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लाल जोड़े को कफन बनाने का मंजर सावधान क्यों नहीं करता?

    • आईचौक
    • Updated: 28 दिसम्बर, 2022 07:00 PM
  • 28 दिसम्बर, 2022 06:08 PM
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अपने सपनों के पंख लगाकर उड़ने की चाहत रखने वाली कई लड़कियां कम उम्र ही दुनिया छोड़कर चली जा रही हैं. तुनीषा शर्मा पहली नहीं हैं, और न ही आखिरी हैं जिनकी असमय अर्थी उठी है. लेकिन, क्या ये ट्रेंड रोका नहीं जा सकता है?

मां जब मैं दुल्हन बनूंगी तो लाल रंग का जोड़ा पहनूंगी. मैं ऐसी लगूंगी कि दुनिया मुझे देखेगी. यही ख्वाहिश लिए तुनीषा शर्मा (Tunisha Sharma) हमेशा के लिए दुनिया छोड़ गईं. मंगलवार को उनका अंतिम संस्कार कर दिया गया. उनके पार्थिव शरीर को जब लाल जोड़ा पहनाकर सजाया गया तो देखने वालों का कलेजा फट गया. अपने बच्चे को खोने का गम एक मां सह रही है, लेकिन ये हृदयविदारक दृश्य क्या कुछ पैगाम छोड़कर नहीं जा रहा है?

तुनीषा को लाल जोड़े में दुनिया से विदा किया गया. यही लाल रंग शगुन और शौर्य का भी प्रतीक होता है

अपने बच्चे का अहित होते देखने की कल्पना दुनिया के कोई माता-पिता माता नहीं कर पाते हैं. हां, वे अपने बच्चों को अहित को लेकर आगाह जरूर करते हैं. तुनीषा को भी किया गया होगा, बल्कि तुनीषा जैसे सभी बच्चों को किया गया होगा. अब तुनीषा तो नहीं है इस दुनिया में अपनी दास्तान कहने को, लेकिन बाकी सब बच्चों के पास मौका है. यदि किसी भी परेशानी या अवसाद से घिरें तो यह भी पता हो कि उससे बाहर कैसे निकला जाता है. यदि ये न पता हो तो इतना तो पता होना ही चाहिए कि हमको इस बारे में किसी शुभचिंतक से सलाह ले लेनी चाहिए.

रिलेशनशिप के उतार-चढ़ाव हर जिंदगी के साथ रचे-बसे हैं. कई बार कड़वाहटें सिर के ऊपर से गुजरती हैं. लेकिन, यह उम्मीद रखना चाहिए कि यदि कोई कड़वाहट घोल रहा है, तो कहीं कोई मिश्री लेकर बैठा है. जो आपके जीवन में मिठास घोल देगा. ये जान लीजिये कि जिस पर हार महसूस होती है, उसी पल हार हो जाती है. लेकिन यदि मायूस कर देने वाले पलों के बीच उम्मीद बाकी है तो समझ लीजिये कि जिंदगी बाकी है. ऐसा सोचने वाला हर शख्स योद्धा है.

तुनीषा को लाल जोड़े में दुनिया से विदा किया गया. यही लाल रंग शगुन और शौर्य का भी प्रतीक होता है. तुनीषा यदि थोड़ा धैर्य रखती तो...

मां जब मैं दुल्हन बनूंगी तो लाल रंग का जोड़ा पहनूंगी. मैं ऐसी लगूंगी कि दुनिया मुझे देखेगी. यही ख्वाहिश लिए तुनीषा शर्मा (Tunisha Sharma) हमेशा के लिए दुनिया छोड़ गईं. मंगलवार को उनका अंतिम संस्कार कर दिया गया. उनके पार्थिव शरीर को जब लाल जोड़ा पहनाकर सजाया गया तो देखने वालों का कलेजा फट गया. अपने बच्चे को खोने का गम एक मां सह रही है, लेकिन ये हृदयविदारक दृश्य क्या कुछ पैगाम छोड़कर नहीं जा रहा है?

तुनीषा को लाल जोड़े में दुनिया से विदा किया गया. यही लाल रंग शगुन और शौर्य का भी प्रतीक होता है

अपने बच्चे का अहित होते देखने की कल्पना दुनिया के कोई माता-पिता माता नहीं कर पाते हैं. हां, वे अपने बच्चों को अहित को लेकर आगाह जरूर करते हैं. तुनीषा को भी किया गया होगा, बल्कि तुनीषा जैसे सभी बच्चों को किया गया होगा. अब तुनीषा तो नहीं है इस दुनिया में अपनी दास्तान कहने को, लेकिन बाकी सब बच्चों के पास मौका है. यदि किसी भी परेशानी या अवसाद से घिरें तो यह भी पता हो कि उससे बाहर कैसे निकला जाता है. यदि ये न पता हो तो इतना तो पता होना ही चाहिए कि हमको इस बारे में किसी शुभचिंतक से सलाह ले लेनी चाहिए.

रिलेशनशिप के उतार-चढ़ाव हर जिंदगी के साथ रचे-बसे हैं. कई बार कड़वाहटें सिर के ऊपर से गुजरती हैं. लेकिन, यह उम्मीद रखना चाहिए कि यदि कोई कड़वाहट घोल रहा है, तो कहीं कोई मिश्री लेकर बैठा है. जो आपके जीवन में मिठास घोल देगा. ये जान लीजिये कि जिस पर हार महसूस होती है, उसी पल हार हो जाती है. लेकिन यदि मायूस कर देने वाले पलों के बीच उम्मीद बाकी है तो समझ लीजिये कि जिंदगी बाकी है. ऐसा सोचने वाला हर शख्स योद्धा है.

तुनीषा को लाल जोड़े में दुनिया से विदा किया गया. यही लाल रंग शगुन और शौर्य का भी प्रतीक होता है. तुनीषा यदि थोड़ा धैर्य रखती तो शायद उनका वही शौर्य जीवन में नया शगुन लेकर आता. इसलिए बार-बार याद दिलाया जाना चाहिए कि अपने जीवन को मौका दीजिये. थोड़ा धैर्य रखिए. विफलताओं की दलदल से भी कामयाबी का बीज पनप सकता है.

जहां तक रिश्ते में धोखे की बात आती है, यह कभी भी हो सकता है. किसी के भी साथ हो सकता है. तो क्या हर धोखा एक आत्महत्या लेकर आता है? ऐसा तो बिल्कुल नहीं है. प्यार में बेशक अपना जीवन दूसरे के हाथ सौंप दीजिये, लेकिन यदि प्यार न मिले तो अपना जीवन नए सिरे से वापस ले लीजिये. जान मत दीजिये.

जरा विचार कीजिये कि एक जवान लड़के या लड़की की लाश के किनारे खड़े माता-पिता का विलाप कैसा होता है. एक ऐसे दौर में जब बच्चे समय से पहले अपनी आजादी की घोषणा करने लगे हैं तो अपना ख्याल रखने की जिम्मेदारी भी उन पर ही आती है. माता-पिता में इतनी हिम्मत नहीं होती है कि वे अपने बच्चे की लाश का शृंगार देखें.

20 साल की तुनीषा ने दुनिया को अलविदा कह दिया. एक संभावनाओं से भरी हुई कहानी अचानक खत्‍म हो गई. तुनीषा का लाल जोड़ा उसके साथ ही चला गया, अब उसकी मां को कौन समझाएगा कि वे तुनीषा की यादों को भी कफन ओढ़ा दें. ऐसा होता नहीं है.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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