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मोदी के आने से देश में बढ़े हैं डिप्रेशन के मरीज!

    • रिम्मी कुमारी
    • Updated: 06 अप्रिल, 2017 03:10 PM
  • 06 अप्रिल, 2017 03:10 PM
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जब राजनीतिक बहस रोजमर्रा की जिंदगी पर असर डालने लगे, तो समझिए कुछ गड़बड़ है. हमारे देश में मोदी और अमेरिका में ट्रंप की जीत के बाद से क्‍या वाकई डिप्रेशन के पीडि़तों की तादाद बढ़ी है ?

पहले 2014 और फिर 2017 के यूपी चुनावों में भाजपा या ये कहें कि नरेंद्र मोदी की धमाकेदार जीत से क्या कुछ लोगों की तबीयत पर कोई असर पड़ा है? हाल 2016 में अमेरिका में रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप की जीत के बाद वहां के उन नागरिकों का भी है, जो डेमोक्रेटिक पार्टी के समर्थक हैं. लोग बीमार हो गए हैं. अमेरिका में एक सर्वे में इस बात की पुष्टि हो चुकी है कि ट्रंप के कारण कई लोगों में डिप्रेशन बढ़ा है. तो क्‍या भारत में भी डिप्रेशन पीडि़तों पर ऐसे किसी अध्‍ययन की जरूरत है ?

वैसे तो बदलते समय और जीवनशैली के साथ लोग कई तरह की बीमारियों में घिरे जा रहे हैं. लेकिन डिप्रेशन अब युवाओं में जड़ें जमाता जा रहा है. वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन (WHO) के अनुसार हर तीन में से एक इंसान डिप्रेशन की चपेट में आता जा रहा है. WHO की रिपोर्ट के मुताबिक 2006 से 2015 के बीच पूरी दुनिया में डिप्रेशन के मरीजों की संख्या में 18 प्रतिशत से ज्यादा की बढ़ोतरी हुई है. और अब ये विश्व में सबसे ज्यादा लोगों को अपनी चपेट में ले चुका है.

विश्व में सबसे ज्यादा लोगों को बना रहा है अपना शिकार

आज के समय में पूरे विश्व में लगभग 320 करोड़ डिप्रेशन के शिकार हैं. यही नहीं आज के समय में आत्महत्या के मामलों के बढ़ने का एक बड़ा कारण डिप्रेशन भी है. WHO की रिसर्च के मुताबिक विकसित देशों में भी 50 प्रतिशत के करीब लोग डिप्रेशन से पीड़ित लोग इसका कोई भी इलाज नहीं कराते. यहां तक की दुनिया भर की सरकारें भी हेल्थ सेवा को लेकर उदासीन ही रहती है. विकसित देशों के हेल्थ बजट में से सिर्फ 3 फीसदी ही मानसिक रोगों को दिया जाता है और विकासशील देशों में तो ये आंकड़ा सिर्फ 1 प्रतिशत का है.

WHO के अुनसार भारत में लगभग पांच करोड़ लोग डिप्रेशन से ग्रसित हैं. ये...

पहले 2014 और फिर 2017 के यूपी चुनावों में भाजपा या ये कहें कि नरेंद्र मोदी की धमाकेदार जीत से क्या कुछ लोगों की तबीयत पर कोई असर पड़ा है? हाल 2016 में अमेरिका में रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप की जीत के बाद वहां के उन नागरिकों का भी है, जो डेमोक्रेटिक पार्टी के समर्थक हैं. लोग बीमार हो गए हैं. अमेरिका में एक सर्वे में इस बात की पुष्टि हो चुकी है कि ट्रंप के कारण कई लोगों में डिप्रेशन बढ़ा है. तो क्‍या भारत में भी डिप्रेशन पीडि़तों पर ऐसे किसी अध्‍ययन की जरूरत है ?

वैसे तो बदलते समय और जीवनशैली के साथ लोग कई तरह की बीमारियों में घिरे जा रहे हैं. लेकिन डिप्रेशन अब युवाओं में जड़ें जमाता जा रहा है. वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन (WHO) के अनुसार हर तीन में से एक इंसान डिप्रेशन की चपेट में आता जा रहा है. WHO की रिपोर्ट के मुताबिक 2006 से 2015 के बीच पूरी दुनिया में डिप्रेशन के मरीजों की संख्या में 18 प्रतिशत से ज्यादा की बढ़ोतरी हुई है. और अब ये विश्व में सबसे ज्यादा लोगों को अपनी चपेट में ले चुका है.

विश्व में सबसे ज्यादा लोगों को बना रहा है अपना शिकार

आज के समय में पूरे विश्व में लगभग 320 करोड़ डिप्रेशन के शिकार हैं. यही नहीं आज के समय में आत्महत्या के मामलों के बढ़ने का एक बड़ा कारण डिप्रेशन भी है. WHO की रिसर्च के मुताबिक विकसित देशों में भी 50 प्रतिशत के करीब लोग डिप्रेशन से पीड़ित लोग इसका कोई भी इलाज नहीं कराते. यहां तक की दुनिया भर की सरकारें भी हेल्थ सेवा को लेकर उदासीन ही रहती है. विकसित देशों के हेल्थ बजट में से सिर्फ 3 फीसदी ही मानसिक रोगों को दिया जाता है और विकासशील देशों में तो ये आंकड़ा सिर्फ 1 प्रतिशत का है.

WHO के अुनसार भारत में लगभग पांच करोड़ लोग डिप्रेशन से ग्रसित हैं. ये आकंड़ा 2014 के बाद से देश में बढ़ने के ही लक्षण दिख रहे हैं. आइए अब आपको बताएं कि डिप्रेशन क्या है और क्या हैं इसके लक्षण.

डिप्रेशन दो प्रकार के होते हैं-

1- अवसाद या निराशाजनक बीमारी (Depressive Disorder)

2- चिंता या घबराहट की बीमारी (Anxiety Disorder)

Depressive Disorder के लक्षणों में उदासी, हमेशा उदास रहना, खुश रहने या मजे करने में कोई रूचि नहीं होना, अपराध की भावना, आत्मविश्वास में कमी, नींद ना आना और भूख कम लगना इसके लक्षण हैं.

Anxiety Disorder में डर और चिंता एक प्रमुख कारक होते हैं. इसमें पैनिक अटैक, किसी प्रकार डर या हमेशा चिंता में रहना प्रमुख लक्षण हैं.

वैसे तो जीवन में परेशान रहने के बहुत के कारण हैं लेकिन आज के समय में लोग इतने ज्यादा सेंसिटिव हो गए हैं कि हर बात को लेकर पैनिक करने लगते हैं. अब जैसे 2014 में मोदी जी के चुनाव में खड़े होने से लेकर आज तक अपने देश में डिप्रेशन के मरीजों की संख्या में दोगुनी बढ़ोतरी तो हुई ही होगी. ये सोशल मीडिया पर उनके टाइमलाइन को देख लीजिए पता चल जाएगा.

अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति चुनाव में खड़े होने की घोषणा के बाद से ही वहां के मानसिक रोग अस्पतालों और मनोरोग विशेषज्ञों के पास लोगों की भीड़ में इजाफा हुआ है. मैनहेटन की मनोरोग विशेषज्ञ कैरोल वॉश बताती हैं कि उनके मरीजों की संख्या में वृद्धि हुई है. कभी-कभी तो उनके मरीज कहते हैं कि हमें देश के बारे में बात ही नहीं करनी. ऐसा ही हाल हमारे देश में 2014 के लोकसभा चुनावों में प्रधानमंत्री के पद के लिए नरेन्द्र मोदी की उम्मीदवारी की घोषणा के बाद था. दोनों तरफ के लोग अतिरेक में बहे जा रहे थे. मोदी के सपोर्टर ऐसे पागल हुए जा रहे थे जैसे मोदी ने ही विष्णु का दसवां अवतार लिया. और विरोधियों का हाल तो और भी बुरा था. वो ऐसे चीख-चिल्ला रहे थे जैसे मोदी नहीं खुद हिटलर आ गया है!

अब इस अतिवाद का इलाज यही है कि धैर्य रखें और मोदी जी का काम देखें, परखें. इसके बाद 2019 में उन्हें वोट करना है या नहीं ये सोचें. इसके अलावा चैन से रहने और डिप्रेशन से बाहर आने का कोई दूसरा इलाज नहीं है!

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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