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तीन तलाक़ के खिलाफ लड़ाई में बीजेपी के पास सिर्फ एक मौका और

    • अमित अरोड़ा
    • Updated: 12 अगस्त, 2018 02:05 PM
  • 12 अगस्त, 2018 02:05 PM
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एक तरफ कट्टरपंथियों का कांगेस के प्रति रोष और दूसरी ओर मुस्लिम महिलाओं का भाजपा के प्रति सम्मान, यह संयोग कांग्रेस के लिए आम चुनावों से पूर्व घातक साबित हो सकता है.

एक और संसद सत्र बीत गया लेकिन इस बार भी तीन तलाक़ विधेयक को क़ानून का रूप नहीं मिल पाया है. पिछले वर्ष दिसंबर में अपनी शक्ति बल के द्वारा भाजपा ने इस विधेयक को लोक सभा से पारित करा लिया, परंतु कांग्रेस और विपक्षी दलों की आपत्तियों के चलते राज्य सभा से मंज़ूरी नहीं मिल पाई थी. भाजपा को ज्ञात था कि इस सत्र में भी कांग्रेस और उसके साथी अपना विरोध ज़ारी रखेंगे. इसी बात को ध्यान में रखते हुए वर्तमान सत्र के आखरी दिन भाजपा तीन मुख्य संशोधनों के साथ विधेयक को राज्य सभा में ले कर आई थी. इन संशोधनों के बावजूद कांग्रेस और उसके सहयोगी विधेयक को चयन समिति के पास भेजने पर आड़े रहे, जिसका परिणाम था की यह विधेयक संसद के शीतकालीन सत्र तक टल गया.

अगले सत्र में भी कांग्रेस की रणनीति इस विधेयक को लटकाने की ही होगी. कांग्रेस कभी नहीं चाहेगी की लोक सभा चुनावों से ठीक पहले, भाजपा तीन तलाक़ पर क़ानून बनाकर मुस्लिम महिलाओं का दिल जीत ले. विधेयक पास होने की स्थिति में, कांग्रेस को विधेयक का विरोध कर रहे कट्टरपंथी मुस्लिम समाज का रोष सहना पड़ेगा. एक तरफ कट्टरपंथियों का कांगेस के प्रति रोष और दूसरी ओर मुस्लिम महिलाओं का भाजपा के प्रति सम्मान, यह संयोग कांग्रेस के लिए आम चुनावों से पूर्व घातक साबित हो सकता है.

तीन तलाक मामले पर कांग्रेस सिर्फ वोट की राजनीति कर रही है

खबरों में तो यह भी आ रहा है कि भाजपा इस मुद्दे पर अध्यादेश लाकर मुस्लिम महिलाओं को क़ानूनी सुरक्षा दे सकती है. अगले सत्र में भाजपा पुनः इस विधेयक को पारित करने की कोशिश करेगी. यदि उस समय भाजपा को सफलता मिलती है तो यह मुस्लिम महिलाओं और भाजपा दोनो के लिए लाभकारी होगा. मुस्लिम महिलाओं को तीन तलाक़ के दंश से मुक्ति मिलेगी और भाजपा को इसका राजनीतिक लाभ प्राप्त होगा. यदि भाजपा उस समय भी इस...

एक और संसद सत्र बीत गया लेकिन इस बार भी तीन तलाक़ विधेयक को क़ानून का रूप नहीं मिल पाया है. पिछले वर्ष दिसंबर में अपनी शक्ति बल के द्वारा भाजपा ने इस विधेयक को लोक सभा से पारित करा लिया, परंतु कांग्रेस और विपक्षी दलों की आपत्तियों के चलते राज्य सभा से मंज़ूरी नहीं मिल पाई थी. भाजपा को ज्ञात था कि इस सत्र में भी कांग्रेस और उसके साथी अपना विरोध ज़ारी रखेंगे. इसी बात को ध्यान में रखते हुए वर्तमान सत्र के आखरी दिन भाजपा तीन मुख्य संशोधनों के साथ विधेयक को राज्य सभा में ले कर आई थी. इन संशोधनों के बावजूद कांग्रेस और उसके सहयोगी विधेयक को चयन समिति के पास भेजने पर आड़े रहे, जिसका परिणाम था की यह विधेयक संसद के शीतकालीन सत्र तक टल गया.

अगले सत्र में भी कांग्रेस की रणनीति इस विधेयक को लटकाने की ही होगी. कांग्रेस कभी नहीं चाहेगी की लोक सभा चुनावों से ठीक पहले, भाजपा तीन तलाक़ पर क़ानून बनाकर मुस्लिम महिलाओं का दिल जीत ले. विधेयक पास होने की स्थिति में, कांग्रेस को विधेयक का विरोध कर रहे कट्टरपंथी मुस्लिम समाज का रोष सहना पड़ेगा. एक तरफ कट्टरपंथियों का कांगेस के प्रति रोष और दूसरी ओर मुस्लिम महिलाओं का भाजपा के प्रति सम्मान, यह संयोग कांग्रेस के लिए आम चुनावों से पूर्व घातक साबित हो सकता है.

तीन तलाक मामले पर कांग्रेस सिर्फ वोट की राजनीति कर रही है

खबरों में तो यह भी आ रहा है कि भाजपा इस मुद्दे पर अध्यादेश लाकर मुस्लिम महिलाओं को क़ानूनी सुरक्षा दे सकती है. अगले सत्र में भाजपा पुनः इस विधेयक को पारित करने की कोशिश करेगी. यदि उस समय भाजपा को सफलता मिलती है तो यह मुस्लिम महिलाओं और भाजपा दोनो के लिए लाभकारी होगा. मुस्लिम महिलाओं को तीन तलाक़ के दंश से मुक्ति मिलेगी और भाजपा को इसका राजनीतिक लाभ प्राप्त होगा. यदि भाजपा उस समय भी इस विषय पर क़ानून नहीं बना पाई तब भी राजनीतिक परिपेक्ष में यह फ़ायदा का सौदा ही होगा. भाजपा बड़ी सरलता से इसका दोष कांग्रेस के सर मढ़ देगी. विधेयक पारित हो या न हो दोनों स्थिति में भाजपा इसे अपने पक्ष में ही प्रयोग करेगी.

कांग्रेस इस गलतफहमी में है कि यदि वह तीन तलाक़, निकाह हलाला, महिला ख़तना जैसे मुद्दों पर रूढ़िवादी शक्तियों का साथ देंगे तो उसे चुनावों में लाभ होगा. कांग्रेस की यह सोच पूरी तरह ग़लत है. आज मुस्लिम समाज भी अपने अंदर की कुरीतियों को सुधारना चाहता है. केवल मुस्लिम महिलाएं ही नहीं, प्रगतिशील मुस्लिम पुरुष वर्ग भी तीन तलाक़ के पक्ष में नहीं हैं. तीन तलाक़ एक ऐसा मुद्दा है जिसके खिलाफ आज मुस्लिम समाज भी तैयार हो चुका है, केवल मुस्लिम धर्म के कुछ ठेकेदार ही इसका विरोध कर रहे है. कांग्रेस को यह निर्णय करना होगा कि क्या वह समाज के साथ खड़े होकर इस कुरीति को मिटाएगी या केवल मुस्लिम ठेकेदारों को खुश करने के लिए विरोध करती रहेगी?

शीतकालीन संसद सत्र में अभी कुछ महीने बाकी है, उम्मीद करनी चाहिए की इस समय में कांग्रेस चिंतन करेगी और इस मुद्दे पर अपनी गलती सुधार लेगी.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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