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समाज

आखिर कब शादियों से बैन होंगे ये 13 Sexist रिवाज?

    • श्रुति दीक्षित
    • Updated: 13 नवम्बर, 2017 04:53 PM
  • 13 नवम्बर, 2017 04:53 PM
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शादी में कई ऐसे रीति-रिवाजों से हमारा सामना होता है जो वाकई अजीबो-गरीब लगते हैं, लेकिन क्या कभी किसी ने ये सोचने की कोशिश की है कि इन रिवाजों का असली काम क्या है?

भारत में शादियों को लेकर एक अलग ही माहौल होता है. जहां बाकी देशों में शादी मतलब एक दिन का काम वहीं भारत में शादी का मतलब कम से कम महीने भर की कठिन कसरत. शादी में कई ऐसे रीति-रिवाजों से हमारा सामना होता है जो वाकई अजीबो-गरीब लगते हैं, लेकिन क्या कभी किसी ने ये सोचने की कोशिश की है कि इन रिवाजों का असली काम क्या है? शादी दो लोगों के मिलन को दर्षाती है, लेकिन शादी में कई रिवाज बेमतलब और सेक्सिस्ट यानि लिंगभेद करते समझ आते हैं.

1. दूल्हे और उसके परिवार के पैर धोना...

लड़की पक्ष के लोग लड़के के पैर धोते हैं. कुछ जगहों पर ये भी देखा गया है कि लड़के के पूरे घरवालों के पैर धोए जाते हैं. पहले के जमाने में ये रिवाज शायद इसलिए था क्योंकि लोग एक गांव से दूसरे गांव चलकर आते थे, लेकिन अब इसकी कोई जरूरत नहीं लगती. न ही ऐसा कोई रिवाज है कि दुल्हन के पैर उसकी सास धोए.. ऐसे में इस घिसे पिटे रिवाज की क्या जरूरत है?

2. दूल्हे की कोहनी के नीचे दुल्हन...

बंगाली शादियों में ऐसा रिवाज देखने को मिलता है. यहां दुल्हन को दूल्हे की कोहनी के नीचे बैठना होता है और फिर कोहनी पर से पानी दुल्हन तक जाता है. इस रिवाज के क्या मायने थे ये नहीं जान सकता कोई.

3. काशीयात्रा....

दक्षिण भारत में एक रिवाज है काशीयात्रा जहां दूल्हे को एक छाता, एक चलने में मदद करने वाली लकड़ी और एक गमछे में दाल और चावल देकर भेज दिया जाता है. यहां दूल्हा शादी से इंकार करता है और दुल्हन के पिता उसे मनाते हैं और मिन्नते करते हैं कि उनकी बेटी से शादी कर ली जाए. ये वैसे तो हंसी-मजाक वाली रस्म है, लेकिन ये सिर्फ लड़कों के लिए है... लड़कियों का इसमें कोई योगदान नहीं है.

4. सिर्फ पिता करे कन्यादान...

ये...

भारत में शादियों को लेकर एक अलग ही माहौल होता है. जहां बाकी देशों में शादी मतलब एक दिन का काम वहीं भारत में शादी का मतलब कम से कम महीने भर की कठिन कसरत. शादी में कई ऐसे रीति-रिवाजों से हमारा सामना होता है जो वाकई अजीबो-गरीब लगते हैं, लेकिन क्या कभी किसी ने ये सोचने की कोशिश की है कि इन रिवाजों का असली काम क्या है? शादी दो लोगों के मिलन को दर्षाती है, लेकिन शादी में कई रिवाज बेमतलब और सेक्सिस्ट यानि लिंगभेद करते समझ आते हैं.

1. दूल्हे और उसके परिवार के पैर धोना...

लड़की पक्ष के लोग लड़के के पैर धोते हैं. कुछ जगहों पर ये भी देखा गया है कि लड़के के पूरे घरवालों के पैर धोए जाते हैं. पहले के जमाने में ये रिवाज शायद इसलिए था क्योंकि लोग एक गांव से दूसरे गांव चलकर आते थे, लेकिन अब इसकी कोई जरूरत नहीं लगती. न ही ऐसा कोई रिवाज है कि दुल्हन के पैर उसकी सास धोए.. ऐसे में इस घिसे पिटे रिवाज की क्या जरूरत है?

2. दूल्हे की कोहनी के नीचे दुल्हन...

बंगाली शादियों में ऐसा रिवाज देखने को मिलता है. यहां दुल्हन को दूल्हे की कोहनी के नीचे बैठना होता है और फिर कोहनी पर से पानी दुल्हन तक जाता है. इस रिवाज के क्या मायने थे ये नहीं जान सकता कोई.

3. काशीयात्रा....

दक्षिण भारत में एक रिवाज है काशीयात्रा जहां दूल्हे को एक छाता, एक चलने में मदद करने वाली लकड़ी और एक गमछे में दाल और चावल देकर भेज दिया जाता है. यहां दूल्हा शादी से इंकार करता है और दुल्हन के पिता उसे मनाते हैं और मिन्नते करते हैं कि उनकी बेटी से शादी कर ली जाए. ये वैसे तो हंसी-मजाक वाली रस्म है, लेकिन ये सिर्फ लड़कों के लिए है... लड़कियों का इसमें कोई योगदान नहीं है.

4. सिर्फ पिता करे कन्यादान...

ये हक सिर्फ पिता को दिया गया है कि वो कन्यादान करे. अगर पिता नहीं हैं तो घर का कोई दूसरा मर्द ये रस्म निभाता है. क्यों आखिर मां को इस रस्म से दूर रखा जाता है.

5. मां नहीं देखेगी बारात...

लड़की की मां कभी भी लड़की के लिए आई बारात नहीं देखेगी ऐसा रिवाज कई हिस्सों में देखने को मिलता है. कुछ बड़े-बूढ़ों से कहते सुना है कि इसका कारण है लड़की की खुशियों को कहीं मां की ही नजर न लग जाए. अब ये तो अजीब है. मां नजर सिर्फ बारात देखकर ही लगा देगी.

6. नाम और सरनेम बदलना...

सिंधी शादियों में लड़कियों का नाम शादी के वक्त बदला जाता है. ऐसा लड़के के नाम के हिसाब से किया जाता है और इससे ये माना जाता है कि शादी के बाद दोनों की जमेगी अच्छे से. बाकी भी सरनेम बदलना तो आम बात है. पर ये सब सिर्फ लड़कियों के साथ ही किया जाता है. अपनी पूरी पहचान शादी के बाद लड़की खो देती है, नए सिरे से सब कुछ शुरू करना होता है.

7. मांगलिक लड़कियां करें पीपल या कुत्ते से शादी...

फिल्म फिलौरी में पहली बार किसी लड़के की पीपल के पेड़ से शादी करवाने की रस्म दिखाई गई थी, इसके बाद फिल्म टॉयलेट एक प्रेम कथा में भी अक्षय कुमार भैंस से शादी करते हैं. लेकिन अक्सर ऐसा देखा जाता है कि लड़कियों की शादियां पेड़, कुत्ते, मैंढक, मटके आदि से करवाई जाती है.

8. सिर पर मटकी रखना...

बिहार में एक अजीब सी रस्म है. इस रस्म में जब लड़की अपने पति के घर जाती है तो उसकी सास उसके सिर पर एक मटकी रख देती है. ये मटकी सिर पर रखे हुए उसे सारे काम करने होते हैं और घर वालों के पैर छूने होते हैं. हर थोड़ी देर में मटकी की संख्या बढ़ा दी जाती है. ये रस्म इसलिए रखी गई है ताकि लड़की घर को कैसे संभालेगी इसकी परीक्षा हो पाए.

9. सिर्फ पुरुषों के लिए खाना...

असम में राभा समाज में कुछ ऐसी मान्यता है कि शादी के बाद पहली बार जब लड़की घर आए तो पूरे घर के लिए पूरा खाना बनाए न सिर्फ मीठा. इस खाने को सिर्फ पुरुषों को खिलाया जाएगा न कि महिलाओं को, दुल्हन खुद वो खाना नहीं खा सकती.

10. कन्यादान...

कन्यादान को एक पुण्य का काम माना जाता है, लेकिन इसे उसी तरह से देखा जाता है जिस तरह से घर का सबसे बड़ा लड़का अपने माता-पिता की चिता को मुखाग्नि देकर उन्हें उनके कर्तव्यों से मुक्त करता है. कन्या दान कहा जाता है इसे और न कि स्त्री दान... यानि माता-पिता को उनके कर्तव्यों और पापों से मुक्ति सिर्फ वर्जिन लड़की ही दे सकती है. हालांकि, ये सिर्फ एक दिमागी ख्याल है, लेकिन एक तरह से देखा जाए तो यकीनन ये रिवाज कुछ सेक्सिस्ट है.

11. दहेज देना...

भले ही कुछ मांगा न जाए, लेकिन फिर भी लड़की के परिवार वाले लड़के के परिवार वालों और लड़के के लिए कुछ न कुछ जरूर देंगे और लगभग हर फरमाइश पूरी करेंगे. शायद इससे ज्यादा सेक्सिस्ट रस्म दुनिया में कोई और नहीं होगी.

12. जूठा खाना...

एक और बंगाली रस्म है बौऊ भात. इसमें दुल्हन दूल्हे के दोस्तों और दूल्हे को खाना परोसती है. बाद में दुल्हन सिर्फ दूल्हे की जूठी प्लेट से खाना खाती है और उसकी थाली में जो भी बचा होता है उसे खाती है.

13. मंगलसूत्र और सिंदूर...

एक नवविवाहिता का गहना, मंगलसूत्र, सिंदूर, बिछुए आदि सिर्फ महिलाओं को ही पहनने होते हैं, इसमें से कुछ भी मर्द नहीं पहनते. इसमें कोई शक नहीं कि इससे सुंदरता बढ़ जाती है, लेकिन फिर भी जिन्हें ये नहीं पसंद उन्हें भी ये रिवाज तो अपनाना ही पड़ता है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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