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प्रिये प्रियतमा, आज एकबार फिर तुम्हारी नगरी में हूं...

    • Shwet Kumar Sinha
    • Updated: 16 जून, 2023 01:08 PM
  • 16 जून, 2023 01:08 PM
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किसी बस स्टॉप पर बस के रूकने पर जब वो परचून वाला चढ़ता तो हमदोनों के ही जीभ लपलपा उठते थे और हमदोनों जी भरकर फिर अपना बचपन जीते. अबकी भी अभी उसी बस में बैठा हूं, पर अकेला. तुम नहीं हो साथ मेरे. पिछली सीट पर ही हूं और बस की उछल-कूद जारी है. पर इसबार बचपन नहीं, तुम्हारे साथ बिताए वो सारे पल जी रहा हूं.

प्रिये प्रियतमा,

आज एकबार फिर तुम्हारी नगरी में हूं. पर सबकुछ कितना बदल गया है यहां या फिर अवश्य ही ये मेरी नज़रों को धोखा भी हो सकता है क्योंकि तुम जो साथ नहीं हो अब. याद है, पहले मैं और तुम साथ–साथ कितना घुमा करते थे! तुम जब मुझसे मिलने आया करती थी तो तुम्हे देखकर ही सफ़र की मेरी मीलों लंबी थकान छूमंतर हो जाया करती. फिर हमलोग कभी शहर में, तो कभी शहर से बाहर कितना घूमा करते थे!

अबकी, तुम्हारे बगैर बड़ी हिम्मत करके मैं पहली बार तुम्हारे शहर में आया और उन हरेक गली–कूची से होकर गुजरा, जिनपर तुम्हारे पैरों के छाप आज भी मुझे हर जगह महसूस हुए. हाथो में हाथ बांधे हमदोनों हंसी-ठिठोली करते मदमस्तों के जैसे फिरा करते थे. तुम्हारा स्कूल, कॉलेज, पुराना घर, उन हरेक रास्तों से गुजरती हुई तुम जब मुझे सारी बातें बताती थी, तो गोया तुम्हारी आंखों से उस क्षण मैं तुम्हारा पूरा बचपन जी जाता.

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याद है तुम्हे! तुम्हारा वो पसंदीदा बटरस्कॉच आईसक्रीम, जिसे देखकर तुम कहती थी 'आइए आइसक्रीम खाते है.' और मेरा हाथ पकड़े बर्फ वाले के स्टॉल पर खड़े होकर फिर हम दोनों आइसक्रीम का लुत्फ उठाते. वैसे तो मैं बर्फ वैगरह बहुत ही कम खाता हूं क्यूंकि थोड़ा साइनस का भी प्रॉबलम रहता है, पर तुम्हारे साथ रहकर न जाने कब बटरस्कॉच फ्लेवर वाला वो आइसक्रीम मेरा पसंदीदा बन गया. पर तुम क्या गई, अब बर्फ खाने की बात तो छोड़ो उसकी तरफ देखने की भी हिम्मत नहीं जुटा पाता.

याद है! हमलोग बस में बैठकर घूमने जाया करते थे. हालांकि सबसे अंत में पहुंचने की वजह से हमें अक्सर एकदम पिछली वाली सीट ही मिला करती थी. पर एक दूसरे के साथ वो पिछली सीट भी हमदोनो के लिए कितना हंसाने वाला पल साबित होता था, जब किसी स्पीडब्रेकर से गुजरने पर बस उछलती और हमदोनों भी अपनी सीट से उछल जाया करते. तब तुम कैसे खिलखिलाकर हंस पड़ती थी.

किसी बस स्टॉप पर बस के रूकने पर जब वो परचून वाला चढ़ता तो हमदोनों के ही जीभ लपलपा उठते थे और हमदोनों जी भरकर फिर अपना बचपन जीते. अबकी भी अभी उसी बस में बैठा हूं, पर अकेला. तुम नहीं हो साथ मेरे. पिछली सीट पर ही हूं और बस की उछल-कूद जारी है. पर इसबार बचपन नहीं, तुम्हारे साथ बिताए वो सारे पल जी रहा हूं. देखो, वो परचून वाला फिर बस में चढ़ा और मेरे सामने आकर खड़ा हो गया है. मेरी तरफ ऐसे घूर रहा है मानो तुम्हारे बारे में पूछ रहा हो.

पता है मुझे! तुम अब मेरे साथ तो नहीं हो और शायद कभी भी वो बीते पल लौटकर वापस न आएं. पर तुम्हारे शहर के हरेक गली, नुक्कड़, चौराहे और वो हरेक रास्ते जिनपे हम कभी साथ हुआ करते थे, ऐसा लगता है जैसे तुम अभी सामने से निकलकर चली आओगी.

जानता हूं वो सब मेरा भ्रममात्र है. शायद तुम्हारा प्रेम भी मेरा भ्रम ही तो था, जो तब जाकर टूटा जब तुमने मुझसे कह दिया कि मैं तुम्हारे लायक नहीं हूं.

खैर! कोई बात नहीं. भारी से भारी चीज टूटने की आवाज होती है, पर दिल टूटने की आवाज नहीं होती. फिर हर चीजें मुकम्मल थोड़े ही न हो पाती हैं! चाहे प्यार कह लो या इश्क़ जो ख़ुद ही ढाई अक्षर से बने हैं, वो भी तो अपने में ही अधूरे हैं, बिल्कुल हमदोंनो की तरह.

तुम जहां भी रहो, अपना ख़्याल रखना.

तुम्हारा और हमेशा तुम्हारा  

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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