• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
समाज

पढ़े लिखे लोगों को इस देश में सिर्फ मुसलमानों का ही दर्द क्यों दिखता है??

    • सुरभि सप्रू
    • Updated: 22 जुलाई, 2017 07:28 PM
  • 22 जुलाई, 2017 07:28 PM
offline
जो लोग ये कहते हैं कि कश्मीर उन लोगों का है जो भारत को अपना नहीं मानते तो मेरा सवाल उनसे सीधा है कि फिर आज तक वहां के लोग हमारे अनेक मंदिरों का विनाश क्यों नहीं कर पाए, वो आज तक अमरनाथ यात्रा बंद क्यों नहीं करवा पाए??

कुछ दिनों पहले किसी से कश्मीर पर बहस चली, जनाब कश्मीर में आजादी का पाठ पढ़ाने वाली गैंग के समर्थक निकले. पंजाब के रहने वाले ये व्यक्ति मुझे कश्मीर पर ज्ञान दे रहे थे जो खुद कभी कश्मीर गए भी नहीं. मुझसे भी उन्होंने ये कहा कि आप कभी वहां गई नहीं तो आपकी बात पक्की कैसे हो सकती है. लेकिन ये कहने से पहले उन्होंने ये नहीं पूछा कि आप वहां गई है या नहीं गई है, ये भी जानने का प्रयास नहीं किया कि वहां के हालात कैसे हैं, पर सब कुछ पहले से ही सोच लिया कि जो मैं कह रहा हूं वही सही है. ये है कुछ पढ़े लिखे बुद्धिजीवियों की समस्या. वो सब कुछ खुद तय कर लेते हैं और दूसरों पर हमेशा शक करते हैं.

ये Not In My Name के समर्थक भी हैं, जिन विरोधियों ने तभी अपना मुंह खोला है जब नाम जुनैद, आमिर इत्यादि हो लेकिन वहीं अगर नाम राम और विष्णु होगा तो ये पूरा गैंग अपने मुंह पर ताला लगा लेगा. मुझे आश्चर्य इस बात पर होता है जिस दिन Not In My Name हो रहा था और जुनैद की हत्या का कारण बीफ बताया गया था तब सारे कैमरा इनसे गुफ्तगू करने पहुंच गए, सबसे आगे खड़ी शबाना आज़मी का कॉन्फिडेंस कमाल का लग रहा था उन्हें अपने ट्विटर के लिए काफी अच्छी तस्वीरें भी नसीब हुईं पर अब जुनैद किस कारण से मारा गया उसका खुलासा हो गया तो कोई कैमरा या कोई ऐसा साक्षात्कार क्यों नहीं किया गया इन लोगों से ये पूछने के लिए कि आप किसी भी विरोध से पहले तथ्य को क्यों नहीं जानना चाहते? किसी ने शबाना आज़मी से उनका सड़ा हुआ पोस्टर फेंकने को क्यों नहीं कहा?

मैं फिर इस व्यक्ति पर पहुंचती हूं जिसने मुझसे कहा कि कश्मीर के लोग भारत में नहीं रहना चाहते. मेरा जवाब था कि मैं कश्मीर से हूं और मैं भारत में रहना चाहती हूं. क्या कश्मीर के पंडित कश्मीर के नहीं है? जनाब ने पुछा ‘क्या आपकी वहां जमीन है’. मैंने कहा ‘जी थी, हड़प ली गई...

कुछ दिनों पहले किसी से कश्मीर पर बहस चली, जनाब कश्मीर में आजादी का पाठ पढ़ाने वाली गैंग के समर्थक निकले. पंजाब के रहने वाले ये व्यक्ति मुझे कश्मीर पर ज्ञान दे रहे थे जो खुद कभी कश्मीर गए भी नहीं. मुझसे भी उन्होंने ये कहा कि आप कभी वहां गई नहीं तो आपकी बात पक्की कैसे हो सकती है. लेकिन ये कहने से पहले उन्होंने ये नहीं पूछा कि आप वहां गई है या नहीं गई है, ये भी जानने का प्रयास नहीं किया कि वहां के हालात कैसे हैं, पर सब कुछ पहले से ही सोच लिया कि जो मैं कह रहा हूं वही सही है. ये है कुछ पढ़े लिखे बुद्धिजीवियों की समस्या. वो सब कुछ खुद तय कर लेते हैं और दूसरों पर हमेशा शक करते हैं.

ये Not In My Name के समर्थक भी हैं, जिन विरोधियों ने तभी अपना मुंह खोला है जब नाम जुनैद, आमिर इत्यादि हो लेकिन वहीं अगर नाम राम और विष्णु होगा तो ये पूरा गैंग अपने मुंह पर ताला लगा लेगा. मुझे आश्चर्य इस बात पर होता है जिस दिन Not In My Name हो रहा था और जुनैद की हत्या का कारण बीफ बताया गया था तब सारे कैमरा इनसे गुफ्तगू करने पहुंच गए, सबसे आगे खड़ी शबाना आज़मी का कॉन्फिडेंस कमाल का लग रहा था उन्हें अपने ट्विटर के लिए काफी अच्छी तस्वीरें भी नसीब हुईं पर अब जुनैद किस कारण से मारा गया उसका खुलासा हो गया तो कोई कैमरा या कोई ऐसा साक्षात्कार क्यों नहीं किया गया इन लोगों से ये पूछने के लिए कि आप किसी भी विरोध से पहले तथ्य को क्यों नहीं जानना चाहते? किसी ने शबाना आज़मी से उनका सड़ा हुआ पोस्टर फेंकने को क्यों नहीं कहा?

मैं फिर इस व्यक्ति पर पहुंचती हूं जिसने मुझसे कहा कि कश्मीर के लोग भारत में नहीं रहना चाहते. मेरा जवाब था कि मैं कश्मीर से हूं और मैं भारत में रहना चाहती हूं. क्या कश्मीर के पंडित कश्मीर के नहीं है? जनाब ने पुछा ‘क्या आपकी वहां जमीन है’. मैंने कहा ‘जी थी, हड़प ली गई है अभी भी कई लोगों की ज़मीनें हैं, घर हैं जो हड़प लिए गए हैं. मैंने कहा हमारी कुल देवियों के मंदिर भी वहां हैं, तो क्या हुआ अगर हम वहां रह नहीं सकते तो? आप कौनसा पंजाब में रहते हैं पंजाबी होकर. कहने लगे कि वहां के 90 प्रतिशत लोग भारत के साथ नहीं रहना चाहते मैंने कहा तो हम कौन सा उतावले हो रहे हैं उनको रखने के लिए वो पाकिस्तान जाएं हम फेयरवेल देकर भेजेंगे. ये सुनकर थोड़े चुप हो गए. पढ़े लिखे लोगों को इस देश में सिर्फ मुसलमानों का ही दर्द क्यों दिखता है?? उनको भारत के खिलाफ बोलने का पैसा भी मिलता है पर हम पंडितों को तो कुछ नहीं मिला, न मिलता है, फिर भी हम कभी देश के खिलाफ कोई Not In My Name जैसा घिसा और पिटा हुआ विरोध नहीं कर पाए.

सभी बुद्धिजीवियों ने अमरनाथ यात्रियों को लेकर अपना दुख जताया है पर एक भी पोस्टर छापकर उसका विरोध नहीं किया. ट्विटर पर ट्वीट कर ये लिखा है कि हम इसके खिलाफ है, हां और कई लोगों ने इसमें भी प्रधानमंत्री को जोड़कर सवाल भी किया है और ये वही लोग हैं जो हिन्दू आतंकवाद, जो पाकिस्तान से बातचीत के नारे की उल्टियां कैमरों पर करते हैं, ये वही लोग हैं जो JN जाकर भारत विरोधी नारों का समर्थन भी करते हैं, ये वही लोग हैं जो सर्जिकल स्ट्राइक पर उंगली उठाते हैं. शायद अगर यहां भाजपा की सरकार नहीं होती तो इनके ट्वीट ‘कड़ी निंदा’ वाले ना होते. जो लोग ‘हिन्दू’ आतंकवाद कहते हैं वो आज ‘इस्लाम’ को आतंकवाद के साथ क्यों नहीं जोड़ रहे?? उनका एक भी ट्वीट ‘इस्लाम’ के खिलाफ क्यों नहीं?

अमरनाथ यात्रियों पर ये पहली बार हमला नहीं हुआ है, वर्ष 2000 में भी यात्रियों पर हमला किया गया था अगर निंदा आज की सरकार की हो रही है तो तहसीन पूनावाला जैसे लोगों को अपने घर में भी एक बार झांक लेना चाहिए, जो हमले के बाद एक न्यूज़ चैनल पर कहते हैं ‘देखिये मैंने अभी इसकी निंदा ट्विटर पर कर दी है’ गाड़ियों में और AC कमरों में बैठने वाले लोग क्या जानेंगे कि किसी की मृत्यु पर उनके परिवार वालों का क्या हाल होता होगा. मुझे इस बात पर पूरा विश्वास है कि जंतर-मंतर पर जाने वाले ये लोग कभी जुनैद और रोहित वेमुला के घर पर सांत्वना देने भी नहीं गए होंगे. नौजवानों को भटका कर ये लोग अपनी राजनीति में इतने व्यस्त हैं कि इंसानियत ने भी इनके गले के नीचे उतरने से मना कर दिया है. ये लोग ये सिद्ध कर देंगे कि मजहब सिर्फ इस्लाम है और इस्लाम के नाम पर पत्थर, बारूद, क़त्ल सब जायज़ है चाहे वो हम निर्दोष लोगों के साथ ही क्यों ना करें.

अपने ही बच्चों को कीचड़ में डालने वाले ये लोग तब भी अपने धर्म का ख्याल नहीं रखते तब भी ये नहीं सोचते कि हम मुसलमानों को भी मार रहे हैं और बुरहान वानी इसका सबसे बड़ा उधारण है. पहले रमज़ान के महीने में आतंक अब सावन के महीने में आतंक, वैसे भी हर महीने इनका काम ही यही है. आखिर कब तक हिन्दू कश्मीर में सहता रहेगा. क्या उसे अब भगवन शिव के दर्शन के लिए भी इतना सोचना होगा. जो लोग ये कहते हैं कि कश्मीर उन लोगों का है जो भारत को अपना नहीं मानते तो मेरा सवाल उनसे सीधा है कि फिर आज तक वहां के लोग हमारे अनेक मंदिरों का विनाश क्यों नहीं कर पाए, वो आज तक अमरनाथ यात्रा बंद क्यों नहीं करवा पाए??

मुझे तो गर्व है इन यात्रियों पर जिनका विश्वास इतना अटूट है कि वो सब जानते हुए भी यात्रा पर बेखौफ निकलते हैं पर उतना ही गुस्सा सरकार की सही सुरक्षा व्यवस्था ना होने पर भी है और उससे अधिक गुस्सा ‘इस्लामिक टेरर’ पर है और उससे भी अधिक आक्रोश Not In My Name वालों पर है जो जुनैद को बीफ से जोड़कर एक नई खबर का अविष्कार करते हैं और राम और विष्णु पर चुप्पी साध लेते हैं. अगर आपके नाम के आगे पंडित होगा तो आप आयूब पंडित की तरह मार दिए जाएंगे क्योंकि कश्मीर की कश्मीरियत टपक टपक कर निकलेगी और ऐसी बाढ़ आएगी कि आपका पंडित होना या हिन्दू होना आपकी हत्या का कारण बन जायेगा. पर हम फिर भी क्रिकेट खेलेंगे क्योंकि खेल को खेल के संदर्भ में रखना चाहिए चाहे हिन्दू और जवान मरते रहें. पर जिस खेल के कारण कश्मीर बर्मा के रास्ते पर चल रहा है उस खेल के खिलाफ कितने देशवासी खड़े होंगे सवाल यही है???

ये भी पढ़ें-

अमरनाथ पर आतंकी हमला बड़े खतरे की ओर इशारा कर रहा है

अमरनाथ यात्रियों पर हमले के बाद ट्विटर पर हमला !

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    आम आदमी क्लीनिक: मेडिकल टेस्ट से लेकर जरूरी दवाएं, सबकुछ फ्री, गांवों पर खास फोकस
  • offline
    पंजाब में आम आदमी क्लीनिक: 2 करोड़ लोग उठा चुके मुफ्त स्वास्थ्य सुविधा का फायदा
  • offline
    CM भगवंत मान की SSF ने सड़क हादसों में ला दी 45 फीसदी की कमी
  • offline
    CM भगवंत मान की पहल पर 35 साल बाद इस गांव में पहुंचा नहर का पानी, झूम उठे किसान
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲