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साउथ में रहने के बाद, अब मैंने भी भाषाओं की लड़ाई को गंभीरता से लेना छोड़ दिया

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 15 जुलाई, 2017 04:12 PM
  • 15 जुलाई, 2017 04:12 PM
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मैं दक्षिण में रहा हूं और ये समझ सकता हूँ कि क्यों वहां के लोग हिन्दी या किसी अन्य भारतीय भाषा से परहेज करते हैं. कहा जा सकता है कि दक्षिण भारतीय अपनी संस्कृति और भाषा के लिए बड़े संवेदनशील हैं.

चेन्नई की अदालत में बहस इस बात को लेकर है कि राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम संस्कृत मूल का है. मगर इसे बंगाली में लिखा गया है. वहीं यूके में वेम्बली कॉन्सर्ट के दौरान लोग सिर्फ इस बात पर ऑडिटोरियम छोड़ के चले गए क्योंकि ग्रैमी अवार्ड संगीतकार एआर रहमान ने अपने गाने अपनी सिग्नेचर भाषा तमिल में नहीं बल्कि हिंदी में गाये. हो सकता है कि इस बात को आप पढ़ें और पढ़कर इग्नोर कर दें. मगर दक्षिण में यही सबसे बड़ा मुद्दा है. कह सकते हैं कि दक्षिण की राजनीति का पूरा बेस ही भाषाएं हैं. आज भी कर्नाटक में रहने वाला एक तमिलियन, कर्नाटक के मूल वासियों के लिए फॉरनर है. इसी तरह दिल्ली का वो शख्स जो चेन्नई में रह के नौकरी कर रहा है वो आम चेन्नई वालों के लिए एलियन से कम नहीं है.

जी हां बिल्कुल सही सुना आपने. इस बात को सिद्ध करने के लिए मैं अपना ही उदाहरण देना चाहूंगा. नौकरी के चलते मैंने अपने जीवन का एक बड़ा समय कर्नाटक स्थित बैंगलोर में बिताया है. बैंगलोर एक ऐसा शहर है जहां या तो कन्नड़ बोली जाती है या फिर अंग्रेजी. सम्पूर्ण साउथ में, अगर आपको अंग्रेजी आती है तो आपका काम चल सकता है मगर स्थिति तब गंभीर हो जाती है जब अंग्रेजी न आए या बहुत कम आए.

भाषा पर बात करें तो मिलता है कि दक्षिण के लोग अपनी संस्कृति और भाषा के लिए बड़े संवेदनशील हैं

खैर, मैं बैंगलोर के विषय पर बात कर रहा था. बैंगलोर एक बेहद प्यारा शहर है जहां का मौसम और भी प्यारा है. क्राइम से लेकर सोशल सिक्योरिटी तक यूं तो यहां ऐसी कोई बड़ी समस्या नहीं है मगर यहां की छोटी- छोटी समस्याएं ही ऐसी हैं जो हमारे माथे पर चिंता के बल लाने के लिए काफी हैं. ऐसी समस्याएं जिनके चलते यहां पहली बार जाने वाला आदमी तुरंत अपने घर वापस लौट जाने का मन बना लेगा. मुझे आज भी वो दिन याद है जब यशवंतपुर से मैं, आईटी नगरी के प्रमुख...

चेन्नई की अदालत में बहस इस बात को लेकर है कि राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम संस्कृत मूल का है. मगर इसे बंगाली में लिखा गया है. वहीं यूके में वेम्बली कॉन्सर्ट के दौरान लोग सिर्फ इस बात पर ऑडिटोरियम छोड़ के चले गए क्योंकि ग्रैमी अवार्ड संगीतकार एआर रहमान ने अपने गाने अपनी सिग्नेचर भाषा तमिल में नहीं बल्कि हिंदी में गाये. हो सकता है कि इस बात को आप पढ़ें और पढ़कर इग्नोर कर दें. मगर दक्षिण में यही सबसे बड़ा मुद्दा है. कह सकते हैं कि दक्षिण की राजनीति का पूरा बेस ही भाषाएं हैं. आज भी कर्नाटक में रहने वाला एक तमिलियन, कर्नाटक के मूल वासियों के लिए फॉरनर है. इसी तरह दिल्ली का वो शख्स जो चेन्नई में रह के नौकरी कर रहा है वो आम चेन्नई वालों के लिए एलियन से कम नहीं है.

जी हां बिल्कुल सही सुना आपने. इस बात को सिद्ध करने के लिए मैं अपना ही उदाहरण देना चाहूंगा. नौकरी के चलते मैंने अपने जीवन का एक बड़ा समय कर्नाटक स्थित बैंगलोर में बिताया है. बैंगलोर एक ऐसा शहर है जहां या तो कन्नड़ बोली जाती है या फिर अंग्रेजी. सम्पूर्ण साउथ में, अगर आपको अंग्रेजी आती है तो आपका काम चल सकता है मगर स्थिति तब गंभीर हो जाती है जब अंग्रेजी न आए या बहुत कम आए.

भाषा पर बात करें तो मिलता है कि दक्षिण के लोग अपनी संस्कृति और भाषा के लिए बड़े संवेदनशील हैं

खैर, मैं बैंगलोर के विषय पर बात कर रहा था. बैंगलोर एक बेहद प्यारा शहर है जहां का मौसम और भी प्यारा है. क्राइम से लेकर सोशल सिक्योरिटी तक यूं तो यहां ऐसी कोई बड़ी समस्या नहीं है मगर यहां की छोटी- छोटी समस्याएं ही ऐसी हैं जो हमारे माथे पर चिंता के बल लाने के लिए काफी हैं. ऐसी समस्याएं जिनके चलते यहां पहली बार जाने वाला आदमी तुरंत अपने घर वापस लौट जाने का मन बना लेगा. मुझे आज भी वो दिन याद है जब यशवंतपुर से मैं, आईटी नगरी के प्रमुख बस अड्डे 'मैजेस्टिक' पर उतरा था. मुझे एक पते पर जाना था मैं लोगों से पता पूछ रहा था लोग देखते और इग्नोर करते हुए चले जाते.

इस पूरे मामले में, ऐसा बिल्कुल नहीं था कि वहां के लोग मेरी मदद नहीं करना चाह रहे थे बस बात ये थी कि मैं उनका लहजा समझने में असमर्थ था. वहां के लोगों और मुझे हम दोनों को एक दूसरे को समझने में, एक दूसरे को अपनी बात समझाने में बड़ी दिक्कतों का सामना करना पड़ा.

बहरहाल, ये मेरा भाग्य था या ऊपर वाले को मेरी हालत पर तरस आ गया कि, मुझे काफी देर बाद एक हिन्दी भाषी मिला. उसने मुझे पता समझाने का प्रयास किया और ये बताया कि उस जगह जाने के लिए बस कहां से मिलती है. मुझे तब महसूस हुआ कि शायद मेरी परेशानियों का निवारण हो गया हो. मगर ये इतना भी आसान नहीं था, जितना मैं सोच रहा था. उस दिन बस से लेकर उस पते तक पहुंचने में मुझे कई समस्याओं का सामना करना पड़ा.

चूंकि मुझे नई कम्पनी ज्वाइन करनी थी और अपने लिए मकान भी लेना था अतः मकान मिलने से लेकर नई कम्पनी में जॉइनिंग तक मुझे ऐसी कई छोटी - छोटी समस्याओं से दो चार होना पड़ा जिन्होंने मुझे खासा परेशान किया. ध्यान रहे कि मेरी परेशानियों के सबसे बड़े कारण के तौर पर भाषा का इसमें अहम रोल था.

मैं ऐसा इसलिए कह रहा हूं कि दक्षिण के लोगों का मानना है कि वो किसी भी सूरत में आपके लिए अपनी भाषा से समझौता नहीं करेंगे. उनका सीधा सा मानना है कि यदि आपको वहां रहना है तो आपको उनके जैसा बनके रहना है और उनसे उनकी भाषा में बात करना है.

मैं पूरे विश्वास से कह सकता हूँ कि दक्षिण भारतीय, उत्तर भारतीयों की अपेक्षा अपनी भाषा के लिए ज्यादा गंभीर हैं. उनके जीवन का एक बड़ा वक्त उसके संरक्षण और समर्थन में बीतता है. इसके पीछे के कारणों पर नजर डालें तो मिलता है कि उत्तर भारतीयों के मुकाबले दक्षिण भारतीय ज्यादा समृद्ध हैं और उत्तर भारतीयों के अनुपात में, दक्षिण भारतीयों की प्रति व्यक्ति आय अधिक होती है.

खैर पांच साल वहां रहकर अब मैं वापस उत्तर का रुख कर चुका हूं और उन पांच सालों में पूरे दक्षिण में खूब कायदे से घूमने के बाद मुझे अनुभव हुआ है कि दक्षिण के लोग अपनी संस्कृति और भाषा के लिए बड़े संवेदनशील हैं. अतः अगर हम टीवी स्क्रीन पर ये देखें कि वो लोग मेट्रो स्टेशन पर हिन्दी के इस्तेमाल पर उग्र हो रहे हैं या फिर अगर हम ये देखें कि कहीं लोगों को हिंदी या किसी अन्य भाषा में बात करने के चलते दक्षिण में खाना पानी जैसी मूलभूत चीजें मिलने में परेशानी हो रही है तो हमें बिल्कुल भी गुस्सा नहीं होना चाहिए.   

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