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2017 में हुए थे ये भीषण हादसे, जो 2018 में भी होंगे !

    • अनुज मौर्या
    • Updated: 16 दिसम्बर, 2017 11:56 AM
  • 16 दिसम्बर, 2017 11:56 AM
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2017 में ऐसे कई हादसे हुए हैं, जिन्हें फिलहाल तो भुला दिया गया है, लेकिन आशंका है कि 2018 में फिर से ये हादसे जनता के दिलो-दिमाग पर दस्तक देंगे.

सरकार चाहें किसी की भी हो, वह अपनी उपलब्धियां गिनाना नहीं भूलती. भूल जाती है तो ये बताना कि उसके कार्यकाल में गलतियां कहां-कहां हुईं. जो जनता किसी हादसे के बारे में सुनते ही सरकार को कोसना शुरू कर देती थी, वह जनता भी उन हादसों को भूल जाती है. ये हादसे दोबारा तब याद आते हैं, जब फिर से कोई वैसी ही दुर्घटना होती है. 2017 का साल भी ऐसा ही रहा है. जब कभी कोई हादसा हुआ तो हादसे के लिए जिम्मेदार महकमे को खूब खरी-खोटी सुनाई गई. लेकिन धीरे-धीरे वह हादसा लोगों की यादों से धूमिल हो गया. लोगों को यह हादसा फिर याद आएगा, लेकिन तब, जब कोई और दुर्घटना घटेगी. 2017 में भी ऐसे कई हादसे हुए हैं, जिन्हें फिलहाल तो भुला दिया गया है, लेकिन आशंका है कि 2018 में फिर से ये हादसे जनता के दिलो-दिमाग पर दस्तक देंगे.

7000 किमी. ट्रैक 30 साल पुराना

2017 में कुल 9 ट्रेन हादसे हुए, जिनमें करीब 67 लोग मारे गए और करीब 360 लोग घायल हुए. 2017 में हुए अधिकतर रेल हादसे रेलवे के ट्रैक के खराब मेंटेनेंस की वजह से हुए हैं. भारतीय रेल की लंबाई करीब 64,000 किलोमीटर है, जिसमें से करीब 7000 किलोमीटर ट्रैक लगभग 30 साल पुराना है और उसे तुरंत ही बदलने की जरूरत है. मोदी सरकार ने बुलेट ट्रेन चलाने का जिम्मा तो उठा लिया है, लेकिन अभी तक यह नहीं बताया है कि आखिर उन जर्जर रेलवे ट्रैक से कैसे निपटा जाएगा. इन्हें बदले जाने को लेकर अभी तक सरकारी खेमे में कोई बहस भी शुरू नहीं हुई है. इससे एक बात तो साफ है कि 2018 में भी ट्रेनें पटरी से उतर सकती हैं, जिससे लोगों की मौत हो सकती है.

2017 में कुल 9 ट्रेन हादसे हुए, जिनमें करीब 67 लोग मारे गए और करीब 360 लोग घायल हुए.

वाहवाही के चक्कर में गई 46 लोगों की जान

उत्तर प्रदेश में 1 नवंबर...

सरकार चाहें किसी की भी हो, वह अपनी उपलब्धियां गिनाना नहीं भूलती. भूल जाती है तो ये बताना कि उसके कार्यकाल में गलतियां कहां-कहां हुईं. जो जनता किसी हादसे के बारे में सुनते ही सरकार को कोसना शुरू कर देती थी, वह जनता भी उन हादसों को भूल जाती है. ये हादसे दोबारा तब याद आते हैं, जब फिर से कोई वैसी ही दुर्घटना होती है. 2017 का साल भी ऐसा ही रहा है. जब कभी कोई हादसा हुआ तो हादसे के लिए जिम्मेदार महकमे को खूब खरी-खोटी सुनाई गई. लेकिन धीरे-धीरे वह हादसा लोगों की यादों से धूमिल हो गया. लोगों को यह हादसा फिर याद आएगा, लेकिन तब, जब कोई और दुर्घटना घटेगी. 2017 में भी ऐसे कई हादसे हुए हैं, जिन्हें फिलहाल तो भुला दिया गया है, लेकिन आशंका है कि 2018 में फिर से ये हादसे जनता के दिलो-दिमाग पर दस्तक देंगे.

7000 किमी. ट्रैक 30 साल पुराना

2017 में कुल 9 ट्रेन हादसे हुए, जिनमें करीब 67 लोग मारे गए और करीब 360 लोग घायल हुए. 2017 में हुए अधिकतर रेल हादसे रेलवे के ट्रैक के खराब मेंटेनेंस की वजह से हुए हैं. भारतीय रेल की लंबाई करीब 64,000 किलोमीटर है, जिसमें से करीब 7000 किलोमीटर ट्रैक लगभग 30 साल पुराना है और उसे तुरंत ही बदलने की जरूरत है. मोदी सरकार ने बुलेट ट्रेन चलाने का जिम्मा तो उठा लिया है, लेकिन अभी तक यह नहीं बताया है कि आखिर उन जर्जर रेलवे ट्रैक से कैसे निपटा जाएगा. इन्हें बदले जाने को लेकर अभी तक सरकारी खेमे में कोई बहस भी शुरू नहीं हुई है. इससे एक बात तो साफ है कि 2018 में भी ट्रेनें पटरी से उतर सकती हैं, जिससे लोगों की मौत हो सकती है.

2017 में कुल 9 ट्रेन हादसे हुए, जिनमें करीब 67 लोग मारे गए और करीब 360 लोग घायल हुए.

वाहवाही के चक्कर में गई 46 लोगों की जान

उत्तर प्रदेश में 1 नवंबर 2017 को ऊंचाहार में एनटीपीसी की यूनिट-6 में बॉयलर फट गया था. बॉयलर की राख की निकासी को लेकर सही गाइडलाइंस नहीं थी, जिसके चलते राख में दबाव बढ़ा और एक धमाका हो गया. इसमें करीब 46 लोगों की मौत हुई और 100 से भी अधिक लोग घायल हुए. केन्द्रीय ऊर्जा मंत्री आर. के. सिंह ने बिना किसी जांच के कह दिया था कि इस मामले में कोई भी लापरवाही जैसी चीज देखने को नहीं मिली है. इस यूनिट को जल्दबाजी में बनाया गया था. इस यूनिट को 3 साल में पूरा होना था, लेकिन अपनी वाहवाही के लिए इसे 2.5 साल में ही पूरा किया गया. यूपी सरकार ने राज्य में उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए उन्हें लेबर अथॉरिटी की जांच से मुक्त कर दिया है, जिसकी वजह से भी नियमों को ताक पर रखकर यूनिट चलाई जा रही हैं. औद्योगिक इकाइयों और उनकी मशीनों की समय-समय पर जांच होना जरूरी है, वरना ऐसा हादसे फिर से होंगे.

इस यूनिट को 3 साल में पूरा होना था, लेकिन अपनी वाहवाही के लिए इसे 2.5 साल में ही पूरा किया गया.

वक्त बदल गया, पर पुल नहीं

मुंबई के परेल-एलफिंस्टन स्टेशन के पास बने पैदल पुल पर 29 सितंबर 2017 को भगदड़ मच गई. सुबह करीब 11 बजे मची इस भगदड़ में करीब 22 लोगों की मौत हो गई थी, जबकि 30 से भी अधिक लोग घायल थे. 5 मीटर चौड़ा और 32 मीटर लंबा यह पैदल पुल 1972 में बनाया गया था. इस पुल पर बहुत अधिक भीड़ होती थी, जिसके चलते दूसरा पुल बनाने की मांग भी की जा रही थी. करीब 45 साल पुराने इस पुल को दोबारा बनाने पर विचार भी हो रहा था, लेकिन नया पुल बनने से पहले ही ये भीषण हादसा हो गया. अगर समय रहते सरकार ने नया पुल बनवा दिया होता तो 22 लोगों की जान बच सकती थी. अभी देश में ऐसे बहुत से पैदल पुल है, जिनकी भी हालत खस्ता है, जो आने वाले समय में किसी हादसे को न्योता दे सकते हैं.

कहीं पुल बहा, कहीं सड़क

गोवा में 18 मई को एक पैदल पुल गिर गया. दरअसल, इस पुल से एक व्यक्ति ने आत्महत्या करने के लिए नीचे नदी में छलांग लगा दी थी. पुल पर बहुत सारे लोग खड़े होकर उसी व्यक्ति को बचाने का ऑपरेशन देश रहे थे. तभी अचानक पुर्तगाली शासन के दौरान बनाया गया ये पुल नदी में गिर गया. इस हादसे में 2 लोगों की मौत हो गई और करीब 50 लोग पानी में बह गए. इतने पुराने पुल का भी लोगों की आवाजाही के लिए इस्तेमाल किए जाने से ये हादसा हुआ है. ऐसे पुल पर लोगों का जाना रोकना चाहिए, ताकि कोई दुर्घटना न हो.

अगस्त 2017 के दौरान बारिश की वजह से एक सड़क के भी बह जाने का वीडियो वायरल हुआ था. दार्जलिंग में हुए इस हादसे में करीब 2 लोगों की मौत हो गई थी. यह सारी घटना कैमरे में कैद हो गई. बारिश में इस तरह से कटाव से बचने के लिए भी जरूरी उपाय किए जाने की जरूरत है. हर साल बारिश के समय में ऐसी घटनाएं होती हैं, जिनसे निपटने का तरीका निकालने बहुत जरूरी है.

इन हादसों से यह तो साफ है कि जिम्मेदार लोग अपना काम पूरी जिम्मेदारी से नहीं कर रहे हैं. सरकार को सभी विभागों को लेकर गाइडलाइंस जारी करने की जरूरत है, ताकि दोबारा ऐसे हादसे न हों.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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