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तुनिशा शर्मा और श्रद्धा वॉल्कर कितनी एक जैसी: वही प्रेमी की बेरुखी और माता-पिता से दूरी!

    • अनु रॉय
    • Updated: 25 दिसम्बर, 2022 04:21 PM
  • 25 दिसम्बर, 2022 04:21 PM
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आप प्यार में पड़ते हैं तो सिर्फ़ प्यार नहीं एक ज़िम्मेवारी भी तो आती है आपके ऊपर. ऐसा किस प्यार कि कल तक साथ जीने मरने की क़समें खा रहे हैं और आज मरता हुआ छोड़ कर चल दिये. ख़ैर, ख़ान साहेब को पुलिस ने गिरफ़्तार कर लिया है लेकिन सज़ा मिलेगी या नहीं कहना मुश्किल है. आज तक जिया ख़ान को इंसाफ़ नहीं मिला और सूरज पंचोली हीरो बन कर घूम ही रहे हैं.

जब कोई समझाने या समझने वाला नहीं हो तो तुनिशा शर्मा जैसी प्यारी और आज़ाद लड़की भी आत्महत्या (कहा जा रहा है) कर लेती है. क्योंकि ब्रेक-अप के बाद ज़िंदगी ख़त्म होती नज़र आती है. एक ऐसी लड़की जो बीस साल की उम्र में अपने पैरों पर खड़ी हो कर, ज़िंदगी अपनी शर्तों पर जी रही हो वो भी कमज़ोर पड़ सकती है. काश, कि तुनिशा ने किसी से अपनी बात शेयर की होती, किसी से हेल्प मांगा होता. काश!

लेकिन यहां एक शख़्स की मेरी नज़र में तुनिशा से ज़्यादा गलती है, वो है शिजान ख़ान की. वो लगभग तीस साल के हैं. देखा जाये तो उम्र के लिहाज़ से उन्हें ज़्यादा परिपक्व होना चाहिए था. अगर वो ब्रेक-अप करना ही चाहते थे तो थोड़ी समझदारी दिखा सकते थे. अचानक से यूं किसी को बीच रास्ते में मर जाने के लिए छोड़ना, इंसानियत तो नहीं है. मानती हूं कि प्यार ख़त्म हो रहा/गया होगा उनकी तरफ़ से, शायद तुनिशा इस चीज़ को एक्सेप्ट नहीं कर पा रही थीं, तो थोड़ा वक़्त देना चाहिए था.

आप प्यार में पड़ते हैं तो सिर्फ़ प्यार नहीं एक ज़िम्मेवारी भी तो आती है आपके ऊपर. ऐसा कैसा प्यार कि कल तक साथ जीने मरने की क़समें खा रहे हैं और आज मरता हुआ छोड़ कर चल दिये. ख़ैर, ख़ान साहेब को पुलिस ने गिरफ़्तार कर लिया है, लेकिन सज़ा मिलेगी या नहीं कहना मुश्किल है. आज तक जिया ख़ान को इंसाफ़ नहीं मिला और सूरज पंचोली हीरो बन कर घूम ही रहे हैं. मुमकिन है शिजान ख़ान कल को किसी बड़ी फ़िल्म में बतौर हीरो लॉंच किए जाएं.

तुनिशा किसी दुनिया में तुम्हें खूब मुहब्बत मिले. जहां प्यार के नाम पर धोखा न हो. तुम थोड़ी और मज़बूत इंसान बन कर जन्म लो. तुम ये समझ पाओ कि ज़िंदगी किसी एक ब्रेक-अप से ख़त्म नहीं होती. तुम्हें तुम्हारा बचपन जीने को मिले. तुम वहां सिर्फ़ पैसे कमाने की मशीन बन कर न रह जाओ.

वैसे मुझे नहीं पता है कि...

जब कोई समझाने या समझने वाला नहीं हो तो तुनिशा शर्मा जैसी प्यारी और आज़ाद लड़की भी आत्महत्या (कहा जा रहा है) कर लेती है. क्योंकि ब्रेक-अप के बाद ज़िंदगी ख़त्म होती नज़र आती है. एक ऐसी लड़की जो बीस साल की उम्र में अपने पैरों पर खड़ी हो कर, ज़िंदगी अपनी शर्तों पर जी रही हो वो भी कमज़ोर पड़ सकती है. काश, कि तुनिशा ने किसी से अपनी बात शेयर की होती, किसी से हेल्प मांगा होता. काश!

लेकिन यहां एक शख़्स की मेरी नज़र में तुनिशा से ज़्यादा गलती है, वो है शिजान ख़ान की. वो लगभग तीस साल के हैं. देखा जाये तो उम्र के लिहाज़ से उन्हें ज़्यादा परिपक्व होना चाहिए था. अगर वो ब्रेक-अप करना ही चाहते थे तो थोड़ी समझदारी दिखा सकते थे. अचानक से यूं किसी को बीच रास्ते में मर जाने के लिए छोड़ना, इंसानियत तो नहीं है. मानती हूं कि प्यार ख़त्म हो रहा/गया होगा उनकी तरफ़ से, शायद तुनिशा इस चीज़ को एक्सेप्ट नहीं कर पा रही थीं, तो थोड़ा वक़्त देना चाहिए था.

आप प्यार में पड़ते हैं तो सिर्फ़ प्यार नहीं एक ज़िम्मेवारी भी तो आती है आपके ऊपर. ऐसा कैसा प्यार कि कल तक साथ जीने मरने की क़समें खा रहे हैं और आज मरता हुआ छोड़ कर चल दिये. ख़ैर, ख़ान साहेब को पुलिस ने गिरफ़्तार कर लिया है, लेकिन सज़ा मिलेगी या नहीं कहना मुश्किल है. आज तक जिया ख़ान को इंसाफ़ नहीं मिला और सूरज पंचोली हीरो बन कर घूम ही रहे हैं. मुमकिन है शिजान ख़ान कल को किसी बड़ी फ़िल्म में बतौर हीरो लॉंच किए जाएं.

तुनिशा किसी दुनिया में तुम्हें खूब मुहब्बत मिले. जहां प्यार के नाम पर धोखा न हो. तुम थोड़ी और मज़बूत इंसान बन कर जन्म लो. तुम ये समझ पाओ कि ज़िंदगी किसी एक ब्रेक-अप से ख़त्म नहीं होती. तुम्हें तुम्हारा बचपन जीने को मिले. तुम वहां सिर्फ़ पैसे कमाने की मशीन बन कर न रह जाओ.

वैसे मुझे नहीं पता है कि तुनिशा शर्मा के उनके परिवार के साथ कैसे संबंध थे, लेकिन उनके बारे में पढ़ कर यही पता चला है कि उन्होंने बतौर बाल कलाकार काम करना शुरू कर दिया था. बचपन से ही जो काम करने लग जाते हैं, उनमें बचपन छीन लिए जाने का अवसाद तो हमेशा रहता ही है. जिन मां-बाप से अपनापन मिलना चाहिए, अगर उनसे दूरी हो तो बाहर के किसी इंसान की तरफ़ आकर्षित हो जाना स्वाभाविक है.

आप श्रद्धा वॉल्कर वाला केस भी देख लो. वो भी अपने मां-बाप से दूर थी तो किसी आफ़ताब में वो अपनी दुनिया ढूंढने निकल पड़ी थी. मुझे तुनिशा की कहानी नहीं पता. हो सकता है कि वो प्यार जो उन्हें मिलना चाहिए, नहीं मिला, उसी की तलाश में किसी ख़ान के नज़दीक पहुंच गई हों. मर जाने के बाद केस करना, कलेजा कूटने से बेहतर नहीं है कि हम अपनी ज़िंदा बच्चों को भरपूर प्यार दें. उन्हें सही ग़लत के बारे में समझाएं, बताएं. सिर्फ़ ज़रूरत का सामान ख़रीद देना, लक्ज़री चीज़ गिफ्ट कर देने भर से क्या मां-बाप की ज़िम्मेवारी पूरी हो जाती है? क्या इमोशनल सपोर्ट देना, हर सही-ग़लत में साथ रहने की जिम्मेदारी नहीं होती है मां-बाप की सोचियेगा!

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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