह से दो लोगों में हिंसक भिड़ंत हुई. एकदूसरे से आगे निकलने की होड़ हो, या रेड लाइट को जल्दी पार करने की अधीरता,  बाइकर्स का जिग-जैग चलते हुए तेज हॉर्न बजाना. ये घटनाएं शहर की सड़कों पर हर दिन होती हैं. तमाम कोशिशों और अपील के बावजूद भारत हॉर्न बजाना नहीं छोड़ता.

अब ज्यादा हॉर्न बजाने पर सरकार लगाएगी जुमार्नाः

तमाम अपीलों के बावजूद लोगों को हॉर्न बजाने से रोकने में नाकाम रहने के बाद अब सरकार ज्यागा हॉर्न बजाने वालों पर जुर्माना लगाने का नियम बनाने जा रही है. इस नियम के दायरे में गाड़ी मालिक, डीलर्स और मैन्युफैक्चर्स सब आएंगे. इस नियम के मुताबिक 'गैरजरूरी या लगातार' ढंग से लगातार हॉर्न बजाने वाले पर पहली बार 500 रुपये का जुर्माना लगेगा और इसके बाद हर बार ये गलती दोहराने पर 1000 रुपये का जुर्माना लगाया जाएगा. अपनी गाड़ी में मल्टी टोन या एयर हॉर्न लगाने वालों पर 5000 रुपये तक का जुर्माना लगाया जाएगा. गाड़ी में ऐसे हॉर्न लगाने वाले डीलर्स और गैरेज के मालिकों पर 1 लाख रुपये तक का जुर्माना लगाने पर विचार किया जा रहा है. सड़क एवं परिवहन मंत्रालय संसद के मॉनसून सत्र में इसे मोटर वीइकल ऐक्ट में संसोधन बिल के तौर पर लाने की सोच रहा है.

सरकार चाहे जितनी कोशिश कर ले हकीकत तो ये है कि बेकार में हॉर्न की चिल्लपो न करने के लिए लोगों की सोच में बदलाव आना जरूरी है. लोगों को ये समझना जरूरी है कि बेकार में हॉर्न बजाने से कितना नुकसान होता है. जब तक लोग बेकार में हॉर्न बजाने के नुकसान को समझकर इससे तौबा नहीं करेंगे आपको ट्रको के पीछे हॉर्न प्लीज लिखे नजर आते रहेंगे.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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