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इस खूबसूरत तस्‍वीर के पीछे है एक चौंकाने वाली कहानी

    • रेवती राजीवन
    • Updated: 20 जुलाई, 2016 10:43 PM
  • 20 जुलाई, 2016 10:43 PM
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ट्रांसजेंडर लोगों को समाज भले ही स्वीकारने में हिचकिचाए, लेकिन अपनी योग्यताओं के दम पर एलजीबीटी समुदाय के लोग अपना मुकाम बना रहे हैं.

एक महीना भी नहीं बीता जब कुछ ट्रांसजेंडर कोच्ची की सड़कों पर हिंसा का शिकार हुए थे. लेकिन इसी समुदाय के कुछ सदस्य इसी शहर में इतिहास लिख रहे हैं. समाज इन्हें स्वीकार करने से आज भी हिचकिचाता है, ऐसे में एक सम्मानजनक जीवन जीना इन लोगों के लिए मुश्किल होता है. लेकिन फिर भी ये ख्वाब इस समुदाय के कुछ लोगों के लिए सच होता दिखाई दे रहा है. एक ट्रांसजेंडर का एक प्रतिष्ठित मैगजीन के कवर पर आना और शहर के बड़े रेस्त्रां में काम करना अपने आप में ही सम्मान की बात है.  

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भारत के इतिहास में पहली बार किसी ट्रांसजेंडर को मैगजीन के कवर पर जगह मिली है

गुरुवायुर की रहने वाली 28 साल की दीप्ति नायर केरल की एक प्रतिष्ठित मैगजीन वनिता की कवर गर्ल बनने वाली पहली ट्रांसजेंडर बन गई हैं. दीप्ति की कहानी बड़ी दिलचस्‍प है. बचपन में उसका नाम शिनोज था. चार बहनों और एक भाइयों वह सबसे छोटा. बड़ी बहनें उसे अकसर लड़कियों वाले कपड़े ही पहना देतीं. और मेकअप भी कर देतीं. झुग्‍गी वाले इलाके में रहने वाला यह परिवार दीप्ति को उसकी सुरक्षा के नाते लड़कों के साथ नहीं जाने देता था. उस इलाके में ड्रग्‍स और शराबखोरी आम थी. लेकिन धीरे धीरे इस परिवार को पता चला‍ कि शिनॉज में बड़े होने के साथ साथ शारीरिक और मानसिक बदलाव लड़कियों की तरह हो रहे हैं तो वे उसे डॉक्‍टर के पास ले गए. उसे मारा भी और सोचा कि इसकी शादी कर दें तो शायद सब ठीक हो जाए. आखिर में परेशान होकर इस परिवार ने शिनॉज को घर से निकाल दिया.

एक महीना भी नहीं बीता जब कुछ ट्रांसजेंडर कोच्ची की सड़कों पर हिंसा का शिकार हुए थे. लेकिन इसी समुदाय के कुछ सदस्य इसी शहर में इतिहास लिख रहे हैं. समाज इन्हें स्वीकार करने से आज भी हिचकिचाता है, ऐसे में एक सम्मानजनक जीवन जीना इन लोगों के लिए मुश्किल होता है. लेकिन फिर भी ये ख्वाब इस समुदाय के कुछ लोगों के लिए सच होता दिखाई दे रहा है. एक ट्रांसजेंडर का एक प्रतिष्ठित मैगजीन के कवर पर आना और शहर के बड़े रेस्त्रां में काम करना अपने आप में ही सम्मान की बात है.  

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गुरुवायुर की रहने वाली 28 साल की दीप्ति नायर केरल की एक प्रतिष्ठित मैगजीन वनिता की कवर गर्ल बनने वाली पहली ट्रांसजेंडर बन गई हैं. दीप्ति की कहानी बड़ी दिलचस्‍प है. बचपन में उसका नाम शिनोज था. चार बहनों और एक भाइयों वह सबसे छोटा. बड़ी बहनें उसे अकसर लड़कियों वाले कपड़े ही पहना देतीं. और मेकअप भी कर देतीं. झुग्‍गी वाले इलाके में रहने वाला यह परिवार दीप्ति को उसकी सुरक्षा के नाते लड़कों के साथ नहीं जाने देता था. उस इलाके में ड्रग्‍स और शराबखोरी आम थी. लेकिन धीरे धीरे इस परिवार को पता चला‍ कि शिनॉज में बड़े होने के साथ साथ शारीरिक और मानसिक बदलाव लड़कियों की तरह हो रहे हैं तो वे उसे डॉक्‍टर के पास ले गए. उसे मारा भी और सोचा कि इसकी शादी कर दें तो शायद सब ठीक हो जाए. आखिर में परेशान होकर इस परिवार ने शिनॉज को घर से निकाल दिया.

 मैगजीन में दीप्ति ने अपने इंटरव्यू में लिंग परिवर्तन की कहानी और जीवन के मुश्किल वक्त के बारे में बताया है

वह घर छोड़कर बेंगलुरु आया और कुछ अन्‍य ट्रांसजेंडर के साथ रहने लगा. और यहीं उसने दो साल पहले सर्जरी कराई और दीप्ति का रूप पाया. एक खूबसूरत महिला. सिर पर फूल लगाए उसने एक 'ट्रांस' एक्‍जीबिशन के लिए पहला फोटो खिंचवाया. पहला मॉडलिंग असाइनमेंट. अब वो भारत की पहली ट्रांसजेंडर हैं जो इतनी बड़ी मैगजीन के कवर पेज पर आई हैं. उसे परिवार वालों ने अपना लिया है. पूरे गर्व के साथ. वह दसवीं कक्षा तक पढ़ी है, लेकिन अब अपनी ट्रांसजेंडर कम्‍युनिटी की भलाई के लिए काम कर रही है.

पहले शिनोज और अब दीप्ति

सिर्फ दीप्ति ही नहीं 29 साल की तृप्ति भी आज सबके सामने एक मिसाल हैं. किरण शेट्टी तीन साल पहले लिंग परिवर्तन कराकर तृप्ति शेट्टी बन गई. लेकिन उसके बाद इनका जीवन आसान नहीं था. उनके माता-पिता की मृत्यु के बाद, वो भीख मागने पर मजबूर हो गईं. लेकिन 29 वर्षीय तृप्ति आज अपने पैरों पर खड़ी हैं. वो कोच्चि के पापड़वड़ा रेस्त्रां में कैशियर का काम कर रही हैं.

 बड़े रेस्त्रां में सम्मान से काम कर रही हैं तृप्ति

तृप्ति का कहना है कि- 'भीख मांगगकर कौन जीना चाहता है? ट्रांसजेंडर को वो काम करने पड़ते हैं जो समाज द्वारा स्वीकृत नहीं होते, क्योंकि कोई हमें काम देने को तैयार नहीं होता. जब मैंने यहां काम करना शुरू किया था, तो सिवाय रेस्त्रां के मालिक के मैंने किसी को नहीं बताया था कि मैं ट्रांसजेंडर हूं. एक महीने बाद मैंने सच बताया. मुझे इस बात का डर था कि वो पता नहीं कैसी प्रतिक्रिया देंगे. लेकिन स्टाफ और ग्राहक दोनों ने मुझसे अच्छा व्यवहार किया. वो मुझे बड़ी बहन कहते हैं.'

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 पापड़वड़ा रेस्त्रां की मालकिन मीनू पाओलिन का कहना है कि 'हम सब बराबर हैं. ट्रांसजेंडर होना कोई बुरी बात नहीं है. हमें उन्हें स्वीकारकर आगे बढ़ना चाहिए. वो बहाने नहीं बनातीं. वो हमेशा समय पर आती हैं, और यहां की सबसे ज्यादा निष्ठावान कर्मचारी हैं'

धीरे धीरे ही सही समाज इस समुदाय को स्वीकार कर रहा है. इसका और एक उदाहरण है कोच्चि मेट्रो रेल लिमिटेड जिन्होंने जून में हाउसकीपिंग और कस्टमर सर्विस जॉब के लिए ट्रांसजेंडरों के लिए अपने दरवाजे खोल दिए हैं. 2017 में ये मेट्रो रेल सोवा शुरू हो जाएगी.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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