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पुरुष कब और क्यों रोते हैं?

    • आईचौक
    • Updated: 17 जनवरी, 2018 02:43 PM
  • 17 जनवरी, 2018 02:43 PM
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पीएम मोदी क्यों कई बार अपनी बात कहते-कहते रो पड़ते हैं? विश्व हिंदू परिषद के अंतरराष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष प्रवीण तोगड़िया क्यों प्रेस कॉन्फ्रेंस करते हुए रोने लगे? ये बातें क्‍या बिना आंसू बहाए नहीं हो सकती थीं ?

कहते हैं कि रोने से मन हल्का हो जाता है, लेकिन अगर कोई लड़का रोए तो उसे बस यही सुनने को मिलता है- क्यों लड़कियों की तरह रो रहा है. बच्चों की तरह रोने लग जाते हो. तो क्या कोई लड़का या यूं कहें कि मर्द रो नहीं सकता? क्या मर्द को रोना नहीं चाहिए? अगर ऐसा है तो फिर पीएम मोदी क्यों कई बार अपनी बात कहते-कहते रो पड़ते हैं? विश्व हिंदू परिषद के अंतरराष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष प्रवीण तोगड़िया क्यों प्रेस कॉन्फ्रेंस करते हुए रोने लगे? तो सवाल यही है कि आखिर मर्द क्यों और कब रोते हैं? आइए जानते हैं इसके कुछ जवाब, जिनसे आप भी सहमत होंगे.

अपनों से मिला दर्द

जब कभी किसी शख्स को अपनों से ही दर्द मिलता है तो उसके आंसू निकल ही आते हैं. किसी का ब्रेक-अप होना भी कुछ ऐसा ही होता है. वहीं अगर कभी कोई अपना धोखा दे दे तो भी दर्द होता है और आंसू निकल आते हैं. प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान अपनी बात कहते हुए प्रवीण तोगड़िया का रो देना भी अपनों से मिले दर्द का एक जीता जागता उदाहरण है. वे किसी 'अपने' पर आरोप लगाते हुए इशारा कर रहे थे.

मां-बाप का संघर्ष

हम छोटे होते हैं तब तो यह बात नहीं समझते, लेकिन जैसे-जैसे हम बड़े होते जाते हैं तो यह बात हमारी समझ में आने लगती है कि हमारे माता-पिता ने कितना संघर्ष किया है. बहुत से ऐसे लोग होते हैं, जिनका बचपन बेहद गरीबी में बीता होता है और मां-बाप उसे खुश रखने के लिए अपनी ख्वाहिशों का भी गला घोंट दिया करते हैं. जब हमें मां-बाप के उस संघर्ष का अंदाजा होता है तो भी हमारे आंसू निकल आते हैं. फेसबुक के टाउनहॉल के दौरान पीएम मोदी भी मार्क जुकरबर्ग से अपनी मां के संघर्ष की बात करते-करते रो दिए थे.

कहते हैं कि रोने से मन हल्का हो जाता है, लेकिन अगर कोई लड़का रोए तो उसे बस यही सुनने को मिलता है- क्यों लड़कियों की तरह रो रहा है. बच्चों की तरह रोने लग जाते हो. तो क्या कोई लड़का या यूं कहें कि मर्द रो नहीं सकता? क्या मर्द को रोना नहीं चाहिए? अगर ऐसा है तो फिर पीएम मोदी क्यों कई बार अपनी बात कहते-कहते रो पड़ते हैं? विश्व हिंदू परिषद के अंतरराष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष प्रवीण तोगड़िया क्यों प्रेस कॉन्फ्रेंस करते हुए रोने लगे? तो सवाल यही है कि आखिर मर्द क्यों और कब रोते हैं? आइए जानते हैं इसके कुछ जवाब, जिनसे आप भी सहमत होंगे.

अपनों से मिला दर्द

जब कभी किसी शख्स को अपनों से ही दर्द मिलता है तो उसके आंसू निकल ही आते हैं. किसी का ब्रेक-अप होना भी कुछ ऐसा ही होता है. वहीं अगर कभी कोई अपना धोखा दे दे तो भी दर्द होता है और आंसू निकल आते हैं. प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान अपनी बात कहते हुए प्रवीण तोगड़िया का रो देना भी अपनों से मिले दर्द का एक जीता जागता उदाहरण है. वे किसी 'अपने' पर आरोप लगाते हुए इशारा कर रहे थे.

मां-बाप का संघर्ष

हम छोटे होते हैं तब तो यह बात नहीं समझते, लेकिन जैसे-जैसे हम बड़े होते जाते हैं तो यह बात हमारी समझ में आने लगती है कि हमारे माता-पिता ने कितना संघर्ष किया है. बहुत से ऐसे लोग होते हैं, जिनका बचपन बेहद गरीबी में बीता होता है और मां-बाप उसे खुश रखने के लिए अपनी ख्वाहिशों का भी गला घोंट दिया करते हैं. जब हमें मां-बाप के उस संघर्ष का अंदाजा होता है तो भी हमारे आंसू निकल आते हैं. फेसबुक के टाउनहॉल के दौरान पीएम मोदी भी मार्क जुकरबर्ग से अपनी मां के संघर्ष की बात करते-करते रो दिए थे.

फिल्में भी रुलाती हैं

यूं तो फिल्में लोगों का मनोरंजन करने के लिए होती हैं, लेकिन बहुत सारी ऐसी भी फिल्में होती हैं, जिन्हें देखकर लोगों को रोना आ जाता है. दरअसल, ऐसा उन फिल्मों के साथ होता है, जो लोगों को खुद से जोड़ते हुए उन्हें बेहद भावुक कर देती हैं. जरूरी नहीं है कि अगर किसी फिल्म को देखकर एक इंसान को रोना आए तो दूसरे को भी रोना आएगा. दरअसल, यह फिल्म के कंटेंट पर निर्भर करता है कि वह किस शख्स के जीवन से जुड़ी हुई सी लगती है. ऐसा ही हुआ फिल्म अभिनेता आमिर खान के साथ भी. जब उन्होंने सलमान खान की फिल्म बजरंगी भाईजान देखी तो उसके बाद उनके आंसू निकल गए. फिल्म में उन्हें सलमान का किरदार और अभिनय तो शानदार लगा ही, फिल्म में जिस बच्ची के इर्द-गिर्द पूरी कहानी घूमी, उस बच्ची ने भी आमिर खान के दिल को छू लिया.

जब कोई अपना दुनिया में ना रहे

यह ऐसा क्षण होता है जब दुनिया का हर इंसान चाहे वह पुरुष हो या स्त्री, उसे रोना आ ही जाता है. जब भी कोई अपना दुनिया से चला जाता है तो उसकी छोटी-बड़ी सारे बातें याद आती हैं, जो किसी भी इंसान को रुला देती हैं. ये यादें उस शख्स के दुनिया से चले जाने के कई सालों बाद तक आंखों में आंसू ला देती हैं. हाल ही में गुरुग्राम को रेयान इंटरनेशनल स्कूल में प्रद्युम्न नाम के एक बच्चे की हत्या कर दी गई थी. उस बच्चे के पिता का दर्द सिर्फ एक पिता ही समझ सकता है. जब भी कोई अपना दुनिया से चला जाता है तो आंखों में आंसू आते ही हैं.

इन सबके अलावा कई बार हम सालों से किसी ख्वाहिश को मन में लिए मेहनत करते रहते हैं. लेकिन अंत में जब वह ख्वाहिश पूरी नहीं होती है तो फिर हमारी आंखों में आंसू आ ही जाते हैं. लोग अपनी रोजमर्रा की जरूरतों से भी परेशान होकर रो पड़ते हैं. अगर बात सिर्फ आंखों में आंसू आने की हो तो जब कभी हम बहुत दिनों बाद किसी अपने से मिलते हैं तो भी आंखों से खुशी के आंसू निकल पड़ते हैं.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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